UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 20 प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 20 प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
कृत्रिम श्वसन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसके लिए अपनाई जाने वाली मुख्य विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2009, 11, 13, 14]
या
कृत्रिम श्वसन किसे कहते हैं? यह कब और कितने प्रकार से दी जाती है? [2011]
या
कृत्रिम श्वसन के लिए अपनाई जाने वाली शेफर्स सिल्वेस्टर तथा लाबार्ड विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2010, 11, 13, 14]
या
प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन से क्या तात्पर्य है ? कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता कब होती है? कृत्रिम श्वसन की किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12, 13, 18]
या
डूबने पर किस कृत्रिम विधि का प्रयोग करते हैं ? इस विधि का वर्णन कीजिए। [2012, 15]
या
कृत्रिम श्वसन किसे कहते हैं ? शेफर्स विधि क्या है ? [2016]
या
कृत्रिम श्वसन से आप क्या समझते हैं ? किसी एक कृत्रिम श्वसन विधि का वर्णन कीजिए। [2016]
या
लाबार्ड विधि क्या है? [2017]
उत्तर:
प्राकृतिक श्वसन का अर्थ

प्राकृतिक श्वसन की क्रिया मनुष्य के शरीर में सदैव तथा प्रति क्षण होती रहती है। यह स्वतः एक अनैच्छिक क्रिया के रूप में होती रहती है। यह स्वतः ही पसलियों तथा तन्तु पट की क्रिया पर निर्भर करती है और व्यक्ति की स्वयं मांसपेशियों द्वारा सम्पादित होने वाली क्रिया है। यह प्राकृतिक रूप से होने के कारण सदैव एक ही विधि के द्वारा होने वाली क्रिया है।

कृत्रिम श्वसन का अर्थ
किसी कारणवश यदि फेफड़ों में स्वच्छ एवं ताजा वायु का आना-जाना कम या बन्द हो जाए, तो दुम घुटने की स्थिति आ सकती है। ऐसे में शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आवश्यकता पूर्ति न हो पाने के कारण व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। इस स्थिति में दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जीवन रक्षा के लिए उसके फेफड़ों में किसी कृत्रिम-विधि द्वारा स्वच्छ तथा ताजी ऑक्सीजन युक्त वायु को भरा जाना अनिवार्य हो जाता है। इस क्रिया को ही प्राथमिक चिकित्सा की भाषा में कृत्रिम श्वसन-क्रिया कहा जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी अन्य व्यक्ति के प्रयासों द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की श्वसन-क्रिया को चलाना ही कृत्रिम श्वसन-क्रिया है। कृत्रिम श्वसन की क्रिया प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति अथवा चिकित्सक की इच्छा एवं प्रयासों पर निर्भर करती है।

कृत्रिम श्वसन की विधियाँ

कृत्रिम श्वसन-क्रिया के लिए सामान्य रूप से तीन विधियों को अपनाया जाता है, जिनका विवरण अग्रलिखित है

(1) शेफर्स विधि (Shaffer’s Method):
इस विधि में जिस व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन देना हात हे सर्वप्रथम उसके वस्त्र उतार दिये जाते हैं। यदि यह सम्भव न हो तो कम-से-कम उसके वक्षस्थल के वस्त्र उतार देने चाहिए। यदि किसी कारणवश यह भी सम्भव नै हो, तो उन्हें इतना ढीला कर दिया जाना चाहिए कि वक्षीय कटहरे पर किसी प्रकार का दबाव न रहे। इसके लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनानी चाहिए

