Rabindranath Tagore Essay In Hindi

Rabindranath Tagore Essay In Hindi:रबीन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने कई प्रकार की साहित्य ओर कविताये लिखी है। उन्हें कई प्रकार के नोबेल ओर अन्य सम्मान प्राप्त हुए है। रविन्द्र नाथ टैगोर विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे।

Rabindranath Tagore Essay In Hindi

वह बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे, वे एक ही साथ महान साहित्यकार, समाज सुधारक, अध्यापक, कलाकार ओर कई संस्थाओ के निर्माता थे।

प्रस्तावना

वो जो सपने अपने देश भारत के लिए देखते थे, उन्हें पूरा करने के लिए अनवरत कर्मयोगी की तरह काम किया करते थे। उनके इस तरह के कार्यो की बजह से हमारे देश के वासियों में एक आत्मसम्मान की भावना जाग्रत हुई।

उनके इस विशाल व्यक्तित्व को राष्ट्र कि कोई सीमाएं नही बांध पाई। उनकी शिक्षा के तहत सबका कल्याण करना है। उनका मकसद बस एक ही था और वह था देश का कल्याण।

रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म बांग्ला परिवार में 7 मई 1861 में हुआ था। रविंद्र नाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था ओर माता जी का नाम शारदा देवी था। टैगोर के मन में बेरिष्टर बनने की चाहत थी ओर अपनी इस चाहत को पूरी करने के लिए उन्होंने 1878 में ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।

उन्होंने लन्दन कॉलेज विश्विद्यालय से काननू की शिक्षा ग्रहण की थी। लेकिन 1880 को वो बिना डिग्री प्राप्त किये ही वापिस आ गए थे। रविंद्र नाथ टैगोर को बचपन से ही कविता ओर कहानियां लिखने का शोक था। वह गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध थे।

भारत आकर उन्होंने अपनी लिखने की इच्छा को पूरा किया ओर फिर से लिखने का काम शुरू किया। 1901 में रबीन्द्रनाथ टैगोर जी ने पश्चिम बंगाल में ग्रामीण इलाके में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की थी।

जहां उन्होंने भारत ओर पश्चिम परम्पराओ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही रहने लगे थे। उन्होंने विद्यालय को ही अपना घर बना लिया था और सन 1921 में उनका विद्यालय विशव विश्वविद्यालय बन गया।

साहित्य के माध्यम से प्रोत्साहित करना

वह एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी भी थे। अपनी रचनाओं के माध्यम से, उन्होंने देश के लोगों में देशभक्ति का विकास किया और वे स्वयं एक बहुत ही देशभक्त थे। रवींद्र नाथ टैगोर ने अपने साहित्य से देश की स्वतंत्रता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए बहुत ही अभूतपूर्व काम किया। टैगोर ने पहले गांधी जी को महात्मा कहा था। और नेताजी सुभाष चंद्र बोस रवींद्रनाथ टैगोर के कहने पर गांधीजी से मिले।

टैगोर ने 1898 के कैंप बिल का विरोध किया। 1919 में, रवींद्रनाथ ने जलियांवाला कांड की निंदा की और एक विरोध के रूप में वायसराय को ‘सर’ की उपाधि लौटा दी।

उन्होंने साहित्य और कविताओं के माध्यम से देश की समस्याओं को लोगों के सामने व्यक्त किया। रवींद्रनाथ ने सामाजिक कल्याण के काम भी बहुत अच्छे से किए। उन्होंने अपने साहित्य में देश के हर वर्ग के बारे में लिखा और अपने साहित्य और कविताओं और कहानियों के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसे भी पढ़े:Essay On Cricket In Hindi

दुनिया की यात्रा

फरवरी 1873 में, रवींद्र नाथ टैगोर ने अपने पिता के साथ 11 साल की उम्र में भारत छोड़ दिया, कोलकाता में शांतिनिकेतन की संपत्ति छोड़कर अमृतसर हिमालयन हिल स्टेशन जैसे कई स्थानों पर गए, जहां उन्होंने वहां की संस्कृति और सभ्यता को समझा।

