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परिचय
प्रस्तुत पाठ महाकवि हर्ष द्वारा विरचित ‘नागानन्द’ नामक नाटक से संगृहीत है। इसमें जीमूतवाहन नामक विद्याधर-राजकुमार के द्वारा आत्मोत्सर्ग करके शंखचूड़ नामक सर्प को गरुड़ से बचाने का वर्णन है। नाटक में पाँच अंक हैं। इस नाटक पर बौद्ध धर्म का प्रभाव परिलक्षित होता हैं। बौद्ध धर्म में अहिंसा का बहुत अधिक महत्त्व है। यह नाटक भी अहिंसा, आत्म-बलिदान और परोपकार का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस नाटक की भाषा अत्यधिक सरल और सुबोध है तथा भाव-सौन्दर्य की दृष्टि से भी यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस नाटक में शान्त और करुण रस की प्रधानता है।
पाठ-सारांश
जीमूतवाहन की खोज – जीमूतवाहनं समुद्र-तट को देखने के कुतूहल से समुद्र-तट पर गया हुआ था। वह बहुत देर तक लौटकर नहीं आता है; अतः महाराज विश्वावसु द्वारपाल को उसके घर यह पता करने के लिए भेजते हैं कि जीमूतवाहन वहाँ पहुँचा या नहीं। द्वारपाल वहाँ जाकर देखता है कि जीमूतवाहन के पिता जीमूतकेतु की सेवा उनकी पत्नी और पुत्रवधू द्वारा की जा रही है। वह जाकर कहता है कि महाराज विश्वावसु ने जीमूतवाहन का समाचार न मिल पाने के कारण उसे जानने के लिए आपके पास भेजा है। यह सुनकर जीमूतकेतु, उसकी पत्नी और पुत्रवधू अत्यन्त चिन्तित होते हैं कि जीमूतवाहन कहाँ गया? कहीं उसका कोई अमंगल तो नहीं हो गया? इसी समय अमंगलसूचक उनका बायाँ नेत्र भी फड़कता है।
चूड़ामणि की प्राप्ति – उसी समय गीले मांस और बालों से युक्त एक चूड़ामणि उनके पैरों पर आकर गिरती है।इस मणि को वे जीमूतवाहन का ही समझकर दुःखी हो जाते हैं। लेकिन द्वारपाल उन्हें सान्त्वना देते हुए कहता है कि ऐसे चूड़ामणि तो गरुड़ के द्वारा खाये गये सर्यों के गिरते हैं। इसके बाद जीमूतकेतु अपने पुत्र जीमूतवाहन का पता लगाने के लिए प्रतिहार को उसके ससुर के घर भेज देते हैं।
शंखचूड़ का आगमन – द्वारपाल के चले जाने के बाद रक्तवस्त्र पहने शंखचूड़ नामक सर्प वहाँ आता है। उसे देखकर और चूड़ामणि को उसी का समझकर सब निश्चिन्त हो जाते हैं। तब शंखचूड़ उनसे कहता है कि यह चूड़ामणि मेरा नहीं है। मुझे वासुकि ने पूर्व निश्चित शर्त के अनुसार गरुड़ के भोजन के लिए उसके पास भेजा था। किन्तु किसी दयालु विद्याधर ने गरुड़ को अपने प्राण देकर मेरी रक्षा की है। दूसरों का उपकार करने वाला वह जीमूतवाहन ही है, ऐसा सोचकर जीमूतवाहन के माता-पिता एवं पत्नी तीनों मूर्च्छित हो जाते हैं।
उन्हें ऐसी अवस्था में देखकर शंखचूड़ रोता हुआ सोचता है कि ये दोनों निश्चित ही उसे महाभाग के माता-पिता हैं। मैंने अप्रिय वचन कहकर इनके हृदय को दुःखी किया है। अब मेरा यह कर्तव्य हो जाता है कि मैं अपने प्राण दे ६ या इन दोनों को धैर्य दिलाऊँ? अन्ततः वह उन्हें धैर्य दिलाने का निश्चय करता है।
गरुड़ के पास जाना – इसके बाद शंखचूड़ उन्हें सान्त्वना देता हुआ कहता है कि उसे नाग न जानकर सम्भव है कि गरुड़ उसे न खाये। अत: हम खून की धारा का अनुसरण करते हुए गरुड़ के पास चलते हैं। शंखचूड़ के पीछे-पीछे जीमूतवाहन के माता-पिता भी गरुड़ के पास जाते हैं।
अपने सम्मुख पड़े हुए जीमूतवाहन के पास गरुड़ बैठा हुआ है और सोच रहा है कि जन्म के बाद से मैंने अभी तक केवल नागों को ही खाया है, परन्तु यह महान् प्राणी कौन है, जो मेरे द्वारा खाया जाता हुआ भी प्रसन्न दिखाई दे रहा है। तब गरुड़ उसको खाना छोड़कर उससे पूछता है कि वह कौन है? जीमूतवाहन कहता है कि पहले तुम मेरे मांस और रक्त से अपनी भूख मिटा लो, परन्तु गरुड़ उसका मांस खाने का विचार छोड़ देता है।
इसके बाद गरुड़ के पास जाकर शंखचूड़ उससे कहता है कि यह नाग नहीं है; अत: तुम इसे छोड़कर मुझे ही खाओ, क्योंकि पूर्व शर्त के अनुसार वासुकि ने तुम्हारे खाने के लिए मुझे ही भेजा है।
जीमूतकेतु का आगमन – उसी समय जीमूतवाहन के पिता उसकी माता और पत्नी समेत वध-स्थल पर पहुँच जाते हैं। जीमूतवाहन उन्हें देखकर शंखचूड़ से चादर द्वारा अपने शरीर को ढकने के लिए कहता है, क्योंकि उसे आशंका है कि उसके माता-पिता उसे इस अवस्था में देखकर निश्चित ही अपने प्राण त्याग देंगे।
जीमूतवाहन की मृत्यु – इसके बाद जीमूतकेतु पत्नी व पुत्रवधू के साथ वहाँ आते हैं। गरुड़ जीमूतकेतु को आया हुआ देखकर अत्यधिक दु:खी और लज्जित होता है। पहले तो जीमूतवाहन को देखकर उसके माता-पिता प्रसन्न होते हैं परन्तु जब जीमूतवाहन के उठने पर उसकी चादर गिर जाती है और जीमूतवाहन स्वयं मूच्छित हो जाता है तब उसकी उस अवस्था को देखकर उसके माता-पिता व पत्नी भी मूच्छित हो जाते हैं। जीमूतवाहन की माता लोकपालों से अमृत की वर्षा करने के लिए प्रार्थना करती है। गरुड़ इन्द्र की प्रार्थना करके अमृत को लाने तथा जीमूतवाहन और पहले खाये गये नागों को जीवित करने के लिए चला जाता है।
जीमूतवाहन का जीवित होना इसके बाद पार्वती आकर जीमूतवाहन पर जल छिड़ककर उसे जीवित करती हैं। सभी पार्वती के चरणों में गिरते हैं। उसी समय गरुड़ के द्वारा जीमूतवाहन और सभी नागों को जीवित करने के लिए अमृत की वर्षा की जाती है। सभी नाग जीवित हो जाते हैं।
इस नाटक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दूसरे के प्राणों की रक्षा के लिए हमें अपने प्राणों की बाजी लगा देने में भी संकोच नहीं करना चाहिए, क्योंकि परोपकार सबका कल्याण करने वाला होता है। हमें किसी भी कार्य को करने से पूर्व भली-भाँति विचार लेना चाहिए तथा किये हुए अशुभ कार्य का प्रायश्चित्त अवश्य करना चाहिए।
चरित्र-चित्रण
जीमूतवाहन [2006,07,08, 10, 11, 12, 13, 15]
परिचय जीमूतवाहन विद्याधर जाति का और गन्धर्वराज जीमूतकेतु का पुत्र है। उसकी पत्नी का नाम मलयवती है। वह परोपकारी, दयालु, मातृ-पितृभक्त और असाधारण व्यक्तित्व का प्राणी है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1.त्यागमय जीवन – जीमूतवाहन का जीवन त्यागमय है। गरुड़ के साथ वासुकि की यह शर्त थी कि वह गरुड़के भोजन के लिए प्रतिदिन एक सर्प को भेज दिया करेगा। क्रमशः शंखचूड़ नामक सर्प की बारी आती है। शंखचूड़ की माता की करुण-क्रन्दन सुनकर जीमूतवाहन शंखचूड़ के प्राणों की रक्षा करने हेतु वध के लिए निश्चित लाल वस्त्रों को पहनकर गरुड़ के पास वधस्थल पर चली जाती है और गरुड़ के द्वारा रक्त पिये जाते हुए भी तनिक विचलित नहीं होता, यह उसके महान् त्याग का परिचायक है।
2. निर्भीक – जीमूतवाहन निर्भीक व्यक्ति है। गरुड़ के भक्षणार्थ जाने के लिए वह तनिक भी विचलित नहीं होता। गरुड़ के द्वारा पेट फाड़ डालने पर भी उसकी मुखकान्ति मलिन नहीं होती। वह गरुड़ को अपने रक्तऔर मांस से तृप्त हो जाने के लिए कहता है। इससे उसकी निर्भीकता सिद्ध होती है।
3. मातृ-पितृभक्त – जीमूतवाहन अपने माता-पिता का भक्त है। वह उन्हें दु:खी नहीं देखना चाहता। इसीलिए उनको वध-स्थल पर आया हुआ देखकर शंखचूड़ से अपने शरीर पर चादर डालने के लिए कहता है, क्योंकि वह नहीं चाहता है कि वे उसकी विपन्न दशा देखें। घायल होने पर भी वह उनका अभिवादन करने के लिए उठता है। उसकी यह गुण उसके मातृ-पितृभक्त होने का परिचायक है।
4. दयालु – जीमूतवाहन स्वभाव से दयालु है। वह किसी के कष्ट को नहीं देख पाता। शंखचूड़ की माँ को विलाप सुनकर वह गरुड़ का भोजन बनने के लिए स्वयं वधस्थल पर पहुँच जाता है और उसे आसन्न मृत्यु से बचा लेता है।
5. प्रभावशाली – जीमूतवाहन एक प्रभावशाली युवक है। शंखचूड़ उसके अनुपम त्याग से तो प्रभावित होता ही है; गरुड़ के ऊपर भी उसका ऐसा प्रभाव पड़ता है कि वह सदा के लिए हिंसा करना छोड़ अहिंसक बन जाता है तथा सभी नागों को जीवित करने के लिए अमृत की वर्षा करता है।
6. विनयशील – जीमूतवाहन विनम्र और विनयशील है। वह सभी के साथ विनम्रता का व्यवहार करता है। तथा अपने व्यवहार से किसी को भी कष्ट देना नहीं चाहता। उसके इसी गुण के कारण उसके पिता तथा श्वसुर दोनों ही उससे अपार स्नेह करते हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जीमूतवाहन त्यागी, परोपकारी, मातृ-पितृभक्त, दयालु और प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी है।
गरुड़ [2010, 1]
परिचय गरुड़ पक्षीराज तथा विष्णु का वाहन है, ऐसी पौराणिक मान्यता है। गरुड़ का सर्वप्रिय खाद्य सर्प है। प्रस्तुत नाट्यांश में भी उसका इसी रूप में वर्णन आया है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. दयालु – यद्यपि गरुड़ मांसाहारी जीव है, तथापि उसमें दया का अभाव नहीं है। अपने भक्ष्य के रूप में आये जीमूतवाहन को देखकर उसके हृदय में दया-भाव जाग्रत होता है और वह उसे खाना छोड़कर उसका परिचय पूछता है। जीमूतवाहन की मृत्यु से उसके माता-पिता-पत्नी को मूर्च्छित होते देखकर वह दु:खी हो जाता है। इन्द्र से अमृत वर्षा कराकर समस्त सर्यों को जीवित कराने के पुनीत कार्य से भी उसकी दयालुता को भान होता है।
2. बलशाली – गरुड़ बलशाली पक्षी है। भगवान् विष्णु का वाहन होने के कारण उसके बलशाली होने का संकेत भी मिलता है। दूसरे सर्प जाति का विनाश करने और सर्पराज वासुकि द्वारा उससे समझौता कर स्वयं उसका भोज्य पदार्थ उसे उपलब्ध कराने के प्रसंग से भी उसके बलशाली होने की पुष्टि होती है।
3. प्रायश्चित्त करने वाला – सर्यों के राजा वासुकि के प्रार्थना करने पर वह सर्यों के अन्धाधुन्ध विनाश को रोक देता है और अपने भोजन हेतु प्रतिदिन एक सर्प देने के लिए वासुकि से कहता है। जीमूतवाहन के प्रसंग मे भी उसे अपने किये पर पश्चात्ताप होता है और वह उसके प्रायश्चित्त के लिए इन्द्र से अमृत वर्षा कराकर सभी सर्यों को पुनर्जीवित तो करता ही है, साथ ही प्रायश्चित्तस्वरूप सदैव के लिए अहिंसक भी बन जाता है।
4. गुणग्राही और विवेकशील – गरुड़ गुणग्राही पक्षी है। जीमूतवाहन के त्याग, परोपकार एवं आत्म-बलिदान के गुणों को देखकर उसका हृदय द्रवित हो उठता है। उसके गुणों से प्रभावित होकर वह उसे खाना त्यागकर उसका परिचय पूछता है और अन्ततः अपने कर्म के अनौचित्य पर पश्चात्ताप करता हुआ सभी सर्यों को जीवित करा देता है। यह तथ्य उसके गुणग्राही और विवेकशील होने को इंगित करता है। निष्कर्ष रूमें कहा जा सकता है कि गरुड़ समझौतावादी, सिद्धान्तवादी, विवेकशील, गुणग्राही, क्षमाशील, दयालु और पराक्रमी पक्षी है।
शंखचूड़ [2009,10, 12, 15]
परिचय शंखचूड़ एक गुणग्राही सर्प है, जिसको सर्पराज वासुकि के समझौतानुसार गरुड़ का भोजन बनने के लिए उसके पास भेजा गया है। उसके माता-पिता का उस पर विशेष स्नेह है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. दयावान् – शंखचूड़ एक दयावान् सर्प है। वह दूसरे के दुःखों को सहन नहीं कर पाता है। जीमूतवाहन के माता-पिता एवं उसकी पत्नी की दीनदशा को देखकर उसका हृदय दया से भर जाता है। वह अपने को धिक्कारने लगता है कि यह मैंने क्या कर दिया।
2. बुद्धिमान् – जीमूतवाहन के माता-पिता जब उसके द्वारा सुनाये गये वृत्तान्त को सुनकर मूर्च्छित हो जाते हैं तो वह यह जान लेता है कि ये दोनों उस उपकारी के ही माता-पिता हैं। उसकी चेतना लौट आने पर वह उनसे कहता है कि गरुड़ ने जीमूतवाहन को सर्प न होने के कारण शायद न खाया हो और वह जीवित हो। हमें रक्त के चिह्नों का अनुसरण करते हुए उसकी खोज करनी चाहिए। अन्तत: वह उसे खोजने में सफल भी हो जाता है। ये दोनों ही घटनाएँ उसके बुद्धिमान् होने का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।
3. सत्यवादी – शंखचूड़ सत्यवादी सर्प है। वह जीमूतवाहन के माता-पिता से सम्पूर्ण वृत्तान्त सही-सही बता देता है। इसके उपरान्त वह गरुड़ के पास पहुँचकर अपने प्राणों की चिन्ता न करते हुए उससे सच-सच बता देता है कि तुम्हारा भक्ष्य जीमूतवाहन नहीं, मैं हूँ। तुम मुझे खाकर अपनी क्षुधा शान्त करो।
4. आशावादी – शंखचूड़ एक आशावादी नाग है। उसे आशा है कि नाग न होने के कारण गरुड़ ने जीमूतवाहन को छोड़ दिया होगा। इसी आशा से वह जीमूतवाहन के शरीर से टपकते हुए रक्त के सहारे गरुड़ तक पहुँच जाता है।
5. निर्भीक – शंखचूड़ एक निर्भीक सर्प है। उसे मृत्यु का भय नहीं है। इसीलिए वह जीमूतवाहन को बचाने के लिए गरुड़ के पास जाता है और उससे कहता है कि उसका (गरुड़ का) भोजन बनने की आज उसकी (शंखचूड़ की) बारी है। अतः वह जीमूतवाहन को छोड़कर उसे खा ले।
निष्कर्ष रूप में हमें कह सकते हैं कि शंखचूड़ एक दयावान्, निर्भीक, आशावादी, सत्यवादी और बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण चरित्र वाला एक नाग है, जो अन्तत: जीमूतवाहन के प्राण बचाने में सफल होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जीमूतवाहनस्य वार्तामन्चेष्टुं महाराजविश्वावसुना प्रतीहारः कुत्र प्रेषितः ?
उत्तर :
जीमूतवाहनस्य वार्ताम् अन्वेष्टुं महाराजविश्वावसुनी प्रतीहारः जीमूतकेतोः समीपं प्रेषितः।
प्रश्न 2.
जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः आसीत् ? [2008, 09, 11]
उत्तर :
जीमूतवाहन: जीमूतकेतोः पुत्रः आसीत्।
प्रश्न 3.
शङ्खचूडः कः आसीत् ? [2006,09, 11, 12, 13, 14, 15]
उत्तर :
शङ्खचूड: एकः नागः आसीत्।
प्रश्न 4.
जीमूतवाहनः फणिनः प्राणान् परिरक्षितं किमकरोत् ?
उत्तर :
जीमूतवाहनः फणिनः प्राणान् रक्षितुं गरुडाय स्वदेहं समर्पयत्।
प्रश्न 5.
गरुडेनकः व्यापादितः ? [2006,07,09, 10]
उत्तर :
गरुडेन जीमूतवाहन: व्यापादितः।
प्रश्न 6.
जीमूतवाहनः कथं प्रत्युज्जीवितः कृतः ? [2008]
उत्तर :
जीमूतवाहनः गौर्या कमण्डलु-उदकेन अभिषिच्य प्रत्युज्जीवितः अभवत्।
प्रश्न 7.
अनभ्रा वृष्टिः कथम् अभवत् ? [2009, 15]
उत्तर :
जीमूतवाहनम् अस्थिशेषान् उरगपतीन् च प्रत्युज्जीवयितुम् अनभ्रा वृष्टिः अभवत्।
प्रश्न 8.
जीमूतवाहनस्य पिता कः आसीत् ? [2006,07,08,09]
या
जीमूतवाहनः पितुः किं नाम? [2011]
उत्तर :
जीमूतवाहनस्य पिता जीमूतकेतुः आसीत्।
प्रश्न 9.
जीमूतवाहनः केन व्यापादितः ?
उत्तर :
जीमूतवाहनः गरुडेन व्यापादितः।
प्रश्न 10.
नागानन्दनाटकस्य प्रणेतुः किं नाम आसीत् ? [2011]
उत्तर :
नागानन्दनीटेकस्य प्रणेतुः नाम महाकवि हर्षः आसीत्।
प्रश्न 11.
जीमूतवाहनः कः आसीत् ? [2013]
उत्तर :
जीमूतवाहनः गन्धर्वराज जीमूतकेतोः पुत्रः विद्याधर-वंशतिलकः च आसीत्।
प्रश्न 12.
नागानन्दस्य नाटकस्य रचयिता कः आसीत् ? [2014]
उत्तर :
नागानन्दस्य नाटकस्य रचयिता महाकविः हर्षः आसीत्।
बहुविकल्पीय प्रश्न
अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए –
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]
1. ‘कारुणिको जीमूतवाहनः’ शीर्षक पाठ किस कृति से संकलित है?
(क) “पुरुष-परीक्षा से
(ख)‘नागानन्दम्’ से
(ग) “बुद्धचरितम्’ से
(घ) “जातकमाला’ से
2. जीमूतवाहन के अनुपम त्याग को दर्शाने वाला नाटक ‘कारुणिको जीमूतवाहनः’ किस धर्म से सम्बद्ध है?
(क) बौद्ध धर्म
(ख) सिक्ख धर्म
(ग) जैन धर्म
(घ) पारसी धर्म
3. परोपकारी विद्याधर राजकुमार का क्या नाम है?
(क) विश्वावसु
(ख) शंखचूड़
(ग) जीमूतवाहन
(घ) जीमूतकेतु
4. जीमूतवाहन और जीमूतकेतु का परस्पर क्या सम्बन्ध है ?
