जब एक धारावाही परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके अन्दर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है , माना धारावाही परिनालिका में n फेरे लिपटे हुए है तथा I धारा प्रवाहित हो रही है तो परिनालिका में अक्ष के अनुदिश चुम्बकीय क्षेत्र B = nI होगा।
परिनालिका के भीतर एक लोह चुम्बकीय पदार्थ रखते है जो की चुम्बकीय क्षेत्र के कारण चुम्बकित हो जाता है।
अब धीरे धीरे धारा के मान को परिवर्तित करते है तथा दिशा परिवर्तित करते है तथा इससे चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है इस परिवर्तन से चुम्बकीय तीव्रता में क्या परिवर्तन होता है इसके लिए हम ग्राफ खीचकर अध्ययन करेंगे।
चुम्बकीय क्षेत्र B तथा चुंबकीय तीव्रता H के मध्य खिंचा गया ग्राफ ही B-H वक्र या चुम्बकीय शैथिल्य वक्र कहते है।
जब धारा I का मान बढाया जाता है तो चुम्बकीय तीव्रता H का मान बढ़ता है जिससे पदार्थ में चुम्बकत्व B का मान भी बढ़ता है यह ग्राफ सीधी रेखा में न आकार कुछ टेढ़ा प्राप्त होता है जिसे चित्र में डैश लाइन (—) से प्रदर्शित किया गया है , बिन्दु a पर जाकर इसका मान अधिकतम हो जाता है।
अब धारा धीरे धीरे कम करने पर तीव्रता कम होती जाती है लेकिन लोह चुम्बकीय पदार्थ में चुम्बकत्व बना रहता है इसलिए यह कुछ बना रहता है अब चुम्बकीय क्षेत्र शून्य पर भी पदार्थ में चुम्बकन का मान कुछ मान बना रहता है इससे हमें b बिन्दु प्राप्त होता है।
अब हम दिशा को परिवर्तित कर देते है।
अब उल्टे दिशा में धारा का मान बढ़ाते है जिससे चुम्बकीय क्षेत्र का मान बढ़ता है जिससे वस्तु पर चुम्बकत्व का मान घटता जाता है , H के एक निश्चित मान के लिए चुम्बकत्व का मान शून्य हो जाता है जिसे बिन्दु c प्राप्त होता है।
अभी भी धारा का मान बढ़ाने पर भी चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ता है जिससे पदार्थ चुम्बकित होता है बिन्दु d पर चुम्बकन का मान अधिकतम हो जाता है।
अब धारा धीरे धीरे घटाने पर चुंबकीय क्षेत्र कम होता जाता है लेकिन पदार्थ पर चुम्बकत्व का मान लगभग बना रहता है , चुम्बकीय क्षेत्र शून्य की उपस्थिति में भी पदार्थ चुम्बकित रहता है जिससे हमें e बिन्दु प्राप्त होता है।
अब धारा का मान पुन: बदलने पर धारा का मान बढ़ाने पर हमें चुम्बकीय तीव्रता के किसी मान पर पदार्थ पर शून्य चुम्बकत्व प्राप्त होता है जिससे बिन्दु f मिलता है।
अत: शैथिल्य वक्र abcdefa प्राप्त होता है।
कुछ परिभाषाएं :
निग्राहिता :
जब चुम्बकीय क्षेत्र को हटाया जाता है तथा विपरीत दिशा में बढाया जाता है तो चुम्बकीय क्षेत्र के एक निश्चित मान पर चुम्बकत्व का मान शून्य हो जाता है , चुम्बकीय क्षेत्र के इस मान को ही निग्रहिता कहते है।
धारणशीलता :
चुम्बकीय क्षेत्र को पूर्ण रूप से हटाने या शून्य करने के बाद भी पदार्थ में चुम्बकत्व का गुण बना रहता है इस गुण को धारणशीलता कहते है।
Remark:
दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे|