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(विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) मोटर चली गयी। बूढ़ा कई मिनट तक मूर्ति की भाँति निश्चल खड़ा रहा। संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान की भी परवाह नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था। सभ्य संसार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक न हुआ था। वह उन पुराने जमाने के जीवों में था, जो लगी हुई आग को बुझाने, मुर्दे को कन्धो देने, किसी के छप्पर को उठाने और किसी कलह को शान्त करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। जब तक बूढ़े को मोटर दिखायी दी, वह खड़ा टकटकी लगाये उस ओर ताकता रहा।
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) पुराने जमाने के जीवों का व्यवहार कैसा था?
(4) भगत को किस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था?
(5) भगत के अनुसार सभ्य संसार कैसा है?
[शब्दार्थ-आमोद-प्रमोद = मनोरंजन करना । जान = जीवन । परवाह = चिन्ता। निर्मम = निर्दय ।]
उत्तर-
- सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक कहानी से अवतरित है। इसमें लेखक ने विरोधी घटनाओं और भावनाओं के चित्रण द्वारा कर्तव्य का बोध कराया है। यहाँ पर लेखक ने बूढ़े भगत तथा डॉ० चड्डा के व्यवहार का वर्णन किया है। |
- रेखांकित अंशों की व्याख्या- बूढ़ा भगत अपने बीमार बेटे को दिखाने डॉ० चड्डा के पास आया । परन्तु डॉ० चड्डा ने उसकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया और मोटर में सवार होकर खेलने चले गये। मोटर चली जाने के बाद बूढ़ा भगत सोचने लगा कि क्या संसार में ऐसे भी हृदयहीन व्यक्ति हैं, जो अपने मनोरंजन के सामने दूसरों के जीवन की कोई चिन्ता नहीं करते। वह ऐसे व्यवहार की लेशमात्र भी आशा नहीं करता था। उसे अपनी सरलता के कारण उनके इसे कठोर व्यवहार पर अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। वह यह नहीं जानता था कि सभ्य संसार इतना हृदयहीन और कठोर होता है। इस बात का हँदयस्पर्शी अनुभव उसे अभी तक कभी नहीं हुआ था। वह प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं को माननेवाला व्यक्ति था। वह उन व्यक्तियों में से था, जो सदैव परोपकार में लीन रहते हैं, जो दूसरों की आग को बुझाने, मुर्दो को कन्धा देने, किसी के छप्पर को उठाकर रखने और किसी के घर की लड़ाई को शान्त करने को ही अपना कर्त्तव्य समझते हैं । इस प्रकार बूढ़ा भगत निः। स्वार्थ सेवा करनेवाला और दूसरों के दु:ख में सहयोग तथा सहानुभूति रखनेवाला व्यक्ति था।
- पुराने जमाने के जीवों का व्यवहार सरलता से परिपूर्ण होते हैं।
- भगत को विश्वास नहीं हो रहा था कि संसार में ऐसे मनुष्य भी रहते हैं जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान । की परवाह नहीं करते हैं।
- भगत के अनुसार सभ्य संसार बहुत निर्मम एवं कठोर है।
(2) ‘अरे मूर्ख, यह क्यों नहीं कहता कि जो कुछ न होना था, हो चुका । जो कुछ होना था वह कहाँ हुआ? माँ-बाप ने बेटे का सेहरा कहाँ देखा? मृणालिनी का कामना-तरु क्या पल्लव और पुष्प से रंजित हो उठा? मन के वह स्वर्ण-स्वप्न जिनसे जीवन आनन्द का स्रोत बना हुआ था, क्या पूरे हो गये? जीवन के नृत्यमय तारिका-मण्डित सागर में आमोद की बहार लूटते हुए क्या उसकी नौका जलमग्न नहीं हो गयी? जो न होना था, वह हो गया!’
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) माँ-बाप ने क्या नहीं देखा?
(4) ‘नौका जलयान होना’ का क्या अर्थ है?
(5) मृणालिनी का कामना तरु क्या था?
[शब्दार्थ-सेहरा = पगड़ी। कामना तरु = इच्छारूपी वृक्ष । पल्लव = पत्ते । रंजित = युक्त, लहलहानी । स्वर्ण-स्वप्न = सुनहरी इच्छाएँ । स्रोत = झरना। नृत्यमय तारिका-मंडित = नाचते हुए तारों से सुशोभित । आमोद = प्रसन्नता । जलमग्न = पानी में डूब जाना।]
उत्तर-
- सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में उस समय का विवरण है, जबकि कैलाश के प्राण सर्पदंश द्वारा हर लिये जाते हैं तथा झाड़-फेंक के साधन भी उत्तर दे जाते हैं तो एक सज्जन कहते हैं
- रेखांकित अंशों की व्याख्या- अरे मूर्ख ! आज इस घर में जो हुआ है वह नहीं होना चाहिए था क्योंकि कैलाश अभी नवयुवक है, जीवन के समस्त आनन्दों का रसास्वादन अभी उसके लिए शेष है। उसके माता-पिता तो उसका विवाह भी न देख पाये और मृणालिनी, उसकी कामनाएँ जो कैलाश के जीवित होने पर पुष्पित, पल्लवित थीं, कैलाश के आकस्मिक निधन से नष्टप्राय हो गयी है। जब जीवन के आनन्द का एकमात्र स्रोत कैलाश ही उसके जीवन में न रहा, तो वह अब किस अनिर्वचनीय आनन्द की अनुभूति करे। उसके मन की अनेक इच्छाएँ एवं सुनहरे स्वप्न क्या कैलाश की मृत्यु के साथ अपूर्ण होकर नहीं रह गये । जिस प्रकार किसी सागर में आमोद-प्रमोद करती नाव सागर की उठती हुई तरंगों से सागर के गर्भ में समा जाती है उसी प्रकार कैलाशरूपी नौका के सवार भी जीवनरूपी सागर के जल में पूर्णतया डूब गये थे। भाव यह है कि कैलाश की मृत्यु उस समय हुई, जबकि उसे जीवन के प्रत्येक सुख को देखना था तथा उसकी मृत्यु से उसके माता-पिता, मृणालिनी आदि सभी पूर्णतया प्रभावित हुए हैं।
- माँ-बाप ने बेटे के सिर पर सेहरा नहीं देखा।
- नौका जलमग्न होने का तात्पर्य सहारा नष्ट हो जाना है जिससे मृणालिनी का विवाह होना था जब वही नहीं रहेगा तो इसे ही नौका का जलमग्न कहा जायेगा।
- मृणालिनी कल्पना तरु वैवाहिक जीवन का स्वर्ण-स्वप्न था जो जीवन-आनन्द का स्रोत बना हुआ था, जो समय पर पल्लव और पुष्प से रंजित होता।
(3) वही हरा-भरा मैदान था, वही सुनहरी चाँदनी एक नि:शब्द संगीत की भाँति प्रकृति पर छायी हुई थी, वही मित्र-समाज था। वही मनोरंजन के सामान थे। मगर जहाँ हास्य की ध्वनि थी, वहाँ अब करुण-क्रन्दन और अश्रु-प्रवाह था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यखण्ड का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) प्रकृति पर क्या छायी हुई थी?
उत्तर-
- सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ‘मंत्र’ से उद्धृत है।
- रेखांकित अंशों की व्याख्या- कैलाश के जन्मदिन समारोह के समय जो हँसीपूर्ण वातावरण था, चारों ओर हास्यपरिहास छाया था वहीं कैलाश को साँप के काट लेने पर करुण पुकार होने लगी, थी। सभी के नेत्रों से आँसू बह रहे थे। हर्ष का वातावरण शोक में बदल गया था।
- प्रकृति पर सुनहरी चाँदनी संगीत की भाँति छायी हुई थी।
(4) वह एक जड़ी कैलाश को सुंघा देता । इस तरह न जाने कितने घड़े पानी कैलाश के सिर पर डाले गये और न जाने कितनी बार भगत ने मन्त्र फेंका। आखिर जब ऊषा ने अपनी लाल-लाल आँखें खोलीं, तो कैलाश की भी लाल-लाल आँखें खुल गयीं। एक क्षण में उसने अँगड़ाई ली और पानी पीने को माँगा। डॉक्टर चड्डा ने दौड़कर नारायणी को गले लगा लिया। नारायणी दौड़कर भगत के पैरों पर गिर पड़ी और मृणालिनी कैलाश के सामने आँखों में आँसू भरे पूछने लगी-‘अब कैसी तबीयत है?’
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) आँखें खुलते ही अँगड़ाई लेते हुए कैलाश ने क्या माँगा?
उत्तर-
- सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक कहानी से अवतरित है। प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने विरोधी घटनाओं, परिस्थितियों और भावनाओं का चित्रण करके कर्तव्य-बोध का मार्ग समझाया है।
- रेखांकित अंशों की व्याख्या- बूढ़े भगत ने कैलाश को जड़ी सुंघाया और इसके बाद उसके सिर पर घड़े भर-भरकर पानी डाला गया। बूढ़े भगत ने इस बीच कई बार उस पर मंत्र फेंका। काफी समय बाद जब उषा ने कैलाश को देखने के लिए अपनी लाल-लाल आँखें खोलीं तो उसी समय अचानक कैलाश की भी लाल आँखें खुल गयीं। अँगड़ाई लेते हुए कैलाश ने पीने के लिए पानी माँगा तो इतना सुनते ही डॉ० चड्ढा ने नारायणी को प्रसन्नता के आवेश में दौड़कर गले लगा लिया। नारायणी कृतज्ञ भाव से भरकर तुरंत ही भगत के पैरों पर गिर पड़ी। मृणालिनी आँखों में आँसू भरकर कैलाश से पूछने लगी, “अब तुम्हारी कैसी तबीयत है?”
- आँखें खुलते ही कैलाश ने अँगड़ाई लेते हुए पानी माँगा।
(5) चड्रा – रात को मैंने नहीं पहचाना, पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया। एक बार यह एक मरीज को लेकर आया था। मुझे अब याद आता है कि मैं खेलने जा रहा था और मरीज को देखने से इनकार कर दिया था। आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे खोज निकालूंगा और पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा । वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ, उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो अबे से जीवन-पर्यन्त मेरे सामने रहेगा।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) ग्लानि किसको हो रही थी?
(4) डॉ० चड्ढा किस आदर्श पर जीवन भर चलने का संकल्प लेते हैं?
(5) प्रस्तुत पंक्तियों में भगत की किस-चारित्रिक विशेषता का पता चलता है?
[शब्दार्थ-ग्लानि = दु:ख। जीवन-पर्यन्त = जीवन के अन्त तक।]
उत्तर-
- सन्दर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित ‘मन्त्र’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि मनुष्य को अपनी गल्तियों का अनुभव तब होता है, जब उसके प्रायश्चित्त का समय निकल जाता है। अपने ऊपर उसी प्रकार की विपत्ति के आने से मनुष्य की आँखें खुल जाती हैं।
- रेखांकित अंशों की व्याख्या- बूढ़े के मन्त्र-तन्त्र के उपचार से कैलाश ठीक हो जाता है। डॉक्टर चड़ा उस बूढ़े को पहचानने का प्रयास करते हैं और अन्तत: उन्हें उस घटना का स्मरण हो आता है, जब वे गोल्फ खेलने के लिए जा रहे थे और वह बूढ़ा अपने इकलौते पुत्र को मृतप्राय अवस्था में उनके पास लेकर आया था, लेकिन वह उसको देखे बिना गोल्फ खेलने के लिए चले गये थे। आज बूढ़े द्वारा अपने ऊपर किये गये उपकार के कारण उन्हें अपने उस दिन के व्यवहार पर अपार दु:ख हो रहा है। वह आज अपने उस अमानवीय व्यवहार का प्रायश्चित्त करना चाहते हैं। अपनी पत्नी नारायणी से वे कह रहे हैं कि यद्यपि मैं जानता हूँ कि वह बूढ़ा कुछ लेगा नहीं तथापि मैं उसे अवश्य खोजेंगा, वह अवश्य ही मेरे अपराध को क्षमा कर देगा। इस संसार में कुछ लोग दूसरों की भलाई के लिए ही जन्म लेते हैं, अपने लिये नहीं। वह बूढ़ा भी उन लोगों में से ही एक व्यक्ति था। लगता है कि भगवान् ने उसको यश की वर्षा करने के लिए ही जन्म दिया है। अपने नि:स्वार्थ सेवा-भावना से उसने मुझे सज्जनता का ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जिसे मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक याद रखेंगा।।
- ग्लानि डॉक्टर चड्डी को हो रही थी।
- डॉ० चड्ढा भगत द्वारा दिखाये सज्जनता के आदर्श पर जीवन भर चलने का संकल्प लेते हैं।
- इन पंक्तियों में भगत की चारित्रिक विशेषता उसकी सज्जनता है। उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ था।
प्रश्न 2. मुंशी प्रेमचन्द के जीवन-परिचय एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
प्रश्न 3. मुंशी प्रेमचन्द के जीवन एवं साहित्यिक परिचय का उल्लेख कीजिए।
अथवा मुंशी प्रेमचन्द की जीवनी एवं साहित्यिक सेवाएँ स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 4. मुंशी प्रेमचन्द के जीवन-परिचय एवं कृतियों का उल्लेख कीजिए। अथवा मुंशी प्रेमचन्द जी का साहित्यिक परिचय दीजिए तथा उनकी प्रमुख रचनाओं (कृतियों) का उल्लेख कीजिए।
मुंशी प्रेमचन्द
(स्मरणीय तथ्य )
जन्म-सन् 1880 ई०। मृत्यु-सन् 1936 ई० जन्म-स्थान-लमही (वाराणसी) उ० प्र०। पिता-अजायब राय । अन्य बातें-निर्धन, संघर्षमय जीवन, बी० ए० तक शिक्षा, पहले अध्यापक फिर सब-डिप्टी इंसपेक्टर।
साहित्यिक विशेषताएँ-उपन्यास सम्राट्, महान् कथाकार। यथार्थ और आदर्श का मिश्रण।
भाषा- सरल, रोचक, प्रवाहमयी।
शैली- निजी, वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, भावात्मक, व्यंग्यात्मक आदि।
- जीवन-परिचय- मुंशी प्रेमचन्द का जन्म वाराणसी जिले के लमही ग्राम में सन् 1880 ई० में हुआ था। इनके बचपन का नाम धनपतराय धा : प्रेमचन्द जी पहले उर्दू में नवाबराय के नाम से कहानियाँ लिखते थे। बाद में जब हिन्दी में आये तो इन्होंने प्रेमचन्द नाम से कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। इनका जन्म एक साधारण कायस्थ-परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो गयी थी । इनके पिता का नाम अजायब राय था। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भी इन्होंने बड़े ही परिश्रम से अपना अध्ययनक्रम जारी रखा। आरम्भ में कुछ वर्षों तक स्कूल की अध्यापकी करने के पश्चात् ये शिक्षा-विभाग में डिप्टी इंसपेक्टर हो गये। असहयोग आन्दोलन से प्रेरित होकर इन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और आजीवन साहित्य-सेवा करते रहे। इन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। इनकी मृत्यु सन् 1936 ई० में हुई।
- कृतियाँ- मुंशी प्रेमचन्द मुख्य रूप से कहानी और उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध हैं, परन्तु उन्होंने नाटक, निबन्ध और सम्पादन-कला को भी अपनी समर्थ लेखनी का विषय बनाया। इनकी रचनाओं का विवेचन निम्न प्रकार है
- (क) उपन्यास-गोदान, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि, गबन, प्रेमाश्रम, निर्मला, वरदान और कायाकल्प नामक श्रेष्ठ उपन्यास लिखे। इनके उपन्यासों में मानव-जीवन के विविध पक्षों और समस्याओं का यथार्थ चित्रण हुआ है। |
- (ख) कहानी-संग्रह- मुंशी प्रेमचन्द ने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं। उनके कहानी संग्रहों में सप्तसुमन, नवनिधि, प्रेमपचीसी, प्रेम सदन, मानसरोवर (आठ भाग) प्रमुख हैं। इनकी कहानियों में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि विविध समस्याओं को यथार्थ चित्रण कर उनका समाधान प्रस्तुत किया गया है।
- (ग) नाटक-संग्राम, प्रेम की वेदी, कर्बला- इन नाटकों में राष्ट्र-प्रेम और विश्व-बन्धुत्व का सन्देश दिया गया है।
- (घ) निबन्ध-‘कुछ विचार’ और ‘साहित्य का उद्देश्य’ में मुंशी प्रेमचन्द जी के निबन्धों का संग्रह है।
- (ङ) सम्पादन-माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण आदि।
इनके अतिरिक्त इन्होंने ‘तलवार और त्याग’ जीवनी, बालोपयोगी साहित्य और कुछ अनूदित पुस्तकों द्वारा हिन्दी-साहित्य के भण्डार की अभिवृद्धि की है।
- साहित्यिक परिचय- मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी के युगांतरकारी कथाकार हैं। इनकी कहानियाँ समसामयिक आर्थिक परिस्थितियों के किताबी दस्तावेज हैं जिनमें किसानों की दयनीय दशा, सामाजिक बन्धनों में तड़पती नारियों की वेदना, वर्णव्यवस्था का खोखलापन, हरिजनों की पीड़ा आदि का बड़ा ही मार्मिक चित्रण है। सामयिकता के साथ ही इनके साहित्य में स्थायित्व प्रदान करनेवाले तत्त्व विद्यमान हैं।
- भाषा-शैली- मुंशी प्रेमचन्द प्रारम्भ में उर्दू में लिखा करते थे, अत: इनकी रचनाओं पर उर्दू की छाया स्पष्ट है। शैली अत्यन्त ही सरल, सुबोध तथा स्वाभाविक है, जिसमें मुहावरों और कविता के समावेश से और भी सजीवता आ गयी है। आवश्यकतानुसार भाषा में अंग्रेजी, अरबी, उर्दू, फारसी और पूर्वी के देशज शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा की स्पष्टता एवं प्रभावशीलता के लिए कहीं-कहीं आलंकारिक एवं काव्यमय भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रेमचन्द की शैली के रूप हैं–(1) व्यावहारिक और (2) संस्कृतनिष्ठ शैली। व्यावहारिक शैली पर उर्दू की स्पष्ट छाप है। भाषा सरल और मुहावरेदार है।
उदाहरण
- व्यावहारिक शैली –“बूढ़े ने पगड़ी उतार कर चौखट पर रख दी और रोकर बोला-हुजूर, एक निगाह देख लें। बस एक निगाह। लड़का हाथ से चला जायेगा। हुजूर, सात लड़कों में यही एक बच रहा है हुजूर ।’
- संस्कृतनिष्ठ शैली –“कितने ही सिद्धान्त जो एक जमाने में सत्य समझे जाते थे, आज असत्य सिद्ध हो गये हैं, क्योंकि उनका सम्बन्ध मनोभावों से है और मनोभावों में कभी परिवर्तन नहीं होता है।”
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. क्या ‘मंत्र’ एक मर्मस्पर्शी कहानी है और क्यों?
उत्तर- ‘मंत्र’ एक मर्मस्पर्शी कहानी है। भगत अपने पुत्र के जीवनदान की याचना डॉ० चड्ढा के समक्ष करता है, लेकिन चड्ढा के ऊपर उसका कोई असर नहीं हुआ। अपनी बीमारी के कारण भगत का लड़का इस दुनिया से सिधार गया। डॉ० चड्ढा के लड़के को सर्प ने जब डस लिया तो चड्ढा ने बूढ़े भगत को इलाज के लिए बुलवाया था। पहले तो भगत ने ना कर दिया, लेकिन रात में चड्ढा के लड़के के उपचार के लिए जाता है। उसके उपचार से चड्ढा के लड़के की जान बच जाती है।
प्रश्न 2. “भगवान् बड़ा कारसाज है।” इस वाक्य का भाव स्पष्ट कीजिए। |
उत्तर- अच्छा और बुरा सब ईश्वर के हाथ में है। ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है। वह जिन्दा को मुर्दा कर सकता है और मुर्दा को जिन्दा।
प्रश्न 3. अंततः भगत डॉ० चड्ढा के पुत्र को बचाने क्यों चला गया?
उत्तर- डॉ० चड्ढा के पुत्र की हालत जानकर भगत से नहीं रहा गया। उसके मन में बदले की भावना नहीं थी। जीवन में इस तरह का उसने कभी भी कोई कार्य नहीं किया था। भगत के मन में दया थी। इसलिए डॉ० चड्ढा के पुत्र को बचाने चला गया।
प्रश्न 4. डॉ० चड्ढा के सामने भगत ने अपनी पगड़ी उतार कर क्यों रख दी?
उत्तर- अपने पुत्र की जान बचाने के लिए भगत ने अपनी पगड़ी डॉ० चड्ढा के सामने उतार कर रख दी।
प्रश्न 5. कैलाश को सर्प ने क्यों काट लिया था?
उत्तर- कैलाश ने सर्प की गर्दन को कसकर दाब दिया था जिससे सर्प क्रोधित हो उठा और गर्दन ढीली होते ही उसने कैलाश को काट लिया।
प्रश्न 6. ‘मंत्र’ कहानी का सन्देश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘मंत्र’ कहानी को सन्देश यह है कि हमें अमीर-गरीब के साथ समान व्यवहार करना चाहिए तथा दूसरों के सुखदु:ख में समान रूप से भागीदार होना चाहिए।
प्रश्न 7. नारायणी ने भगत के लिए क्या सोचा था? |
उत्तर- नारायणी ने सोचा था कि मैं उसे कोई बड़ी रकम देंगी।
प्रश्न 8. कैलाश के जन्म-दिवस की तैयारियों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कैलाश के बीसवें सालगिरह पर हरी-हरी घास पर ‘कुर्सियाँ बिछी हुई थीं। शहर के रईस और हुक्काम इकठे हुए थे। बिजली के प्रकाश से सारा मैदान जगमगा रहा था। आमोद-प्रमोद के साधन भी थे।
प्रश्न 9. डॉ० चड्ढा और बूढ़े से सम्बन्धित दस वाक्य लिखिए। |
उत्तर- डॉ० चड्ढा ने खूब यश और धन कमाया, लेकिन इसके साथ ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा भी की। पचास वर्ष की अवस्था में उनकी चुस्ती और फुर्ती युवकों को भी लज्जित करती थी। उनके प्रत्येक काम का समय निश्चित था। इस नियम से वह जौ-भर भी न टलते थे। डॉ० चड्ढा उपचार और संयम का रहस्य खूब समझते थे। बूढ़ा भगत विनम्र और दयालु था। वह पुत्र के निधन के बाद भी धैर्य धारण किये हुए था। वह नियमित रूप से अपने जीवन निर्वाह के लिए कार्य करता था। भगत में बदले की भावना नहीं थी। वह जब चड्ढा के बेटे को साँप काटने की खबर सुनता है तो उससे रहा नहीं जाता और रात में चड्ढा के घर पहुँच जाता है-वहाँ वह झाड़-फेंक करता है। उसके झाड़-फेंक से डॉ० चड्ढा का लड़का ठीक हो जाता है।
प्रश्न 10. इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों के सुख-दुःख में समान रूप से भागीदार होना चाहिए।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘भगवान् बड़ा कारसाज है।’ यह वाक्य कहानी में कितनी बार आया है?
