माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय | Makhanlal Chaturvedi Ka Jivan Parichay

संक्षिप्त जीवन परिचय

  • नाम – माखनलाल चतुर्वेदी
  • कार्यक्षेत्र एवं पेशा – पत्रकारिता, लेखक, साहित्यकार, एवं कवि
  • साहित्य का प्रकार – नव-छायाकार
  • जन्मतिथि – 4 अप्रैल 1889
  • जन्म स्थान – बाबई (होशंगाबाद) मध्यप्रदेश
  • माता – सुंदरीबाई
  • पिता- नंदलाल चतुर्वेदी
  • पत्नी – ग्यारसी बाई
  • शिक्षा – जबलपुर से प्राईमरी टीचर्स ट्रेनिंग (1905)
  • नार्मल परीक्षा ससम्मान उत्तीर्ण (1907)

उपलब्धियां :–

  1. अध्यापन कार्य
    प्रारंभ(1906)
  2. शिक्षण पद का
    त्याग,
    बल गंगाधर तिलक का अनुसरण (1910)
  3. शक्तिपूजा लेख पर
    राजद्रोह का आरोप (1912)
  4. प्रभा मासिक का
    संपादन (1913)
  5. कर्मवीर से
    सम्बद्ध (1920)
  6. प्रताप का सम्पादन
    कार्य प्रारंभ (1923)
  7. पत्रकार परिषद के
    अध्यक्ष (1929)
  8. म.प्र. हिंदी
    साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति
  9. भारत छोड़ो आंदोलन
    के सक्रिय कार्यकर्ता (1942)
  10. सागर वि.वि. से
    डी. लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित (1959)

लेख :–

  1. वेणु लो गूंजे धरा
  2. हिम किरिटिनी
  3. हिम तरंगिणी
  4. युग चरण
  5. साहित्य देवता

कविताएं :-      

  • अमर राष्ट्र,
  • अंजलि के फूल गिरे
    जाते हैं,
  • आज नयन के बंगले
    में,
  • इस तरह ढक्कन
    लगाया रात ने,
  • उस प्रभात तू बात
    ना माने,
  • किरणों की शाला
    बंद हो गई छुप-छुप,
  • कुञ्ज-कुटीरे
    यमुना तीरे,
  • गली में गरिमा
    घोल-घोल,
  • भाई-छेड़ो नहीं
    मुझे,
  • मधुर-मधुर कुछ गा
    दो मालिक,
  • संध्या के बस दो
    बोल सुहाने लगते हैं.

इनको समर्पित सम्मान –

  • मध्य प्रदेश
    साहित्य अकादमी द्वारा देश के श्रेष्ठ कवियों को प्रतिवर्ष माखनलाल चतुर्वेदी
    पुरस्कार दिया जाता है
  • उनके नाम पर माखन
    लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय
  • उनके नाम पर
    पोस्टेज स्टाम्प ज़ारी किये गए

मृत्यु –
30 जनवरी सन 1968 ई.

जीवन परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन 1889 ईसवी में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम पंडित नंदलाल चतुर्वेदी था जो पेशे से अध्यापक थे. माखनलाल चतुर्वेदी ने प्राथमिक शिक्षा विद्यालय में प्राप्त की और इसके पश्चात घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया. कुछ दिनों तक अध्यापन करने के बाद इन्होंने प्रभा नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया. यह खंडवा से प्रकाशित होने वाली कर्मवीर पत्रिका का 30 साल तक संपादन और प्रकाशन करते रहे.

श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के
संपर्क में आने पर उनकी प्रेरणा से इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और
अनेक बार जेल भी गये.  कारावास में भी इनकी
कलम नहीं रुकी और यह लगातार लिखते रहे. यह कलम का सिपाही  स्वतंत्रता आंदोलन में कारागार में रहते हुए भी
आजादी के दीवानों का प्रोत्साहन करता रहा.

सन 1943 ईस्वी में इनको हिंदी साहित्य सम्मेलन का सभापति निर्वाचित किया गया. इनकी हिंदी सेवाओं के लिए सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें मानद डी. लिट. की उपाधि से तथा भारत सरकार ने पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया. जीवन भर अपनी कविताओं में नवजागरण  और क्रांति का उल्लेख करने वाले  माखनलाल चतुर्वेदी 30 जनवरी सन 1968 को इस दुनिया से विदा ले लिए.

