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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
1. बसो मेरे नैनन में ….…………………………………….. भक्त बछल गोपाल।
शब्दार्थ- मकराकृत = मछली के आकार के। छुद्र = छोटी। रसाल = मधुर । भक्त-बछल = भक्त-वत्सल।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीराबाई के काव्य-ग्रन्थ ‘मीरा-सुधा-सिन्धु’ के अन्तर्गत ‘पदावली’ शीर्षक से अवतरित है।
प्रसंग- प्रेम-दीवानी मीरा भगवान् कृष्ण की मोहिनी मूर्ति को अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं। इस पद में कृष्ण की मोहिनी मूर्ति का सजीव चित्रण है।
व्याख्या- कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा कहती हैं कि नन्दजी को आनन्दित करनेवाले हे श्रीकृष्ण! आप मेरे नेत्रों में निवास कीजिए। आपका सौन्दर्य अत्यन्त आकर्षक है। आपके सिर पर मोर के पंखों में निर्मित मुकुट एवं कानों में ऊली की आकृति के कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं। मस्तक पर लगे हुए लाल तिलक और सुन्दर विशाल नेत्रों से आपका श्यामवर्ण का शरीर अतीव सुशोभित हो रहा है। अमृतरस से भरे आपके सुन्दर होंठों पर बाँसुरी शोभायमान हो रही है । आप हृदय पर वन के पत्र-पुष्पों से निर्मित माला धारण किये हुए हैं। आपकी कमर में बँधी करधनी में छोटी-छोटी घण्टियाँ सुशोभित हो रही हैं। आपके चरणों में बँधे हुँघरुओं की मधुर ध्वनि बहुत रसीली प्रतीत होती है । हे प्रभु! आप सज्जनों को सुख देनेवाले, भक्तों से प्यार करनेवाले और अनुपम सुन्दर हैं। आप मेरे नेत्रों में बस जाओ।
काव्यगत सौन्दर्य
- यहाँ भगवान् कृष्ण की मनमोहक छवि का परम्परागत वर्णन किया गया है।
- मीराबाई की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्तिभावना प्रकट हुई है।
- भाषा-सुमधुर ब्रज।
- शैली-मुक्तक काव्य की पद शैली है।
- छन्द-संगीतात्मक गेय पद।
- रस- भक्ति एवं शान्त।
- अलंकार-मोर मुकुट मकराकृति कुण्डल’ तथा ‘मोहनि मूरति साँवरि सूरति’ में अनुप्रास है।
- भाव-साम्य-कविवर बिहारी भी मीरा की तरह कृष्ण के इस रूप को अपने मन में बसाना चाहते हैं –
“सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माल।
इहिं बानक मो मन सदा, बसौ बिहारीलाल॥”
2. पायो जी म्हैं तो राम रतन ………………………………………… जस गायो।
शब्दार्थ- अमोलक = अनमोल । खेवटिया = खेनेवाला। भव सागर = संसाररूपी सागर । म्है = मैंने।
सन्दर्भ – यह पद मीराबाई की ‘पदावली’ से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित है।
प्रसंग- प्रस्तुत पद में मीराबाई भगवान् राम के नाम के महत्त्व की चर्चा करती हुई कहती हैं –
व्याख्या- मैंने भगवान् के नामरूपी रत्न सम्पदा को प्राप्त कर लिया। मेरे सच्चे गुरु ने यह अमूल्य वस्तु मुझ पर दया करके मुझे प्रदान की थी, मैंने उसे अंगीकार किया था। इस प्रकार मैंने गुरुदीक्षा के कारण कई जन्मों की संचित पूँजी (पुण्य फल) प्राप्त कर ली और संसार की सारी मोह-मायाओं का त्याग कर दिया। यह राम नाम की पूँजी ऐसी विचित्र है कि यह खर्च करने पर भी कम नहीं होती और न इसे चोर हो चुरा सकते हैं। यह प्रतिदिन अधिक होती जाती है। मैंने इसी सत्यनाम (ईश्वर का नाम) रूपी नौका पर सवार होकर, जिसके केवट मेरे सच्चे गुरु हैं, संसाररूपी सागर को पार कर लिया है। अंत में मीराबाई कहती हैं कि गिर धरनागर श्रीकृष्ण भगवान् ही एकमात्र मेरे स्वामी हैं। मैं प्रसन्न होकर उनका गुणगान कर रही हूँ।
