जैनेन्द्र कुमार (सन् 1905-1988 ई.)
पूरा नाम | जैनेन्द्र कुमार |
अन्य नाम | आनंदी लाल (मूलनाम) |
जन्म | 2 जनवरी, 1905 |
जन्म भूमि | कौड़ियालगंज, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 24 दिसम्बर, 1988 |
पति/पत्नी | भगवती देवी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखक, उपन्यासकार, कहानीकार |
मुख्य रचनाएँ | ‘परख’, ‘सुनीता’ (उपन्यास) |
विषय | सामजिक |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय |
शिक्षा | स्नातक |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1966), पद्म भूषण (1971), साहित्य अकादमी फैलोशिप (1974) |
जीवन-परिचय:
जैनेन्द्र कुमार बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार हैं। इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध तथा संस्मरण आदि अनके गद्य विधाओं पर लेखनी चलाई है। इनका जन्म 2 जनवरी 1905 ई. को अलीगढ़ जनपद के कौडि़यागंज नामक कस्बे में हुआ था।
इनके पिता का नाम श्री प्यारलाल और माता का नाम श्रीमती रमादेवी था। इनका बचपन का नाम आनन्दीलाल था, लेकिन इन्होंने अपना नाम बदलकर जैनेन्द्र कुमार रख लिया थ्ाा। हिस्तानापुर के जैन गुरुकुल ‘ऋषिबह्मचर्याश्रम’ में इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई।
फिर इन्होंने पंजाब से हाई स्कूल और वाराणसी के सेण्ट्रल हिन्दू स्कूल से इण्टरमीडिएट की परीक्षाऍं उत्तीर्ण की तथा उच्च शिक्षा हेतु बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। लेकिन सन् 1921 ई. के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इनकी शिक्षा का क्रम मध्य में ही टूट गया।
इन्होंने स्वाध्याय से ही हिन्दी का गहन एवं विस्मृत ज्ञान प्राप्त किया। आन्दोलनों में भाग लेने के कारण वे कई बार कारागार भी गये। सन् 1928-29 ई. से इन्होंने साहित्य-क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किया। 24 दिसम्बर 1988 ई. को इनका देहावसान हो गया।
जैनेन्द्र कुमार की कृतियॉं:
इनकी पहली कहानी ‘खेल’ सन् 1928 ई. में ‘विशाल भारत’ में छपी थी। इनके प्रथम उपन्यास ‘परख’ पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्रदान किया गया था। इन्होंने अपनी रचनाओं में कला, दर्शन, मानेविज्ञान,
समाज, राष्ट्र, मानवता आदि विषयों पर लेखनी चलाई है। इनके अनेक निबन्ध-संग्रह भी प्रकाशित हुए है।
इनके निबन्ध चिन्तनप्रधान एवं विचारप्रधान है।
जैनेन्द्र जी की प्रमुख कृतियॉं है।
- कहानी-संग्रह- फॉंसी, एकरात, पालेब, स्पर्धा, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, धुवयात्रा, दो चिडि़यॉं, जयसन्धि(इनकी कहानियॉं ‘जैनेन्द्र की कहानियॉं’ नाम से दस भागों में संकृहीत हैं)
- उपन्यास- सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, परख, तपोभूमि, जयवर्द्धन, विवर्त, सुखदा, मुक्तिबोध
- निबन्ध-संग्रह- प्रस्तुत प्रश्न, पूर्वोदय, साजित्य का श्रेय और प्रेय, जड़ की बात, मन्थन, गॉंधी-नीति, काम, प्रेम, और परिवार
, सोच-विचार, विचार-वल्लरी - संस्मरण- येऔर वे
- अनुवाद– मन्दाकिनी, पाप और प्रकाश(नाटक), प्रेम में भगवान(कहानी-संग्रह)
- सम्पादन- सूक्ति सचयन
जैनेन्द्र कुमार की भाषा-शैली:
प्रमुख रूप से जैनेन्द्रजी की भाषा के दो रूप दिखाई देते है- भाषा का सरल, सुबोध रूप तथा संस्कृतनिष्ठ भाषा रूप। इन्होंने अपनी भाषा में मुहावरों और कहावतों का सजीव प्रयोग किया है। भावों को भलीभॉंति अभिव्यक्त करने की क्षमता इनकी भाषा में सहज रूप से विद्यमान है।
इनकी शैलजी अनेक रूपधारिणी है। प्राय: प्रत्येक रचना में इसका नया रूप है। इसमें व्यंग्य, नाटकीयता ओर रोचकता की प्रधानता है। सामान्य रूप से इनके कथा-साहित्य मेुं व्याख्यात्मक और विचारात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
जैनेन्द्र कुमार मनोविश्लेषणात्मक लेखन में हिन्दी सहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते है। इनके उपन्यास मनोवैज्ञानिक एवं कहानियॉं चिन्तनपरक है।
Note:
- जैनेन्द्र को हिन्दी का शरत् भी कहा जाता है।
- ⇒जैनेन्द्र को मनोवैज्ञानिक या मनोविश्लेषणात्मक कथाकार के रूप में ख्याति प्राप्त हुई।
- जैनेन्द्र ने हिन्दी कहानी को परम्परागत शिल्प के स्थान पर नवीन शिल्प और शैली प्रदान की।
- डाॅ. प्रेमनारायण टण्डन लिखते है कि –
’’जैनेन्द्र के निबंधों में जहाँ एक और वैचारिक गहनता के गुण से पूरित है, वहाँ भाषा की अस्पष्टता और दुरूहता भी देखी जा सकती है।’’ - सन् 1923 ई. में नागपुर में सम्पन्न ऐतिहासिक झंडा सत्याग्रह में भाग लेने के कारण इन्हें तीन माह की सजा हुई। कारावास में ही इन्होंने अपना पहला लेख लिखा – ’देश जाग उठा था’।
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