Mahashivratri Essay in hindi: हेलो स्टूडेंट, हम आपको इस आर्टिकल मे महाशिवरात्रि पर निबंध बताया गया है | पोस्ट अंत तक पढ़े |
Mahashivratri Essay in hindi
प्रस्तावना:-
भारतवर्ष में हिंदुओ के तैतीस करोड़ देवी-देवता हैं जिन्हें वे मानते तथा पूजते हैं परंतु उनमें से प्रमुख स्थान भगवान शिव का है। भगवान शिव को मानने वालों ने शैव नामक सम्प्रदाय चलाया। शैव सम्प्रदाय के अधिष्ठाता एवं प्रमुख देवता भगवान शिव ही माने जाते है और शिव की उपासना नियमित करते है। कहते है सभी भगवान इतनी जल्दी खुश नही होते जितनी जल्दी भगवान शिव होते है।
भगवान शिव के नाम:-
शास्त्रों और पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम है जिसमे से 108 नाम तो मै यहाँ नही लिख सकता पर कुछ नाम जो आप सब भी जानते होंगे,भगवान शिव को शंकर,भोलेनाथ, पशुपति, त्रिनेत्र,पार्वतिनाथ आदि अनेक नामों से जाना व पुकारा जाता है।
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शिवरात्रि का नाम किस प्रकार पड़ा:-
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव सभी जीव-जन्तुओं के स्वामी एवं अधिनायक है। ये सभी जीव-जंतु, किट-पतंग भगवान शिव की इच्छा वसे ही सब प्रकार के कार्य तथा व्यापार किया करते है। शिव-पुराण के अनुसार भगवान शिव वर्ष में छ: मास कैलाश पर्वत पर रहकर तपस्या में लीन रहते है। उनके साथ ही सभी कीड़े-मकोड़े भी अपने बिलो मे बन्द हो जाते है। उसके बाद छः मास तक कैलाश पर्वत से उतर कर धरती पर श्मशान घाट में निवास किया करते है। इनके धरती पर अवतरण प्रायः फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ करता है। अवतरण का यह महान दिन शिवभक्तों में “महाशिवरात्रि” के नाम से जाना जाता है।
शिवरात्रि का महत्व:-
महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिरों को बड़ी अच्छी तरह से सजाया जाता है। भक्तगण सारा दिन निराहार रहकर व्रत उपवास किया जाता है। अपनी सुविधा अनुसार सायंकाल में वे फल, बेर, दूध आदि लेकर शिव मंदिरों में जाते है। वहां दूध-मिश्रीत शुद्ध जल से शिवलिंग को स्नान कराते है। तत्पश्चात शिवलिंग पर फल, पुष्प व बेर तथा दूध भेंट स्वरुप चढ़ाया करते है। ऐसा करना बड़ा ही पुण्यदायक माना जाता है। इसके साथ ही भगवान शिव के वाहन नन्दी की भी इस रात बड़ी पूजा व सेवा की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन गंगा-स्नान का भी विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने गंगा के तेज प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण करके इस मृत्युलोक के उद्धार के लिए धीरे-धीरे धरती पर छोड़ा था।
शिवरात्रि त्योहार की कथा:-
पूर्वकाल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। शिकार करके वो अपने परिवार को चलाता था। वो एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर नही चुका सका, क्रोधित सहुकार ने शिकारी को एक बार पकड़कर शिवमठ मेही बन्दी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी बहुत ध्यान से शिव से जुड़ी सभी धार्मिक बाते सुन रहा था। चतुदर्शी को उसने शिवरात्रि व्रत कथा भी सुनी शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाकर ऋण चुकाने के बारे में पूछा तब शिकारी ने अगले दिन ऋण लौटाने का वचन देकर बन्धन मुक्त हो गया।
फिर दूसरे दिन अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल मे शिकार करने निकला। लेकिन दिनभर बंदी ग्रह में रहने के कारण वो भूख प्यास से व्याकुल होने लगा। शिकार खोजते हुए वो बहुत दूर निकल गया। जब अंधेरा होने लगा तो उसने सोचा की रात मुझे जंगल मे ही बितानी होँगी तभी उसे तलाब के किनारे बेल का पेड़ दिखा वो उस पेड़ पर चढ़कर रात बीतने के इंतजार करने लगा बेल के पेड़ के नीचे ही शिवलिंग था। जो बेलपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता भी नही चला पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ी वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गयी। इस प्रकार दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चड़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर तलाब के पास एक हिरणी आई शिकारी ने अपनी वाण उठाई और तानने लगा ही था, कि हिरणी ने कहा रुक जाओ में गर्भवती हु। तुम एक नही दो जान लोगे तुम्हे पाप लगेगा। तो शिकारी ने उसे छोड़ दिया और वाण अन्दर करते वक्त कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार शिकारी की पहली पहर की पूजा हो गयी।
थोड़ी देर बाद फिर एक हिरण आयी तब फिर शिकारी ने अपनी वाण तान दिया इस बार हिरणी ने कहा में अपने पति से मिलकर अभी आती हु तब तू मुझे मार देना शिकारी फिर वाण अंदर करते वक्त कुछ बेल पत्र फिर शिवलिंग पर गिर गए। शिकारी की दूसरे पहर की भी पूजा हो गयी। इस प्रका शिकारी की तीनों पहर की पूजा किसी ना किसी कारण से पूरी हो गयी। उसके इस प्रकार भूखे रखने की बजह से उसका व्रत हो गया और शिकार के बहाने उसकी पूजा हो गयी साथ ही जागरण भी हो गया। उसके इस तरह शिव जी पूजा से मोक्ष प्राप्त हुआ और जब उसकी मृतु हुई तो उसे यमलोक ले जाया जा रहा था। कि शिवगणों ने उसे शिवलोक भेज दिया। शिव जी की कृपा से अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म की याद रख पाया तथा महाशिवरात्रि को महत्व को पूजन कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किये गए व्रत का भी फल दे देते है अर्थात भगवान शिव शिकारी की दयाभाव से अधिक प्रसन्न हुए थे। अपने परिवार का कष्टों को ध्यान रखते हुए भी उसने दयाभाव दिखाया और शिकार को जाने दिया उसके इस प्रकार दया दिखाने से उसे पंडित और पुजारियों से ज्यादा उत्कृष्ठ बनाती है। जो सिर्फ रात्रि जागरण,उपवास एवं दूध,दही,बेलपत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते है। पर मन मे कोई दया भाव नही रखते है। इस कथानुसार अनजाने में हुई पूजा का महत्व अत्यधिक है। इससे ज्यादा मन मे दयाभाव रखना भी महत्वपूर्ण है।
महाशिवरात्रि का उत्सव Maha Shivratri Celebration
महाशिवरात्रि एक हिन्दू पर्व या त्यौहार है जो प्रतिवर्ष भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाता है। यह दिन हर साल सर्दियों के महीनों के खतम-ख़तम होते-होते फरवरी या मार्च में आता है।
शिवरात्रि का त्यौहार शिव और शक्ति का अभिसरण है। दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी तिथि में महाशिवरात्रि मनाया जाता है।
भारत में महाशिवरात्रि रात के समय मनाया जाता है। इस दिन शिवजी के मंदिरों को बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया जाता है। बड़े शहरों में मंदिरों के रास्तो और मंदिरों को सुन्दर रंगीन लाइट से साजते हैं जो रात के समय बहुत जगमगाते हुए सुन्दर नज़र आता है या प्रभा की तैयारी की जाती है।
मंडी का शिवरात्रि मेला महाशिवरात्रि के उत्सव के लिए सबसे मशहूर स्थान है। मंडी के इस शिवरात्रि मेले में दूर-दूर से शिव भक्त आते हैं। यह माना जाता है कि 200 से भी ज्यादा देवी और देवता महाशिवरात्रि पर वहां होते हैं। यह टाउन व्यास नदी के किनारे स्तिथ है।
यह हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना नगर है जहाँ 81 से ज्यादा अलग-अलग देवी देवताओं के मंदिर हैं। कश्मीर शैव में महाशिवरात्रि बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। शिवरात्रि त्यौहार भगवान शिव और पारवती के विवाह सालगिराह पर मनाया जाता है। शिवरात्रि के 3-4 दिन पहले से ही यह महोत्सव शुरू हो जाता है और शिवरात्रि के दो दिन बाद भी चलता है।
महाशिवरात्रि को बड़े तौर पर मनाने वाले मंदिर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिल नाडू, मध्य प्रदेश और तेलन्गाना हैं। वैसे तो पुरे भारत में शिवजी की पूजा सभी शहरों में की जाती है परन्तु मध्य भारत में सबसे अधिक शिव भक्त हैं।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर शिव जी एक सबसे पवित्र और सम्मानीय धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ लाखों श्रद्धालु शिवजी की आराधना और आशीर्वाद पाने के लिए एकत्रित होते हैं।
