Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi

Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi: दोस्तों आज हम बात करेगे “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान” की हमें जरुरत क्यों पड़ी, ऐसा क्या हुआ होगा कि भारत जैसे पुरातन संस्कृति और धर्मपरायण विचारों वाले राज्य को बेटियों को बचाने के लिए और उनको पढ़ाने के लिए एक अलग मुहिम चलानी पड़ी सबसे प्रमुख कारण तो यह है कि लोगों की मानसिकता बहुत संकुचित हो गई है,  उनका बेटियों के प्रति रवैया बहुत ही घटिया स्तर का हो गया है और सोचने की बात तो यह है कि उन्हें ऐसा कृत्य करते हुए जरा भी शर्म महसुस नहीं होती है।

Beti Bachao Beti Padhao Essay in Hindi

ऐसी छोटी व संकुचित सोच रखने वाले लोग बेटी और बेटो में भेदभाव करते हैं क्योंकि वह सोचते हैं कि बेटे हमारी पूरी जिंदगी भर सेवा करेंगे और बेटियां तो पराया धन होती हैं उनको पढ़ा लिखा कर क्या फायदा होगा, इसलिए वह बेटों को ज्यादा अच्छी शिक्षा दिलाते हैं और उन्हीं का ज्यादा ध्यान रखते हैं।

प्रस्तावना

वर्तमान में उन लोगों की सोच इतनी निच्चे स्तर तक गिर गई है कि वे लोग बेटियों को अब जन्म लेने से पहले ही कोख में ही मार देते हैं और अगर गलती से उनका जन्म भी हो जाता है तो उनको इसी सुनसान स्थान पर फेंक आते हैं।  

हमारी सरकार ने इसके विरुद भी कन्या भूण हत्या को रोकने के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं लेकिन उनका पालन अच्छी तरह से नहीं होने के कारण मनावान्छित लाभ नही मिल रहा है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा इसलिए दिया गया क्योंकि भारत में दिन-प्रतिदिन बेटियों की स्थिति खराब होती जा रही हैं, उनके साथ उन्हीं के जन्मदाता भेदभाव कर रहे हैं। वह सोचते हैं कि बेटियां तो पराई-धन होती हैं उनकी कैसे भी जल्दी से जल्दी शादी करा दो और उनको पढ़ाने-लिखाने का कोई फायदा नहीं होगा।

इसलिए वे केवल बेटों पर ज्यादा ध्यान देते हैं उनकी अच्छी शिक्षा कि उचित व्यवस्था करते हैं और बेटियों को स्कूल में पढ़ने तक का अवसर नहीं देते हैं।

बेटियों के इस बिगड़ते हुए हालात को देखते हुए भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को बेटियों कि खसता हालात को सुधारने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान/योजना की शुरुवात कि। इस योजना का मुख्य उद्देश्य है कि बेटियों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो व उन्हें भी लङकों के बराबर अधिकार प्रात हो ओर गांव-गांव जाकर इसका प्रचार प्रसार करना था।

हमारा भारत देश पौराणिक संस्कृति के साथ-साथ महिलाओं के सम्मान और इज्जत के लिए भी पहचाना जाता था।  लेकिन बदलते समय के साथ-साथ हमारे देश के लोगों की सोच में भी बदलाव आ गया है। जिसके कारण अब बेटियों और महिलाओं के साथ हैं एक समान व्यवहार नहीं किया जाता है।

लोगों की सोच किस कदर परिवर्तित हो गई है कि आए दिन देश में कन्या भ्रूण हत्या और बलात्कार जैसे अनेक मामले सामने आते रहते हैं। जिसके कारण हमारे देश की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि दूसरे देश के लोग हमारे भारत देश में आने से कतराते हैं।

हमारे देश के लोगों ने मिलकर हमारे देश में पुरुष प्रधान समाज कि नीति को अपना लिया है जिसके कारण देश की बेटियों के हालात अत्यधिक गंभीर रूप से खराब हो गए हैं।  उनके साथ हर समय लैंगिग भेदभाव किया जा रहा है और ना ही उन्हें उचित शिक्षा प्रदान कि जा रही है।

जिसके कारण वे हर क्षेत्र में पिछड़ रही है। उनकी आवाज को हर बार इस कदर दबा दिया जाता रहा है कि उन्हें घर से बाहर जाने तक की आजादी तक नहीं दी जाती है। इस मुद्दे कि गंभीरता को देखकर हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक नई योजना का प्रारंभ किया जिसका नाम “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao Beti Padhao)” रखा गया।

इस योजना के द्वारा बेटियों की शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था की जा रही है और लोगों की सोच में परिवर्तन लाने के लिए जगह-जगह इसका प्रचार प्रसार किया जा रहा है जिससे लोग बेटी और बेटियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करें।

21वी शताब्दी में भारत आज जहां एक और चांद पर जाने के कदम बढा हैं वहीं दूसरी तरफ भारत की बेटियां अपने घर से बाहर निकलने पर भी डर रही हैं। जिससे यह पता लगता है कि आज भी भारत देश पुरुष प्रधान समाज वाला देश है।

हमारे देश के लोगों की मानसिकता इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि वह महिलाओं और बेटियों का सम्मान नहीं करते हैं। स्वामी विवेकानंद जी के एक कथन के अनुसार “जिस देश में महिलाओं का सम्मान नहीं होता, वह देश कभी भी प्रगति नहीं कर सकता है।“

हमारे देश के लोगों पर दकियानूसी सोच इतनी हावी हो गई है कि वे लोग अब बेटी और बेटियों में फर्क करते हैं। वह बेटों को उचित शिक्षा दिलाते हैं और बेटियों को घर पर ही रहकर घर के काम सीखने को कहते हैं उन्हें किसी भी प्रकार की आजादी प्रदान नहीं कि जाती है। जिसके कारण बेटियों का भविष्य अंधकार में चला गया है।

हमारे देश की बेटियां आज भी अपने घर से निकलने पर भी कतराती हैं क्योंकि कुछ लोगों ने देश का माहौल इतना खराब कर दिया है कि आए दिन हम देखते हैं कि किसी ने किसी की बहन बेटी से बलात्कार की या छेड़छाड़ की घटनाएं आम रुप से देखने को मिलती है। 

यह घटनाएं हमारे देश के लोगों की सोच को दर्शाती हैं कि उनकी सोच कितनी हद तक गिर चुकी है और इस बात कि ना तो उन्हें शर्म आती है ना ही उन्हें किसी प्रकार का पछतावा होता है।

हमारे देश में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही कन्या भ्रूण हत्या भी लोगों की संकुतित मानसिकता का परिचय देती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा था कि “अगर भारत द्वारा कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामलों पर जल्द ही कोई संज्ञान नहीं लिया गया तो जनसंख्या से जुड़े संकट उत्पन्न हो सकते हैं।”

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बेटियों की उचित शिक्षा और उनकी सुरक्षा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao Beti Padhao)” नाम की योजना कि शुरुआत की । इसके साथ ही उन्होंने बेटियों कि शिक्षा का महत्व भी बताया, उन्होंने कहा कि अगर बेटियां पढ़ी-लिखी नहीं होंगी तो पूरा परिवार ही अनपढ़ रह जाएगा। जिसके कारण हमारा भारत देश विकासशील देश ही बनकर रह जाएगा कभी भी विकसित देश नहीं हो पाएगा।

उन्होंने इस योजना के माध्यम से  इस बात पर विशेष जोर दिया कि बेटियों के साथ जो भी भेदभाव हो रहे हैं उनको जल्द ही खत्म किया जाए और साथ ही उनको पढ़ने लिखने की भी आजादी प्रदान कि जाए। बेटियों को भी अपना जीवन जीने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का मुख्य उद्देश्य:

इस मिशन का मूल उद्देश्य समाज में बदतर होते लिंगानुपात असंतुलन को नियंत्रित करना है। इस अभियान के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आवाज उठाई जा रही है। यह अभियान हमारे घर की बहु-बेटियों पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध एक युद्ध है। इस अभियान के द्वारा समाज में लडकियों को समान अधिकार दिलाए जा सकते हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत सामाजिक व्यवस्था में बेटियों के प्रति रूढ़िवादी मानसिकता में बदलाव लाना ।बालिकाओं की शिक्षा स्तर को आगे बढ़ाना।भेदभाव पूर्ण लिंग चुनाव की प्रक्रिया का उन्मूलन करते हुए गांव का अस्तित्व और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना।घर-घर में बालिकाओं की शिक्षा को सुनिश्चित करना होगा।लिंग आधारित भ्रूणहत्या की रोकथाम करना।लड़कियों की शिक्षा और उनकी भागीदारी में वृद्धि को सुनिश्चित करना।

बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की आवश्यकता क्यों पड़ी:

बेटीयों में भी क्षेत्र में लडकों की तुलना में कम सक्षमता नहीं होती है और लडकियाँ लडकों की अपेक्षा अधिक आज्ञाकारी , कम हिंसक और अभिमानी साबित होती हैं। लडकियाँ अपने माता-पिता की और उनके कार्यों की अधिक परवाह करने वाली होती हैं। एक महिला अपने जीवन में माता, पत्नी, बेटी, बहन की भूमिका निर्वाह करती है।

आज भी हमारा भारत देश वैसे तो हमारी पौराणिक संस्कृति, धर्म-कर्म और  स्नेह और प्यार का देश माना जाता है। लेकिन जब से भारतीय समाज ने तरक्की करनी चालू की है और नई तकनीकों का विकास हुआ है तब से भारतीय लोगों की मानसिकता में बहुत बड़ा बदलाव देखा गया है। इस बदलाव के कारण जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा उथल-पुथल हुआ है।

लोगों की मानसिकता इस कदर भ्रष्ट हो गई है की वे बेटे और बेटियों में भेदभाव करने लगे है। वे बेटियों को एक वस्तु के समान समझने लगे हैं। ऐसे लोग बेटे के जन्म होने पर बहुत खुश होते हैं और पूरे गांव में मिठाइयां बटवाते है  वही अगर बेटी का जन्म हो जाए तो पूरे घर में मात्म पसर जाता है जैसे कि कोई आपदा या विपदा आ गई हो। वह बेटी को पराया धन मानते हैं क्योंकि एक दिन बेटियों को शादी करके दूसरे घर जाना होता है।

इसलिए गिरी हुई मानसिकता वाले लोग सोचते हैं कि बेटियों पर किसी भी प्रकार का खर्च करना बेमतलब का निवेश है। इसलिए वे बेटियों को पढ़ाते लिखाते नहीं और उनका सही से पालन पोषण भी नही करते हैं।

उनको अपनी मर्जी से किसी भी कार्य को करने की आजादी प्रदान नहीं कि जाती है। कुछ जगहों पर तो बेटियों को घर से बाहर तक नहीं जाने दिया जाता है।

वहीं इसके उलट बेटों को खूब लाड-प्यार किया जाता है और उनकी शिक्षा के लिए उन्हे देश-विदेश में भी भेजा जाता है। बेटों को सभी प्रकार की छूट प्रदान कि जाती है। ऐसे लोग मानते हैं कि बेटे हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे और हमारी सेवा करेंगे लेकिन आजकल सब कुछ इसके उलट देखा जा रहा है।

बच्चों के लिंग अनुपात (सीएसआर), जो 0-6 वर्ष आयु के प्रति 1000 लड़कों के तुलना लड़कियों की संख्या से निर्धारित होता है। भारत देश के आजादी के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी जिसमें पाया गया कि 1000 लड़कों पर सिर्फ 945 लड़कियां ही है लेकिन आजादी के बाद स्थिति और भी खराब होती गई जिसके आंकड़े इस प्रकार हैं-

