रामवृक्ष बेनीपुरी(सन् 1902-1968 ई.)
पूरा नाम: रामवृक्ष बेनीपुरी
जन्म: 23 दिसम्बर, 1899
जन्मस्थान: मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार
मृत्यु: 9 सितम्बर, 1968
मृत्युस्थान: बिहार
कर्मभूमि: भारत
कर्म-क्षेत्र: साहित्य, राजनीति, स्वतंत्रता सेनानी
प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार, नाटककार, कहानीकार, निबन्धकार, उपन्यासकार, उत्कृष्ट रेखाचित्र लेखक।
अन्य जानकारी: रामवृक्ष बेनीपुरी जी 1957 में बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गए थे। सादा जीवन और उच्च विचार के आदर्श पर चलते हुए इन्होंने साहित्य साधना के साथ-साथ समाज सेवा के क्षेत्र में भी अद्भुत काम किया था।
जीवन-परिचय:
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म मुजफ्फ्फरपुर जिले के वेनीपुर ग्राम के एक कृषक परिवार में सन् 1902 ई. में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता के स्वर्गवासी हो जाने के कारण इनका लालन-पालन मौसी ने किया। सन् 1920 ई. में गॉंधी जी के नेतृतवमें असहयोग आन्दोलन प्रारम्ीा होने पर ये अध्ययन छोड़कर स्वतंत्रता-आन्दोलन में सम्म्िलित हो गये।
इस बची मैट्रिक के पश्चात् इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया। बात में हिन्दी-साहित्य सम्मेलन की ‘विशारद’ परीक्षा उत्तीर्ण की। पत्र-पात्रिकाओं में लिखकर तथा स्वयं सम्पादन करके देशवासियों में देशभक्ति की जवाला भड़काने के अाारोप में इन्हें अनके बार जेल जाना पड़ा।
सन् 1931 ई. में ‘समाजवादी दल’ की स्थापना की और सन् 1957 ई. में इस दल के प्रत्याशी के रूप में बिहार विधानसीाा के सदस्य निर्वाचित हुए। बचपन से ही ‘रामचरितमानस’ का पाठ करते रहने के कारण धीरे-धीरे इनकी साहित्यिक रुचि का विकास हुआ।
स्वतंत्रता के पश्चात् इन्होंने अपनी साधना का पुरस्कार नहीं चाहा, बल्कि ख्याति एवं पद के पीछे दौड़नेवालों को देखकर ये दु:खी होते हथे। सचमुच ये ‘नींव की ईंट’ बनना चाहते थे जिसके ऊपर सारी इमारत टिकी रहती है। भाषा, साहित्य, समाज और देश की सेवा समान उत्साह से एक साथ करनेवाले बेनीपुरी जी का 7 सितम्बर 1968 ई. को निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय:
बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्य-सेवी थे। इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, रेखाचित्र, यात्रा-विवरण, संस्मरण एवं निबन्ध् आदि गद्य-विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की। पन्द्रह वर्ष की अल्पायु से ही इन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में लिखना प्रारम्भ किया था।
पत्रकारिता तो इनकी साहित्य-साधन के मूल में थी। बिहार में हिन्दी-प्रसार का कार्य इनके निर्देशन में बड़ी सक्रियता से चलता रहा । ‘बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की स्थापना में भी इनका विशेष योगदान रहा। इनके क्षरा लिखे गये रेखाचित्र एवं यात्रा-वर्णन हिन्दी-साहित्य में बेजोड़ है। इनका पूरा सहित्य ‘बेनीपुरी ग्रन्थावली’ के रूप समें कई खण्डों में प्रकाशित हो चुका है
रामवृक्ष बेनीपुरी की ‘कृतियां:’
उपन्यास- पतितों के देश में
कहानी-संग्रह- चिता के फूल
निबन्ध-संग्रह- गेहूँ और गुलाब, मशाल, वन्दे वाणी विनायाको- इनके निबन्धों में प्रतीकात्म्क भाशा की चित्रात्मकता अधिक पायी जाती है।
