Chhand Kise Kahate Hain:हेलो स्टूडेंट्स, आज हमने यहां पर छन्द की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण के बारे में विस्तार से बताया हैChhand Kise Kahate Hain। यह हर कक्षा की परीक्षा में पूछा जाने वाले यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
Chhand Kise Kahate Hain
छन्द का अर्थ –
- छन्द शब्द की व्युत्पत्ति छद् धातु से मानी गयी है, जिसके दो अर्थ है –
बांधना या आच्छादन करना।
आह्लादित करना।
- छन्द-प्रभाकर में छन्द की परिभाषा
‘मत्तवरण गति यति नियम अन्तहि समता बन्द।
जा पद रचना में मिले, भानु भनत सुइच्छन्द।।
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- वर्णों या मात्राओं की संख्या व क्रम तथा गति, यति और चरणान्त के नियमों के अनुसार होने वाली रचना को छन्द कहते हैं।
- छन्दशास्त्र को ‘पिंगल-शास्त्र’ भी कहते हैं क्योंकि इसके प्रथम प्रधान प्रवर्तक श्री पिंगलाचार्य थे।
छंद से संबन्धित पारिभाषिक शब्द (छंद के अंग)
छंद के मुख्य 7 अंग निम्नलिखित हैं-
- चरण / पद / पाद
- वर्ण और मात्रा
- संख्या और क्रम
- गण
- गति
- यति / विराम
- तुक
1. चरण / पद / पाद –
प्रायः छन्द के 4 भाग होते हैं, जिन्हें विराम चिन्हों से अलग किया जाता है, इनमें से चतुर्थ भाग को चरण / पद / पाद कहतें हैं। हर पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।
चरण 2 प्रकार के होते हैं
समचरण:- दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं।
विषमचरण:- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण कहा जाता है।
2. वर्ण और मात्रा –
किसी भी वर्ण को उच्चारित करने में लगने वाला समय मात्रा कहलाता है। छंद शास्त्र में स्वरों को ही वर्ण माना जाताChhand Kise Kahate Hain है, यह दो प्रकार की होती हैं-ह्रस्व और दीर्घ जिसमे ह्रस्व को लघु और दीर्घ को गुरु पढ़ा जाता है।
लघु वर्ण- लघु वर्ण के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है। अ, इ, उ, ऋ आदि लघु वर्ण हैं, इसका का चिह्न ‘।’ है।
दीर्घ वर्ण- लघु कि अपेक्षा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में दुगुना समय लगता है। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि गुरु वर्ण हैं, इसका चिह्न (ऽ) है।
3. संख्या और क्रम-
वर्णों की मात्रा गणना को संख्या तथा लघु-गुरु के क्रम को निर्धारित करने को क्रम कहते हैं।
4. गण-
गण का शाब्दिक अर्थ समूह होता है, यह तीन वर्णों का समूह होता है। दुसरे शब्दों में इसे यह भी कह सकते हैं कि, लघु-गुरु के नियत कर्म से तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इनकी संख्या 8 होती है, जो निम्नलिखित हैं-यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण तथा सगण।
5. गति-
मधुरता लाने के लिए छंद में निश्चित वर्णों या मात्राओं तथा यति के प्रयोग से विशेष प्रकार की संगीतात्मक लय निकाला जाता है और इसी संगीतात्मक लय को गति कहते हैं।
6. यति / विराम-
छंद पढ़ते समय एक नियमित समय पर जब सांस लेने के लिए रुका जाता है, इसी रुकने वाले स्थान को यति या विराम कहा जाता है। साधारणतः छोटे छंदों में विराम स्थान अंतिम में होते है, जबकि बड़े-बड़े छंदो में विराम स्थान बीच-बीच में ही होता है।
7. तुक-
छन्द के प्रत्येक चरण के अन्त में अक्षर-मैत्री (स्वर-व्यंजन की समानता) को तुक कहते हैं। जिस छंद में तुक होता है, उसे तुकान्त तथा जिसमे छन्द में तुक नहीं होता है, उसे अतुकान्त कहते हैं।
छंद के प्रकार और उदाहरण
हिन्दी में छंद 3 प्रकार के होते है- वर्णिक छंद, मात्रिक छंद और मुक्तक छंद
वर्णिक छंद-
जिन छंदों में केवल वर्णों की संख्या और नियमों का पालन किया जाता है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं। वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम भी समान रहता है।
मात्रिक छंद-
मात्रिक शब्द-नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि यह मात्रा से सम्बन्धित है- अतः इसे कह सकते हैं कि जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। अर्थात मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या सामान रहती है।
मात्रिक छंद भी 3 प्रकार के होते हैं।
मुक्तक या रबड़ छंद-
मुक्तक छंद को सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की देन माना जाता है, क्योकि भक्तिकाल तक इसका कोई अस्तित्व नहीं था। मुक्तक छंद नियमबद्ध नही होते हैं, इनमे कोई नियम नहीं होता है सिर्फ़ स्वछंद गति और भावपूर्ण यति ही मुक्तक छंद की पहचान हैं।
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