माखनलाल चतुर्वेदी की कृतियां

माखनलाल चतुर्वेदी एक पत्रकार,
निबंधकार, प्रसिद्ध कवि और पत्रिकाओं के संपादक भी थे.  लेकिन इनकी छवि कवि के रूप में ही अधिक
प्रसिद्ध है.

इनकी कविताओं का संग्रह है:

  • हिमकिरीटिनी
  • हिमतरंगिणी
  • माता
  • युगचरण
  • समर्पण
  • वेणु लो गूंजे धरा

 इनकी रचना हिम तरंगिणी को साहित्य अकादमी
पुरस्कार से सम्मानित किया गया

इनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएं हैं:

साहित्य देवता:  यह इनके भावात्मक निबंधों का संग्रह है

रामनवमी:  इसमें प्रभु श्री राम के लिए प्रभु-प्रेम और
देश भारत के लिए देशप्रेम को एक साथ चित्रित किया गया है

संतोष और बंधन सुख: संतोष और बंधन सुख नामक रचनाओं में गणेश शंकर विद्यार्थी की मधुर स्मृतियों को संजोया गया है. 

कृष्णार्जुन युद्ध:  कृष्णार्जुन युद्ध नामक रचना में पौराणिक कथानक को भारतीय नाट्य परंपरा के अनुसार प्रस्तुत किया गया है

इनकी कहानियों का संग्रह कला का अनुवाद नाम से प्रकाशित हुआ

माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्यक परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी की अधिकांश रचनाओं में राष्ट्र के प्रति राष्ट्र प्रेम की भावना का उल्लेख है. प्रारम्भ में इनकी रचनाएँ भक्तिमय और आस्था से जुडी हुयी थी किन्तु राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी के बाद इन्होंने  अपनी रचनाओं को राष्ट्र के प्रति समर्पित करना आरम्भ कर दिया.

पुरस्कार व सम्मान

  1. माखनलाल चतुर्वेदी
    को 1943 ई० में देव पुरस्कार जो उस दौर का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार था
    दिया गया. हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार जीतने वाले यह पहले व्यक्ति हैं.
  2. हिंदी साहित्य में
    अभूतपूर्व योगदान देने के कारण माखनलाल चतुर्वेदी को 1959 में सागर यूनिवर्सिटी से
    डी.लिट् की उपाधि भी प्रदान की गयी.
  3. 1963 में भारत
    सरकार द्वारा पद्मभूषण दिया गया ( हालाँकि 10 सितम्बर 1967 ई० को राष्ट्र भाषा
    हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलाल जी
    ने यह अलंकरण लौटा दिया)
  4. भोपाल का माखनलाल
    चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय इन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया

भाषा- शैली

माखनलाल की लेखन शैली नव-छायावाद का
एक नया आयाम स्थापित करने वाली थी.  जिनमे
भी चतुर्वेदी की कुछ रचनाए “हिम-तरंगिनी,
कैसा चाँद बना देती हैं,अमर राष्ट्र और पुष्प
की अभिलाषा तो हिंदी साहित्य में सदियों तक तक अमर रहने वाली रचनाएँ हैं, और कई युगों तक यह आम-जन को प्रेरित करती रहेगी.

माखनलाल चतुर्वेदी का हिंदी साहित्य को योगदान

अपनी कुछ कालजयी रचनाओं हिम तरंगिनी, समर्पण, हिम किरीटिनी, युग चरण, साहित्य देवता, दीप से दीप जले, कैसा चाँद बना देती हैं और पुष्प की अभिलाषा की वजह से हिंदी साहित्य में इनको बहुत उच्च स्थान प्राप्त है. इसके अलावा कुछ कविताएं जैसे अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं आदि इनको सुप्रसिद्ध कवि साबित करती हैं.