रेखाचित्र- माटी की मूरतें (में श्रेष्ठ रेखाचित्रों का संग्रह है। इसकी सामग्री से बिहार के जन-जीवन को पहचाना जा सकता है।), लाल तारा,
संस्मरण- मील के पत्थर तथा जंजीर की दीवारें में भावनात्म्क शैली में लेखक ने अपने जीवन के संस्मरण प्रस्तुत किये हैं।
यात्रा-वृत्तान्त- पैरो में पंख बॉंधकर आैैर उड़ते चल
जीवनी- कार्ल मार्क्स, जयप्रकाश नारायण, महाराणा प्रताप सिंह
नाटक- अम्बपाली, सीता की मॉं, राम राजय
सम्पादन – बालक अरुण भारत युवक, किसान मित्र, कर्मवीर, कैदी, जनता, हिमालय, नयी धारा,(चुन्नू-मून्नू) अादि। इसके अतिरिक्त ‘विद्यापति की पदावली’ एवं ‘बिहारी सतसई’ आपकी अन्य उललेखनीय रचनाऍं है।
रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा शैली:
बेनीपुरी जी की भाशा-शैली नितान्त मौलिक है। इनकी भाषा व्यावहारिक है और शब्द-चयन चमत्कारिक है। भाव, प्रसंग एवं विषय के अनुयप तत्सम, तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी आदि शब्दों का ये ऐसा सटीक सप्रयोग करते हैं कि पाठक विस्मय में पड़ जाता है।
इसीलिए इन्हें ‘शब्दाें का जादूगर’ भी कहा जाता है। मुहावरे एवं कहावतों का प्रयोग भी इन्होंने किया है। लाक्षाणिकता, व्यंग्यात्मकता, ध्वनयात्मकता, सौष्ठव, प्रतीकात्मकता एवं आलंकारिकता के कारण इनकी भाषा में अद्भुत लालित्य, प्रवाह, अर्थ-गाम्भीर्य उत्पन्न हु के आ है। छोटे-छोटे वाक्य गहरी अर्थाभिव्यक्ति के कारण बहुत तीखी चोट करते हैं। इनकी रचनाओं में विषय के अनुरूप
- वर्णनात्मक
- भावात्मक
- आलोचनात्मक
- प्रतीकात्मक
- आलंकारिक
- वर्यग्यात्मक
- चित्रात्मक शैलियों दर्शन होते हैं।
भाषा:
- सरल
- बोधगम्य
- प्रवाहयुक्त खड़ीबोली।
Note:- रामवृक्ष बेनीपुरी जी शुक्लोत्तर-युग के लेखक है।
रामवृक्ष बेनीपुरी का योगदान:
बेनीपुरी जी एक कर्मठ देश भक्त थे .देश भक्त और साहित्यकार दोनों ही के रूप में इनका विशिष्ट स्थान है . रामधारी सिंह दिनकर जी ने बेनीपुरी जी के विषय लिखा है – बेनीपुरी केवल साहित्यकार नहीं थे, उनके भीतर केवल वही आग नहीं थी जो कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है।
वे उस आग के भी धनी थे जो राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों को जन्म देती है, जो परंपराओं को तोड़ती है और मूल्यों पर प्रहार करती है। जो चिंतन को निर्भीक एवं कर्म को तेज बनाती है।बेनीपुरी जी के भीतर बेचैन कवि, बेचैन चिंतक, बेचैन क्रान्तिकारी और निर्भीक योद्धा सभी एक साथ निवास करते थे।
सन १९६८ ई में इनका देहांत हो गया .बिहार सरकार द्वारा बेनीपुरी जी के सम्मान में प्रतिवर्ष साहित्यकारों को अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार दिया जाता है।
हिन्दी साहित्य में स्थान:
एक उत्कृष्ट निबन्धकार, समर्थ रेखाचित्रकार, कुशल राजनीतिज्ञ एवं यशस्वी पत्रकार के रूप में बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य जगत में चिरस्मरणीय रहेंगे।
राष्ट्र सेवा के साथ-साथ साहित्य सेवा करने वाले महापुरुषों में वे अग्रणी हैं। रेखाचित्र विधा को समृद्ध करने में तथा साहित्य की विविध विधाओं में अनेक कृतियां लिखकर उन्होंने हिन्दी की महान सेवा की है।
रामवृक्ष बेनीपुरी Wikipedia लिंक: Click Here
Remark:
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