Dr. Sampurnanand Jivan Parichay/ Dr. Sampurnanand biography in Hindi
डॉक्टर संपूर्णानंद एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, कुशल राजनीतिज्ञ, एवं मर्मज्ञ साहित्यकार थे। इनका जन्म 1 जनवरी 1891 ईस्वी को काशी में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
संक्षिप्त जीवनपरिचय
पूरा नाम: संपूर्णानंद
जन्म: 1 जनवरी, 1891 ई।
जन्मस्थान: वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु: 10 जनवरी, 1969 ई।
मृत्युस्थान: वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
व्यवसाय: अध्यापक, लेखक, साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता
राष्ट्रीयता: भारतीय
उल्लेखनीय कार्य: उत्तरप्रदेश के द्वितीय मुख्यमंत्री, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना में विशेष योगदान, देश में कई वेधशालाओं के निर्माण में योगदान, बुजुर्गों को पेंशन योजना आदि।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉक्टर संपूर्णानंद की प्रारंभिक शिक्षा बनारस में ही हुई और क्वींस कॉलेज वाराणसी से बीएससी की परीक्षा पास करने के बाद इन्होने ट्रेनिंग कॉलेज इलाहाबाद से एल. टी. किया। इन्होंने एक अध्यापक के रूप में जीवन क्षेत्र में प्रवेश किया और सबसे पहले प्रेम महाविद्यालय वृंदावन में अध्यापक हुए। कुछ दिनों के बाद इनकी नियुक्ति डूंगर कॉलेज बीकानेर में प्रधानाध्यापक के पद पर हुई। सन 1921 में महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आंदोलन से प्रेरित होकर ये काशी लौट आए और ज्ञान मंडल में काम करने लगे। इन्हीं दिनों उन्होंने मर्यादा (हिंदी मासिक पत्रिका) और टुडे अंग्रेजी दैनिक का संपादन किया।Dr. Sampurnanand Jivan Parichay
युवावस्था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी
डॉ संपूर्णानंद ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। सन 1936 ईस्वी में पहली बार ये कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के सदस्य चुने गए। सन 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंडल गठित होने पर यह उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री नियुक्त हुए। शिक्षा मंत्री पद पर रहने के दौरान इन्होंने स्वंय को अपने खगोलीय शास्त्र के सपने को पूरा करने में लगा दिया और इसी समय इन्होंने सरकारी संस्कृत कॉलेज (अब संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) में खगोलीय वेधशाला स्थापित करने की योजना बनाई।
सन 1954 में ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सन 1960 में इन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया और सन 1962 में ये राजस्थान के राज्यपाल नियुक्त हुए। राजस्थान में राज्यपाल पद के दौरान ही इन्होंने “सांगनेर की बिना सलाखों की जेल” के विचार को बढ़ावा दिया। जिसका अर्थ है, अपराधियों के लिए एक खुली हुई जेल, जिसमें कि अपराधी अपने परिवार के साथ रह सके और बिजली व पानी के बिलों का भुगतान करने बाहर जा सके। ये हमेशा से ही अपराधियों के लिए कड़ी सजाओं के खिलाफ थे। इनका अपराधियों के लिए बयान था कि, अपराधियों को दंडित प्रतिशोध के रुप में नहीं, बल्कि नवीनीकरण के रुप में किया जाना चाहिए। इनके समय में ही, 1963 में राजस्थान की सरकार के द्वारा श्री सम्पूर्णानंद खुला बंदी शिविर शुरु किया गया था। सन 1967 में राज्यपाल पद से मुक्त होने पर ये काशी लौट आए और मृत्यु पर्यंत काशी विद्यापीठ के कुलपति बने रहे। कलाकारों और साहित्यकारों को शासकीय अनुदान देने का आरंभ देश में पहली बार इन्होने ही शुरू किया। वृद्धावस्था की पेंशन भी इन्होने आरंभ की। डॉ। संपूर्णानंद को देश के अनेक विश्वविद्यालयों ने “डॉक्टर” की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया था। इनको हिंदी साहित्य सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि “साहित्यवाचस्पति” भी मिली थी तथा ये हिंदी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार “मंगलाप्रसाद पुरस्कार” भी प्राप्त कर चुके थे। इनका निधन 10 जनवरी 1969 को वाराणसी में हुआ।