काव्यगत सौन्दर्य
- इस पद में भक्तिकालीन कवियों की परम्परा के अनुसार भगवान् के नाम के महत्त्व को बतलाया गया है।
- मीरा कृष्ण की उपासिका हैं, किन्तु यहाँ ‘राम’ रतन धन की चर्चा करती हैं। यहाँ राम का तात्पर्य घट-घट व्यापी राम से है।
- अलंकारअनुप्रास और रूपक।
- भाषा-राजस्थानी मिश्रित ब्रज।
- शैली-मुक्तक।
- छंद-गेयपद।
- रस-शान्त और भक्ति।
3. माई री मैं ……………………………………………….. जनम कौ कौल।
शब्दार्थ- छाने = छिपकर । बजन्ता ढोल = ढोल बजाकर, सबको जताकर, खुले आम । मुँहघो = महंगा । सुंहघो = सस्ता । कौल = वचन ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीरा द्वारा रचित ‘पदावली’ से संकलित है।
प्रसंग- प्रस्तुत पद में मीरा श्रीकृष्ण से अपने सच्चे प्रेम को निस्संकोच भाव से स्वीकार कर रही हैं।
व्याख्या- मीरा कहती हैं- मैंने तो अपने गोविन्द को मोल ले लिया है। लोग मेरे इस प्रेम-व्यापार पर नाना प्रकार के आक्षेप करते हैं। कोई कहता है कि मैंने श्रीकृष्ण को छिपकर अपनाया है और कोई कहता है कि मैंने उससे चुपचाप प्रेम-सम्बन्ध जोड़ा है, पर मैंने तो ढोल बजाकर-सभी को बताकर-उसे अपनाया है। कोई कहता है कि मेरा यह सौदा बड़ा महँगा (कष्टदायक) है और कोई कहता है कि मैंने श्रीकृष्ण को बड़े सस्ते में (सहज प्रयत्न से) पा लिया है, पर मैंने उसे सब प्रकार से परखकर, हृदयरूपी तराजू पर तौलकर मोल लिया है। चाहे उसे कोई काला कहे चाहे गोरा, मेरे लिए तो वह जैसा भी है, अमूल्य है, क्योंकि उसे हृदय जैसी मूल्यवान वस्तु के बदले खरीदा गया है। सभी जानते हैं कि मीरा ने कृष्ण को आँख बन्द करके-अंधविश्वास में लिप्त होकर स्वीकार नहीं किया है। उसने तो आँखें खोलकर, सब कुछ सोच समझकर उससे प्रीति सम्बन्ध जोड़ा है। मीरा कहती हैं-मेरे प्रभु पूर्वजन्म से मेरे साथ वचनबद्ध हैं, अत: उन्होंने मुझे दर्शन देकर कृतार्थ किया है।
काव्यगत सौन्दर्य
- मीरा और कृष्ण के पवित्र प्रेम-बन्धन की झाँकी इस पद में साकार हुई है।
- भाषा सरस, सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त ब्रजी है।
- शैली-आत्मनिवेदनात्मक, भावात्मक तथा व्यंग्य का संस्पर्श लिये है।
- अनेक मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। रस-भक्ति। गुण-प्रसाद। छन्द-गेय पद।
4. मैं तो साँवरे ………………………………………………………. भगति रसीली जाँची॥
शब्दार्थ- साँची = सत्य । ब्याल = सर्प । खारो = नीरस, व्यर्थ । काँची = कच्ची, (क्षणभंगुर)। जाँची = प्रतीत हुई।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।
प्रसंग- इस पद में मीरा भगवान् कृष्ण के प्रेम में निमग्न होकर पूर्णरूप से उन्हीं के रंग में रंग गयी हैं, इसलिए संसार की अन्य किसी वस्तु में उनका मन नहीं लगता।
व्याख्या- मीरा कहती हैं कि मैं तो साँवले कृष्ण के श्याम रंग में रँग गयी हूँ अर्थात् उनके प्रेम में आत्मविभोर हो गयी हूँ। मैंने तो लोक-लाज को छोड़कर अपना पूरा श्रृंगार किया है और पैरों में सुँघरू बाँधकर नाच भी रही हैं। साधुओं की संगति से मेरे हृदय की सारी कालिमा मिट गयी है और मेरी दुर्बुद्धि भी सद्बुद्धि में बदल गयी है और मैं श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त बन गयी हूँ। मैं प्रभु श्रीकृष्ण का नित्य गुणगान करके कालरूपी सर्प के चंगुल से बच गयी हूँ अर्थात् अब मैं जन्म-मरण के चक्र से छूट गयी हूँ। अब कृष्ण के बिना मुझे यह संसार निस्सार और सूना लगता है, अतः उनकी बातों के अलावा अन्य बातें व्यर्थ लगती हैं। मीराबाई को केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में ही आनन्द मिलता है, संसार की किसी अन्य वस्तु में नहीं।
काव्यगत सौन्दर्य
- श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की एकनिष्ठ भक्ति का सुन्दर चित्रण हुआ है।
- कृष्ण की दीवानी मीरा को उनके बिना यह संसार निस्सार और सूना लगता है।
- भाषा-राजस्थानी मिश्रित ब्रज
- शैली-मुक्तक।
- छन्द-गेय पद।
- रस- भक्ति और शान्त।
- गुण-माधुर्य ।
- अलंकार-अनुप्रास, रूपक।।
5. मेरे तो गिरधर …………………………………… तारो अब मोई।
शब्दार्थ-कानि = मर्यादा, प्रतिष्ठा। ढिंग = समीप । आणंद = आनन्द । राजी = प्रसन्न।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीरा द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।
प्रसंग- मीरा एकमात्र श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व घोषित कर रही हैं। संसार के सारे नाते तोड़कर, लोकलाज छोड़कर, केवल श्रीकृष्ण के प्रेम के आनन्द-पल का आस्वाद ले रही हैं।
व्याख्या- मीरा कहती हैं-अब तो मैं अपना नाता केवल एक श्रीकृष्ण से मानती हूँ और कोई भी मेरा इस संसार में अपना नहीं है। सिर पर मोरमुकुट धारण करनेवाले नटवर-नागर ही मेरे पति हैं। पिता, माता, भाई, बन्धु आदि से अब मेरा कोई नाता नहीं रहा। मैंने तो कृष्ण-प्रेम के लिए अपने कुल की प्रतिष्ठा को भी त्याग दिया है। अब मेरा कोई क्या कर लेगा? सभी कहते हैं कि मैंने सन्तों का सत्संग करके स्त्रियोचित लोक-लज्जा को भी तिलांजलि दे दी है। पर मुझे इसकी चिन्ता नहीं। मैंने अपनी कृष्ण-प्रेम की लता को अपने आँसुओं से सींचकर (महान् कष्ट सहन करके) बढ़ाया है। अब तो यह प्रेम-लता बहुत फैल चुकी है, अब तो इस पर आनन्दरूपी फल लगनेवाले हैं। मुझे तो अब केवल प्रियतम कृष्ण की भक्ति में ही सुख मिलता है। सांसारिक विषयों को देखकर मेरा मन दु:खी होता है। मीराबाई कह रही हैं कि हे गिरिधर गोपाल ! अब आप अपनी दासी मीरा का उद्धार कीजिए और उसे अपनाकर धन्य बना दीजिए।
काव्यगत सौन्दर्य
- श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम-भाव और भक्ति को मीरा ने हृदयस्पर्शी शब्दावली में साकार किया है।
- अलंकार-अनुप्रास, रूपक (‘प्रेम-बेलि’ और ‘आनन्द-फल’) तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं।
- भाषी सरस, सरल, किन्तु भाव-वहन में पूर्ण समर्थ है।
- शैली-आत्मनिवेदनात्मक एवं भावात्मक है। गुण-प्रसाद, छन्द-गेय पद।
प्रश्न 2. मीराबाई का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा मीराबाई का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा मीरा की रचनाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
मीराबाई
(स्मरणीय तथ्य)
जन्म-सन् 1498 ई० । मृत्यु- 1546 ई० के आसपास।
पति- महाराणा भोजराज । पिता- रतन सिंह।
रचना- गेय पद।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय -विनय, भक्ति, रूप-वर्णन, रहस्यवाद, संयोग वर्णन।
रस- श्रृंगार (संयोग-वियोग), शान्त।।
भाषा- ब्रजभाषा, जिसमें राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पंजाबी और फारसी के शब्द मिले हैं।
शैली- गीतकाव्य की भावपूर्ण शैली।
छन्द- राग-रागनियों से पूर्ण गेय पद।
अलंकार- उपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि ।
- जीवन-परिचय- मीराबाई का जन्म राजस्थान में मेड़ता के पसि चौकड़ी ग्राम में सन् 1498 ई० के आसपास हुआ था। इनके पिता का नाम रतनसिंह था। उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ इनका विवाह हुआ था, किन्तु विवाह के थोड़े। ही दिनों बाद इनके पति की मृत्यु हो गयी।
मीरा बचपन से ही भगवान् कृष्ण के प्रति अनुरक्त थीं । सारी लोक-लज्जा की चिन्ता छोड़कर साधुओं के साथ कीर्तन-भजन करती रहती थीं। उनकी इस प्रकार का व्यवहार उदयपुर के राज-मर्यादा के प्रतिकूल था। अतः उन्हें मारने के लिए जहर का प्याला भी भेजा। गया था, किन्तु ईश्वरीय कृपा से उनका बाल-बाँका तक नहीं हुआ। परिवार से विरक्त होकर वे वृन्दावन और वहाँ से द्वारिका चली गयीं। औंर सन् 1546 ई० में स्वर्गवासी हुईं। - रचनाएँ- मीराबाई ने भगवान् श्रीकृष्ण के प्रेम में अनेक भावपूर्ण गेय पदों की रचना की है जिसके संकलन विभिन्न नामों से प्रकाशित हुए हैं। नरसीजी को मायरा, राम गोविन्द, राग सोरठ के पद, गीत गोविन्द की टीका मीराबाई की रचनाएँ हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
- (क) भाव-पक्ष- मीरा कृष्णभक्ति शाखा की सगुणोपासिका भक्त कवयित्री हैं। इनके काव्य का वर्ण्य-विषय एकमात्र नटवर नागर श्रीकृष्ण का मधुर प्रेम है।
- विनय तथा प्रार्थना सम्बन्धी पद- जिनमें प्रेम सम्बन्धी आतुरता और आत्मस्वरूप समर्पण की भावना निहित है।
- कृष्ण के सौन्दर्य वर्णन सम्बन्धी पद- जिनमें मनमोहन श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
- प्रेम सम्बन्धी पद- जिनमें मीरा के श्रीकृष्ण प्रेम सम्बन्धी उत्कट प्रेम का चित्रांकन है। इनमें संयोग और वियोग दोनों पक्षों का मार्मिक वर्णन हुआ है।
- रहस्यवादी भावना के पद- जिनमें मीरा के निर्गुण भक्ति का चित्रण हुआ है।
- जीवन सम्बन्धी पद- जिनमें उनके जीवन सम्बन्धी घटनाओं का चित्रण हुआ है।
- (ख) कला-पक्ष-
- भाषा-शैली- मीरा के काव्य की भाषा ब्रजी है जिसमें राजस्थानी, गुजराती, भोजपुरी, पंजाबी भाषाओं के शब्द हैं। मीरा की भाषा भावों की अनुगामिनी है। उनमें एकरूपता नहीं है फिर भी स्वाभाविकता, सरसता और मधुरता कूट-कूटकर भरी हुई है।
- रस-छन्द-अलंकार- मीरा की रचनाओं में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष, संयोग और वियोग का बड़ा ही मार्मिक वर्णन हुआ है। इसके अतिरिक्त शान्त रस का भी बड़ा ही सुन्दर समावेश हुआ है। मीरा का सम्पूर्ण काव्य गेय पदों में है जो विभिन्न रोगरागनियों में बँधे हुए हैं। अलंकारों का प्रयोग मीरा की रचनाओं में स्वाभाविक ढंग से हुआ है। विशेषकर वे उपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि अलंकारों के प्रयोग से बड़े ही स्वाभाविक हुए हैं।
- साहित्य में स्थान- हिन्दी गीति काव्य की परम्परा में मीरा का अपना अप्रतिम स्थान है । प्रेम की पीड़ा का जैसा मर्मस्पर्शी वर्णन मीरा की रचनाओं में उपलब्ध होता है वैसा हिन्दी साहित्य में अन्यत्र सुलभ नहीं है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मीरा ने संसार की तुलना किस खेल से की है और क्यों?
