Guru Nanak Dev Ji Essay In Hindi:दिवाकर का प्रखर ताप जब जल स्रोतों को सूखा देता है, धरा पर मानव और पक्षी सभी व्याकुल हो जाते हैं, शस्य-श्यामला सूख जाती है तब पावस की धार इस संताप से मुक्ति दिलाती है। इसी प्रकार जब जनता अन्याय और अत्याचार की चक्की में पिसने लगती है तो इस चक्की की गति को स्थिर करने के लिए कोई महामानव जन्म लेता है।
Guru Nanak Dev Ji Essay In Hindi
जिस समय मुसलमान-आततायी के अत्याचार से भारतीय जनता पीड़ित थी, धर्म आडम्बर और पाखंड के पंक में डूब गया था, अन्धविश्वास और भेदभाव का विष मानवता के शरीर मे फैल रहा था, उस समय सिख धर्म के प्रर्वतक आदि गुरु महामानव गुरु नानक देव का जन्म हुआ।
प्रस्तावना
भारत एक धार्मिक देश रहा है। भारत के गुरुओं ने मानव जाति को उनके कल्याण के लिए एक आध्यात्मिक संदेश दिया है। जब भी मनुष्य अज्ञानता में भटक कर अन्धकार की ओर बढ़ने लगता है, तब एक ज्ञानी मनुष्य अपने ज्ञान के प्रकाश से उन्हें मार्ग दिखाने के लिए इस पृथ्वी पर आता है। ऐसे में गुरु नानक देव इस भूमि पर अवतरित हुए।
तत्कालीन मानव को शांति और सच्चाई का मार्ग दिखाने के लिए गुरु नानक देव ने जिस मानव संगठन की शुरुआत की थी, उसका नाम शुरू में नानक पंथ था और बाद में यह सिख धर्म और खालसा पंथ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। गुरु नानक मध्य युग के एक धार्मिक वास्तुकार, एक क्रांतिकारी सुधारक, एक महान युग निर्माता, एक कट्टर देशभक्त, उत्पीड़ितों के हितैषी और एक दूरदर्शी राष्ट्रीय निर्माता थे।
जन्म और वंश परिचय
गुरु नानक का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को 1469 में लाहौर से पंद्रह कोस दूर तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, जिसे अब ‘ननकाना साहिब’ कहा जाता है। यह जगह अब पाकिस्तान में है। नानक के पिता, कालू चंद्र वेदी, तलवंडी के राजपूत शासक के प्रबंधक थे। नानक की बड़ी बहन को उनके नाना के घर जन्म के कारण नानकी कहा जाता था। उनके नाम के अनुसार लोग उन्हें नानक कहने लगे।
भारत एक धार्मिक देश रहा है। भारत के गुरुओं ने मानव जाति को उनके कल्याण के लिए एक आध्यात्मिक संदेश दिया है। जब भी मनुष्य अज्ञानता में भटक कर अन्धकार की ओर बढ़ने लगता है, तब एक ज्ञानी मनुष्य अपने ज्ञान के प्रकाश से उन्हें मार्ग दिखाने के लिए इस पृथ्वी पर आता है। ऐसे में गुरु नानक देव इस भूमि पर अवतरित हुए।
तत्कालीन मानव को शांति और सच्चाई का मार्ग दिखाने के लिए गुरु नानक देव ने जिस मानव संगठन की शुरुआत की थी, उसका नाम शुरू में नानक पंथ था और बाद में यह सिख धर्म और खालसा पंथ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। गुरु नानक मध्य युग के एक धार्मिक वास्तुकार, एक क्रांतिकारी सुधारक, एक महान युग निर्माता, एक कट्टर देशभक्त, उत्पीड़ितों के हितैषी और एक दूरदर्शी राष्ट्रीय निर्माता थे।
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बचपन
नानक बचपन से ही प्रतिभाशाली और असाधारण व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। नानक बचपन से ही ऋषि और साधुओ की तरह बैठकर उन्हीं की तरह बातें किया करते थे। उन्हें एकांत बहुत पसंद था। वे एकांत में चले जाते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे। आठ साल की उम्र में उन्हें पढ़ने के लिए भेजा गया था। वह ऊंची-ऊंची बातें करते थे, लेकिन पढ़ने-लिखने में उनका मन नहींलगता था।
ग्रस्त जीवन
जब नानक बड़े हुए तो उनके पिता ने उनकी शादी कर दी क्योंकि वह उन्हें किसी तरह के घरेलू काम में लगाना चाहते थे। उनके पिता ने उन्हें खेती की देखभाल करने के लिए कहा लेकिन उनका खेती करने का मन नहीं कर रहा था। वे उन्हें किसी नौकरी के लिए रखवाना चाहते थे लेकिन उन्हें नौकरी करने से इनकार कर दिया। फिर उन्हें व्यपार के कार्य में लगाया गया।
एक दिन उनके पिता ने उन्हें ₹40 देकर लाहौर भेज दिए और उससे वास्तविक सौदा करने को कहा। साधुओं का एक दल रास्ते में जा रहा था। उसने देखा कि साधु भूखे थे। उन्हने सोचा कि पिताजी ने एक स्पष्ट सौदा के लिए कहा था। किसी भूखे को खाना खिलाने से बड़ी बात और क्या हो सकती है? इसलिए उन्हने सारा पैसा ऋषि-मुनियों को खिलाने में खर्च कर दिया और खाली हाथ घर लौट आये।
घर-त्याग और अलगाव
नानक के पिता के बहुत प्रयासों के बाद भी नानक के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। उनकी प्रवृत्ति गृहस्थ के सामाजिक कार्यों में नहीं लगती थी। ऋषि-मुनियों का संग उन्हें प्रिय था। कई दिनों तक वह घर नहीं लौटा करते थे। एक दिन उन्होंने घर को पूरी तरह त्याग दिया और एक सत्संग में शामिल हो गए।
वह एक जगह से दूसरी जगह जाकर लोगों को सत्संग सुनाया करते थे, जो भी उनके संपर्क में आता था वह उनका शिष्य बन जाता था। उनके पिता ने उन्हें समझाने और वापस लाने के लिए सरदाना नाम के एक गायक को भेजा, लेकिन नानक को भी भजन कीर्तन के लिए एक गायक की जरूरत थी। जैसे ही सरदाना नानक के संपर्क में आए, वे उनके शिष्य बन गए और वे स्वयं कभी वापस नहीं गये।
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गुरु नानक जी का दर्शन
नानक देव ने परम्परागत रूप से चली आ रही मूर्ति पूजा की परम्परा का विरोध किया. वे सर्वेश्वरवाद के समर्थक थे. उन्होंने सनातन में एकेश्वरवाद अर्थात अलग अलग ईश्वरों को मानने की बजाय एक ही ईश्वर का ध्यान करने का संदेश दिया.
मानव मात्र के प्रतीक नानक देवजी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों एवं आडम्बरों का भी पुरजोर विरोध किया. उन्होंने धर्म के अलावा राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी स्थितियों के सुधार का मार्ग सुझाया.
वे नारी सम्मान के पक्षधर थे उन्होंने अपनी लेखनी में भी नारी को उच्च स्थान दिया. वे हिन्दुओं और मुसलमानों को मिलकर रहने तथा अलग अलग मत होने के बावजूद उनमें आपसी सामजस्य स्थापना के पक्षधर थे.
