Fasal Kise Kahate Hain:हेलो स्टूडेंट्स, आज हमने यहां पर फसल की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण के बारे में विस्तार से बताया है।Fasal Kise Kahate Hain यह हर कक्षा की परीक्षा में पूछा जाने वाले यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
Fasal Kise Kahate Hain
भारत में प्राचीनकाल से ही कृषि कार्य किया जा रहा है, जिसके कारण भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है|Fasal Kise Kahate Hain यहाँ तक कि भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनानें में कृषि का अहम् अहम योगदान रहा है| भारत में कृषि की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसकी प्रमाणिक पुष्टि करना काफी कठिन है| हालाँकि भारत में कृषि लोगो के लिए जीविका का साधन ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी है|
हम सभी जानते है, कि पृथ्वी पर किसी भी जीव को जीवित रहनें के लिए आवश्यक आवश्यकताओं के अंतर्गत भोजन की आवश्यकता होती है| हालाँकि प्राचीन काल में मानव को कृषि के बारें में कोई जानकारी नहीं थी और वह आपनी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं से उगी हुई वनस्पतियों एवं पेड़ – पौधों से भोजन प्राप्त करता था। धीरे-धीरे जनसँख्या में वृद्धि होनें लगी और मानव सभ्यता का विकास हुआ|Fasal Kise Kahate Hain मनुष्य नें आपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करनें के लिए कृषि कार्य करना प्रारंभ कर दिया|
समय के साथ-साथ मानव का मानसिक विकास हुआ और जनसंख्या में वृद्धि होनें लगी| जिसके कारण मनुष्य की भोजन सम्बन्धी आवश्यकतायें बढ़नें लगी और अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए मानव नें एक निश्चित समयबद्ध कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों को उगानें पर ध्यान केन्द्रित किया| मनुष्य अपनें भोजन की आवश्यकता को पूर करनें के लिए एक योजना के अनुसार जिन पेड़ पौधों का उत्पादन करता है, उसे फसल कहते हैFasal Kise Kahate Hain| दूसरे शब्दों में एक बड़े क्षेत्रफल में पौधों का वह समूह जो भोजन की पूर्ति के साथ ही आर्थिक लाभ की दृष्टि से उगाया जाता है, फसल कहलाता है।
भारत में फसलों के प्रकार (Types Of Crops In India)
भारत में मौसम के आधार पर 3 प्रकार की खेती की जाती है, जो इस प्रकार है-
1.खरीफ की फसल (Kharif Crop)
देश में खरीफ की फसल को मानसून के मौसम अर्थात जून और जुलाई के महीने में उगाई जाती है, इन फसलों को वर्षा ऋतु की फसलें भी कहते हैFasal Kise Kahate Hain| खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों के लिए बुवाई के समय हवा में नमी के साथ ही सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि फसल को अच्छी तरह से पकनें के लिए तापमान में गर्मीं अर्थात अधिक धूप की जरुरत होती है| खरीफ की फसलों में धान, मक्का, बाजरा, मूंगफली, उड़द, मूंग, मूंगफली, जूट आदि फसलें शामिल है|
2.रबी की फसल (Rabi Crop)
रबी की फसलों को मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम अर्थात अक्टूबर – नवम्बर में उगाया जाता हैFasal Kise Kahate Hain| रबी की फसलों को उगानें के लिए कम तापमान के साथ ही कम पानी की जरुरत होती है, जबकि फसलों को पकनें के लिए अधिक गर्मी और प्रकाश की आवश्यकता होती है| मुख्य रूप से रबी की फसलों को अक्टूबर महीनें के बाद ही बोया जाता है| मसूर, सरसो, चना, मटर, सरसों, जौ, आलू, तम्बाकू, गन्ना, चुकन्दर आदि फसलें रबी की फसलें होती है|
3.जायद की फसल (Zaid Crop)
खरीफ की फसल और रबी की फसल के बीच में बचनें वाले समय के दौरान जिन फसलों का उत्पादन किया जाता है, उन्हें जायद की फसलें कहते है| दरअसल इस मौसम में बोयी जानें वाली फसलों को पकनें में बहुत ही कम समय लगता है| Fasal Kise Kahate Hain जायद की फसलों का उतपादन मुख्य रूप से मार्च से जून माह के बीच में किया जाता है| इसमें ककड़ी, खीरा, तरबूज, तरोई, खरबूजा और टमाटर आदि जैसी फसलें शामिल है|
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फसलों का वर्गीकरण (Classification Of Crop)
भारत में फसलों का उत्पादन मौसम, आवश्यकता और आर्थिक महत्व, वानस्पतिक समानताओं और जीवन चक्र के आधार पर किया जाताFasal Kise Kahate Hain है, इसके अनुसार फसलों को वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार है-
- मौसम या ऋतुओं के आधार पर
- उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर
- जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- फसलों का वनस्पतिक वर्गीकरण
- विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- फसलों का सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण
- औद्योगिक महत्व के आधार पर
1.मौसम या ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Depending on The Season or Season)
भारत में मौसम के आधार पर उत्पादित की जानें वाली फसलों को 3 वर्गों में बांटा गया है, जो इस प्रकार है-
क्र०स० फसल का नाम
1. खरीफ की फसलें ( Kharif Crops)
2. रबी की फसलें ( Rabi Crops )
3. जायद की फसलें ( Zaid Crops)
2. उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर (On The Basis Of Usage & Economic Importance)
उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर उगायी जानें वाली फसलों को इस प्रकार विभाजित किया गया है-
क्र०स० फसल का नाम
1. अनाज की फसलें
2. दलहनी फसलें
3. तिलहनी फसलें
4. फलदार फसलें
5. रेशे की फसलें
6. मिर्च एवं मसाले वाली फसलें
7. औषधीय फसलें
8. चारे की फसलें
9. शाकथाजी की फसलें
10. स्टार्च वाली फसलें
11. शर्करा की फसलें
12. उत्तेजक फसलें
13. छोटे दाने वाली फसलें
14. जड़ तथा कन्द वाली
3.जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification Of Crops Based On Life Cycle)
वर्तमान समय में अवधि के अनुसार उगनें वाली फसलों की अनेक जातियाँ विकसित हो चुकी हैं|Fasal Kise Kahate Hain इसमें से कुछ फसलों का जीवनकाल कम समय का होता है, जबकि कुछ फसलों के पौधों की जीवनकाल अवधि लम्बी होती है| पौधों के जीवन काल में लगने वाली इस अवधि के आधार पर ही फसलों को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है-
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क्र०स० फसल का नाम
1. एकवर्षीय फसलें (Annual crops)
2. द्विवर्षीय फसलें (Biennial crops)
3. बहुवर्षीय फसलें (Perennial crops)
4.फसलों का वानस्पतिक वर्गीकरण (Botanical Classification of Crops)
5.विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification of Crops on The Basis of Special Use)
फसलों को उनके विशेष उपयोग के आधार पर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है-
क्र०स० फसल का नाम
1. नकदी फसलें
2. अन्तर्वर्ती फसलें
3. सहयोगी फसलें
4. वीथी फसलें
5. शिकारी फसलें
6. बम्पर क्राप तथा क्राप फेलयोर
7. रिले क्रापिंग
6. फसलों का सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण (Scientific Classification of Crops)
किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए उसकी बुवाई से लेकर कटाई तक खेत में विभिन्न सस्य क्रियाएं की जाती हैFasal Kise Kahate Hain| इन क्रियाओं को निर्धारित करने वाले प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार है-
1. फसल का चुनाव
2. भूमि का चुनाव
3. मौसम विज्ञान
4. उपयुक्त फसल चक्र
5. मिलवा खेती
6. सिंचाई प्रबंध
7. कृषि श्रमिकों की उपलब्धता
8. कृषि संसाधनों का प्रबंध
औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
- सब्जी उद्योग (Vegetable Industry)
- औषधि उद्योग (Pharmaceutical Industry)
- फल एवं फूल उद्योग (Fruit and flower industry)
- रंग व सुगन्ध उद्योग (Colour and Aroma Industries)
- जूट व पैकिंग उद्योग (Jute & Packing Industries)
- काफी या कहवा उद्योग (Coffee Industry)
- आटा मिल (Flour Mill)
- शीतल पेय उद्योग (Soft Drink Industry)
- रसायन और तेल उद्योग (Chemical & Oil Industry)
- सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग (Cosmetics Industry)
- चीनी उद्योग (Sugar Industry)
- हथकरघा उद्योग (Handloom Industry)
फसल चक्र से लाभ (Benefit From Crop Rotation)
- फसल चक्र को अपना कर मिट्टी की रासायनिक, भौतिक और जैविक गुणों को बेहतर किया जा सकता है।
- फसल चक्र के अनुसार खेती करने से भूमि में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ जातीFasal Kise Kahate Hain है|
- खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ानें में फसल चक्र का बहुत ही अहम् योगदान होता है|
- सघन फसल चक्र अपनाने से खेत में जीवांश की मात्रा बढ़नें के साथ ही खरपतवार की समस्या कम होती है।
- कृषि योग्य भूमि में जल को सोखनें की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे खेत की मिट्टी में विषाक्त पदार्थ एकत्र नहीं होते है|
- फसल चक्र प्रक्रिया अपनानें से मिट्टी में पनपने वाले विभिन्न प्रकार के रोग एवं कीटों पर नियंत्रण होता है।
- क्राप रोटेशन का सबसे बड़ा लाभ यह है, इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है।
- खेत में अधिक सिंचाई नहीं करनी पड़तीFasal Kise Kahate Hain है|
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