उत्तर- मीरा ने संसार की तुलना चौपड़ के खेल से की है क्योंकि चौपड़ का खेल कुछ देर चलता है फिर समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार संसार की वस्तुएँ कुछ समय रहती हैं और फिर नष्ट हो जाती हैं।
प्रश्न 2. मीरा गिरिधर के घर जाने की बात क्यों कहती हैं?
उत्तर- मीरा श्रीकृष्ण को अपना आराध्य ही नहीं, पति भी मानती हैं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण के साथ दाम्पत्य-सूत्र में बँधा हुआ अनुभव करती हैं और अपने पति (श्रीकृष्ण) का सामीप्य पाने के लिए उनके घर जाना चाहती हैं।
प्रश्न 3. ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो ने कोई’-पद में मीरा के भक्ति-भाव पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई’ -मीरा द्वारा रचित इस पद का सारांश लिखिए।
उत्तर- कृष्ण की भक्ति में डूबी मीरा उन्हें ही अपना पति मानती हैं और कहती हैं कि उनके तो केवल गिरिधर गोपाल ही हैं, दूसरा कोई नहीं है। जिनके सिर पर मोर-मुकुट हैं वे ही उनके पति हैं। माता-पिता, भाई-बन्धु आदि इस संसार में कोई भी कृष्णु के सिवा उनका अपना नहीं है। उन्होंने कृष्ण-भक्ति में सबको त्याग दिया है। यहाँ तक कि अपने कुल को भी त्याग दिया है। लोग इसके लिए उन्हें क्या कहते हैं, इसकी चिन्ता भी उन्हें नहीं है। उन्होंने संत एवं साधुओं की संगति में बैठकर लोक-लज्जा का त्याग कर दिया है। उन्होंने आँसुओं से सींचकर जिस कृष्ण-भक्ति की बेल (लता) को बोया, वह अब फैलकर फल दे रही है। अब तो वे सांसारिकता को देखकर संसार के प्रति मनुष्य की अज्ञानता पर रोती हैं और जहाँ भक्ति देखती हैं वहाँ उनका मन प्रसन्न हो उठता है । मीरा कहती हैं-‘हे गिरिधर गोपाल ! मैं तुम्हारी दासी हूँ, अब तुम ही मेरा उद्धार करो।’
प्रश्न 4. धर्म के अन्तर्गत केवल बाहरी कर्मकाण्ड करने से क्या होता है?
उत्तर- बाहरी कर्मकाण्डों से व्यक्ति उन्हीं में फँसा रहता है और भगवान् के सच्चे स्वरूप को नहीं जान पाता है। इस प्रकार उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। वह बाह्याडम्बरों में फँसा ही जन्म-मरण के चक्र से कभी नहीं छूट पाता है, अत; धर्म में केवल बाहरी कर्मकाण्ड उचित नहीं है।
प्रश्न 5. मीरा के काव्य में व्यक्त भक्ति एवं रहस्यवाद का परिचय दीजिए।
उत्तर-
- भक्ति- मीरा की भक्ति प्रेम प्रधान है। उनका कृष्ण राममय और राम कृष्णमय हैं, अर्थात् दोनों ही एक हैं। राम भी कृष्ण ही हैं। भावों की तीव्रता में कोमलता और मधुरता इनकी भक्ति की विशेषता है। वे गोपियों के समान कृष्ण के प्रति माधुर्य भक्ति से प्रेरित हैं। वे कृष्ण के रंग में रंग कर कहती हैं
‘‘मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥’ - रहस्यवाद- मीरा के काव्य में जिस रहस्यवाद के दर्शन होते हैं, उसमें दाम्पत्य प्रेम की प्रधानता है। वे कहती हैं
“जिनका पिया परदेश बसत है, लिख-लिख भेजत पाती।
मेरा पिया हृदय बसत है, ना कहुं आती जाती।”
प्रश्न 6. कृष्ण के क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की क्या धारणा है?