रवींद्र नाथ टैगोर अमृतसर में गुरबानी से बहुत प्रभावित थे और वे इसे सुनने के लिए हर दिन स्वर्ण मंदिर जाते थे। उन्होंने महज 16 साल की उम्र में 1877 में अपनी पहली लघु कहानी प्रकाशित की थी।

1920 और 1930 के दशक के दौरान टैगोर ने ईरान, मिस्र, यूरोप, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, जापान और चीन का दौरा किया। टैगोर ने अमेरिका, यूरोप और पूर्वी एशिया में लंबे समय तक बिताया। उस अवधि के दौरान, टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता के कारण के लिए एक प्रवक्ता के रूप में काम किया और 1932 में ‘द रिलीजन ऑफ मैन’ पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया।

विश्वविद्यालय की नींव

रवींद्र नाथ महिलाओं की मुक्ति और शिक्षा के पक्ष में थे। उन्होंने महसूस किया कि भारत की समस्याओं का मूल कारण हमारे देश की गलत शिक्षा प्रणाली है। उन्होंने देश में साहित्य और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शांतिनिकेतन में स्कूल की नींव रखी।

टैगोर ने 1901 में केवल पाँच छात्रों के साथ पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। इन पांच लोगों में उनका अपना बेटा भी शामिल था। आज उसी स्कूल को विश्व प्रसिद्ध शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है।

1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने वाली विश्वभारती में वर्तमान में लगभग छह हजार छात्र अध्ययनरत हैं। शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में आज सभी प्रकार की शिक्षाएँ दी जाती हैं, जहाँ उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं को एक साथ लाने का प्रयास किया।

उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन को साहित्य, संगीत और कला की शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्राप्त है। आज हमारे देश के बच्चों का सपना है कि वे शांति निकेतन विश्वविद्यालय में दाखिला लें और वहां से पढ़ाई करें, इंदिरा गांधी जैसी कई प्रतिभाओं ने शांति निकेतन से शिक्षा प्राप्त की है।

इसे भी पढ़े:Essay On Hindi Diwas

राष्ट्रगान

हमारा राष्ट्रगान भी रवींद्र नाथ टैगोर ने लिखा था। 1911 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार ‘जन गण मन’ गाया गया था। विभाजन विरोधी स्वदेशी आंदोलन के दौरान, उनके गीतों ने लोगों में देशभक्ति जगा दी। उन्होंने यह गीत हमारे देश के लोगों के भीतर एकता को जगाने के लिए लिखा था।

वह बंगला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना का कायाकल्प करने वाले एकमात्र कवि हैं, जिनकी रचनाएँ अभी भी दो देशों में राष्ट्रगान के रूप में गाई जाती हैं। भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन” और बांग्लादेश का राष्ट्रगान “अमर सोनार बांग्ला” टैगोर की रचनाएँ हैं।

यह गीत भारत के लोगों को एकजुट करने के लिए लिखा गया था। इस गीत के माध्यम से, जब भी हम राष्ट्रगान गाते हैं, तब लोग को अंग्रेजों से लड़ने में बहुत ताकत मिला। इसके प्रति कुछ करने की हममें इच्छा जगी।

रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएँ ऐसी थीं कि उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से देश के लोगों को एकजुट किया और अपनी कविता के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने देश की राजनीति में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, रवींद्रनाथ टैगोर पहले भारतीय थे जिन्होंने साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीता था।

पुस्तक की रचना

टैगोर ने लगभग 2,230 गीतों की रचना की है। रवींद्रनाथ का एक घर रचनात्मकता से भरा था। बहुत कम उम्र में, जब वह बारह साल के थे, तब उन्होंने छंद रचना शुरू की थी, उसकी पहली कविता एक पत्रिका में प्रकाशित होई । रवींद्र नाथ टैगोर साहित्य के सबसे बड़े गुरु थे, इसीलिए उन्हें पूरे देश में गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है और दुनिया उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जानती है।

रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख कृतियाँ जैसे गीतांजलि, पूर्बी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिश, पीएस, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबली, कनिका, नैवेद्य मेयर खेला और पालिका आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।

कुछ प्रसिद्ध उपन्यासों में गोरा, घरे बायर, नाका दुबी, चोखेर बाली, बुद्धकुंरिर हट, चतुरंगा, चिरध्याय, शेष कबीता और राजर्षि शामिल हैं।

उन्होंने भारतीय साहित्य को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया, टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास निबंध, लघु कथाएँ, यात्रा वृत्तांत नाटक और हजारों गीत लिखे। रवींद्र नाथ टैगोर का छोटा गद्य बहुत लोकप्रिय है, रवींद्रनाथ टैगोर की अन्य प्रसिद्ध काव्य रचनाओं में सोनार तानी, पूरवी, शाम का संगीत आदि शामिल हैं।

टैगोर के यादगार नाटक हैं विसारंजा (1890), पोस्ट ऑफिस (1912), रक्षा कार्बी (1926) और चित्रांगदा (1936)। उनके गीतों को सामूहिक रूप से ‘रवीन्द्र संगीत’ के रूप में जाना जाता है, जिन्हें भारतीय संगीत और संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है। इनके माध्यम से, उन्होंने लोगों को बहुत महत्वपूर्ण शिक्षा दी है और इस समाज और भारतीय साहित्य में बहुत ही अमूल्य छाप छोड़ी है।

पुरस्कार

रवींद्र नाथ टैगोर साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे, 1913 में, उनके कविता संग्रह ‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी अनुवाद पर साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला । 1915 में, उन्हें किंग जॉर्ज पंचम द्वारा नाइटहुड की उपाधि दी गई। वह एशिया के पहले नोबेल प्राप्त करने वाले व्यक्ति हैं।

रवींद्र नाथ टैगोर एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद अपने नाइटहुड का खिताब लौटा दिया। उन्होंने अपनी कविता और अपनी रचनाओं के माध्यम से देशवासियों और देश की समस्याओं को प्रकट किया और देश की चेतना को जागृत किया। वह हमेशा देशवासियों के लिए खड़े रहे।

इसे भी पढ़े:Essay On Air Pollution In Hindi

रवींद्रनाथ की मृत्यु

आज हमारा साहित्य इतना सम्पूर्ण है। उन्होंने पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति से परिचित कराया और भारतीय संस्कृति को पूरी दुनिया से परिचित कराया। आजादी से 6 साल पहले 7 अगस्त 1941 को टैगोर ने हम सबको छोड़ दिया, उनकी मृत्यु के कारण हमारे देश के साहित्य और देश के लोगों को बहुत नुकसान हुआ।

आज भी उन्हें उनके लेखन कार्य के लिए याद किया जाता है। टैगोर एक महान व्यक्ति थे, उन्होंने देश और देश के साहित्य और देश के लोगों के लिए एक नई पहचान बनाई। जिस घर में वह रहते थे उसे शांतिनिकेतन में एक संग्रहालय में बदल दिया गया है और इसका नाम रवींद्र भवन रखा गया है।

credit:Ac education

उपसंहार

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन को लोगो को समर्पित कर दिया था ओर वो अपनी बातों को सुस्पष्ठ अपनी कविता, कहानियों, अपने उपन्यास में व्यक्त करते थे। वो कहते थे की किसी भी चीज से गुस्सा करने की अपेक्षा अपने अंदर की भवनाओं को जाग्रत करो।

वो बिट्रिश अंग्रेजों से जरा भी घृणा नही करते थे। वो चाहते थे की हमारे यहां की शिक्षा प्रणाली में सुधार हो, समाज में सुधार हो। उनका प्रत्येक कार्य देश ओर देशवासियो को ही समर्पित था।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top