Essay on Dussehra in Hindi: दशहरा या विजयदशमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति के वीरता का पूजक, शौर्य का उपासक है। आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला दशहरा यानी आयुध-पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है।
Essay on Dussehra in Hindi
दशहरा या दसेरा शब्द ‘दश'(दस) एवं ‘अहन्’ से बना है। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है।
प्रस्तावना-
भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का ठिकाना हमें नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। तो कुछ लोगों के मत के अनुसार यह रण यात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाते हैं, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि सहेज कर में रखे जाने वाले हो जाते हैं।
इस उत्सव का संबंध नवरात्रि से भी है क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह उत्सव होता है और इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख मिलता है। दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था।
दशहरा का अर्थ:-
“दशहरा” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘दश- हर’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ दस बुराइयों से छुटकारा पाना है। दशहरा उत्सव, भगवान् श्रीराम का अपनी अपहृत पत्नी को रावण पर जीत प्राप्त कर छुड़ाने के उपलक्ष्य में तथा अच्छाई की बुराई पर विजय, के प्रतीकात्मक रूप में मनाया जाता है।
दशहरा का मेला:
दशहरा से दस दिन पहले से रामलीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। दशहरे का महत्त्व रामलीलाओं के कारण सुविख्यात है। भारत के हर शहर एवं गाँव में रामलीला दिखाई जाती है। दिल्ली में तो हर कॉलोनी में रामलीला होती है। परंतु दिल्ली गेट के नज़दीक रामलीला ग्राउण्ड की रामलीला सर्वाधिक मशहूर है। वहाँ पर दशहरे वाले दिन प्रधानमंत्री स्वयं रामलीला देखने आते हैं। उनके साथ अन्य मंत्रीगण एवं अधिकारी भी होते हैं। उनके अलावा वहाँ लाखों लोगों की भीड़ होती है। दशहरे के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है। उस दिन रावण, कुम्भकर्ण एवं मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं।
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दरअसल, अधिकांश लोग तो इन्हीं पुतलों को देखने आते हैं। रामलीला के अलावा, दशहरे के दिन आतिशबाजी भी खूब होती है जो दर्शकों का मन मोह लेती है। कई शहरों में तो आतिशबाजी की प्रतियोगिता होती है जिनमें आगरा शहर प्रमुख है। वहाँ पर कई शहरों से आतिशबाज आते हैं और जिसकी आतिशबाजी सबसे अच्छी होती है, उसे
ईनाम दिया जाता है। आतिशबाजी दिखाने के बाद रामचंद्र जी रावण का वध करते हैं। फिर बारी-बारी से पुतलों में आग लगाई जाती है। पहले कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। उसके बाद मेघनाद के पुतले में आग लगाई जाती है और सबसे बाद में रावण के पुतले में आग लगाई जाती है।
रावण का पुतला सबसे बड़ा होता है। उसके दस सिर होते हैं और उसके दोनों हाथों में तलवार और ढाल होती है। रावण के पुतले को श्रीराम अग्निबाण से जलाते हैं। रावण के पुतले में आग लगने के पश्चात् सभी दर्शक अपने-अपने घरों को चल पड़ते हैं।
प्राचीन काल में दशहरा
प्राचीन काल में राजा, महाराजा इस दिन अपनी विजय के लिए प्रार्थना करते थे और रण यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, लोभ, हिंसा, क्रोध, मोह, माया, अहंकार, आलस्य, मत्सर, ओर चोरी जैसे अवगुणों को त्यागने की प्रेरणा हमें देता है।
आज के समय में दशहरा-
आज के दिन में भी लोग अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते है। दशहरे के पवित्र दिन लोग अपने नए कार्यों की शुरुवात करते है। इस दिन क्षत्रियों के यहां शस्त्र की पूजा होती है।लोग ओर अपने उपकर्णों, शस्त्र, ओर वाहनों की पूजा करते है। बच्चे, बड़े सभी अपने अपने घरों में रावण का पुतला बनाते है और उसे जलाते है।
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राम और रावण का युद्ध-
राक्षस रावण अपनी बहन का बदला लेने के लिए भगवान श्री राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। देवी सीता को बचाने के लिए श्री राम लंका गए और वहां उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया था। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। श्री राम की विजय के उपलक्ष्य में इस पर्व को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है।
असत्य पर सत्य की जीत
भगवान श्री राम ने इसी दिन असुर रावण का वध किया था। इस दिन को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते है, लोग इस दिन को बहुत शुभ मानते है और अपने नए कार्य का प्रारंभ करते है और नई नई चीजे खरीदते है, इस दिन शस्त्र-पूजा, वाहन पूजा की जाती है।
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निष्कर्ष-
बुराई पर अच्छाई की विजय, के उपलक्ष्य में इस दिन रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
दशहरे का त्यौहार असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय भी कहा जाता है। इस दिन श्रीराम ने बुराई के प्रति रावण का संहार किया था।
अत: हमें भी अपनी बुराइयों को त्याग कर अच्छाइयों को स्वीकार करना चाहिए, तभी इस दिन की वास्तविक महिमा व गरिमा स्थापित हो सकती है।