शिक्षा और चमत्कार
इनके बचपन से अनेक चमत्कारित घटनाएँ भी जुड़ी हुई हैं। इन्हें सात वर्ष की आयु में पंडित के पास पढ़ाई के लिए भेजा गया। उन्हें सांसारिक शिक्षा अच्छी नहीं लगी। वह पांधे को ही ‘ॐ’ का पाठ पढ़ा आए।
एक बार गुरु नानक जी को भैसें चराने के लिए भेजा गया। ईश्वर के भजन में डूब गए और भैसे सारा खेत चर गईं। खेत के मालिक ने सरपंच और उनके पिता जी से शिकायत की। जब मालिक उन दोनों को लेकर वहाँ पहुँचा तो सारा खेत उसी तरह लहलहा रहा था।
सच्चा सौदा करना
पिता ने उन्हें अनेक काम-धंधों में लगाने का प्रयत्न किया लेकिन उनका मन नहीं लगा। एक बार पिता जी ने आप को बीस रुपये देकर ‘सच्चा सौदा’ करने भेजा। रास्ते में इन्हें कुछ भूखे साधु मिले। गुरु जी ने उन पैसों से उन्हें भरपेट भोजन करवा दिया और घर वापस लौट आए। पिता के पूछने पर उन्होंने कहा कि “मैं सच्चा सौदा कर आया हूँ।” उनकी किसी सांसारिक कार्य के प्रति कोई रुचि न थी। इस स्वभाव से उनके पिता रुष्ट रहने लगे। प्रभु भक्ति में मग्न रहने के कारण उन्हें कई बार अपने पिता की डाँट सहनी पड़ी।
मोदी खाने में नौकरी
इस बात का पता जब उनकी बड़ी बहन नानकी को चला तब वह उन्हें अपने साथ सुल्तानपुर ले गईं। उन्हें दौलत खाँ लोधी के मोदीख़ाने में नौकरी पर लगा दिया। सुल्तानपुर में उनकी मरदाना नामक व्यक्ति से मित्रता हो गई। दिन को ये कार्य करते और रात्रि को मरदाना के साथ भजन व प्रभु का नाम सिमरन किया करते थे।
सच्ची कमाई का उपदेश
ऐमनाबाद लालो बढ़ई के घर ठहरे। ग़रीब लालो बढ़ई ने गुरु जी की बहुत सेवा की। उसी नगर में एक धनवान व्यक्ति मलिक भागो रहता था। उसने गुरु जी को यह कह कर निमन्त्रण दिया कि ‘यहाँ रूखी-सूखी रोटी खा रहे हो, आप मेरे घर आइए और छत्तीस तरह के पकवान खाइए।’ उनके घर न आने पर मलिक भागो ने गुरु जी से कारण पूछा तो गुरु जी ने लालो बढ़ई और मलिक भागो के घर से रोटियाँ मँगवाकर अलगअलग हाथों में पकड़कर निचोड़ी तो लालो बढ़ई की रोटी से दूध और मलिक की रोटी से खून की धारा बहने लगी। नानक ने उत्तर दिया “मेहनत की कमाई से बना हुआ भोजन ही मुझे अच्छा लगता है”।
गुरु जी की उदासियाँ
गुरु नानक देव जी मरदाना के साथ फ़कीर बनकर देश में घूमते रहे और आत्म-कल्याण का उपदेश दिया। गुरु जी ने पच्चीस वर्ष उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चार दिशाओं में भ्रमण किया। जिन्हें चार उदासियाँ कहा जाता है।
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मुख्य उपदेश
इसके बाद गुरु जी करतारपुर में आकर रहने लगे। वहाँ पर भी नानक जी गृहस्थी होते हुए भी बैरागियों की तरह रहने और उपदेश देने लगे। वे अपने समय के समाज-सुधारक थे। उन्होंने ईश्वर को निराकार और सभी को उसकी संतान बताया। उन्होंने छूआछूत, पाख़ण्डों और अन्धविश्वासों का खण्डन किया। गुरु जी ने “परिश्रम करना, दूसरों की सेवा करना, मानव प्रेम, मेहनत करो और बाँट कर खाओ” को बढ़ावा दिया। संगत में पंगत की रीत भी उन्होंने शुरू की। उनके उपदेशों में ऐसा चमत्कार था कि सभी देशों और जातियों के लोग उनके शिष्य बनते रहे। उनके उपदेशों की भाषा बड़ी सीधी-सादी और शैली सरल है। जिसको प्रत्येक व्यक्ति समझ सकता है। इनकी वाणी “श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में संकलित है।”
उपसंहार
जीवन के अन्तिम समय में गुरु नानक बेईं के किनारे करतारपुर में रहने लगे, जहां उन्होंने स्वयं खेती की तथा लोगों को कर्म करने की प्रेरणा दी। गुरु अंगददेव को उन्होंने गुरुगद्दी दी और 7 सितम्बर 1539 ई. में ज्योति ज्योत समा गए। गुरु नानक प्रकाश पुंज थे, आलौकिक पुरुष थे और सच्चे अर्थों में महा मानव थे।