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(विस्तृत उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
(दोहा)
1. जो रहीम उत्तम …………………………………………………… लिपटे रहत भुजंग।
शब्दार्थ- प्रकृति = स्वभाव। कुसंग = बुरी संगति । भुजंग = सर्प।
सन्दर्भ- प्रस्तुत दोहा रहीम (अब्दुल रहीम खानखाना) द्वारा रचित ‘रहीम ग्रन्थावली’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- रहीम ने उच्चकोटि के नीति सम्बन्धी दोहों की रचना की है। प्रस्तुत दोहे में उत्तम प्रकृति तथा चरित्र की दृढ़ता पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या- रहीम कवि का कहना है कि जो उत्तम स्वभाव और दृढ़ चरित्रवाले व्यक्ति होते हैं, बुरी संगति में रहने पर भी उनके चरित्र में विकार उत्पन्न नहीं होता है। जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष पर चाहे जितने भी विषैले सर्प लिपटे रहें, परन्तु उस पर सर्यों के विष का प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् चन्दन का वृक्ष अपनी सुगन्ध और शीतलता के गुण को छोड़कर जहरीला नहीं हो जाता है। इस प्रकार सज्जन भी अपने सद्गुणों को कभी नहीं छोड़ते।
काव्यगत सौन्दर्य
- दृढ़ चरित्र और उत्तम स्वभाववाले व्यक्तियों के चरित्र पर बुरे चरित्रवाले व्यक्ति के बुरे आचरण का प्रभाव नहीं होता है।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- उपदेशात्मक, मुक्तक।
- रस- शान्त।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- दृष्टान्त।
2. रहिमन प्रीति……………………………………………….…………तजै सफेदी चून। (V. Imp.)
शब्दार्थ- दून = दुगुना। जरदी = पीलापन। चून = चूना।
सन्दर्भ- प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में सच्ची प्रीति की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या- रहीम कवि कहते हैं कि उसी प्रेम की प्रशंसा करनी चाहिए जिसमें दोनों प्रेमियों का प्रेम मिलकर दुगुना हो जाता है। दोनों प्रेमी अपना अलग-अलग अस्तित्व भूलकर एक-दूसरे में समाहित हो जाते हैं; जैसे हल्दी पीली होती है और चूना सफेद, परन्तु दोनों मिलकर एक नया (लाल) रंग बना देते हैं। हल्दी अपने पीलेपन को और चूना सफेदी को छोड़कर एकरूप हो जाते हैं। सच्चे प्रेम में भी ऐसा ही होता है।
काव्यगत सौन्दर्य
- सच्चे प्रेम का स्वरूप, दोनों प्रेमियों का एकरूप हो जाना है।
- भाषा- ब्रज
- शैली- मुक्तक।
- रस- शान्त ।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- दृष्टान्त।
- भाव-साम्य- कबीर के अनुसार प्रेम की सँकरी गली में ‘मैं’ और ‘तू’ दोनों एकाकार होकर ही आ सकते हैं
प्रेम-गली अति सॉकरी, ता में दोन समाहिं।
3. टूटे सुजन ………………………………………………………..…… टूटे मुक्ताहार।
शब्दार्थ- सुजन = सज्जन । पोइय = पिरोना। मुक्ताहार = मोतियों का हार।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में रहीम ने सज्जनों के महत्त्व पर विचार प्रकट किये हैं।
व्याख्या- वे कहते हैं कि यदि सज्जन रूठ भी जायँ तो उन्हें शीघ्र मना लेना चाहिए। यदि सौ बार भी नाराज हों तो भी उन्हें सौ बार ही मनायें; क्योंकि वे जीवन के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। जिस प्रकार सच्चे मोतियों का हार टूट जाने पर उसे बार-बार पिरोया जाता है, उसी प्रकार सज्जनों को भी बार-बार रूठने पर मनाकर रखना चाहिए; क्योंकि वे मोतियों के समान ही मूल्यवान होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
- यहाँ कवि ने सज्जन को मोती के समान बहुमूल्य माना है और उसका साथ बनाये रखने का परामर्श दिया है।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक।
- रस- शान्त ।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- दृष्टान्त और पुनरुक्तिप्रकाश।
4. रहिमन अँसुआ …………………………………………….…………….. भेद कहि देइ।
शब्दार्थ- ढरि = निकलते ही। जाहि = जिसे। गेह = घर।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- कवि रहीम का मत है कि घर से निकाला जानेवाला हर व्यक्ति घर का भेद खोल देता है।
व्याख्या- रहीम जी कहते हैं कि आँसू, आँखों से निकलते ही मन के सारे दुःख प्रकट कर देते हैं। कवि का कथन है कि जिस व्यक्ति को घर से निकाला जायेगा, वह घर के सारे भेद क्यों न कह देगा। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार कोई व्यक्ति घर से निकाले जाने पर घर के सारे भेद दूसरों के सामने खोल देता है, उसी प्रकार से आँखरूपी घर से निकाले जाने पर आँसू भी मन के सारे भेद प्रकट कर देता है। आँसू अपनी उपस्थिति से यह प्रकट करते हैं कि व्यक्ति के हृदय में दुःख है।
काव्यगत सौन्दर्य
- यहाँ कवि ने जीवन का सच्चा अनुभव प्रकट किया है।
- इस सम्बन्ध में एक लोकोक्ति भी प्रचलित है-‘घर का भेदी लंका ढाये’।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक।
- रस- शान्त ।
- अलंकार- दृष्टान्त ।
5. कहि रहीम …………………………………………………………….… साँचे मीत।
शब्दार्थ- संपति = वैभव में। साँचे = सच्चे। मीत = मित्र।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि ने सच्चे मित्र की पहचान बतलायी है।
व्याख्या- कवि रहीम कहते हैं कि जब व्यक्ति के पास सम्पत्ति होती है तो अनेक लोग तरह-तरह से उसके सगे-सम्बन्धी बन जाते हैं, किन्तु जो विपत्ति के समय भी मित्रता नहीं छोड़ते, वे ही सच्चे मित्र होते हैं। इस प्रकार सच्चा मित्र विपत्ति की कसौटी पर सदैव खरा उतरता है।
काव्यगत सौन्दर्य
- संकट में साथ देना ही मित्रता की कसौटी है ।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक ।
- रस- शान्त ।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- अनुप्रास, रूपक।
- भाव-साम्य- गोस्वामी जी ने भी निम्नलिखित पंक्ति में यही भाव व्यक्त किया है
धीरज धरम मित्र अरु नारी। आपति काल परखिये चारी।।
6. जाल परे जल जात बहि …..…….………….…….………….………. तऊ न छाँड़त छोह।
शब्दार्थ- तजि = छोड़कर। मीनन को = मछलियों का। छोह = वियोग।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में मछली को सच्चे प्रेम का आदर्श बताया गया है।
व्याख्या- जब मछली पकड़ने के लिए नदी में जाल डाला जाता है, तब मछली जाल में फँस जाती है और पानी अपनी सहेली मछली का मोह त्यागकर आगे निकल जाता है, परन्तु मछली को जल से इतना प्रेम है कि वह पानी के बिना तड़प-तड़पकर मर जाती है। सच्चे प्रेम की यही पहचान है।
काव्यगत सौन्दर्य
- कवि ने मछली के प्रेम द्वारा सच्चे प्रेम को आदर्श प्रस्तुत किया है।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक।
- रस- शान्त।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- अन्योक्ति।
7. दीन सबन को……………………………………………………………………… सम होय।
शब्दार्थ- दीन = निर्धन । लखत हैं = देखते हैं। दीनबन्धु = परमात्मा।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में रहीमदास जी ने बताया है कि जो व्यक्ति गरीबों के प्रति प्रेम करनेवाला होता है वह परमात्मा के समान है।
व्याख्या- रहीम जी कहते हैं कि निर्धन व्यक्ति तो सबको देखता है अर्थात् सभी के सहयोग का आकांक्षी होता है तथा सभी को सहयोग देता भी है। इसके विपरीत गरीब की ओर किसी का भी ध्यान नहीं होता है। उसकी सभी उपेक्षा करते हैं। जो लोग गरीबों को देखते हैं अर्थात् उनसे प्रेम करते हैं और उनका सहयोग करते हैं, वे दोनों के भाई अर्थात् भगवान् के समान होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य
