डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल (सन् 1904-1967 ई.)
पूरा नाम | वासुदेव शरण अग्रवाल |
जन्म | 7 अगस्त, 1904 |
जन्म भूमि | ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 26 जुलाई, 1966 |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘मलिक मुहम्मद जायसी-पद्मावत’, ‘हर्षचरित-एक सांस्कृतिक अध्ययन’। |
विद्यालय | ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ |
शिक्षा | एम.ए.; एलएल. बी. |
पुरस्कार-उपाधि | पी.एच.डी. और डी.लिट |
प्रसिद्धि | विद्वान तथा लेखक |
विशेष योगदान | स्वतंत्रता के बाद दिल्ली में स्थापित ‘राष्ट्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय’ की स्थापना में इनका प्रमुख योगदान था। |
नागरिकता | भारतीय |
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन-परिचय:
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1904 ई. में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे।
अत: इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही बीता। उन्होंने अपनी शिक्षा वहीं प्राप्त की। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय में इन्होंने अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। इनकी रुचि वास्तव में अध्ययन ओर पुरातत्व में थी और उन्होंने इसी में एी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त कर ली।
बाद में इन्होंने डी.लिट्. भी लखनऊ विश्वविद्यालय से किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग’ के वे अध्यक्ष एवं आचार्य रहे।पालि, संस्कृत, अँग्रेजी, आदि भाषाओं तथा उनके साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया। उन्होंने लखनऊ तथा मथुरा के पुरातत्व संग्रहालयों में निरीक्षक के पद पर कार्य किया।
वे केन्द्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग के संचालक तथा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे। वैदिक साहित्य, दश्रन, पुराण के अन्वेषक, हिन्दी साहित्य एवं पुरातत्व के ज्ञाता इस विद्वान ने सन् 1967 में इस नश्वर संसार का छोड़ दिया।उन्होंने अपने ज्ञान एवचं श्रम से हिन्दी साहित्य को समृद्धि प्रदान की।
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल का कृतियॉं:
निबन्ध-लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, पालि, प्राकृत और संस्कृत के कई ग्रन्थों का सम्पादन एवं पाठ-शोधन भी किया। डाॅ. अग्रवाल ने पुरातत्व को ही अपनप वर्ण्य विषय बनाया और निबन्धों के माध्यम से अपने इन ज्ञान को अभिव्यक्त किया।
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख कृतियॉं है-
वासुदेव शरण अग्रवाल के रचनाये व् कृतियां
- निबंधों का संग्रह – पृथ्वी पुत्र , कल्पबृक्ष ,कल्पलता मातृ भूमि, भारत की एकता , वेद विद्या, कला और संस्कृति , वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति इत्यादि।
- ऐतिहासिक व् पौराणिक निबंध – महापुरुष श्रीकृष्ण ,महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
- आलोचना – पद्मावत की संजीविनी व्याख्या हर्ष चरित का संस्कृति अध्यन
- शोध ग्रन्थ – नविन कालीन भारत।
ग्रन्थाधारित विवेचनात्मक अध्ययन:
- मेघदूत : एक अध्ययन – 1953 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
- हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन – 1953 (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना)
- पाणिनिकालीन भारतवर्ष – 1955 (चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी)
- पद्मावत (मूल और संजीवनी व्याख्या) – 1955 (साहित्य सदन, चिरगाँव, झाँसी)
- कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन – 1957 (चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी)
- मार्कण्डेय पुराण : एक सांस्कृतिक अध्ययन – 1961 (हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद)
- कीर्तिलता (ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन तथा संजीवनी व्याख्या सहित) – 1962 (साहित्य सदन, चिरगाँव, झाँसी)
- भारत सावित्री (आलोचनात्मक संस्करण के पाठ पर आधारित महाभारत की कथा सार रूप में महत्त्वपूर्ण टिप्पणियों सहित) – तीन खण्डों में – 1957,1964,1968 (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली)
स्वतंत्र विषयक ग्रन्थ:
- भारत की मौलिक एकता – 1954 (लीडर प्रेस, इलाहाबाद)
- भारतीय कला (प्रारंभिक युग से तीसरी शती ईस्वी तक) – 1966 (पृथिवी प्रकाशन, वाराणसी)
विविध विषयक निबन्ध संग्रह:
- पृथिवी-पुत्र – 1949 (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली)
- उरु-ज्योति – 1952 (श्रीकन्हैयालाल वैदिक प्रकाशन निधि, गाज़ियाबाद की ओर से प्रकाशित)
- कल्पवृक्ष – 1953 (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली)
- माताभूमि -1953
- कला और संस्कृति – 1952 (साहित्यभवन लिमिटेड, इलाहाबाद)
- इतिहास-दर्शन – 1978 (पृथिवी प्रकाशन, वाराणसी)
- भारतीय धर्ममीमांसा (पृथिवी प्रकाशन, वाराणसी)
संपादन एवं अनुवाद:
- पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ – 1953
- “हिन्दू सभ्यता – 1955 (राधाकुमुद मुखर्जी की अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद)
- शृंगारहाट (डाॅ• मोतीचन्द्र के साथ)
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल का भाषा-शैली:
डॉ. अग्रवाल की भाषा शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ी बोली हिन्दी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग होते हुए भी इसमें सरसता है। इनकी शेल्ी उनके अध्ययन और स्वभाव के अनुरूप गम्भीर है। इनके निबन्धों में हमें
- गवेषणात्मक
- व्याख्यात्मक
- उद्धरण
- भावात्मक
- विचारात्मक
- सूक्ति-कथन शैलियों के दर्शन होते है।
डॉ. अग्रवाल मनीषी साहित्यकार ओर उच्च कोटि के निबन्धकार थे। उनकी सांस्कृतिक और पुरातात्विक रचनाऍं हिन्दी साहित्य का गौरव है। भारतीय संस्कृति और संस्कृत के अन्वेषी साहित्यकार के रूप में इनका नाम हिन्दी साहित्य में चिरस्मरणीय रहेगा।
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल Wikipedia लिंक: Click Here
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