जैसा की हम जानते है की पृथ्वी भी चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है अतः जब किसी चुम्बक के पास कोई चुम्बकीय सुई रखी जाती है तो उस पर दो चुम्बकीय क्षेत्र कार्य करते है पहला चुम्बक के कारण उत्पन्न तथा दूसरा पृथ्वी के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र।
जिस बिन्दु पर दोनों चुम्बकीय क्षेत्र का मान बराबर तथा विपरीत होकर एक दूसरे को निरस्त कर देता है या जिस बिंदु पर चुम्बकीय सुई शून्य विक्षेप देती है उस बिन्दु को उदासीन बिन्दु कहते है।
1. जब किसी चुम्बक को इस प्रकार रखा जाए की चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक उत्तर की तरफ हो : चूँकि हम जानते है की पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है तथा चुम्बक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र इसके लंबवत उत्पन्न होता है जैसा चित्र में दिखाया गया है , इस स्थिति में उदासीन बिंदु चुम्बक के अक्षीय बिंदु पर प्राप्त होता है। इन बिन्दुओ को चित्र में X निशान से दर्शाया गया है।
2. जब चुम्बक इस प्रकार स्थित हो की चुम्बक का उत्तर ध्रुव पृथ्वी के उत्तर की ओर स्थित हो :
ऐसी स्थिति में चुम्बक तथा पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र दोनों की दिशा समान होती है , इस स्थिति में उदासीन बिन्दु चुम्बक के निरक्ष रेखा पर प्राप्त होते है जैसा चित्र में दिखाया गया है , चित्र में इनको x चिन्ह से दर्शाया गया है।
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