  1. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पेट को आधार मानकर लिटाना चाहिए तथा मुँह को एक ओर कर देना चाहिए। टाँगों आदि को पूरी तरह फैलाकर रखना चाहिए।
  2. नाक, मुँह इत्यादि को अच्छी तरह साफ कर देना चाहिए, ताकि श्वास भली-भाँति आ सके। प्राथमिक चिकित्सा या उपचार करने वाले व्यक्ति को रोगी के एक ओर उसके पार्श्व में, कमर के पास अपने घुटने भूमि पर टिकाकर, पैरों को थोड़ा-सा रोगी की टाँगों के साथ कोण बनाते हुए, बैठ जाना चाहिए। इसके बाद रोगी की पीठ पर अपने दोनों हाथों को फैलाकर इस प्रकार रखना चाहिए कि दोनों हाथों के अँगूठे रीढ़ की हड्डी के ऊपर समान्तर रूप में सिर की ओर मिलाकर रखें। ध्यान रखना चाहिए कि इस समय उँगलियाँ फैली हुईं, अँगूठे के लगभग 90° के कोण पर रोगी की कमर पर रहें। चिकित्सक को अपने हाथ रोगी की पसलियों के पीछे रखने चाहिए।
  3. अब दोनों हाथों को पूरी तरह जमाते हुए, बिना कोहनी को मोड़े, चिकित्सक को आगे की ओर झुकना चाहिए। इस समय चिकित्सक को वजन घुटने तथा हाथ पर रहेगा। इससे रोगी के पेट पर दबाव पड़ेगा तथा इस क्रिया से वक्षीय गुहा फैल जाएगी और फेफड़ों में उपस्थित वायु दबाव के कारण बाहर निकल जाएगी। यदि रोगी के फेफड़ों में पानी भर गया है, तो वह भी इस क्रिया से बाहर निकल जाएगा।
  4.  चिकित्सक को अपना हाथ यथा-स्थान रखकर धीरे-धीरे झुकाव कम करना चाहिए, यहाँ तक कि बिल्कुल दबाव न रहे। इस क्रिया से वक्षीय गुहा पूर्व-स्थिति में आ जाएगी और फेफड़ों में वायु
    का दबाव कम होने से वायुमण्डल की वायु स्वतः ही अन्दर आ जाएगी।
  5. इस प्रकार दबाव डालने और हटाने की प्रक्रिया को 1 मिनट में 12 से 13 बार शनैः शनैः मिक रूप से दोहराते रहना चाहिए। निश्चय ही क्रिया को सावधानीपूर्वक एक बराबर समय देकर तथा धीरे-धीरे करें। स्वतः प्राकृतिक श्वसन, अपनी सामान्य स्थिति में होने लगेगा।
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सावधानियाँ:

  1. वक्ष पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए; जैसे–कपड़ा इत्यादि का कसाव आदि।।
  2.  गर्दन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
  3. नाक, मुंह आदि भली-भाँति साफ कर लिये जाने चाहिए। दबाव डालने और दबाव कम करने की क्रिया लगातार और एक बराबर क्रम से होनी चाहिए।
  4.  प्राकृतिक श्वसन प्रारम्भ हो जाने पर भी कुछ समय तक रोगी को देखते रहना चाहिए, ताकि फिर से उसका दम न घुटने लगे।

(2) सिल्वेस्टर विधि (Silvester’s Method):
कृत्रिम श्वास देने की इस विधि में रोगी को किसी समतल स्थान पर सीधा लिटाया जाता है। उसके वस्त्रों को ढीला करके, गर्दन के पीछे कन्धों के बीच में कोई तकिया इत्यादि लगाया जाता है, ताकि सिर पीछे को नीचा हो जाए। इस विधि से रोगी को श्वसन कराने के लिए दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति सिर की ओर घुटने के सहारे बैठकर रोगी के दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों के द्वारा अलग-अलग पकड़ लेता है। इस समय दूसरा व्यक्ति रूमाल या किसी अन्य साफ कपड़े से रोगी की जीभ को पकड़कर बाहर की तरफ खींचे रहेगा। पहला व्यक्ति रोगी के दोनों हाथों को उसके वक्ष की ओर ले जाते हुए अपने घुटने पर सीधा होकर आगे की ओर झुकता हुआ रोगी की छाती पर दबाव डालेगा। इस प्रकार उस रोगी की बाहु को उसके वक्ष की ओर ले जाएगा और फिर पूर्व-स्थिति में सिर की ओर खींच लेगा।

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क्रमिक रूप में 1 मिनट में लगभग 12 बार इस क्रिया को दोहराने से रोगी की श्वसन-क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस क्रिया में दबाव डालने का समय 2 सेकण्ड और ढीला छोड़ने का समय 3 सेकण्ड होता है। इस क्रिया को क्रमिक तथा धीमे-धीमे व बराबर समय के अन्तराल से किया जाना
आवश्यक है।

सावधानियाँ:

  1. रोगी की जीभ को कसकर पकड़ना चाहिए।
  2. जिस क्रम से चिकित्सक ऊपर उठे, उसी क्रम से नीचे बैठे अर्थात् दबाव डालने और दबाव कम करने की प्रक्रिया एक जैसी होनी चाहिए।
  3.  रोगी को किसी समतल स्थान पर लिटाना चाहिए तथा उसके वस्त्र इत्यादि ढीले कर देने चाहिए, ताकि वक्ष पर किसी प्रकार का दबाव न रहे।

(3) लाबार्ड विधि (Labard’s Method):
शेफर्स और सिल्वेस्टर विधियों द्वारा श्वास देना यदि सम्भव न हो, तो इस विधि का प्रयोग किया जाता है; जैसे-वक्ष-स्थल की कोई हड्डी इत्यादि टूटने पर डॉक्टर के आने तक इस विधि द्वारा रोगी को ऑक्सीजन उपलब्ध कराकर जीवित रखा जा सकता है। यह विधि निम्नलिखित है
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को एक करवट से लिटाकर उसके समीप एक तरफ चिकित्सक को अपने घुटने पर बैठकर रोगी की नाक, मुँह इत्यादि को भली-भाँति साफ कर लेना चाहिए। किसी स्वच्छ रूमाल या कपड़े से रोगी की जीभ पकड़कर बाहर खींचनी चाहिए और 2 सेकण्ड के लिए छोड़ देनी चाहिए। इसे समय रोगी का मुंह खुला रहना चाहिए तथा इसके लिए रोगी के मुंह में कोई चम्मच इत्यादि डाली जा सकती है। इस क्रिया को तब तक दोहराते रहना चाहिए जब तक कि रोगी की प्राकृतिक श्वसन-क्रिया प्रारम्भ न हो जाए।
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया में क्या अन्तर है? [2008, 09, 10, 11, 13, 14, 15, 16, 17]
या
प्राकृतिक श्वसन और कृत्रिम श्वसने के बारे में लिखिए। [2008, 15]
उत्तर:
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प्रश्न 2:
दम घुटने के कारण तथा उपचार बताइए।
उत्तर:
दम घुटने के कारण श्वसन-क्रिया में व्यवधान उत्पन्न होने पर दम घुटने लगता है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1.  पानी में डूबने पर श्वसन मार्ग में जल घुस जाने के कारण दम घुट सकता है।
  2.  किसी विषैली गैस के श्वसन मार्ग तथा फेफड़ों में भर जाना भी दम घुटने का कारण बन सकता है।
  3. किसी वस्तु के नासा मार्ग में अटक जाने पर भी दम घुटने की स्थिति बन जाती है।
  4.  गले में सूजन या अन्य किसी रोग के कारण भी दम घुटने की स्थिति बन जाती है।
  5. श्वास नली पर अधिक दबाव पड़ने पर जैसे कि फाँसी लगने पर दम घुट जाता है।
  6. श्वास नियन्त्रण केन्द्र पर किसी विषैले या हानिकारक प्रभाव पड़ने पर भी दम घुटने लगता है। उदाहरण-विष खाना, बिजली का झटका लगना आदि।

दम घुटने के उपचार:
दम घुटने के उपचार निम्ननिखित हैं।

  1. दुर्घटना के कारण को दूर करना।
  2.  यदि डूबने के कारण पेट में पानी भर गया हो तो उसे निकाल देना चाहिए।
  3.  यदि कोई वस्तु श्वसन मार्ग में रुकावट उत्पन्न कर रही है तो उसे निकाल देना चाहिए।
  4. किसी उपयुक्त विधि द्वारा पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम श्वसने देना चाहिए।

प्रश्न 3:
कृत्रिम श्वसन-क्रिया की हमारे जीवन में कब और क्यों आवश्यकता होती है? [2009, 13, 14]
उत्तर:
विभिन्न परिस्थितियों में जबकि किसी व्यक्ति का दम घुट रहा हो अथवा अचानक श्वसन-क्रिया रुक जाए (रेस्पिरेटरी अरेस्ट) तो कृत्रिम श्वसन कराना अति आवश्यक होता है। इन परिस्थितियों के कारण सामान्यत: निम्नलिखित होते हैं