हिंदी साहित्य में स्थान

माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं हिंदी
साहित्य की अमूल्य धरोहर है इन्होंने अपने ओजपूर्ण भावात्मक शैली में वीर रस से
परिपूर्ण कई सारी रचनाएं करके युवकों में जो ओज और प्रेरणा का भाव भरा है उसका
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान है. राष्ट्रीय चेतना जगाने वाले
कवियों में माखनलाल चतुर्वेदी जी का
मुर्धन्य स्थान है. हिंदी साहित्य जगत में अपनी साहित्य सेवा के लिए इनको
सदैव याद किया जाएगा

मृत्यु  (Death)

माखनलाल चतुर्वेदी जी की मृत्यु 30
जनवरी 1968 को हुयी. देश ने साहित्य जगत का एक अनमोल हीरा खो दिया. मृत्यु के समय चतुर्वेदी
जी 79 वर्ष के थे, और देश को तब भी
उनके लेखन से बहुत उम्मीदें थी.

धरोहर

हिंदी साहित्य को उनके दिए गए
योगदान के कारण माखनलाल चतुर्वेदी के सम्मान में बहुत सी यूनिवर्सिटी ने विविध
अवार्ड्स के नाम उनके नाम पर रखे हैं. मध्य प्रदेश सांस्कृतिक काउंसिल द्वारा
नियंत्रित मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी देश की किसी भी भाषा में योग्य कवियों को “माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार” देती हैं. पंडितजी के
देहांत के 19 वर्ष बाद 1987 से यह सम्मान देना शुरू किया गया.

भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता
विश्वविद्यालय पूरे एशिया में अपने प्रकार का पहला विश्व विद्यालय हैं. इसकी
स्थापना माखनलाल चतुर्वेदी जी के राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता और
लेखन के द्वारा दिए योगदान को सम्मान देते हुए 1991 में हुई.

भारत के पोस्ट और टेलीग्राफ डिपार्टमेंट ने भी पंडित माखन लाल चतुर्वेदी को सम्मान देते हुए पोस्टेज स्टाम्प की शुरुआत की. यह स्टाम्प पंडितजी के 88वें जन्मदिन 4 अप्रैल 1977 को ज़ारी किया गया था.

माखनलाल चतुर्वेदी की श्रेष्ठ रचनाएं

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का नाम छायावाद की उन हस्तियों में से है जिनके कारण वह युग विशेष हो गया। उस युग के कवि कुदरत को स्वयं के करीब महसूस कर लिखा करते थे। चतुर्वेदी जी की भी कई रचनाएं ऐसी हैं जहां उन्होंने प्रकृति के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। उनकी रचना पुष्प की अभिलाषा और फूल की मनुहार में उन्होंने एक कुसुम के द्वारा अपनी आंतरित संवेदनाओं को प्रकट किया है जिससे संकेत मिलता है कि वह एक राष्ट्रप्रेमी व्यक्ति होने के साथ-साथ अपनत्व से आप्लावित व्यक्ति भी थे।

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

बदरिया थम-थमकर झर री !

बदरिया थम-थनकर झर री !
सागर पर मत भरे अभागन
गागर को भर री !
बदरिया थम-थमकर झर री !
एक-एक, दो-दो बूँदों में
बंधा सिन्धु का मेला,
सहस-सहस बन विहंस उठा है
यह बूँदों का रेला।
तू खोने से नहीं बावरी,
पाने से डर री !
बदरिया थम-थमकर झर री!
जग आये घनश्याम देख तो,
देख गगन पर आगी,
तूने बूंद, नींद खितिहर ने
साथ-साथ ही त्यागी।
रही कजलियों की कोमलता
झंझा को बर री !
बदरिया थम-थमकर झर री !

जीवन, यह मौलिक महमानी

जीवन, यह मौलिक महमानी!
खट्टा, मीठा, कटुक, केसला
कितने रस, कैसी गुण-खानी
हर अनुभूति अतृप्ति-दान में
बन जाती है आँधी-पानी

कितना दे देते हो दानी
जीवन की बैठक में, कितने
भरे इरादे दायें-बायें
तानें रुकती नहीं भले ही
मिन्नत करें कि सौहे खायें!

रागों पर चढ़ता है पानी।।
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

ऊब उठें श्रम करते-करते
ऐसे प्रज्ञाहीन मिलेंगे
साँसों के लेते ऊबेंगे
ऐसे साहस-क्षीण मिलेगे

कैसी है यह पतित कहानी?
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

ऐसे भी हैं, श्रम के राही
जिन पर जग-छवि मँडराती है
ऊबें यहाँ मिटा करती हैं
बलियाँ हैं, आती-जाती हैं।

अगम अछूती श्रम की रानी!
जीवन, यह मौलिक महमानी।।

Remark:

दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे|

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top