जबलपुर शहर के तिलवारा घाट और जिओनारा गाँव, सिवन अन्य ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहाँ भी शिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है
काशी, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में शिव लिंग की पूजा की जाती है जिसे प्रकाश के स्तंभ का प्रतीक माना जाता है और शिवजी को सर्वोच्च ज्ञान का प्रकाश माना जाता है।
महाशिवरात्रि का महापर्व नेपाल में भी बहुत ही श्रद्धा और धूम धाम से मनाया जाता है पर सबसे ज्यादा इसकी धूम पशुपतिनाथ मंदिर में देखा जाता है।
यहाँ हजारों की तगाद में शिव भक्त मशहूर शिव शक्ति पीठ को देखने भी जाते हैं। नेपाली सेना इस अवसर पर भगवान शिव को श्रधांजलि देते हुए काठमांडू शहर के चारों और परेड करते हैं पवित्र मंत्रों का उच्चारण भी करते हैं।
महाशिवरात्रि के रात को कई जगह शास्त्रीय संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति के लिए लम्बी उम्र की कामना करती हैं और अविवाहित लडकियां शिव भगवान के जैसा स्वामी पाने के लिए कामना करते हैं।
महाशिवरात्रि की कहानी व कथा Maha Shivaratri Story in Hindi
वैसे तो पुरानों में महाशिवरात्रि के पर्व को मानाने के कारण को दर्शाते कई कहानियाँ पढ़े गए हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण शिवजी कहानी आज हम आपको यहाँ बताने जा रहे हैं –
कहानी 1: शिवजी को नीलकंठ क्यों कहते हैं? Why Lord Shiva Called Neelkanth Story?
एक बार की बात है, अमृत की खोज में समुद्र मंथन हुआ। इस समुद्र मंथन में देवता और असुर दोनों ने भाग लिया। समुद्र मंथन के दौरान एक विष का मटका उत्पन्न हुआ। विष के मटके को देख कर देवताओं और असुरों के मन में डर से हाहाकार मच गया क्योंकि उस विष में इतनी शक्ति थी कि पूरा विश्व द्वंस हो सकता था।
सभी देवता मदद मांगने के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। विष के प्रकोप से दुनिया को बचाने के लिए शिवजी ने विषय को पी लिया परन्तु उसे अपने गले से नीचे जाने नहीं दिया। विष की ताकत से शिवजी का गाला नीला पड़ गया। उनका गला नीला पड़ने के कारण शिवजी को नील खंठ नाम से जाना जाता है।
कहानी 2: महाशिवरात्रि पर रात भर पूजा करने का कारण क्या है?
एक बार की बात है एक आदिवासी व्यक्ति था। वह भगवान शिव का अपार भक्त था। एक बार वह जंगल में लकडियाँ लेने गया। लकड़ी लेकर आते समय बहुत देर होने के कारण अँधेरा हो गया और वह रास्ता भूल गया। अँधेरे और रास्ता ना दिखने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाया।
ज्यादा रात होने पर जंगली जानवरों की भयानक आवाजें जंगल में सुनाई देने लगी। जंगली जानवरों के डर और उनसे बचने के लिए वह एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया। नींद आने पर पेड़ से गिरने के डर से बचने के लिए उसने एक तरकीब निकला।
उसने सोचा की वो रात भर उस पेड़ के पस्सों को तोड़ कर नीचे गिरता रहेगा ताकि उसको नींद ना आ सके और ना गिरे। उसने भगवान शिव का नाम लेते हुए एक-एक करके पत्ते तोड़ कर नीचे गिराने लगा।
एसा करते-करते सुबह हो गयी। जिस पेड़ पर वह व्यक्ति बैठा था वह एक बेल का पेड़ था। जब उसने नीचे देखा तो उसे एक लिंग दिखा जिस पर वह हज़ार बेल के पत्ते गिरा चूका था। जिसके कारण शिवजी बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे दिव्य आनंद का आशीर्वाद दिया।
यह कहानी महाशिवरात्रि को भक्त रात में सुनते हैं और उस दिन वो सभी उपवास भी करते हैं। रात्रि के कथा उपवास के बाद सभी भक्त शिवजी के प्रसाद ग्रहण करते हैं।
कहानी 3: शिवजी के पूजा में केतकी / केवडा के पुष्प का उपयोग क्यों नहीं होता?