  1. वक्ष-स्थल की हड्डी अथवा हड्डियों का टूट जाना।
  2. पानी में डूबने के कारण श्वसन मार्ग में जल का प्रवेश कर जाना।
  3.  किसी विषैली गैस को श्वसन मार्ग एवं फेफड़ों में भर जाना।
  4.  श्वास नली पर अत्यधिक दबाव पड़ना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता कब होती है? [2013]
उत्तर:
किसी कारण विशेष से यदि व्यक्ति के फेफड़े कार्य करना बन्द कर दें, तो व्यक्ति की प्राकृतिक श्वसन-क्रिया अवरुद्ध होने लगती है तथा दम घुटने लगता है। इस स्थिति में तत्काल कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2:
कृत्रिम श्वसन की कितनी विधियाँ हैं? [2013]
उत्तर:
कृत्रिम श्वसन की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं

  1. शेफर्स विधि,
  2.  सिल्वेस्टर विधि तथा
  3.  लाबार्ड विधि।

प्रश्न 3:
कृत्रिम श्वसन-क्रिया कराने की दर क्या होनी चाहिए?
उत्तर:
कृत्रिम श्वसन कराते समय श्वसन-क्रिया की दर प्रति मिनट 12 से 13 बार तक होनी चाहिए।

प्रश्न 4:
डूबे हुए व्यक्ति के साथ सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सर्वप्रथम डूबे हुए व्यक्ति का पेट एवं फेफड़ों में भरा हुआ पानी बाहर निकालने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 5:
लाबार्ड विधि कब प्रयोग में लानी चाहिए?
उत्तर:
वक्षःस्थल की कोई हड्डी टूटने पर कृत्रिम श्वसन के लिए लाबार्ड विधि अपनानी चाहिए।

प्रश्न 6:
लाबार्ड विधि का प्रयोग करते समय आप क्या सावधानी रखेंगी?
उत्तर:
लाबार्ड विधि में विशेष रूप से यह ध्यान रखा जाता है कि रोगी की जीभ दाँतों के बीच में आकर कट न जाए।

प्रश्न 7:
सिल्वेस्टर विधि में रोगी को किस प्रकार लिटाया जाता है?
उत्तर:
सिल्वेस्टर विधि में रोगी को किसी समतल स्थान पर सीधा लिटाया जाता है।

प्रश्न 8:
शेफर्स विधि में रोगी को किस आसन पर लिटाया जाता है?
उत्तर:
शेफर्स विधि में रोगी के पेट को आधार मानकर लिटाना चाहिए। रोगी के मुँह को एक ओर कर उसके हाथों व टाँगों को पूरी तरह फैला देना चाहिए।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. शेफर्स विधि द्वारा कृत्रिम श्वसन कराते समय रोगी को लिटाना चाहिए
(क) कमर के बल
(ख) पीठ के बल
(ग) पेट के बल
(घ) किसी भी प्रकार से

2. डूबे हुए व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन दिलाने के लिए कौन-सी विधि उत्तम रहती है?
(क) शेफर्स विधि
(ख) सिल्वेस्टर विधि
(ग) लाबार्ड विधि
(घ) मुँह-से-मुँह के द्वारा

3. सिल्वेस्टर विधि से कृत्रिम श्वसन देने के लिए कितने व्यक्तियों की आवश्यकता होती है?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार

4. सिल्वेस्टर विधि में रोगी को लिटाया जाता है
(क) पेट के बल
(ख) उल्टा
(ग) पीठ के बल
(घ) किसी भी प्रकार से

5. कृत्रिम विधि से साँस कब दिलाई जाती है? [2015]
(क) जेल में डूबने पर
(ख) फाँसी लगाने पर
(ग) दम घुटने पर
(घ) तीनों अवस्थाओं में

6. कृत्रिम श्वसन की क्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व साफ कर लेने चाहिए
(क) आँखें
(ख) कान
(ग) नाक तथा मुँह
(घ) हाथ-पैर

7. कृत्रिम श्वसन की सबसे असुविधाजनक विधि है
(क) सिल्वेस्टर विधि
(ख) शेफर्स विधि
(ग) लाबार्ड विधि
(घ) कोई भी नहीं

8. सिल्वेस्टर विधि का प्रयोग होता है। [2012, 14, 18]
(क) डूबने पर
(ख) मूर्च्छित होने पर
(ग) अस्थिभंग में
(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर:
1. (ग) पेट के बल,
2. (क) शेफर्स विधि,
3. (ख) दो,
4. (ग) पीठ के बल,
5. (घ) तीनों अवस्थाओं में,
6. (ग) नाक तथा मुँह,
7. (ग) लाबार्ड विधि,
8. (घ) इनमें से कोई नहीं।

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