आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (सन् 1907-1979 ई.)
- 1907: इनका जन्म हुआ था।
- 1930: वह शान्ति निकेतन में हिन्दी शिक्षक के रुप में नियुक्त किए गए।
- 1950: शान्ति निकेतन में कार्यालय का अन्त और बीएचयू में हिन्दी विभाग के प्रमुख बने।
- 1960: बीएचयू में अपने कार्यालय का अन्त और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से जुड़ गए।
- 1957: उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
- 1973: साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।
- 1979: 19 मई को इनकी मृत्यु हो गई।
जीवन-परिचय:
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 20 अग्रस्त, सन् 1907 ई. में बालिया जिले के ‘दुबे का छपरा’ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल दुबे एवं माता का नाम श्रीमती ज्योतिकली देवी था। इनकी शिक्षा का प्रारम्भ संस्कृत से हुआ।
इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (जो आज हम बनरस हिन्दू विश्वाविद्यालय के नाम से जानते है।) से ज्योतिष तथा साहित्य में आचार्य की उपधि प्राप्त की। सन् 1940 ई. में हिन्दी एवं संस्कृत के आध्यापक के रूप में शान्ति-निकेतन चले गये। यहीं इन्हें विश्वकवि रवीन्द्रनााथ टेैगोर का सान्निध्य मिला और साहित्य-सृजन की ओर अभिमुख हो गये ।
सन् 1956 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिनदी विभाग में अध्यक्ष नियुक्त हुए। कुछ समय तक पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। सन् 1949 ई. में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें ‘डी.लिट्.’ तथा सन् 1957 ई. में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया। 19 मई 1979 ई. को इनका देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय:
द्विवेदी जी ने बाल्यकाल से ही श्री व्योमकेश शास्त्री से कविता लिखने की कला सीखनी आरम्भ कर दी थी। शान्ति-निकेतन पहँचकर इनकी प्रतिभा और अधिक निखरने लगी। कवीन्द्र रवीन्द्र का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा।
बँगला साहित्य से भी ये बहुत प्रभावित थे। ये उच्चकोटि के शोधकर्त्ता, निबन्धकार, उपन्यासकार एवं आलोचक थे। सिद्ध साहित्य, जैन साहित्य एवं अपभ्रंश साहित्य को प्रकाश में लाकर तथा भक्ति-साहित्य पर उच्चस्तरीय समीक्षात्मक ग्रन्थें की रचना करनके इन्होंने हिन्दी साहित्य की महान् सेवा की।
बैसे तो द्विवेदी जी ने अनेक विषयों पर उत्कृष्ट कोटि के निबन्धों एवं नवीन शैली पर आधरित उपन्यासों की रचना की है1 पर विशेष रूप से वैयक्तिक एवं भावात्मक निबन्धें की रचना करने में ये अद्वितीय रहे। द्विवेदी जी ‘उत्तर प्रदेश ग्रन्थ अकादमी’ के अध्यक्ष और ‘हिन्दी संस्थान’ के उपाध्यक्ष भी रहे।
कबीर पर उत्कृष्ट आलोचनात्मक कार्य करने के कारण इन्हें ‘मंगलाप्रसाद‘ पारितोषिक प्राप्त हुआ। इसके साथ ही ‘सूर-साहित्य’ पर ‘इन्दौर साहित्य समिति’ ने ‘स्वर्ण पदक’ प्रदान किया।
व्यवसाय:
इन्होंने शान्ति निकेतन में एक हिन्दी प्राध्यापक के रुप में 18 नम्वबर 1930 को अपने कैरियर की शुरुआत की। इन्होंने 1940 में विश्वभारती भवन के कार्यालय में निदेशक के रुप में पदोन्नति प्रदान की। अपने इसी कार्यकारी जीवन में इनकी मुलाकात रबिन्द्रनाथ टैगोर से शान्ति निकेतन में हुई।
इन्होंने 1950 में शान्ति निकेतन को छोड़ दिया और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रमुख और अध्यापक के रुप में जुड़ गए। इसी दौरान, ये 1955 में भारत सरकार के द्वारा गठित किए गए प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य के रुप में भी चुने गए।
कुछ समय बाद, 1960 में वह पंजाब विश्व विद्यालय, चंडीगढ़ से जुड़ गए। इन्हें पंजाब विश्व विद्यालय में हिन्दी विभाग का प्रमुख और प्रोफेसर चुना गया।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की कृतियॉं:
द्विवेदी जी की प्रमुख कृतियॉं है
- निबन्ध- विचार और वितर्क, कल्पना, अशोक के फूल, कुटज, साहित्य के साथी, कल्पलता विचार-प्रवाह आलोक-पर्व आदि।
- उपन्यास- पुनर्पवा, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चन्द्रलेख , अनामदास का पोथा, आदि।
- आलोचना साहित्य- सूर-साहित्य, कबीर, सूरदास और उनका काव्य, हमारी साहित्यिक समस्याऍं, हिन्दी साहित्य की भुमिका, साहित्य का साथी, साहित्य का धर्म, हिन्दी-साहित्य, समीक्षा-साहित्य नख-दपर्ण में हिन्दी-कविता, साहित्य का मर्म, भारतीय वाड्मय, कालिदास की लालित्य-योजना आदि।
- शोध-साहित्य- प्राचीन भारत का कला विकास, नाथ सम्प्रदास, मध्यकालीन धर्म साधना, हिन्ीद-साहित्य का अदिकाल, आदि।
- अनूदित साहित्य – प्रबन्ध्ाा चिन्तामधि, पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह प्रबन्धकोश, विश्व परिचय, मेरा बचपन, लाल कनेर आदि।
- सम्पादित साहित्य- नाथ-सिद्धों की बानियॉं, संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, सन्देश-रासक अादि।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली:
द्विवेदी जी भाषा के प्रकाण्ड पण्डित थे। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ आपने निबन्धों में उर्दू फारसी, अंग्रेजी एवं देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। इनकी भाषा प्रौढ़ होते हुए भी सरल, संयत तथा बोधगम्य है। मुहावरेदार भाषा का प्रयोग भी इन्होंने किया है।
विशेष रूप से इनकी भाषा शुद्ध संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ीबोली है। इनहोंने अनेक शैलियों का प्रयोग विषयानुसार किया है, जिनमें प्रमुख हैं-
- गवेषणात्मक शैली
- आलोचनात्मक शैली
- भावात्मक शैली
- हास्य-व्यंग्यत्मक शैली
- उद्धरण शैली
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा:
- शुद्ध संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ी-बोली
Note: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी शुक्लोत्तर-युग के लेखक है।
FAQs:
प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर – 20 अग्रस्त, सन् 1907 ई
प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर – बालिया जिले के ‘दुबे का छपरा’ नामक ग्राम में
प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएँ कौनसी है?
उत्तर –विश्व परिचय, मेरा बचपन, लाल कनेर आदि।
प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर – 19 मई 1979 ई.
हजारी प्रसाद द्विवेदी Wikipedia लिंक: Click Here
Remark:
दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे|