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परिचय
पुराणों में भगवान् विष्णु को सर्वत्र भक्तवत्सल के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इनकी भक्तवत्सलता की अनेक कथाएँ भारतीय जनमानस में प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कथा गजेन्द्र मोक्ष के नाम से भी प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार, किसी हाथी को अपने बल का अत्यधिक घमण्ड था। वह हाथियों का राजा भी था। एक बार वह एक सरोवर पर जल पीने गया। वहाँ वह अपने साथी हाथियों और हथिनियों के साथ जल-क्रीड़ा करने लगा। अपने बल के प्रति गर्वित और जल-क्रीड़ा में मग्न उस हाथी को किसी का भय नहीं था। सहसा एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। हाथी मगर को जल से बाहर खींच रहा था और मगर उसे जल के भीतर। हाथी जब लड़ते-लड़ते थक गया तब उसने भगवान् विष्णु को रक्षा के लिए पुकारा। भगवान् विष्णु ने हाथी को मगर से छुड़ा दिया। प्रस्तुत पाठ भगवान् विष्णु की भक्त-वत्सलता के साथ-साथ भक्त की निरभिमानता की पुष्टि भी करता है।
पाठ-सारांश [2005,06,08,09,14]
वरुण के उद्यान का वर्णन प्रसिद्ध त्रिकूट पर्वत पर देवांगनाओं की क्रीड़ास्थली के रूप में भगवान् वरुण का ऋतुमत् नाम का उद्यान था। इस उद्यान में सुन्दर फल और पुष्पों वाले पारिजात, अशोक, आम, कचनार, अर्जुन, चन्दन आदि के वृक्ष लगे हुए थे।
सरोक्र का वर्णन उस उद्यान में अनेक कमल-पुष्पों से शोभित; हंस, सारस आदि के स्वर से गुञ्जित; कदम्ब, कुन्द, शिरीष आदि के पुष्पों; मल्लिका, माधवी आदि सुगन्धित लताओं से शोभित, सुन्दर ध्वनि वाले पक्षियों से घिरा हुआ, मगर कछुआ आदि जलचरों से युक्त एक सरोवर था।।
गजेन्द्र का वर्णन उस गिरिकानन में हथिनियों के साथ घूमता हुआ एक महागज कीचक (बाँस), वेणु और बेंत के झुरमुटों को तोड़ता रहता था। उसकी गन्धमात्र से सिंह, बाघ, शूकर, गैंडे, भेड़िये आदि भयानक और हिंसक जानवर भी डरकर भाग जाते थे। उसकी कृपा से हिरन, खरगोश आदि छोटे पशु निर्भय होकर विचरण करते थे। एक दिन धूप से सन्तप्त होकर वह हाथियों और हथिनियों के साथ, गजशावकों से अनुधावित; अर्थात् आगे चलता हुआ, भ्रमरों से सेवित और अपनी गरिमा से पर्वत को हिलाता हुआ उस सरोवर के पास गया। वह उस सरोवर में डुबकी लगाकर, स्वच्छ पानी पीकर और स्नान करके थकावटरहित हो गया।
ग्राह से युद्ध अपनी सँड़ से पानी उठाकर हथिनियों और गज-शावकों को जल पिलाकर और स्नान कराकर जल-क्रीड़ा करते हुए उस महागज को एक बलवान् ग्राह ने क्रोध से पकड़ लिया और उसे बलपूर्वक बड़े वेग से खींचा। इस संकट से उसे दूसरे हाथी भी नहीं बचा सके। इस प्रकार मगर और हाथी में परस्पर बहुत वर्षों तक युद्ध चलता रहा। बहुत समय तक युद्ध करते हुए हाथी का मनोबल और शारीरिक बल क्षीण होता गया जब कि ग्राह का इससे विपरीत ही हुआ अर्थात् उसको आत्मबल और शारीरिक बल बढ़ता ही गया।