- रहीमदास जी ने निर्धन व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति और प्रेम प्रदर्शित किया है।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक।
- छन्द- दोहा।
- रस- शान्त।
- गुण- प्रसाद।
- अलंकार- अनुप्रास।
8. प्रीतम छवि नैननि……………………………………………………….………आपु फिरि जाय।
शब्दार्थ- परछबि = दूसरों की सुन्दरता । सराय = यात्रियों के ठहरने का सार्वजनिक स्थान। फिरि जाय = लौट जाता है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि ने ईश्वर के प्रति अपने प्रेम की अनन्यता पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या- रहीम कवि कहते हैं कि मेरे नेत्रों में परमात्मारूपी प्रियतम का सौन्दर्य समाया हुआ है, फिर दूसरे के सौन्दर्य के लिए मेरे नेत्रों में कोई स्थान नहीं है। यदि कोई सराय यात्रियों से भरी रहे तो पथिक उसमें स्थान न पाकर स्वयं लौटकर अन्यत्र चला जाता है।
काव्यगत सौन्दर्य
- प्रेम एकनिष्ठ होना चाहिए।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक
- रस- शृंगार या भक्ति।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- दृष्टान्त ।
- भाव-साम्य- सन्त कबीर भी यही कहते हैं कि जब तक मन में संसार के प्रति आसक्ति है, तब तक उस मन में प्रभु की भक्ति कैसे हो सकती है |
“जब लग नाता जगत का तब लगि भक्ति न होय।”
9. रहिमन धागा प्रेम का……….…………………………………………..गाँठ परि जाय।
शब्दार्थ- तोरेउ = तोड़कर। जुरै = जुड़ता है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि ने कहा है कि प्रेम के सम्बन्धों को कभी भी समाप्त नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- रहीम जी कहते हैं कि प्रेमरूपी धागे को चटकाकर मत तोड़ो। जिस प्रकार धागा एक बार टूट जाने पर फिर नहीं जुड़ता और यदि वह जुड़ भी जाता है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम-सम्बन्ध यदि एक बार टूट जाय तो फिर उसका जुड़ना कठिन होता है। इसको जोड़ने की कोशिश करने पर उनमें दरार अवश्य पड़ जाती है, पहले जैसी बात नहीं रहती, क्योंकि सम्बन्ध सामान्य होने पर भी व्यक्ति को पुरानी याद आती है कि एक समय था, जब इस मित्र ने दुर्व्यवहार किया था। इसलिए प्रेम सम्बन्ध को कभी तोड़ना नहीं चाहिए।
काव्यगत सौन्दर्य
- प्रेम- सम्बन्ध बहुत कोमल होते हैं। इन्हें सावधानीपूर्वक बनाये रखना चाहिए।
- भाषा- ब्रज।
- रस- शान्त ।
- छन्द- दोहा ।
- अलंकार- रूपक।
10. कदली………………………………………………………..……………दीन।
शब्दार्थ- कदली = केले का वृक्ष । भुजंग = सर्प । स्वाँति = स्वाति- नक्षत्र की वर्षा । दीन = मिलता है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत दोहा कवि रहीम की रचना है तथा ‘हिन्दी काव्य’ में ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से उधृत है।
प्रसंग- रहीम संगति के प्रभावों की व्याख्या कर रहे हैं।
व्याख्या- स्वाति नक्षत्र में बरसनेवाली जल की बूंदें तो एक जैसी ही होती हैं, किन्तु संगति के अनुसार उनके स्वरूप और गुण पूर्णतया बदल जाते हैं। वही बूंद केले पर गिरती है तो कपूर बन जाती है, सीप में गिरती है तो मोती बन जाती है और सर्प के मुख में गिरने पर वही विष बन जाती है। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है, क्योंकि जैसी संगति मनुष्य करता है, उसे वैसा ही फल या परिणाम प्राप्त होता है।
काव्यगत सौन्दर्य-
- कवि ने एक लोक-प्रसिद्ध विश्वास को आधार बनाकर संगति के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
- सरल भाषा के माध्यम से कवि ने एक गम्भीर अर्थ की अभिव्यक्ति करायी है।
- शैली चमत्कारपरक और उपदेशात्मक है।
- अनुप्रास तथा दृष्टान्त अलंकारों का सुन्दर उपयोग हुआ है।
11. तरुवर फल नहिं ……………………………………………………..………संचहिं सुजान। (V. Imp.)
