काका कालेलकर(सन् 1885-1981 ई.)
जीवन-परिचय:
काका कालेलकर का जन्म सन् 1885 ई. में महाराष् ट्र के सतारा जिले में हुआ था। ये बड़े प्रतिभासम्पन्न थे। मराइी इनकी मातृभाषा थी, पर इन्होंने संसकृत, अंग्रेजी, हिन्दी, गुजराती, ओर बँँगला भाषाओं का भी गम्भीर अध्ययन कर लिया था।
जिन राष्ट्रीय नेताओं एवं महापुरुषों ने राष्ट्र भाषा के प्रचार-प्रसार में विशेष उतसुकता दिखायी, उनकी पंक्ति में काका कालेलकर का भी नाम आता हैं। इन्होंने राष्अ्रभाषा के प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत माना है।
महात्मा गॉंधी के सम्पर्क से इनका हिन्दी-प्रेम ओर भी जागृत हुआ। दक्षिण भारत, विशेषकर गुजरात में इन्होंने हिन्दी का प्रचार विशेष रूप से किया। प्राचीन भारतीय संसकृति, नीति, इतिहास, भूगोल आदि के सााि ही इन्होंने युगीन समस्याओं पर भी अपनी सशक्त लेखनी चलायी।
इन्होंने शान्ति निकेतन में अध्यापक, साबरमती आश्रम में प्रधानाध्यापक और बड़ौदा में राष्ट्रीय शाला के आचार्य के पद पर भी कार्य किये। गॉंधी जी की मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में निर्मित ‘गाँधी संग्रहालय’ के प्रथम संचालक यही थे।
सवतंत्रता सेनानी होोने के कारण अनेक बार जेल भी गयें। संविधान सभा के सदस्य भी ये रहे। सन् 1952 से 1957 ई. तक राज्य-सभा के सदस्य तथा अनेक आयोगों के अध्यक्ष रहे। भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने ‘गाँधी पुरस्कार’ से कालेलकर जी को सम्मानित किया है। ये रवीन्द्रनाथ टैगोर एवं पुरुषोत्तमदास टण्डन के भी सम्पर्क में रहे। इनका निधन 21 अगस्त 1981 ई. को हो गया।
साहित्यिक परिचय:
काका कालेलकर मराठीभाषाी होते हुए भी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के प्रति जो रुचि प्रदर्शित की, वह हिन्दी-भाषियों के लिए अनुकरणीय है। इनका हिन्दी-साहित्य निबन्ध, जीवनी, सांस्मरण, यात्रातृता आदि गद्य-विधाओं के रूप में उपलब्ध होता है।
इनहोंने हिन्दी एवं गुजराती में तो अनेक रचनाओं का सृजन किया ही, सााि ही हिन्दी भाषा में अपनी कई गुजराती रचनाओं का अनुवाद भी किया। इनकी रचनाओं पर अनेक राष्ट्रीय नेताओं एवं साहित्यकारों का प्रभाव परिलक्षित होता है।
तत्कालीन समस्याओं पर भी इन्होंने कई सशकत रचनाओं का सृजन किया। कालेलकर जी की रचनाओं में भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों की झलक दिखायी देती है। व्याक्ति के जीवन के अनतर्तम तक इनकी पैठ थी, इसलिए जब ये किसी के जीवन की विवेचना करते थरे तो रचना में उसका व्यक्तित्व उभर आता था।
काका कालेलकर की कृतियॉं:
कृतियाँनिबन्ध-संग्रह- जीवन काव्य, जीवन साहितय सर्वोदय
यात्रा-वृत्तानत- हिमालय प्रवास, यात्रा, उस पार के पड़ोसी, लोक-माता
संस्मरण- बापू की झॉंकियॉं
आत्म-चरित्र- जीवन लीला, धर्मोदय(इनमें काका साहब के यािर्थ जीवन की झाँकी है।)
सर्वोदय-साहित्य- सर्वोदय
भाषा-शैली- कालेलकर जी की भाषा परिष्कृत खड़ीबोली है। उसमें प्रवाह, ओज तािा अकृत्रिमता है। ये अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे, इसीलिए इनकी हिन्दी भाषा में रचित रचनाओं में अंग्रेजी, अरबी, फारसी, गुजराती, मराठी के शब्द भी मिल जाते है। ततसम, तद्भव देशज आदि सभी शब्द -रूप इनकी भाषा में एक सााि देखे जा सकते है। मुहावरों ओर कहावतों का प्रयोग भी इनहोंने किया है।
भाषा में प्रसंग के अनुसार ओजगुण भी है। विषय ओर प्रंसग के अनुरूप कालेलकर जी ने
- परिचात्मक
- विवेचात्मक
- आ त्मकथात्मक
- विवरणात्मक
- वयंगयात्मक
- चित्रात्म्ााक
- वर्णनात्मक आदि शैलियॉं अपनायी है।
भाषा:
- सरल
- बोधगम्य
- प्रवाहयुक्त खड़ीबोली।
Note:- काका कालेलकर जी शुक्ल एवं शुक्लोत्तर-युग के लेखक है।
निधन:
आचार्य काकासाहेब कालेलकर का निधन 21 अगस्त, 1981 को नई दिल्ली में उनके ‘संनिधि’ आश्रम में हुआ।
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