Man Kise Kahate Hain: हेलो स्टूडेंट्स, आज हमने यहां पर मन की परिभाषा, प्रकार और उदाहरणMan Kise Kahate Hainके बारे में विस्तार से बताया है। यह हर कक्षा की परीक्षा में पूछा जाने वाले यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
Man Kise Kahate Hain
मन की हम मात्र कल्पना कर सकते हैं। इसको न तो किसी ने देखा है और न ही हम इसकी कल्पना कर सकते हैं।’’
मन का अर्थ
मन शब्द का प्रयोग कई अर्थों में किया जाता है। जैसे- मानस, चित्त, मनोभाव तथा मत इत्यादि। लेकिन मनोविज्ञान में मन का तात्पर्य आत्मन्, स्व या व्यक्तित्व से है। यह एक अमूर्त सम्प्रत्यय है।Man Kise Kahate Hain जिसे केवल महसूस किया जा सकता है। इसे न तो हम देख सकते है। और न ही हम इसका स्पर्श कर सकते है।
दूसरे शब्दों में मस्तिष्क के विभिन्न अंगों की प्रक्रिया का नाम मन है। प्रसिद्ध मनोविश्लेषणवादी मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड के अनुसार मन का सिद्धांत एक प्रकार का परिकल्पनात्मक सिद्धांत है।
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मन की परिभाषा
फ्रायड के अनुसार- ‘‘मन से तात्पर्य व्यक्तित्व के उन कारकों से होता है जिसे हम अन्तरात्मा कहते है। तथा जो हमारे व्यक्तित्व में संगठन पैदा करके हमारे व्यवहारों को वातावरण के साथ समायोजन करने में मदद करता है।’’
रेबर के अनुसार- ‘‘मन का तात्पर्य परिकल्पिक मानसिक प्रक्रियाओं एवं क्रियाओं की सम्पूर्णता से है, जो मनोवैज्ञानिक प्रदत्त व्याख्यात्मक साधनों के रूप में काम कर सकती है।
मन की अवस्थाएँ
मन की अवस्थाओं से तात्पर्य इसके विभिन्न पहलुओं से है। मन आत्मा या व्यक्तित्व के दो पक्ष होते है- जिन्हें आकारात्मक पक्ष और गत्यात्मक पक्ष कहते हैं-मन के आकारात्मक पक्ष से तात्पर्य जहाँ संघर्षमय परिस्थिति की गत्यात्मकता उत्पन्न होती है मन का यह पहलू वास्तव में व्यक्तित्व के गत्यात्मक शक्तियों के बीच होने वाले संघर्षों का एक कार्यस्थल होता है।Man Kise Kahate Hain मन के गत्यात्मक पक्ष से तात्पर्य उन साधनों से होता है जिसके द्वारा मूल-प्रवृत्तियों से उत्पन्न मानसिक संघर्षों का समाधान होता है।
मन के आकारात्मक पक्ष
आकारात्मक पक्ष का अध्ययन हम तीन भागों में बाँट कर करेंगे।
- चेतन मन
- अर्द्ध चेतन मन
- अचेतन मन
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1. चेतन मन
मन का वह भाग जिसका सम्बन्ध तुरन्त ज्ञान से होता है, या जिसका सम्बन्ध वर्तमान से होता है। जैसे- कोई व्यक्ति लिख रहा है तो लिखने की चेतना है, पढ़ रहा है तो पढ़ने की चेतना है। व्यक्ति जिन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के प्रति जागरूक रहता है वह चेतन स्तर पर घटित होती है। इस स्तर पर घटित होने वाली सभी क्रियाओं की जानकारी व्यक्ति को रहती है। यद्यपि चेतना में लगातार परिवर्तन होते रहते हैंMan Kise Kahate Hain परन्तु इसमें निरन्तरता होती है अर्थात् यह कभी खत्म नहीं होती है।
चेतन मन की विशेषताएँ है –
- यह मन का सबसे छोटा भाग है।
- चेतन मन का वाºय जगत की वास्तविकता के साथ सीधा सम्बन्ध होता है।
- चेतन मन व्यक्तिगत, नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदर्शों से भरा होता है।
- यह अचेतन और अर्द्धचेतन पर प्रतिबन्ध का कार्य करता है।
- चेतन मन में वर्तमान विचारों एवं घटनाओं के जीवित स्मृति चिºन होते हैं।
2. अर्द्ध चेतन मन
अर्द्धचेतन का तात्पर्य वैसे मानसिक स्तर से होता है। जो वास्तव में में न तो पूरी तरह से चेतन हैं और ही पूरी तरह से अचेतन। इसमें वैसी इच्छाएँ, विचार, भाव आदि होते हैं। जो हमारे वर्तमान चेतन या अनुभव में नहीं होते हैं परन्तु प्रयास करने पर वे हमारे चेतन मन में आ जाती है। अर्थात् यह मन का वह भाग है, जिसका सम्बन्ध ऐसी विषय सामग्री से है जिसे व्यक्ति इच्छानुसार कभी भी याद कर सकता है। इसमें कभी-कभी व्यक्ति को किसी चीज को याद करने के लिए थोड़ा प्रयास भी करना पड़ता है।
जैसे- अलमारी में रखी किताबों में से जब किसी किताब को ढूँढते हैं और कुछ समय के बाद किताब न मिलने पर परेशान हो जाते है। फिर कुछ सोचने पर याद आता है कि वह किताब हमने अपने मित्र को दी थी। अर्थात् अर्द्धचेतन मन चेतन व अचेतन के बीच पुल का काम करता है।
अर्द्ध चेतन मन की विशेषताएँ है –
- मन का वह भाग जो चेतन से बड़ा व अचेतन से छोटा होता है।
- अचेतन से चेतन में जाने वाले विचार या भाव अर्द्धचेतन से होकर गुजरते हैं।
- अर्द्धचेतन में किसी चीज को याद करने के लिए कभी-कभी थोड़ा प्रयास करना पड़ता है
3. अचेतन मन
हमारे कुछ अनुभव इस तरह के होते हैं जो न तो हमारी चेतना में होते हैं और न ही अर्द्धचेतना में। ऐसे अनुभव अचेतन होते हैं। अर्थात् यह मन का वह भाग है जिसका सम्बन्ध ऐसी विषय वस्तु से होता है जिसे व्यक्ति इच्छानुसार याद करके चेतना में लाना चाहे, तो भी नहीं ला सकता है।
अचेतन में रहने वाले विचार एवं इच्छाओं का स्वरूप कामुक, असामाजिक, अनैतिक तथा घृणित होता है। ऐसी इच्छाओं को दिन-प्रतिदिन के जीवन में पूरा कर पाना सम्भव नहीं है। अत: इन इच्छाओं को चेतना से हटाकर अचेतन में दबा दिया जाता है और वहाँ पर ऐसी इच्छाएँ समाप्त नहीं होती है। बल्कि समय-समय पर ये इच्छाएँ चेतन स्तर पर आने का प्रयास करती रहती है।
फ्रायड ने इस सिद्धांत की तुलना आइसबर्ग से की है। जिसका 9/10 भाग पानी के अन्दर और 1/10 भाग पानी के बाहर रहता है। पानी के अन्दर वाला भाग अचेतन तथा पानी के बाहर वाला भाग चेतन होता है तथा जो भाग पानी के ऊपरी सतह से स्पर्श करता हुआ होता है वह अर्द्धचेतन कहलाता है।
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अचेतन मन की विशेषताएँ है –
- अचेतन मन अर्द्धचेतन व चेतन से बड़ा होता है।
- अचेतन में कामुक, अनैतिक, असामाजिक इच्छाओं की प्रधानता होती है।
- अचेतन का स्वरूप गत्यात्मक होता है। अर्थात् अचेतन मन में जाने पर इच्छाएँ समाप्त नहीं होती है। बल्कि सक्रिय होकर ये चेतन में लाटै आना चाहती है। परन्तु चेतन मन के रोक के कारण ये चेतन में नहीं आ पाती है और रूप बदलकर स्वप्न व दैनिक जीवन की छोटी-मोटी गलतियों के रूप में व्यक्त होती है और जो अचेतन के रूप को गत्यात्मक बना देती है।
- अचेतन के बारे में व्यक्ति पूरी तरह से अनभिज्ञ रहता है क्योंकि अचेतन का सम्बन्ध वास्तविकता से नहीं होता है।
- अचेतन मन का छिपा हुआ भाग होता है। यह एक बिजली के प्रवाह की भाँति होता है। जिसे सीधे देखा नहीं जा सकता है परन्तु इसके प्रभावों के आधार पर इसको समझा जा सकता है।
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