जब किसी परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा स्रोत के साथ एक नगण्य प्रतिरोध वाला प्रेरकत्व कुण्डली को जोड़ा जाता है तो इस परिपथ को शुद्ध प्रेरकीय प्रत्यावर्ती परिपथ कहा जाता है।
यहाँ हम इस प्रेरकत्व कुण्डली का प्रतिरोध शून्य (नगण्य) मानकर चलते है तथा इस कुण्डली का प्रेरकत्व L मानते है।
चित्रानुसार परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा स्रोत लगा हुआ है अत: धारा की दिशा तथा परिमाण समय के साथ परिवर्तित होगा जिससे कुण्डली में स्वप्रेरण के कारण प्रत्यावर्ती विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है , यह उत्पन्न स्वप्रेरण प्रत्यावर्ती विभवान्तर आरोपित वोल्टेज का विरोध करता है अर्थात प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में प्रेरकत्व रुकावट डालता है , किसी प्रेरकत्व द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में डाली गयी रुकावट को ही प्रेरणिक प्रतिघात कहते है तथा इसे XL द्वारा व्यक्त किया जाता है।
माना परिपथ में आरोपित वोल्टता का मान निम्न है
V = Vmsinwt
माना परिपथ में आरोपित वोल्टता के कारण i धारा बहती है तो स्वप्रेरित विद्युत वाहक बल का मान निम्न होगा
e = -Ldi/dt V + e = 0
या
V = -e
यहाँ e का मान रखने पर
V = – (-Ldi/dt)
V = Ldi/dt
यहाँ आरोपित वोल्टता
V = Vm sinwt
V का मान समीकरण में रखने पर
Vm sinwt = Ldi/dt
di/dt = Vm sinwt /L
दोनों तरफ समाकलन करने पर
यहाँ XL प्रेरकत्व द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में डाली गयी रुकावट को व्यक्त करता है इसे प्रेरणिक प्रतिघात कहते है
निम्न समीकरण को देखकर कह सकते है की यहाँ धारा कला में आरोपित वोल्टता से π/2 पीछे है।
या
धारा कला में π/2 आगे है।
इसे निम्न प्रकार ग्रफित किया जा सकता है
फेजर डायग्राम को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है या वेक्टर रूप में
Remark:
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