उत्तर- मीरा के कृष्ण को क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की धारणा है कि मीरा ने गोविन्द को छानबीन कर खरीद लिया है। कोई कहता है कि चुपके से खरीद लिया है, कोई कहता है कि वह काला है, कोई कहता है कि वह गोरा है।
प्रश्न 7. मीरा ने संसार की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर- मीरा ने संसार की तुलना चौसर खेल से की है। जिस तरह चौसर खेल क्षण भर में समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यह संसार भी क्षणभंगुर है। क्षण भर में नष्ट होनेवाला है।
प्रश्न 8. मीरा को कौन-सा धन प्राप्त हो गया है? उस धन की क्या विशेषता है?
उत्तर- मीरा को रामरतन रूपी धन प्राप्त हो गया है । इस धन की विशेषता है कि इसको खर्च नहीं किया जा सकता है और न चुराया जा सकता है अपितु प्रयोग करने से दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहता है ।
प्रश्न 9. मीरा ने संसार सागर को पार करने का क्या उपाय बताया है?
उत्तर- मीरा संसार सागर को पार करने के विषय में बताती हैं कि राम नाम का बेड़ा बाँधकर संसार सागर से पार हुआ जा सकता है। राम नाम का बेड़ा बाँधने से मीरा का अभिप्राय भगवान् की भक्ति करने से है।
प्रश्न 10. मीरा भगवान् के किस प्रकार के रूप को अपने नयनों में बसाना चाहती हैं?
उत्तर- मीरा मोर मुकुट, मकराकृत कुण्डल और माथे पर अरुण तिलक लगे नन्दलाल के नटवर नागर रूप को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं।
प्रश्न 11. मीरा शरीर पर गर्व न करने का उपदेश क्यों देती हैं?
उत्तर- मीरा का मत है कि यह शरीर नाशवान है, मिट्टी से बना है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जायेगा, इसलिए इस शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मीरा की किन्हीं दो रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर- नरसी जी का मायरा और राग गोविन्द ।
प्रश्न 2. मीरा ने किस भाषा में रचना की है?
उत्तर- मीरा ने ब्रजभाषा में अपने गीतों की रचना की है।
प्रश्न 3. मीरा ने प्रेम की लता को किस प्रकार पल्लवित किया?
उत्तर- मीरा ने प्रेम की लता को आँसुओं के जल से सींच-सींचकर पल्लवित किया। उसे लता से उसे आनन्दरूपी फल प्राप्त हुआ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए –
(अ) मीरा भगवान् के सगुण रूप की उपासिका थीं। (√)
(ब) मीरा के अनुसार शरीर पर गर्व करना चाहिए। (×)
(स) मीरा श्रीकृष्ण को पति रूप में मानती हुई उनके घर जाना चाहती हैं। (√)
(द) मीराबाई रतन सिंह की पुत्री थीं। (√)
प्रश्न 5. मीरा ने क्या मोल लिया है?
उत्तर- मीराबाई ने गोविन्द श्रीकृष्ण को मोल लिया है।
प्रश्न 6. मीरा भगवान् के किस रूप की उपासिका थीं?
उत्तर- मीरा भगवान् के साकार रूप की उपासिका थीं। कृष्ण को श्याम सुन्दर रूप, कान में कुण्डल, हाथ में मुरली और गले में वनमाला, श्रीकृष्ण के इस रूप पर मीरा मोहित थीं।
प्रश्न 7. मीरा किस भक्ति-शाखा की कवयित्री हैं?
उत्तर- मीरा सगुण भक्ति शाखा की कवयित्री हैं।
प्रश्न 8. मीरा किसके रंग में रँगी हैं?
उत्तर- मीरा भगवान् श्रीकृष्ण के रंग में रँगी हैं।
प्रश्न 9. मीरा के काव्य को मुख्य स्वर क्या है?
उत्तर- मीरा के काव्य का मुख्य स्वर कृष्ण-भक्ति है।
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) बसो मेरे नैनन में नन्दलाल।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल।
उत्तर-
(अ) इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची में रूपक अलंकार है।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल में वृत्त्यनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
गसी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।
उत्तर- काव्य सौन्दर्य :
(अ) इस पंक्ति में मीरा अपने को श्रीकृष्ण की दासी बताया है।
(ब) भाषा-ब्रज।
(स) रस-भक्ति एवं शांत।
(द) छंद-गेय।
(य) शैली-मुक्तक।
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
भगति, सबद, नैनन, बिसाल, किरपा, आणंद, अँसुवन।
उत्तर- भक्ति, शब्द, नयन, विशाल, कृपा, आनंद, आँसुओं।
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