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वर्धमानः महावीर
शब्दार्थाः– अन्यतमः = बहुतों से एक/सर्वश्रेष्ठ, शैशवात् = बचपने से, सदाचारसम्पन्नः = सदाचार से युक्त, अजायते = उत्पन्न हुई (जन् धातु, लङ्लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन), वर्गभेदः = ऊँच-नीच का भाव, विकलतायाः = व्याकुलता के, दिवङ्गते = मरने पर, शोकोद्विग्नम् = शोक से सन्तप्त, बेचैन, तदानीम् = उस समय, प्रवृत्तः = लग गए, संनियम्य = नियन्त्रित करके, त्रयोविंशतिः = तेईस, चतुर्विशः = चौबीसवें, कैवल्यम् = मोक्ष, प्राणवन्तः = सजीव, प्रस्तरादिषु = पत्थर आदि में, त्रिरत्नोपासनया = त्रिरत्नों के पालन से, अस्तेयम् (न + स्तेयम्) = चोरी न करना, अपरिग्रहः = अपने पास कुछ न रखना, द्विसप्ततिवर्षवयसि = बहत्तर वर्ष की उम्र में, रुग्णः = रोगी।
भारतवर्षे प्रचलितेषु ………………………………………………………. आसीत् ।।1।।
हिन्दी अनुवाद-भारत में प्रचलित धर्म सम्प्रदायों में जैनधर्म का महत्त्व बहुत है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के अन्यतम श्रेष्ठ महापुरुष थे। इनका जन्म ईसा पूर्व 599 को वैशाली नगर के कुण्डग्राम में हुआ था। बाल्यकाल में इनका नाम वर्धमान था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। ये जन्म से ही बुद्धिमान, सदाचारसम्पन्न और विचारशील थे। इनका विवाह यशोदा नामक राजकुमारी के साथ हुआ। इनके एक पुत्री प्रियदर्शिनी उत्पन्न हुई। वर्धमान बाल्यकाल से ही विरक्त थे। समाज में प्रचलित आडम्बर, वर्णभेद और जीवहिंसा इनके हृदय में परेशानी के कारण थे। पिता के मरने पर इनका मन शोक से उद्विग्न हो गया। मोह और माया को छोड़ इन्होंने अपने भाई से आज्ञा लेकर संन्यास ग्रहण कर लिया। उस समय इनकी अवस्था तीस वर्ष की थी। कठिन तपस्या से ये सत्य और शान्ति की खोज में लग गए। बारह वर्ष तक तप करके इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। तप से ये इन्द्रियों को जीतकर महावीर या जिन हो गए। जैन मत के अनुसार वर्धमान महावीर से पहले तेईस तीर्थंकर थे। महावीर जैनधर्म के चौबीसवें एवं आखिरी तीर्थंकर थे।
ज्ञानप्राप्तेः ……………………………………. प्राप्तः ॥2॥
हिन्दी अनुवाद-ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् महावीर ने तीस वर्ष तक जैनधर्म को बहुत उत्साह से प्रचार किया। धीरे-धीरे भारत के प्रायः सब राज्यों में जैन धर्म का अच्छी तरह प्रचार हुआ। इनके द्वारा दिखाई गए मार्ग पर चलने से लोग मोक्ष प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। इनके मत के अनुसार न केवल मनुष्य, पशु, पक्षी व प्राणी; बल्कि वृक्ष और पत्थर आदि में प्राण होते हैं। महावीर के उपदेश के अनुसार सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र ऐसे त्रिरत्न की उपासना से लोग मोक्ष प्राप्त करते हैं। शुद्ध आचरण के लिए पाँच महाव्रतों- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह विधान किया गया। साधारण लोगों के अलावा बिम्बमार, अजातशत्रु आदि राजा भी इनके उपदेशों से प्रभावित हुए। इनके द्वारा उपदेशित मार्ग के आधारभूत सिद्धांत थे-सत्य और अहिंसा।।
बहत्तर वर्ष की अवस्था में महावीर पाटलिपुत्र के समीप पावापुरी स्थान पर रोगग्रस्त हुए और मोक्ष को प्राप्त हो गए।
अभ्यासः
प्रश्न 1.
उच्चारण कुरुते पुस्तिकायां च लिखत
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत
(क) वर्धमानमहावीरस्य पितुः नाम किम् आसीतु?
उत्तर
सिद्धार्थः।
(ख) वर्धमानमहावीरस्य मातुः नाम किम् आसीत्?
उत्तर
त्रिशला।।
(ग) जैनधर्मानुसारेण त्रिरत्नोपासनया जनाः किं लभन्ते?
उत्तर
मोक्षं।।
(घ) जैनधर्मस्य अन्तिमः तीर्थङ्करः कः आसीत्?
उत्तर
वर्धमानः महावीरः।
प्रश्न 3.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) महावीरः कति वर्षाणि यावत् जैनधर्मस्य प्रचारम् अकरोत्?
उत्तर
महावीरः त्रिंशत् वर्षाणि यावत् जैनधर्मस्य प्रचारम् अकरोत्।
(ख) महावीरस्य जन्म कत्र अभवन?
उत्तर
महावीरस्य जन्म वैशाली नगग्य कुण्डग्रामे अभवत्।
(ग) महावीरस्य पुत्र्याः नाम किम् आसीत्?
उत्तर
महावीरस्य पुत्र्याः नाम प्रियदर्शिनी आसीत्।
(घ) जैनमतानुसारेण महावीरात् पूर्व कति तीर्थङ्कराः अभवन्?
उत्तर
जैनमतानुसारेण महावीरात् पूर्व त्रयोविंशति तीर्थङ्कराः अभवन्।
प्रश्न 4.
प्रश्नानामुलराणि लिखत
(क) कानि पञ्चमहाव्रतानि सन्ति?
उत्तर
सत्य-अहिंसा-अस्तेय-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह।
(ख) त्रिरत्नानि कानि सन्ति?
उत्तर
सम्यक्-दर्शनम्, सम्यक्-ज्ञानम्, सम्यक्-चरित्रम्।
(ग) महावीरस्य उपदेशैः के के प्रभाविताः अभवन्?
उत्तर
साधारणजनैः सह बिम्बसार-अजातशत्रुप्रभृतयो राजानः अपि महावीरस्य उपदेशैः प्रभावितः अभवन्।
(घ) महावीरस्य मनसः विकलतायाः कानि कारणानि आसन्?
उत्तर
समाज प्रचलितः आडम्बर:, वगभद:. जीवहिंसा च तस्य मनस: विकलतायाः कारणानि आसन्।
प्रश्न 5.
मजूषातः क्रियापदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत (पूरा करके)-
उत्तर
(क) महावीरः जैनधर्मस्य श्रेष्ठः महापुरुषः आसीत्।
(ख) महावीरस्य जन्म वैशालीनगरस्य कुण्डग्रामे अभवत्।।
(ग) जैनधर्मस्य प्रचारं महावीरः उत्साहेन अकरोत्।।
(घ) त्रिंशद्वर्षवयसि मोहमायां परित्यज्य महावीरः संन्यासं गृहीतवान्।।
प्रश्न 6.
अधोलिखित-पदेषु सन्धि-विच्छेदं कुरुत (सन्धि-विच्छेद करके)–
उत्तर
प्रश्न 7.
हिन्दीभाषायाम् अनुवादं कुरुत ( अनुवाद करके)
(क) महावीरः जैनधर्मस्य अन्यतमः श्रेष्ठो महापुरुषः आसीत्।
उत्तर
अनुवाद-महावीर जैन धर्म के अन्यतम श्रेष्ठ महापुरुष थे।
(ख) बाल्यकाले तस्य नाम वर्धमान इत्यासीत्।
उत्तर
अनुवाद-बचपन में उनका नाम वर्धमान था।
(ग) वर्धमानः बाल्यकालादेव विरक्त आसीत्।
उत्तर
अनुवाद-वर्धमान बचपन से ही विरक्त थे।
(घ) स इन्द्रियाणि सन्नियम्य जिनोऽभवत्।
उत्तर
अनुवाद-वे इन्द्रियाँ वश में करके ‘जिन’ बन गए।
प्रश्न 8.
संस्कृतभाषायाम् अनुवादं कुरुत (अनुवाद करके)
(क) वर्धमान महावीर जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे।
उत्तर
अनुवाद-वर्धमानः महावीरः जैन धर्मस्य चतुर्विंशः तीर्थङ्करः आसीत्।
(ख) महावीर की माता का नाम त्रिशला था।
उत्तर
अनुवाद-महावीरस्य मातुः नाम त्रिशला आसीत्।
(ग) पत्थर में भी प्राण है।
उत्तर
अनुवाद-प्रस्तरेषु अपि प्राणाः सन्ति।।
(घ) उस समय वे तीस वर्ष के थे।
उत्तर
अनुवादे-तस्मिन् समये सः त्रिंशद्वर्षवयस्क आसीत्।
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