उत्तर- ‘भगवान् बड़ा कारसाज है’ यह वाक्य कहानी में दो बार प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए
(अ) भगत कठोर हृदय का व्यक्ति नहीं था। (√)
(ब) कैलाश नारायणी का पुत्र था। (√)
(स) बुढ़िया ने भगत को दूसरी बार डॉ० चड्ढा के यहाँ भेजा था। (×)
(द) अंततः कैलाश की मृत्यु हो गयी थी। (×)
प्रश्न 3. मुंशी प्रेमचन्द का जन्म एवं मृत्यु सन् बताइए।
उत्तर- मुंशी प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 ई० तथा मृत्यु सन् 1936 ई० हुई।
प्रश्न 4. मुंशी प्रेमचन्द किस युग के लेखक हैं?
उत्तर- मुंशी प्रेमचन्द शुक्ल युग के लेखक हैं।
प्रश्न 5. कैलाश और मृणालिनी कौन थे?
उत्तर- कैलाश और मृणालिनी सहपाठी थे।
प्रश्न 6. ‘हंस’ पत्रिका के संस्थापक कौन थे?
उत्तर- ‘हंस’ पत्रिका के संस्थापक मुंशी प्रेमचन्द थे।
व्याकरण-बोध
1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताकर वाक्य-प्रयोग कीजिए –
आँखें ठण्डी होना, चैन की नींद सोना, किस्मत ठोंकना, कलेजा ठण्डा होना, हाथ से चला जाना, सूरत आँखों में फिरना।
उत्तर-
- आँखें ठण्डी होना- (निष्प्राण होना)
सर्प के काटने से कैलाश की आँखें ठण्डी हो गयी थीं। - चैन की नींद सोना- (बेफिक्र होना)
परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर मैं चैन की नींद सोया। - किस्मत ठोंकना- (भाग्य को दोष देना)
परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर मैंने किस्मत ठोंक ली। - कलेजा ठण्डा होना- (चैन पड़ना)
राम के फेल होने पर श्याम का कलेजा ठण्डा हो गया। - हाथ से चला जाना- (प्रिय वस्तु का निकल जाना)
दीनू की माँ का इकलौता बेटा बुरी संगति में पड़कर हाथ से चला गया। - सूरत आँखों में फिरना- (भूली हुई चीज याद आना)
राधा के मुम्बई चले जाने पर उसकी सूरत बार-बार मेरे आँखों में फिरती है।
2. निम्नलिखित शब्दों को सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिएपल्लव, विद्यालय, सज्जन, औषधालय, निश्चल, निःस्वार्थ।
उत्तर-
पल्लव – पत् + लव – व्यंजन सन्धि
विद्यालय – विद्या + आलय – दीर्घ सन्धि
सज्जन – सद् + जन – व्यंजन संधि
औषधालय – औषध + आलय – दीर्घ सन्धि
निश्चल – निः + चल – विसर्ग सन्धि
नि:स्वार्थ – निः + स्वार्थ – विसर्ग सन्धि
3. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग बताइए –
उपदेशक, निर्दयी, निवारण, आमोद, प्रतिघात।
उत्तर- उप, निर, नि, आ, प्रति ।
4. निम्नलिखित समस्त पदों में समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम लिखिए
महाशय, कामना-तरु, सावन-भादौ, जीवनदान, जलमग्न, आत्मरक्षा, मित्र-समाज।
उत्तर-
समस्त पद समास-विग्रह समास का नाम
महाशय – महान् है आशय जिसका – बहुब्रीहि समास
कामना-तरु – कामना रूपी तरु – कर्मधारय समास
सावन-भादौ – सावन और भादौ – द्वन्द्व समास
जीवनदान – जीवन के लिए दान – सम्प्रदान तत्पुरुष
जलमग्न – जल में मग्न – अधिकरण तत्पुरुष
आत्मरक्षा – आत्मा की रक्षा – सम्बन्ध तत्पुरुष
मित्र-समाज – मित्रों का समाज – सम्बन्ध तत्पुरुष
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