यह नियम बताता है की ” दो चुम्बकीय ध्रुवों के बीच लगने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण का बल दोनों चुम्बक की ध्रुव प्रबलता के गुणनफल के समानुपाती तथा दोनों ध्रुवों के मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है ”
माना किसी चुम्बक के ध्रुवों की प्रबलताओं का मान m1 तथा m2 है। तथा दोनों ध्रुवों के मध्य की दूरी r है तो कुलॉम के नियम के अनुसार दोनों ध्रुवों के मध्य लगने वाला बल
F ∝ m1m2
F ∝ 1/r2
F ∝ m1m2/r2
समानुपाती का चिह्न हटाने पर
F = K m1m2/r2
यहाँ K एक स्थिरांक है जिसे चुम्बकीय बल नियतांक कहते है।
K = μ0/4π
SI मात्रक पद्धति में K का मान
K = μ0/4π = 10-7 Wb A-1 m-1
अतः
F = (μ0/4π ) m1m2/r2
इस नियम को कूलॉम का नियम कहते है यह चुम्बकीय बल से सम्बन्धित है यह अवश्य याद रखे क्योंकि कुलॉम का नियम कुछ ऐसा ही हमने स्थिर वैद्युतिकी में भी पढ़ा था।
CGS मात्रक पद्धति में का मान 1 होता है।
यदि m1 = m2 = 1 तथा r = 1 तो F = 10-7 N
अतः
हम कह सकते है की एकांक दूरी पर रखे समान प्रबलता के दो ध्रुवो के मध्य लगने वाला बल 10-7 N होता है।
नोट : चुम्बक के ध्रुव की प्रबलता का मात्रक एम्पीयर-मीटर (Am) होता है।
चुम्बक में उत्तरी ध्रुव की प्रबलता (m) धनात्मक होती है अतः यह धन आवेश की भांति व्यवहार करता है ठीक इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव की प्रबलता (m) ऋणात्मक होती है अतः यह ऋण आवेश की भाँति व्यवहार करता है।
Remark:
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