(क) पुत्र-पिता
(ख) पिता-पुत्र
(ग) भाई-भाई
(घ) स्वामी-सेवक
5. मलयवती जीमूतवाहन की कौन थी ?
(क) माता
(ख) पत्नी
(ग) पुत्री
(घ) दासी
6. जीमूतवाहन किसकी रक्षा करता है ?
(क) शंखचूड़ की
(ख) वासुकि की
(ग) गरुड़ की
(घ) विश्वावसु की
7. ‘कारुणिको जीमूतवाहनः’पाठ में सर्पराज किसे कहा गया है?
(क) वासुकि को
(ख) गरुड़ को
(ग) शंखचूड़ को
(घ) विश्वावसु को
8. गरुड़ ने जीमूतवाहन का मांस क्यों खाया?
(क) उसकी जीमूतवाहन से शत्रुता थी
(ख) उसको जीमूतवाहन का मांस प्रिय था
(ग) उसने जीमूतवाहन को नाग समझा था
(घ) इनमें से कोई नहीं
9. ‘कारुणिको जीमूतवाहनः’ शीर्षक पाठ में ‘नायिका’ कौन है?
(क) शंखचूड़ की माता
(ख) जीमूतवाहन की सास
(ग) जीमूतवाहन की माता
(घ) जीमूतवाहन की पत्नी
10. ‘कारुणिको जीमूतवाहनः’ पाठ में ‘देवी’ के रूप में किसको प्रस्तुत किया गया है ?
(क) शंखचूड़ की माँ को
(ख) जीमूतवाहन की माँ को
(ग) पार्वती को।
(घ) जीमूतवाहन की पत्नी को
11. “वत्स! अवितथैषा तव भारती भवतु। वयमपि त्वरितमेवानुगच्छामः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?
(क) शंखचूडः
(ख) जीमूतवाहनः
(ग) गरुडः
(घ) जीमूतकेतुः
12. जीमूतवाहन को किसने जीवित किया?
(क) अमृत वर्षा ने
(ख) गौरी ने
(ग) गरुड़ ने
(घ) इन्द्र ने
13. अमृत लेने के लिए इन्द्र के पास कौन जाता है ?
(क) शंखचूड़
(ख) गरुड़
(ग) वासुकि
(घ) जीमूतकेतु
14. “सुनन्द! यावदनया वेलया ………………… सदनमेव गतो मे पुत्रको भविष्यति।” वाक्य में रिक्त स्थान की पूर्ति होगी –
(क) ‘वधू’ से
(ख) मातु से
(ग) श्वशुर’ से
(घ) “पितु से
15. “शङ्खचूडः नाम नागः खल्वहं वैनतेयस्याहारार्थमवसरप्राप्तो वासुकिना प्रेषितः। वाक्यस्य वक्ता कोऽस्ति?
(क) गरुडः
(ख) जीमूतकेतुः
(ग) मलयकेतुः
(घ) शंखचूडः
16. “अहं तव” ……………………… “प्रेषितोऽस्मि वासुकिना।” में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) ‘रक्षार्थम्’ से
(ख) ‘हन्तुम्’ से
(ग) ‘आहारार्थम्’ से
(घ) “नष्टार्थम्’ से
17. ‘‘शङ्खचूडः समुपविश्यानेनोत्तरीयेण आच्छादितशरीरं कृत्वा धारयमाम्।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?
(क) जीमूतवाहनः
(ख) जीमूतकेतुः
(ग) मलयकेतुः
(घ) मलयवती
18. जीमूतवाहनस्य पिता …………………. आसीत्। [2008, 09, 10]
(क) शङ्खचूडः
(ख) मलयकेतुः
(ग) जीमूतकेतुः
(घ) सत्यकेतुः
19. नागानन्दस्य नाटकस्य रचयिता …………………… अस्ति। [2007]
(क) कालिदासः
(ख) हर्षवर्धनः
(ग) भवभूतिः
(घ) विशाखदत्तः
20. विद्याधरेण केनानि ………………… आविष्ट चेतसा। [2009]
(क) क्रोध
(ख) भय
(ग) पीड़ा
(घ) करुणा
21. विद्याधरः ……………………… रक्षां करोति। [2009,11]
(क) गरुडस्य
(ख) शङ्खचूडस्य
(ग) वासुकेः
(घ) जीमूतकेतोः
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