सभी हिन्दू देवताओं के पूजा में सुगन्धित पुष्पों का उपयोग होता है। परन्तु क्या आपको पता केतकी / केवड़े के फुल को शिवजी के पूजा में नहीं चढ़ाया जाता है? चलिए जानते हैं।
एक बार की बात है त्रिनाथ में से दो भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी में इस बात को लेकर लड़ाई छिड़ जाती है कि उनमें से शक्तिशाली और उच्चतर कौन है? उनके लड़ाई को देख कर सभी देवगण भयभीत हो गए और उन्होंने शिवजी से निवेदन किया कि वो उनकी लड़ाई को किसी भी तरह रोकें।
दोनों की लड़ाई को रोकने के लिए शिवजी ने उन्हें समझाया परन्तु वे ना माने। अंत में शिवजी ने दोनों को रोकने के लिए स्वयं को ब्रह्मा और विष्णु के बिच में एक अग्नि की दीवार बना लिया। सभी देवताओं ने यह नियम बनाया की जो इस अग्नि का छोर (शिवलिंग का छोर) पहले ढूँढेगा वही श्रेष्ट होगा।
दोनों देव विष्णु और ब्रह्मा जी अपनी प्रधानता दिखाने के लिए अग्नि का छोर ढूंडने के लिए निकल पड़े। ब्रह्मा जी ने एक हंस का रूप धारण किया और वो ऊपर की ओर उड़ कर शिवजी द्वारा निर्णित अग्नि की दीवार का अंतिम छोर ढूंडने लगे और विष्णु जी वराह का रूप धारण करके धरती की ओर अग्नि दीवार का अंतिम छोर ढूंडने के लिए निकल पड़े।
परन्तु शिवजी द्वारा निर्मित अग्नि का कोई अंत तो था ही नहीं। तभी ब्रह्मा जी ने देखा कि एक केतकी या केवड़े का फूल ऊपर से गिर रहा है। तभी ब्रह्मा जी ने केवड़े के फूल से प्रश्न किया कि – तुम कहाँ से आ रहे हो। केवड़े के फूल ने उत्तर दिया इस अग्नि के ऊपर के छोर से।
तब ब्रह्मा जी ने उस केतकी फूल को पकड़ कर शकशी के रूप में ले गए। विष्णु जी भी अग्नि का अंतिम छोर ना पाने के कारण वापस लौट आये। वापस आने के बाद ब्रह्मा जी ने असत्य कहते हुए विष्णु जी को बताया कि वो छोर तक पहुँच चुके थे और केतकी / केवड़े का फूल भी वहीँ से वो लेकर आये हैं। इस असत्य बात में केतकी फूल ने भी उनका साथ दिया।
ब्रह्मा जी के असत्य को देखकर शिवजी बहुत क्रोधित हुए और वो वहां प्रकट हुए। शिवजी बोले में ही सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता, कारण और स्वामी हूँ। भगवान शिवजी ने ब्रह्मा जी की कड़ी आलोचना करते हुए श्राप दिया और कहा कि कभी भी उनकी कोई पूजा प्रार्थना नहीं करेगा।
शिवजी ने केतकी या केवड़े के फूल को भी असत्य का साथ देने के लिए दण्डित करते हुए कहा की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का उपयोग नहीं किया जायेगा। मात्र एक दिन शिवरात्रि को ही केतेकी फूलों को शिवजी को चढ़ाया जाता है।
जैसे की वो दिन फाल्गुन माह का 14वां आधा अँधेरा दिन था और शिवजी ने स्वयं को लिंग के रूप में धारण किया था इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
उपसंहार:-
इस प्रकार महाशिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति दया भाव दिखाते हुए शिव जी की पूजा करते है। उसे मोक्ष प्राप्त होता है। वैसे भी भोलेनाथ शिव जी को जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता के रूप में भी माना जाता है। जिनका पूजन पूरे भारत देश मे हर्षउल्लाश के साथ मनाया जाता है। जो कि शिव जी की रात यानी शिवरात्रि कहलाती है। इसलिए हमें भी हमारे मन मे दया आदि का भाव रखते हुए शिव उपासना करनी चाहिए और शिव जी से हमारे सभी कष्टों को खत्म करने की विनती करनी चाहिए।