डॉक्टर संपूर्णानंद का हिंदी साहित्य में योगदान
डॉक्टर संपूर्णानंद एक अद्भुत विद्वान थे। हिंदी संस्कृत और अंग्रेजी तीनों भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। ये उर्दू और फारसी के भी अच्छे ज्ञाता थे। विज्ञान दर्शन और योग इनके प्रिय विषय थे। इन्होंने इतिहास राजनीति और ज्योतिष का भी अच्छा अध्ययन किया था। राजनीतिक कार्यों में उलझे रहने पर भी इनका अध्ययन क्रम बराबर बना रहा। सन 1940 में ये अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए थे। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने इनकी समाजवाद नामक कृति पर इनको मंगला प्रसाद पारितोषिक प्रदान किया था। इनको सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति भी प्राप्त हुई थी। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के भी ये अध्यक्ष और संरक्षक थे। उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में इन्होंने शिक्षा कला व साहित्य की उन्नति के लिए अनेक उपयोगी कार्य किए। Dr. Sampurnanand Jivan Parichay
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वाराणसी संस्कृत विद्यालय इन्हीं की देन है और उसका नाम इनके नाम पर ही डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय रखा गया है।
डॉक्टर संपूर्णानंद की प्रसिद्ध कृतियां
डॉक्टर संपूर्णानंद की प्रसिद्ध कृतियां निम्नलिखित हैं:
- समाजवाद
- आर्यों का आदि देश
- चिद्विलास
- गणेश
- जीवन और दर्शन
- अंतरराष्ट्रीय विधान
- पुरुष सूक्त
- व्रात्य कांड
- पृथ्वी से सप्तर्षि मंडल
- भारतीय सृष्टि क्रम विचार
- हिंदू देव परिवार का विकास
- वेदार्थ प्रवेशिका
- चीन की राज्यक्रांति
- भाषा की शक्ति तथा अन्य निबंध
- अंतरिक्ष यात्रा
- स्फुट विचार
- ब्राम्हण सावधान
- ज्योतिर्विनोद
- अधूरी क्रांति
- भारत के देशी राज्य आदि
इन ग्रंथों के अतिरिक्त भी इन्होंने सम्राट अशोक सम्राट हर्षवर्धन महादजी सिंधिया चेत सिंह आदित्यनाथ के प्रसिद्ध व्यक्तियों महात्मा गांधी देशबंधु चितरंजन दास जैसे आधुनिक महापुरुषों की जीवनी या तथा अनेक महत्वपूर्ण निबंध भी लिखे हैं। Dr. Sampurnanand Jivan Parichay
डॉ संपूर्णानंद की भाषा शैली
डॉ संपूर्णानंद की भाषा सबल सजीव साहित्यिक प्रौढ़ एवं प्रांजल है। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है। गंभीर विषयों के विवेचन में भाषा विषयानुकूल गंभीर होती जाती है। कहावतों और मुहावरों का प्रयोग प्रायः नहीं किया गया है। शब्दों का चुनाव भावों और विचारों के अनुरूप किया गया है। भाषा में सर्वत्र प्रवाह सौष्ठव और प्रांजलता विद्यमान है।
डॉ संपूर्णानंद की शैली शुद्ध, परिष्कृत एवं साहित्यिक है। इन्होंने विषयों का विवेचन तर्कपूर्ण शैली में किया है। विषय प्रतिपादन की दृष्टि से इनकी शैली के तीन रूप दृष्टिगोचर होते हैं:
विचारात्मक शैली
इस शैली के अंतर्गत इनके स्वतंत्र एवं मौलिक विचारों की अभिव्यक्ति हुई है। भाषा विषयानुकूल एवं प्रवाहपूर्ण है। वाक्यों का विधान लघु है, परन्तु प्रवाह तथा ओज सर्वत्र विद्यमान है।
व्याख्यात्मक शैली
इन्होंने दार्शनिक विषयों के प्रतिपादन के लिए इस शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में भाषा सरल एवं संयत है तथा उदाहरण के प्रयोग द्वारा विषय को अधिक स्पष्ट रूप से समझाने का प्रयास किया गया है।