वर्ष लिंगानुपात प्रति 1000 युवको पर 1991 – 945, 2001 – 927, 2011 – 918, लङकियाँ है। 

लड़कियों की इतनी कम जनसंख्या होना यह किसी भयंकर आपदा से कम नहीं है। यह बच्चे के लिंग चुनाव द्वारा जन्मपूर्व भेदभाव और लड़कियों के प्रति जन्म उपरांत होने वाले भेदभाव को दर्शाता है।

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इस मानसिकता के दिन प्रतिदिन बढ़ने के कारण बेटियों की जनसंख्या में कमी में वृद्धि होने लगी क्योंकि बेटियां तो गर्भ में ही मारे जाने लगी है। “यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 5 करोड़ लड़कियों की कमी है।”

जिसका संज्ञान लेते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत को चेतावनी जारी कि अगर जल्द ही लड़कियों की सुरक्षा के लिए कुछ फैसला नहीं किया गया तो भारत में जनसंख्या के बदलाव के साथ-साथ अन्य कई विपत्तिया आ सकती हैं।  इसलिए हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों की सुरक्षा और बेटियों की शिक्षा दीक्षा के लिए एक नई योजना का प्रारंभ किया जिसका नाम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ रखा गया।

बेटियों की दुर्दशा के प्रमुख कारण

भारत में जब से नई-नई तकनीकों का विकास हो रहा है लोग तब से सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए जीने लगे हैं तब से बेटियों की स्थिति हमारे देश में बहुत ही दयनीय हो गई है। उनकी इस स्थिति का जिम्मेदार और कोई नहीं आप और हम ही हैं।

क्योंकि हमारे जैसे शिक्षित लोग ही बेटे और बेटियों में भेदभाव करने लगे हैं।  जिस कारण बेटियां देश में असुरक्षित महसूस करने लगी हैं और उनकी जनसंख्या में भी काफी गिरावट आई है। कई राज्यों में तो हालात इतने बदतर हो गए हैं कि वहां के युवाओं की अब का अब विवाह भी नहीं हो पा रहे है।

क्या आप जानते हैं कि वे कौनसे कारण हैं जिसके कारण आज हमारे देश की बेटियों की हालत गंभीर रूप से बहुत ही दयनीय हो गई है।

लैंगिग भेदभाव

लैंगिग भेदभाव का अर्थ है कि अब लोग बेटियों का जन्म नहीं चाहते है। वे चाहते हैं कि उनके घर सिर्फ बेटे ही जन्म ले। लेकिन वह लोग यह नहीं जानते कि अगर लड़कियों का जन्म नहीं होगा तो वे अपने बेटों के लिए बहू कहां से लाएंगे, बहन कहां से लाएंगे और साथ ही मां कहां से लाएंगे।

कन्या भूण हत्या

बढ़ते लैंगिक भेदभाव के कारण अब लोगों की मानसिकता इतनी खराब हो चुकी है कि वे बेटियों की गर्भ में ही मार देते हैं। उनके मन में बेटे की इतनी चाहत बढ़ गई है कि वह अपनी ही बेटी को दुनिया में आने से पहले ही मार डालते हैं। जिसके कारण लड़कियों की जनसंख्या में भारी गिरावट आई है  और वह एक नई विपदा उभरकर सामने आ रही है। जिस पर ना तो लोग कुछ कदम उठा रहे हैं ना ही सरकार इस पर कुछ कर पा रही है। जिसके कारण आए दिन लड़कियों का शोषण हो रहा है

शिक्षा की कमी

शिक्षा की कमी के कारण लोग आज भी बेटियों को बहुत मानते हैं जिसके कारण भारत जैसे देश जहां पर माताओं को पूजा जाता है। उसी देश में बेटियों का शोषण किया जाता है।

बेटियों के माता-पिता पढ़े नहीं होने के कारण वह लोगों की सुनी सुनाई बातों के बहकावे में आ जाते हैं और बेटियों के साथ भेदभाव करने लगते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता है कि अगर बेटियों को सही अवसर दिया जाए तो भी बेटों से ज्यादा नाम कमा सकती हैं।

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भ्रष्ट मानसिकता

भारत में लोगों की मानसिकता का इसी बात से पता लगाया जा सकता है कि वह बेटियों को एक वस्तु के समान समझने लगे हैं जिसको जैसे चाहे काम में ले और फिर फेंक दो।  लोग बेटियों को पराया धन मानते हैं उनको एक व्यर्थ खर्चे के रूप में मानते हैं जिसके कारण देश में लड़कियों की स्थिति चिंताजनक हो गई है।

भ्रष्ट मानसिकता वाले लोग मानते हैं कि बेटे ही सब कुछ है वही उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे और उनकी सेवा करेंगे।  इसलिए वे लोग अब बेटियों का जन्म तक नहीं लेने देते, और उनकी गर्व में ही हत्या करवा देते हैं। इसलिए लोगों को अपनी मानसिकता बदलने का प्रयास करना चाहिए।

दहेज प्रथा

हमारे देश में दहेज प्रथा अत्यधिक गंभीर समस्या है जिसके कारण बेटियों की स्थिति बहुत ही  चिंताजनक हो गई है। इस प्रथा के कारण लोग अब नहीं चाहते कि उनकी परिवार में बेटियां जन्मे, क्योंकि जब बेटियों की शादी की जाती है तो उन्हें बहुत सारा दहेज देना पड़ता है।

जिसके कारण लोग बेटियों को एक बहुत बड़ा खर्चा मानने लगते हैं  और बेटे और बेटियों में भेदभाव करते हैं। वर्तमान में तो बेटियों को गर्व में ही मरवा दिया जाता है जिससे लोगों को उनकी शादी पर दहेज नहीं देना पड़े इसलिए इस प्रथा को समाप्त करना बहुत जरूरी है।

लड़कियों की जन्म दर कम होना

लोग लड़कियों के साथ इसी तरह का भेदभाव करते रहे तो लड़कियों के जन्मदिन में भारी संख्या में गिरावट आ सकती है जबकि भारत के बहुत से राज्य में वर्तमान समय में भी लड़कियों की जनसंख्या बहुत कम है एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 1981 में 0 से 6 साल लड़कियों का लिंगानुपात 962 से घटकर 945 ही रह गया था और  वर्ष 2001 में यह संख्या 927 रह गई थी। 2011 आते आते तो स्थिति और भी खराब हो गई थी क्योंकि 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या सिर्फ 914 ही रह गई थी जो कि एक गंभीर समस्या हो गई है।

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बलात्कार और शोषण की घटनाएं बढ़ना

लड़कियों की जनसंख्या कम होने के कारण आए दिन हमारे देश में होने बलात्कार जैसी घटनाएं बहुत ही तेजी से बढ़ रही है। इसका एक कारण यह भी है कि लड़कियों की जन्म दर बहुत कम हो रही है। पुरुष प्रधान समाज होने के कारण लड़कियों की जनसंख्या जहां पर कम होती है वहां पर पुरुष अपना प्रभुत्व है दिखाते हैं और लड़कियों का शोषण करने से बाज नहीं आते हैं।

दुर्दशा सुधारने के लिए क्या उपाय कर रहे हैं

लिंग जांच को रोकना

वर्तमान में नई-नई तकनीकों के विकास के कारण आज गर्भ में ही पता चल जाता है कि होने वाली संतान लड़का पैदा होगा या लड़की, तो लोग इसका गलत फायदा उठा कर पहले ही पता लगा लेते हैं कि उन्हें लड़का पैदा होगा या फिर लड़की, अगर उन्हें पता चलता है कि गर्व में लड़की पल रही है तो वे लड़की की गर्भ में ही भूर्णहत्या करवा देते हैं जिसके कारण लड़कियों का लिंगानुपात निरंतर कम होता जा रहा है।

भारत में लिंग जांच करने वाली मशीनें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं इन मशीनों पर हमें तुरंत प्रतिबंध लगाना होगा । हालांकि भारत सरकार ने इसके ऊपर एक सख्त कानून बनाया है लेकिन कुछ लालची डॉक्टरों के कारण आज भी लिंग जांच आसानी से हो जाती है और लड़कियों की गर्भ में हत्या कर दी जाती है।

स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना

हमें स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, अगर समाज  में स्त्रियाँ शिक्षित होंगी तो वह कभी भी अपने गर्भ में पल रही मासूम बेटियों की हत्या नहीं करने देगी। उनकी हत्या का प्रमुख कारण यह है कि महिलाओं को  शिक्षा के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं होती है और उन्हें पुरानी रूढ़िवादी बातों में फंसा कर उनके घर वाले उसकि ही बेटी को गर्भ में मार दालते हैं। इसलिए जितना महिलाऐं शिक्षित होगी, उतना ही लड़कियों का लिंगानुपात बढ़ेगा।

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लड़कियों के प्रति भेदभाव को रोकना

हमारे 21वीं सदी के इस भारत में जहां एक तरफ हम कल्पना चावला जैसी महिलाओं को अंतरिक्ष में भेज रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के लोग लड़कियों साथ भेदभाव कर रहे हैं। लड़कियों से लिंग चयन के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है और अगर वो जन्म ले भी लेती है तो उनको उचित शिक्षा प्रदान नहीं कि जाती है, उनका उचित तरिके से पालन पोषण नहीं किया जाता है । इसी भेदभाव नीति के कारण लड़कियों का विकास उचित तरिके से नहीं हो पाता है और वे लङकों के मुकाबले पिछड़ी हुई रह जाती है। जिसके कारण वह लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समानता प्राप्त नहीं कर पाती हैं। हालांकि वर्तमान में ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरों में लड़कियों की स्थिति में कुछ बदलाव आया है।  लेकिन इतना भी बदलाव नहीं आ सका है कि कहां जा सके कि लङके और लड़कियों में भेदभाव नहीं हो रहा है।

लोगों की मानसिकता बदलना

आज 21वी सदी के इस भारत में एक और तो लोग अपने सभ्य होने का दावा प्रस्तुत करते हैं और दूसरी ओर वह महिलाओं के साथ शोषण करते हैं उनसे साथ छेड़छाड़ जैसी ओछी हरकते करते हैं और बलात्कार जैसी भयावह घटनाओं को अंजाम देते हैं। यह लोग कोई और नहीं हम या हममें में से ही कुछ ऐसे लोग हैं। जिनकी मानसिकता इतनी नष्ट हो चुकी है कि वह महिलाओं को एक तुछ वस्तु के समान भोग विलास की वस्तु मानते हैं।

ऐसे लोगों को पहचान कर समाज से बाहर कर देना ही उचित होगा, यह लोग समाज के लिए ही नहीं सम्पूर्ण संसार के लिए अत्यधिक खतरनाक हैं। इसलिए इन जैसी सोच रखने वाले लोगों की मानसिकता को परिवर्तित करना बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि दिन प्रतिदिन ऐसे लोगों की संख्या बढ़ोतरी हो रही है जिसका परिणाम हम सब हर समय अखबारों और समाचारों में देखते रहते हैं।

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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ उपसंहार

भारत के प्रत्येक नागरिक को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने व कन्या शिशु बचाओ के साथ-साथ इनका समाज में स्तर सुधारने के लिए प्रयास करना चाहिए। बालिकाओं को उनके माता-पिता द्वारा लडकों के समान अधिकार प्रदान करते हुए उनके समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए और लङकीयो को भी सभी कार्यक्षेत्रों में लङकों के समान अहमियत प्रदान करनी चाहिए।

Credit: PointPrism Study Centre

“हर लडाई जीतकर दिखाऊंगी, मैं अग्नि में जल कर भी जी जाऊंगी, चंद लोगों की पुकार सुन ली, मेरी पुकार न सुनी, मैं बोझ नहीं भविष्य हूं, बेटा नहीं पर बेटी हूं।”

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