Boli Kise Kahate Hain: हेलो स्टूडेंट्स, आज हमने यहां पर बोली की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण ( Boli in hindi) के बारे में विस्तार से बताया है। यह हर कक्षा की परीक्षा में पूछा जाने वाले यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। बोली किसे कहते है?
Boli Kise Kahate Hain
“एक बोली भाषा का एक रूप है जो देश के किसी विशेष हिस्से में या लोगों के एक विशेष समूह द्वारा बोली जाती है। हिंदी की कई अलग-अलग बोलियां हैं। जैसे हिंदी भारत के कई राज्यों में बिहार,उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,हरियाणा में बोली जाती है लेकिन हर राज्य की हिंदी बोलने में एक दूसरे से अलग होती है।”
बोली :- एक छोटे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है. बोली में साहित्य रचना नहीं होती।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कुल 650 बोलियां बोली जाती है.
बोली के उदाहरण – अवधि, भोजपुरी, मारवाड़ी, मगधी इत्यादि हैं।
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बोली की विशेषताएँ
- बोलियाँ भाषा की क्षेत्रीय रूप होती हैं
- बोली में साहित्य रचना नहीं होती है
- बोली स्वतंत्र होती है
- बोलियों को व्याकरण की जरूरत नही होती है
भारत के कुछ महत्वपूर्ण बोलियां
- अवधी बोली
- ब्रज बोली
- भोजपुरी
- कन्नौजी बोली
- बुन्देली
- बघेली बोली
कुछ प्रमुख बोलियों का परिचय
अवधी बोली का परिचय
यह अवध प्रान्त की बोली रही है । जिसका पूर्वी बोलियों में प्रमुख स्थान है। अवध का अर्थ प्रायः लोग अयोध्या से मान लेते है। अवध क्षेत्र की बोली को अवधी के नाम से जाना जाता है।
अवधी को कोसली (कोसल राज्य की बोली) और बैसवाड़ी नाम से भी जानते है।
अवधि को सहित्यिक भाषा का अस्तित्व दिलाने में तुलसीदास और जायसी का विशेष योगदान रहा है।
अवधी का प्रमुख केंद्र अयोध्या/अवध है. इसके अलावा यह लखनऊ ,इलाहाबाद ,फतेहपुर ,मिर्जापुर ,उन्नाव ,रायबरेली ,सीतापुर ,फैजाबाद ,गोंडा ,बस्ती ,बहराइच ,सुल्तानपुर ,प्रतापगढ़ ,बाराबंकी आदि जगहों पर बोली जाती है.
देश के बाहर अवधी, फीजी में बोली जाती है.
अवधि में सूफी काव्य ,राम भक्ति काव्य आदि विकसित हुई .
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ब्रज भाषा का परिचय
पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोलियों में ब्रजभाषा का महत्वपूर्ण
स्थान है। ब्रज का एक नाम अन्तवेदी भी है। राजस्थान में ब्रजी को ‘पिंगल’ नाम से भी जाना जाता है। साहित्य सृजन की दृष्टि से ब्रज भाषा सबसे समृद्ध है ।
ब्रज भाषा में रचना करने वाले कवि सूरदास, नन्ददास, केशव, सेनापाति, बिहारी, घनानन्द एवम् पदमाकर, अदि अनेक कवि है।
ब्रजभाषा का मुख्य केंद्र मथुरा है .यह कई क्षेत्रों -आगरा, अलीगढ़, धौलपुरी, मैनपुरी, एटा, बदायूं ,बरेली तथा आसपास के क्षेत्र मैं बोली जाती है.
ब्रज के बाहर ताज्जुबेकिस्तान में बोली जाती है जिसे ताज्जुबेकी ब्रजभाषा कहा जाता है.
साहित्यिक दृष्टि से हिंदी भाषा की सबसे महत्वपूर्ण बोली ब्रजभाषा है.
लगभग सारा रीतिकालीन साहित्य इसी भाषा में है.
खड़ी बोली का परिचय
ध्वनियों की कर्कशता एवम् खड़खड़ाहट के कारण इसका नाम खड़ीबोली है।
खड़ी को हिंदुस्तानी, कौरवी (कुरू जनपद की बोली), सरहिन्दी आदि नामों से भी जाना जाता है।
संभवतः खडी बोली शब्द का प्रयोग सबसे पहले सदल मिश्र एवम् लल्लू लाल के लेखों में मिलता है।
खड़ी बोली का मूल नाम कौरवि है. साहित्यिक भाषा बनने के बाद इसका नाम खड़ी बोली पड़ा . आज की हिंदी मूलतः कौरवी पर ही आधारित है.
खड़ी बोली एक बड़े भू-भाग में बोली जाती है।
अपने ठेठ रूप में यह मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, सहारनपुर, देहरादून, मेरठ, अंबाला जिले में बोली जाती है. इनमें मेरठ की जो खड़ी बोली है उसे आदर्श माना जाता है
भोजपुरी का परिचय
बिहार में स्थित शाहाबाद जिले के भोजपुर कस्बे में प्रमुख रूप से
बोली जाने वाली भाषा को भोजपुरी के नाम से जाना जाता है।
भाजपुरी के सन्दर्भ में एक ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलता है। कहाँ जाता है कि राजा भोज के वंशज मल्ल मल्ल जनपद में आकर बस गये और वही पर नये राज्य का निर्माण किया और उस राज्य की राजधानी का नाम भोजपुर रखा। अतः भोजपुर में बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी कहलाई।
भोजपुरी का प्रमुख केंद्र भोजपुर (बिहार) है।
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इसके अलावा बनारस ,जौनपुर ,मिर्जापुर ,गाजीपुर ,बलिया ,गोरखपुर ,देवरिया ,आजमगढ़ ,बस्ती ,भोजपुर (आरा), बक्सर, रोहतास (सासाराम), भभुआ ,सारन (छपरा), सीवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण ,पश्चिमी चंपारण आदि जगहों पर बोली जाती है. अर्थात उत्तर प्रदेश का पूर्वी एवं बिहार का पश्चिमी भाग।
भारत के अलावा सूरीनाम, फीजी, मारीशस, गयाना, त्रिनिडाड में बोली जाती है।
भोजपुरी में लिखित साहित्य नहीं के बराबर है परंतु सिनेमा जगत में भोजपुरी हिंदी की वह बोली है जिसमें सबसे अधिक फिल्में बनती
कन्नौजी बोली
संस्कृत के कान्यकुब्ज से व्युत्पन्न शब्द “कन्नौज” हुआ जो
वर्तमान में उ. प्र. का एक जिला है ।
कन्नौज के आस-पास बोली जाने वाली बोली को कन्नौजी के नाम से जानते हैं।
वास्तव में कन्नौजी को अवधी एवं ब्रजभाषा के मध्य की उपभाषा कही जाती है।
बघेली बोली
यह अर्घमागधी से उत्पन्न बोली है। हालांकि कुछ भाषाविदों
ने इसे अवधी की ही उपबोली मानते हैं। बघेली अथवा बाधेली बोली बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। इसको केवात्ती, मन्नाडी, रिवाई, गंगाई एवं नागपुरी आदि नामों से भी जानते हैं।
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