शब्दार्थ- सरवर = तालाब। पर = दूसरे । सुजान = सज्जन।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि ने परोपकार की महत्ता को समझाया है।
व्याख्या- रहीम कवि कहते हैं कि वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते हैं। तालाब भी अपने पानी को स्वयं नहीं पीता है। फल और जल का उपयोग तो दूसरे लोग ही करते हैं। इसी प्रकार सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए ही होती है। वे अपनी सम्पत्ति को दूसरों के हित में लगा देते हैं। परोपकाराय सतां विभूतयः‘– में यही सत्य प्रकट हुआ है।
काव्यगत सौन्दर्य
- वृक्ष और तालाब के दृष्टान्त द्वारा मानव को परोपकार की प्रेरणा प्रदान की गयी है ।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक।
- रस- शान्त।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- ‘सम्पत्ति सँचहिं सुजान’ में अनुप्रास है।
12. रहिमन देखि बड़ेन को…………………………………………….……………. कहा करै तरवारि।
शब्दार्थ- लघु = छोटा। तरवारि = तलवार।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि ने समझाया है कि समयानुसार प्रत्येक वस्तु का महत्त्व होता है, चाहे वह बहुत छोटी ही क्यों न हो।
व्याख्या- रहीम कवि कहते हैं कि बड़े लोगों को देखकर छोटों का निरादर नहीं करना चाहिए। उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि जिस स्थान पर सुई काम आती है, उस स्थान पर तलवार काम नहीं कर सकती। इसलिए छोटी चीजें या छोटे लोग भी समय आने पर बड़े काम के होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य-
- छोटी-से-छोटी वस्तु भी महत्त्वपूर्ण होती है।
- भाषा- ब्रज।
- शैली- मुक्तक।
- छन्द- दोहा।
- अलंकार- अनुप्रास और दृष्टान्त ।
13.यों रहीम सुख होत है…………..……….…..……….…..………आँखिन को सुख होत।
शब्दार्थ- गोत = गोत्र, परिवार। बड़ी = बड़ी। निरखि = देखकर।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वारा रचित ‘दोहा’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने गोत्र (जाति) की वृद्धि देखकर बहुत प्रसन्नता होती है।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि जिस प्रकार अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को देखकर व्यक्ति की आँखों को सुख मिलता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार को बढ़ता हुआ देखकर प्रसन्न होता है और उसे अमृद्ध देखकर अपार सुख का अनुभव करता है।
काव्यगत सौन्दर्य
- मानव स्वभाव का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है।
- भाषा- ब्रज
- शैली – मुक्तक
- छन्द- दोहा
- अलंकार- दृष्टान्त।
14. रहिमन ओछे………………………………………… विपरीत।
शब्दार्थ- ओछे = संकुचित स्वभाव के। बैर = शत्रुता । दुहुँ = दो। विपरीत = विरुद्ध, बुरा।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं रहीम द्वरा रचित ‘दोहा’ शीर्षक से अवतरित है।
प्रसंग- कवि तुच्छ प्रकृति के व्यक्तियों से वैर तथा प्यार दोनों ही अनुचित बता रहा है।
व्याख्या- रहीम कहते हैं-जो व्यक्ति संकुचित स्वभावत्राले हैं उन्हें न शत्रुता रखना अच्छा होता है न प्यार करना । कुत्ता चाहे चाटे या काटे, दोनों ही बातें बुरी हैं। काट लेने पर घाव की पीड़ा अथवा मृत्यु हो सकती है। उसके चाटने से शरीर अपवित्र होता है। इसी प्रकार ओछे व्यक्तियों की शत्रुता तथा मित्रता, दोनों ही घातक होती है।
काव्यगत सौन्दर्य
- कवि ने ओछे स्वभाववाले लोगों से वैर और प्रीति, दोनों ही हानिकर बतये हैं जो कि सत्य है।
- भाषा- सरल ब्रजभाषा में अर्थ की विशदता सँजोयी गयी है।
- शैली उपदेशात्मक है।
- अलंकार- अनुप्रास तथा दृष्टान्त अलंकारों की शोभा है।
- गुण- प्रसाद । रस- शान्त।
प्रश्न 2. रहीम का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा रहीम का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा रहीम की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
अथवा रहीम का जीवन-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
रहीम
(स्मरणीय तथ्य)
जन्म- सन् 1556 ई०, लाहौर। मृत्यु- सन् 1627 ई० के लगभग। पिता- बैरम खाँ ।
रचनाएँ- रहीम सतसई’, ‘बरवै नायिका भेद’, ‘मदनाष्टक’, ‘रास पंचाध्यायी’ आदि।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय- नीति, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, श्रृंगार।
रस- श्रृंगार, शान्त, हास्य।
भाषा- अवधी तथा ब्रज, जिसमें अरबी, फारसी, संस्कृत के शब्दों का मेल है।
शैली- नीतिकारों की प्रभावोत्पादक वर्णनात्मक शैली।
अलंकार- दृष्टान्त, उपमा, उदाहरण, उत्प्रेक्षा आदि।
छन्द- दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त, सवैया।
- जीवन-परिचय- रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। ये अकबर के दरबारी कवि थे। इनके पिता का नाम बैरम खाँ था। इनका जन्म सन् 1556 ई० के आस-पास लाहौर में हुआ था जो आजकल पाकिस्तान में है। रहीम अकबर के दरबारी नवरत्नों में से एक थे । कवि होने के साथ-साथ वीर योद्धा और कुशल नायक भी थे। अकबर के प्रधान सेनापति और मन्त्री होने का गौरव भी इन्हें प्राप्त था। इनका स्वभाव अत्यन्त ही उदार था। ये कवियों और कलाकारों का समुचित सम्मान करते थे। रहीम के जीवन का अन्तिम समय अत्यन्त ही कष्ट में बीती था। अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर ने रहीम पर रुष्ट हो उनके ऊपर राजद्रोह का आरोप लगाकर उनकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली थी। रहीम इधर-उधर भटकते रहे, किन्तु कभी आत्मसम्मान नहीं गॅवाया। सन् 1627 ई० में इनकी मृत्यु हो गयी। रहीम अरबी, फारसी, तुर्की और संस्कृत आदि कई भाषाओं के पण्डित तथा हिन्दी काव्य के मर्मज्ञ थे । गोस्वामी तुलसीदास जी से भी इनका परिचय था।
- रचनाएँ- रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, मदनाष्टके, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली तथा बरवै नायिका-भेद आदि रहीम की उत्कृष्ट रचनाएँ हैं। इन्होंने खड़ीबोली के साथ-साथ फारसी में भी रचनाएँ की हैं। रहीम की रचनाओं का संग्रह ‘रहीम-रत्नावली’ के नाम से प्रकाशित हुआ है।
काव्यगत विशेषताएँ
- ( क ) भाव-पक्ष-
- रहीम अत्यन्त ही लोकप्रिय कवि हैं। इनकी नीति के दोहे जन-साधारण की जिह्वा पर रहते हैं।
- अनुभूति की सत्यता के कारण ही इनके दोहों को जनसाधारण द्वारा बात-बात में प्रयुक्त किया जाता है।
- नीति के अतिरिक्त रहीम के काव्य में भक्ति, वैराग्य, श्रृंगार, हास, परिहास आदि के भी बहुरंगी चित्र देखने को मिलते हैं।
- मुसलमान होते हुए भी एक हिन्दू की भाँति इनमें श्रीकृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा है।
- इनके नीति विषयक दोहों में जीवन की गहरी पैठ है।
- बरवै नायिका-भेद में शास्त्रीय ज्ञान की झलक है।
- (ख) कला-पक्ष-
- भाषा-शैली- रहीम की भाषा अवधी और ब्रजी दोनों हैं। ‘बरवै नायिका-भेद’ की भाषा अवधी और रहीम दोहावली’ की भाषा ब्रज है। अरबी, संस्कृत आदि कई भाषाओं के मर्मज्ञ होने के कारण इनकी रचनाओं में उक्त भाषाओं के शब्द प्रयुक्त हुए हैं। उनकी भाषा सरल, स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण है।रहीम की शैली वर्णनात्मक शैली है। वह सरस, सरल और बोधगम्य है। उनमें हृदय को छू लेने की अद्भुत शक्ति है। रचना की दृष्टि से रहीम ने मुक्तक शैली को अपनाया है।
- रस-छन्द-अलंकार- रहीम के काव्य में श्रृंगार, शान्त और हास्य रस का समावेश है। श्रृंगार में संयोग और वियोग दोनों का वर्णन किया है।रहीम के प्रिय छन्दों में सोरठा, बरवै, सवैया प्रमुख हैं। काव्य में प्राय: दृष्टान्त, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
- साहित्य में स्थान-रहीम ने मुसलमान होते हुए भी हिन्दी में जो उत्कृष्ट काव्य की रचना की है उसके लिए हिन्दी में उनका अत्यन्त ही गौरवपूर्ण स्थान है। यद्यपि इन्होंने कोई महाकाव्य नहीं लिखी, किन्तु मुक्तक रचनाओं में ही जीवन की विविध अनुभूतियों के मार्मिक चित्रण मिल जाते हैं और अनुभूतियों की सत्यता के कारण ही वे हिन्दी में अत्यन्त ही लोकप्रिय हो चुके हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. हमारे नेत्रों से आँसू निकलकर क्या प्रकट करते हैं?
उत्तर- हमारे नेत्रों से आँसू निकलकर हृदय के दुःख को प्रकट करते हैं।
प्रश्न 2. रहीम के अनुसार सच्चे एवं झूठे मित्र की क्या पहचान है?
उत्तर- रहीम जी ने सच्चा मित्र उसे माना है जो विपत्ति के समय साथ देता है और झूठा मित्र उसे कहा है जो विपत्ति में किनारा काट लेते हैं।
प्रश्न 3. ‘जुरै गाँठ परि जाय’ के द्वारा कवि ने प्रेम सम्बन्धों की किस विशेषता को बताया है?
उत्तर- रहीम जी कहते हैं कि प्रेम के बन्धन को कभी नहीं तोड़ना चाहिए। यदि एक बार टूट जाता है तो दोबारा जोड़ने पर उसमें गाँठ पड़ जाती है और वह गाँठ कभी खत्म नहीं होती है।
प्रश्न 4. रहीम ने किस प्रकृति के मनुष्य से प्रेम और शत्रुता दोनों घातक बताया है और क्यों?
उत्तर- रहीम ने ओछे प्रकृति के मनुष्य से प्रेम और शत्रुता करना घातक बताया है क्योंकि ओछी प्रकृति का मनुष्य कभी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। ऐसे व्यक्ति से सदा सावधान रहने की जरूरत होती है।
प्रश्न 5. कौन दीनबन्धु के समान होता है?
उत्तर- कवि रहीम के अनुसार जो व्यक्ति दीन व्यक्तियों के प्रति दया-भाव रहता है, वही दीनबन्धु के समान होता है।
प्रश्न 6. रहीम ने झूठे तथा सच्चे मित्र की क्या पहचान बतायी है?
