डॉ सम्पूर्णानंद का जीवन परिचय | Sampurnanand Ka Jivan Parichay

डॉ.सम्‍पूर्णानन्‍द (सन 1890-1969 ई.)

जीवन-परिचय:

कुशल राजीतिज्ञ, बहुमखी प्रतिभा के धनी डाॅ. सम्‍पूर्णानन्‍द भारतीय संस्‍कृति और दर्शन के प्रकाण्‍ड विद्वान होने के साथ-सााि एक जागरूक शि‍क्षाविद्, गम्‍भीर, मर्मंज्ञ और उदात्त साहित्‍यकार के रूप में विख्‍ृयात हैं। इनका जन्‍म वाराणसी मेूं 1 जनवरी 1890 ई. को एक सम्‍भ्रान्‍ कायस्‍थ परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री विजयानन्‍द एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्‍यक्ति थे, जिनका प्रभूत प्रभाव सम्‍पूर्णानन्‍दजी पर पड़ा।

उन्‍होंने क्‍वीन्‍स कॉलेज, वाराएासी से बी.एस-सी. और इसके पश्‍चात् पैउागॉजीकल ट्रेनिंग कॉलेज, इलाहावाद से एल.टी. की परीक्षाऍं उत्तीर्ण कीं। उन्‍होंने हिन्‍दी, अंग्रेजी, संस्‍कृत आदि भाषाओं में निर्बाध गति प्राप्‍त की। कुछ दिनों बाद उनकी नियुक्ति डूँगरपुर कॉले, बीकानेर में प्रधानाचार्य के पद पर हुर्इ। सन् 1921 ई. में महात्‍मा गॉंधी के राष्‍ट्रीय आन्‍दोलन से प्रेरित होकर वे वाराणसी लौट आए और ‘ज्ञानमण्‍डल’ में काम करने लगे।

इन्‍हीं दिनों उन्‍होंने ‘मर्यादा’ (मासिक) और ‘टूडे’ (अंग्रेजी दैनिक) का सम्‍पादन भी किया।उन्‍होंने भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम के अन्‍तर्गत प्रथम पंक्ति के सेनानी के रूप में कार्य किया। स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात् वे उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री, शिक्षामंत्री और सन् 1955 ई. में मुख्‍यमंत्री बने। बाद में सन् 1962 ई. में राजस्‍थान के राजयपाल नियुक्‍त हुए।

सन् 1967 ई. में राज्‍यपाल पद में मुक्‍त होने पर वाराणसी लोैट आए और मृत्‍युपर्यन्‍त काशी विद्यापीठ के कुलपति रहे। दर्शन, जयोतिष, भारतीय संस्‍कृति, राजनीति, गणित, विज्ञान, शिक्षा और साहित्‍य आपके चिन्‍तन और लेखन के विषय है। सन् 1940 र्इ. में वे अशिल भारतीय हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।

उन्‍हें सर्वोंच्‍च उपाधि साहित्‍य-वाचस्‍पति भी प्राप्‍त हुई। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के भी वे अध्‍यक्ष और संरक्षक रहे। वाराणसेय संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय तो उनकी ही देन है। डॉ. सम्‍पूर्णानन्‍द ने अनेक ग्रन्‍थों की रचना की है।

उनके निबन्‍ध ‘नवनीत’, ‘प्रभा’, आदि पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे। ‘आर्यों का आदिदेश’ में अकाट्य प्रमााणों के आधार पर उन्‍होंने यह सित्र किया कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे, वे कहीं बाहर से नहीं आए थे। 10 जवरी 1969 ई. को वाराणसी में ही उनका देहावसान हो गया।

डॉ. सम्‍पूर्णानन्‍द की कृतियॉं:

  1. निबन्ध संग्रह – (१) चिद्विलास, (२) पृथ्वी से सप्तर्षि मण्डल, (३) ज्योतिर्विनोद, (४) अन्तरिक्ष यात्रा, (५) भाषा की शक्ति, (६) जीवन और दर्शन।
  2. धर्म सम्बन्धी रचनाएं – (१) गणेश, (२) ब्राह्मण सावधान, (३) पुरुषसूक्त, (४) हिन्दू देव परिवार का विकास।
  3. राजनीति और इतिहास (१) चीन की राज्य क्रान्ति, (२) मिस्र की राज्य क्रान्ति, (३) समाजवाद, (४) आर्यों का आदि देश, (५) सम्राट हर्षवर्धन, (६) भारत के देशी राज्य, (७) अधूरी क्रान्ति।
  4. सम्पादन – मर्यादा मासिक पत्र, टुडे अंग्रेजी दैनिक।
  5. जीवनी – (१) देशबन्धु चितरंजनदास, (२) महात्मा गांधी।

इन ग्रन्‍थों के अतिरिक्‍त डाॅ. सम्‍पूर्णानन्‍द ने सम्राट अशोंक, सम्राट, हर्षवर्धन, चेत सिंह आदि इतिहास-प्रसित्र व्‍यक्यिों तथा महात्‍मा गॉंधी, देशबन्‍धु चितरंजन दास जैसे आधुनिक महापुरुषों की जीवनियॉं तथा अनेक अन्‍य महत्तवपूर्ण ग्रन्‍थर भी लिखे हैं।

डॉ. सम्‍पूर्णानन्‍द की भाषा-शेैली:

डॉ. सम्‍पूर्णानन्‍द हिन्‍दी, अंग्रेजी तथा संस्‍कृत के प्रकाण्‍ड विद्वान थे। उनका अध्‍ययन गम्‍भीर था। और उनमें विचारों को अभिव्‍यक्‍त करने की अभूतपूर्व क्षमता थी।

उनकी भाषा सशक्‍त, सजीव, संस्‍कृ‍तनिष्‍घ्‍ठ एवं सहित्यिक खड़ी बोली हे। इन सभी सविशेषताओं ने उनकी शैली को ओजपूर्ण, प्रभावोत्‍पादक, तथा गम्‍भीर बना दिया। हम उनकी शैली को ये हेै।

  • विचारत्‍म्‍क शैली
  • व्‍याख्‍यात्‍मक शैली
  • ओजप्रधान शेली
  • गवेषणात्‍मक शेल्‍ाी

Note: शुक्‍ल युग के महान विचारक, भारतीय संस्‍कृति, धर्म, दर्शन, राजनीत और सहित्‍य के गम्‍भीर अध्‍येता एवं व्‍याख्‍याता के रूप में डॉ. सम्‍पूर्णानन्‍द सदैव स्‍मरण किये जायेंगेा |

डॉ. सम्पूर्णानन्द का “हिन्दी साहित्य में स्थान”:

डॉ. सम्पूर्णानन्द की ख्याति एक प्रबुद्ध विचारक, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ एवं साहित्यकार के रूप में रही है। उनकी विविध कृतियां उनकी विचार शक्ति, पाण्डित्य का उद्घोष करती हैं।

कुछ कृतियां तो ऐसी हैं, जो अपने विषय की अन्यतम कृतियों में गिनी जाती हैं। ‘चिविलास’ एवं ‘समाजवाद’ का नाम इस दृष्टि से उल्लेखनीय है। हिन्दी साहित्य में एक प्रबुद्ध मनीषी साहित्यकार के रूप में उनकी सेवाएं चिरस्मरणीय रहेंगी।

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Remark:

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