विष्णु द्वारा मुक्ति जब गजेन्द्र ग्रह की जकड़ से छूटने में असमर्थ हो गया और उसके प्राण संकट में पड़ गये तो उसने शरणागतों के रक्षक भगवान् विष्णु की स्तुति की। गजेन्द्र की करुण विनती सुनकर विष्णु स्वयं गरुड़ पर सवार होकर देवताओं के साथ उसके पास आये। गजेन्द्र को पीड़ित देखकर उन्होंने उसे ग्राहसहित तालाब से उठा लिया और देखते-ही-देखते अर्थात् अत्यधिक शीघ्र गजेन्द्र को ग्राह के मुख से छुड़ा दिया।
गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद
(1)
विश्रुते त्रिकूटगिरिवरे सुरयोषितामाक्रीडं सर्वतो नित्यं दिव्यैः पुष्पफलद्रुमैः मन्दारैः पारिजातैः पाटलाशोकचम्पकैः प्रियालैः पनसैरामैराम्रातकैः क्रमुकैर्नालिकेरैश्च बीजपूरकैः खर्जुरैः मधुकैः सालतालैस्तमालैः रसनार्जुनैररिष्टोदुम्बरप्लक्षैर्वटैः किंशुकचन्दनैः पिचुमन्दैः कोविदारैः सरलैः सुरदारुभिः द्राक्षेक्षुरम्माजम्बूभिर्बदर्यक्षाभयामलैः बिल्वैः कपित्थैर्जम्बीरैः भल्लातकादिभिः वृतं महात्मनो भगवतो वरुणस्योद्यानमृतुमन्नाम बभूव। [2014]
शब्दार्थ विश्रुते = प्रसिद्ध। सुरयोषिताम् = देवांगनाओं का। आक्रीडम् = क्रीड़ा का स्थान। मन्दारैः = आक के पौधे से। पाटलाशोकचम्पकैः = पाटल, अशोक और चम्पा के फूलों से। प्रियालैः = चिरौंजी से। पनसैः = कटहल से। आम्रातकैः = आँवला से। क्रमुकैः = सुपारी से। नारिकेलैः = नारियल के वृक्षों से। बीजपूरकैः = चकोतरे से। मधुकैः = मुलेठी, महुआ से। सालतालैस्तमालैः = साल, ताड़ और तमाल के वृक्षों से। उदुम्बर = गूलर। प्लक्ष = पाकड़ वट = बरगदा किंशुक = ढाका पिचुमन्दैः = नीम से। कोविदारैः = कचनार से। सुरदारुभिः = देवदारु के वृक्षों द्वारा। द्राक्षा = अंगूर) इक्षु = ईख| रम्भा = केला। जम्बू = जामुन| बदरी = बेर। अभय = हरड़। कपित्थ = कैथ। जम्बीरैः = नींबू। भल्लातक = भिलावा। वृत्तम् = घिरा हुआ। वरुणस्योद्यानमृतुमन्नाम = वरुण का ऋतुमत नाम का उद्यान।
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘गजेन्द्रमोक्षः’ शीर्षक पाठ से उधृत है।
[ संकेत इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में वरुण के उद्यान के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।
अनुवाद प्रसिद्ध सुन्दर त्रिकूट पर्वत पर मन्दार, पारिजात, पाटल, अशोक, चम्पक, चिरौंजी, कटहल, आम, आँवला, सुपारी, नारियल, खजूर, महुआ, साल, ताड़, तमाल, रसनार्जुन, अरिष्ट, उदुम्बर, पीपल, बड़, ढाक, चन्दन, नीम, कचनार, सरल देवदारु के वृक्षों और अंगूर, ईख, केला, जामुन, बेर, अक्ष, हरड़, बेल, कैथ, नींबू, भलावाँ आदि दिव्य पुष्प और फलों आदि से युक्त वृक्षों वाला देवांगनाओं का क्रीड़ास्थल महात्मा भगवान् वरुणें का ऋतुमत् नाम का उद्यान था।
(2)
तस्मिन् सुविपुलं लसत्काञ्चनपङ्कजं कुमुदोत्पलकल्हारशतपत्रश्रियोर्जितं मत्तषट्पदनिर्घष्टं हंसकारण्डवाकीर्णं सारसजलकुक्कुटादिकुलकूजितं कदम्बवेतसनलनीपवजुलकैः कुन्दैरशोकैः शिरीषैः कुटजेदैः कुब्जकैः नागपुन्नागजातिभिः स्वर्णयुथीभिः मल्लिकाशतपत्रैश्च माधवीजाल- कादिभिरन्यैः नित्यर्तुभिः तीरजैः द्रुमैः शोभितं कलस्वनैः शकुन्तैः परिवृतं मत्स्यकच्छपसञ्चार- चलत्पद्मपयः सरोऽभूत्।। [2014]
शब्दार्थ लसत्काञ्चनपङ्कजम् = सुवर्ण (सुनहरे) कमलों से सुशोभित। उत्पल = कमला कल्हार = लाल कुमुद। श्रियोजितम् (श्रिया + ऊर्जितम्) = शोभा से ऊर्जित। मत्त = मतवाले। षट्पदनिर्युष्टम् = मौरों से गुंजायमान। कारण्डवाकीर्णम् = जल के पक्षियों से व्याप्त। सारंसजलकुक्कुटादिकुलकूजितं = सारस, जलमुर्गा इत्यादि के समूह के द्वारा शब्दायमान वेतस = बेंता नीप = कदम्बा शिरीषैः = सिरस वृक्षों के द्वारा। कुटजेङगुदैः = कुटज और इंगुदी वृक्षों द्वारा स्वर्णयुथीभिः = सोनजुही लताओं के द्वारा। मल्लिका = चमेली। शतपत्र = कमल। तीरजैः = किनारों पर उगे हुए। कलस्वनैः = मधुर ध्वनि वाले। शकुन्तैः = पक्षियों के द्वारा। परिवृतम् = घिरा हुआ। मत्स्यकच्छपसञ्चारचलत्पद्मपयः = मछली, कछुआ के वेग के कारण हिलते हुए कमलों से युक्त जल वाला।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में वरुण के उद्यान में स्थित सुन्दर सरोवर के सुरम्य वातावरण का मनोहारी वर्णन किया गया है।
अनुवाद उस (उद्यान) में स्वर्ण कमलों से शोभित; कुमुद, नीलकमल, लाल कुमुद, कमल की शोभा से अर्जित; मतवाले भौंरों की गुञ्जार से गुञ्जित, हंस और जल-पक्षियों से व्याप्त; सारस, जलमुर्गी आदि के समूह से शब्दयुक्त; कदम्ब, बेंत, कमलिनी, कुन्द, अशोक, शिरीष, कुटज, इङगुदी, कुब्जक, नागफनी, सोनजुही, मल्लिका, माधवी आदि लताओं के समूह से और दूसरी सभी ऋतुओं में पैदा होने वाले, किनारे के वृक्षों से शोभित; सुन्दर शब्द करने वाले पक्षियों से घिरा हुआ; मछली, कछुओं के चलने से हिलते हुए कमल वाला, स्वच्छ जल से युक्त अत्यन्त विशाल तालाब था।
(3)
अथ तदिगरिकाननाश्रयो वारणयूथपः करेणुभिश्चरन् कीचकवेणुवेत्रवद्विशालगुल्मं प्ररुजन्नासीत्। तस्य गन्धमात्राद्धरयो व्याघ्रादयो व्यालमृगाः सखङ्गाः सगौरकृष्णाः शरभाश्चमर्यः वृकाः वराहाः गोपुच्छशालातृकाः भयाद् द्रवन्ति। तस्यानुग्रहेण क्षुद्राः हरिणशशकादयोऽभीताश्चरन्ति। स एकदा घर्मतप्तः करिभिः करेणुभिः वृतो मदच्युत्कलभैरनुदुतः मदाशनैरलिकुलैः निषेव्यमाणः स्वगरिम्णा गिरिं परितः प्रकम्पयन् मदविहृलेक्षणः पङ्कजरेणुरुषितं सरोऽनिलं विदूराजिघ्रन् तृषार्दितेन स्वयूथेन वृतः तत्सरोवराभ्याशं द्रुतमगमत्। तस्मिन् विगाह्य हेमारविन्दोत्पलरेणुवासितं निर्मलाम्बु निजपुष्करोदधृतं निकामं पपौ स्नपयन्तमात्मानमभिः गतक्लमो जातः।
शब्दार्थ अथ = इसके बाद। तदिगरिकाननाश्रयो = उस पर्वतीय वन में रहे वाला। वारणयूथपः = हाथियों के समूह का स्वामी। करेणुभिश्चरन् = हथिनियों के साथ चलता हुआ। कीचकवेणुवेत्रविशालगुल्मम् = बाँस, वेणु और बेंत वाले विशाल झुरमुट को। प्ररुजन् = तोड़ता हुआ, रौंदता हुआ। हरयः = शेर! व्याघ्रादयः = बाघ आदि। व्यालमृगाः = साँप और हिरन| सखङ्गाः = गेंडों सहित सगौरकृष्णाः शरभाः = गोरे और काले शरभ (आख्यायिकाओं में वर्णित आठ पैरों का जन्तु, जो सिंह से बलवान् होता है)। चमर्यः = चमरी हिरनियाँ। वृकाः = भेड़िये। वराहाः = सूअर गोपुच्छशालावृकाः = बन्दर, गीदड़ आदि। द्रवन्ति = भागते हैं। अभीताः = निडर होकर घर्मतप्तः = गर्मी में तपा हुआ। वृतः = घिरा हुआ। मदच्युतकलभैः = मदे टपकाने वाले हस्ति-शावकों के द्वारा। अनुतः = पीछा किया गया। मदाशनैः = मद का भक्षण करने वाले। अलिकुलैः = भौरों के समूह के द्वारा। निषेव्यमाणः = सेवित, लगे हुए। गरिम्णा = भारीपन से। परितः = चारों ओर। मदविह्वलेक्षणः = मद के कारण व्याकुल नेत्रों वाला पङ्कजरेणुरुषितम् = कमल के पराग से सुगन्धित। विदूराज्जिघ्रन् = अधिक दूर से हूँघता हुआ। तृषादितेन = प्यास से व्याकुल अभ्याशम् = पास। विगाह्य = मथकर, नहाकर, डुबकी लगाकर। हेमारविन्दोत्पलरेणु = सुनहरे कमल के पराग। वासितम् = सुगन्धित निजपुष्करोधृतम् = अपनी सँड़ से उठाये गये। निकामं = पर्याप्त, अधिक गतक्लमः = थकानरहित।।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गजराज का वर्णन किया गया है।
अनुवाद इसके अनन्तर उस पर्वतीय वन में रहने वाला, हाथियों के समूह का स्वामी, हथिनियों के साथ घूमता हुआ, कीचक, बाँस और बेंतों से युक्त विशाल झुरमुट को तोड़ रहा था। उसकी गन्धमात्र से शेर, व्याघ्र आदि; सर्प, हिरन, गेंडे, गोरे और काले शरभ, चमरी गाएँ, भेड़िये, शूकर, बन्दर, गीदड़ आदि भय से भाग जाते हैं। उसकी कृपा से छोटे (पशु) हिरन, खरगोश आदि निडर होकर घूमते हैं। वह एक दिन गर्मी से सन्तप्त, हाथियों और हथिनियों से घिरा हुआ, मदजल से युक्त हाथी के बच्चों से अनुगत, मदभक्षी भ्रमरों के समूह से सेवित, अपने भारीपन से पर्वत को चारों ओर से कॅपाता हुआ, मद से अधमुँदे नेत्रों वाला, कमल की पराग से युक्त तालाब की वायु को दूर से ही सँघता हुआ, प्यास से व्याकुल अपने गजसमूह से घिरा हुआ, उस सरोवर के समीप तेजी से गया। उसमें डुबकी लगाकर, स्वर्ण कमल और नीलकमल की पराग से सुगन्धित, अपनी सँड़ से उठाये गये तालाब के स्वच्छ जल को उसने खूब पीया। जल से स्नान करके वह थकावटरहित हो गया।
(4)
स्वपुष्करोद्धृतशीकराम्बुभिः करेणूः कलभांश्च निपाययन् संस्नपयन् जलक्रीडारतोऽसौ महागजः केनचिबलीयसा ग्राहेण रुषा गृहीतः। बलीयसा तेन तरसा विकृष्यमाणं यूथपतिमातुरमपरे गजास्तं : तारयितुं नाशकन्। इत्थमिभेन्द्रनक्रयोर्मिथः नियुध्यतोरन्तर्बहिर्विकर्षतोर्बहुवर्षाणि व्यगमन्। ततो गजेन्द्रस्य सुदीर्घण कालेन नियुध्यतः मनोबलौजसा महान् व्ययोऽभूत्। जलेऽवसीदतो जलौकसः नक्रस्य तद्विपर्ययो जातः। ग्राहस्य पाशादात्मविमोक्षणेऽक्षमः गजेन्द्रो यदा प्राणसङ्कटमाप तदा सः तमीशं शरण्यं स्तोतुमुपचक्रमे। स एवेशः प्रचण्डवेगादभिधावतो बलिनोऽन्तकात् भृशं प्रपन्नं परिपाति, तस्यैव भयाच्चमृत्युः दूरमपसरति। गजेन कृतम् आर्तस्तोत्रं जगन्निवासः निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भिः गरुडेन समुह्यमानः चक्रायुधो गजेन्द्रमाशु अभ्यगमत्। पीडितं च तं वीक्ष्य सहसावतीर्य सरसः सग्राहमुज्जहार। विपाटितमुखाद ग्राहात दिविजानां सम्पश्यतां हरिः गजेन्द्रममूमुचत्।।
ततो गजेन्द्रस्य ………………………………………… गजेन्द्रममूमुचत्। [2010]
शब्दार्थ शीकराम्बुभिः = पानी की बौछार से। करेणूः = हथिनियों को। कलभान् = हाथी के बच्चों को। निपाययन् = पिलाता हुआ| बलीयसा = शक्तिशाली। ग्राहेण = मगर के द्वारा रुषा = क्रोध से तरसा = वेग से। विकृष्यमाणं = खींचा जाता हुआ। यूथपतिमातुरम् = हाथियों के दुःखी स्वामी को। इत्थमिभेन्द्रनक्रयोः (इत्थम् + इभेन्द्र + नक्रयोः) = इस प्रकार हाथियों के सरदार और मगर के। मिथः = आपस में। नियुध्यतोः-अन्तः-बहिः-विकर्षतो:-बहुवर्षाणि = युद्ध करते हुए और भीतर-बाहर खींचते हुए बहुत वर्ष। व्यगमन् = बीत गये। नियुध्यतः = युद्ध करते हुए का। मनोबलौजसाम् = मनोबल और शक्ति का अवसीदतः = बैठे हुए। जलौकसः = जल में निवास करने वाले। आत्मविमोक्षणेऽक्षमः = अपने को छुड़ाने में असमर्थ। आप = प्राप्त किया। शरण्यम् = शरण देने वाले। स्तोतुम् उपचक्रमे = स्तुति करने वाला। अन्तकात् = यमराज से। भृशम् = अधिक प्रपन्नम् = शरण में आये हुए को। परिपाति = रक्षा करता है। दूरमपसरति = दूर भाग जाती है। जगन्निवासः = परमात्मा। निशम्य = सुनकर। दिविजैः सह = देवताओं के साथ। समुह्यमानः = ढोये जाते हुए। चक्रायुधः = भगवान् विष्णु। अभ्यगमत् = पास में पहुँचे। वीक्ष्य = देखकर। अवतीर्य = उतरकर। संग्राहमुज्जहार = मगर सहित उठा लिया। विपाटितमुखात् = फटे हुए मुख वाले। सम्पश्यतां = देखते-देखते। गजेन्द्रममूमुचत् = गजेन्द्र को छुड़ा लिया।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में मगरमच्छ द्वारा गजराज को पकड़ने, दोनों में युद्ध होने और गजराज द्वारा प्रार्थना किये जाने पर विष्णु भगवान् द्वारा उसे छुड़ाये जाने का वर्णन है।
अनुवाद अपनी सँड़ द्वारा उठायी गयी जल की बूंदों से हथिनियों और गज-शावकों को पिलाते और स्नान कराते हुए, जल-क्रीड़ा में लगे हुए उस विशाल हाथी को किसी बलवान् मगर ने क्रोध से पकड़ लिया। उस बुलवान् के द्वारा वेग से घसीटे गये, व्याकुल यूथपति उस गजराज को दूसरे हाथी बचाने में समर्थ नहीं हुए। इस प्रकार गजेन्द्र और मगर के आपस में युद्ध करते हुए, अन्दर-बाहर खींचते हुए बहुत वर्ष बीत गये। तब गजेन्द्र की लम्बे समय तक युद्ध करते हुए मनोबल और शक्ति की पर्याप्त हानि हुई। जल में बैठे हुए, जल में रहने वाले मगर का इससे उल्टा हुआ अर्थात् उसकी शक्ति बढ़ गयी। मगर के फन्दे से स्वयं को छुड़ाने में असमर्थ गजराज जब प्राणों के संकट में पड़ गया, तब उसने उस शरणागतरक्षक श्रेष्ठ ईश्वर की स्तुति करनी प्रारम्भ की। वही भगवान्, जिनके भय से मृत्यु दूर भागती है, तेज गति से दौड़ते हुए, बलवान् यमराज से भयभीत शरण में आये हुए की रक्षा करते हैं। हाथी के द्वारा की गयी करुण स्तुति को लोकरक्षक (भगवान्) ने सुनकर देवताओं के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर गरुड़ पर सवार होकर चक्रपाणि भगवान् विष्णु शीघ्र ही गजेन्द्र के पास आये। उसे पीड़ित देखकर शीघ्रता से तालाब में उतरकर मगरसहित उसे (गजेन्द्र को) उठा लिया। फटे हुए मुँह वाले मगर से देवताओं के देखते-देखते विष्णु ने गजेन्द्र को मुक्त करा दिया।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गजेन्द्र मोक्ष कैसे हुआ? [2007,08,09]
या
गजराज की रक्षा किस प्रकार हुई? [2007,09]
उत्तर :
सरोवर में स्नान करते हुए गजेन्द्र को मगर ने पकड़ लिया था। वर्षों तक गजेन्द्र और मगर में युद्ध होने के पश्चात् जब गजेन्द्र मगर की पकड़ से छूटने में असमर्थ हो गया और उसके प्राण संकट में पड़ गये तब उसने भगवान् विष्णु की स्तुति की। गजेन्द्र की करुण विनती सुनकर भगवान् विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहाँ आये। उन्होंने मगरसहित गजेन्द्र को तालाब से उठा लिया और देखते-ही-देखते गजेन्द्र को मगर के मुख से छुड़ा दिया।
प्रश्न 2.
वरुण के उद्यान का वर्णन ‘गजेन्द्रमोक्षः’ पाठ के आधार पर कीजिए।
या
वरुण के उद्यान में कौन-कौन से वृक्ष थे? [2006]
उत्तर :
[ संकेत गद्यांश सं० 1 के अनुवाद को अपने शब्दों में लिखें।
प्रश्न 3.
गजेन्द्रमोक्षः’ पाठ के आधार पर गजेन्द्र की जल-क्रीड़ा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
एक दिन अत्यधिक गरमी से पीड़ित गजेन्द्र अपने समूह के हाथियों और हथिनियों से घिरा हुआ, मद-जल से युक्त गज-शावकों के आगे, मद का भक्षण करने वाले भौंरों के समूह से सेवित, अपने भारीपन से पर्वतों को कॅपाता हुआ कमल के पराग से युक्त सरोवर की वायु को सँघता हुआ, प्यास से व्याकुल उस सरोवर के समीप आया। कमल के पराग से सुगन्धित सरोवर के जल में डुबकी लगाकर अपनी सँड़ से सरोवर के स्वच्छ जल को जी-भरकर पिया। जल से स्नान करके वह थकावटरहित हो गया। इसके पश्चात् वह जल-क्रीड़ा में लग गया। अपनी सँड़ में उठाये गये जल से उसने हथिनियों और गज-शावकों को स्नान कराया।
प्रश्न 4.
वरुणदेव के उद्यान का नाम लिखिए। [2005,06, 12]
या
भगवान वरुण का उद्यान कहाँ स्थित था? [2006]
उत्तर :
वरुणदेव के उद्यान का नाम ऋतुमत् था। यह देवांगनाओं के प्रसिद्ध क्रीड़ास्थल त्रिकूट पर्वत पर स्थित था।
प्रश्न 5.
हरि गजेन्द्र के पास क्यों आये?
उत्तर :
जल-क्रीड़ा करते हुए गजेन्द्र को जब ग्राह ने बलपूर्वक पकड़ लिया और गजेन्द्र उसकी पकड़ से छूटने में जब असमर्थ हो गया तो उसकी करुणा भरी पुकार सुनकर हरि गजेन्द्र के पास आये और उसे ग्राह से मुक्त करा दिया।
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