उत्तर- रहीम कवि बताते हैं कि सच्चे मित्र की परीक्षा विपत्ति के समय में होती है। अच्छे दिनों में तो बहुत-से लोग मित्र बन जाते हैं परन्तु सच्चा मित्र वही होता है जिसे विपत्ति की कसौटी पर कस लिया जाय। झूठे मित्र विपत्ति में पास नहीं आते, किन्तु सच्चा मित्र वही होता है जो विपत्ति में भी मित्र की सहायता करता है। झूठा मित्र तो जल के समान होता है। मछली जाल में फंस जाती है तो जल मछली को छोड़कर आगे बह जाता है उसे मछली पर तरस नहीं आता। वह झूठा मित्र है। दूसरी ओर मछली है। जो जल से बिछुड़कर उसके वियोग में अपने प्राण तक दे देती है। सच्चा मित्र मछली के समान होता है।
प्रश्न 7. रहीम किस प्रकार की प्रीति की सराहना करने को कहते हैं?
उत्तर- रहीम उस प्रीति की सराहना करने को कहते हैं जो मिलन होने पर और अधिक चमक उठती है।
प्रश्न 8. जल के प्रति मछली के प्रेम की क्या विशेषता है?
उत्तर- मछली को जल से इतना प्रेम है कि वह जल से अलग होकर मर जाती है।
प्रश्न 9. ‘टूटे सुजन मनाइये, जौ टूटे सौ बार’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- रहीम जी का कहना है कि यदि सज्जन व्यक्ति रूठ जाय तो उसे बार-बार मनाना चाहिए।
प्रश्न 10. कुसंग का किस प्रकृति के लोगों पर प्रभाव नहीं पड़ता।
उत्तर- कुसंग का उत्तम प्रकृति के लोगों पर प्रभाव नहीं पड़ता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. नेत्रों से निकला हुआ आँसू क्या प्रकट करता है?
उत्तर- नेत्रों से निकला हुआ आँसू दुःख प्रकट करता है।
प्रश्न 2. रहीम ने किस भाषा में काव्य का सृजन किया है?
उत्तर- रहीम ने ब्रजभाषा में काव्य का सृजन किया है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए
(अ) कुसंग का सज्जनों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। (√)
(ब) धन का संचय सज्जन दूसरों के लिए करते हैं। (√)
(स) ओछे लोगों से प्रेम रखना चाहिए। (×)
(द) सज्जन यदि रूठ जाय तो उसे नहीं मनाना चाहिए। (×)
प्रश्न 4. रहीम की दो रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर- रहीम सतसई तथा श्रृंगार सतसई।
प्रश्न 5. रहीम का पूरा नाम क्या था?
उत्तर- रहीम को पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था।
प्रश्न 6. रहीम को किस प्रकार का अमृत पीना अच्छा नहीं लगता?
उत्तर- रहीम को बिना मान का अमृत पीना अच्छा नहीं लगता।
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित में लक्षण बताते हुए अलंकार का नाम लिखिए-
(अ) बनत बहुत बहु रीति।
(ब) रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।
उत्तर-
(अ) इस पंक्ति में अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
(ब) इस पंक्ति में शब्दों की आवृत्ति बार-बार होने से अनुप्रास अलंकार है।
2. निम्नलिखित का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-
(अ) टूटे सुजन……………टूटे मुक्ताहार ।
(ब) बिपति कसौटी…………….साँचे मीत
(स) रहिमन देखि…………..दीजिए डारि ।
उत्तर-
- (अ) काव्य-सौन्दर्य-
- सज्जनों की मित्रता बड़ी मूल्यवान है, अतः उसकी हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए।
- अलंकार-पुनरुक्तिप्रकाश, दृष्टान्त।
- भाषा- सरल ब्रजभाषा ।
- शैली- वर्णनात्मक।
- छन्द- दोहा।
- रस- शान्त।
- गुण- प्रसाद।
- (ब) काव्य-सौन्दर्य-
- कविवर रहीम का मानना है कि विपत्ति के समय जो साथ देता है, वही सच्चा मित्र है।
- अलंकार- अनुप्रास, दृष्टान्त।
- छन्द- दोहा।
- गुण- प्रसाद ।
- भाषा- ब्रजभाषा
- रस- शान्त।
- (स) काव्य-सौन्दर्य-
- कविवर रहीम का विचार है कि बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु का त्याग नहीं करना चाहिए।
- अलंकार- उपमा।
- छन्द- दोहा।
- गुण- प्रसाद।
- भाषा- ब्रजभाषा।
- रस- शान्त ।
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