Paryavaran Pradushan Essay In Hindi

Paryavaran Pradushan Essay In Hindi:पर्यावरण, एक प्राकृतिक परिवेश है, जिससे हम चारों तरफ से घिरे हुए हैं और जो पृथ्वी पर मौजूद मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, प्राकृतिक वनस्पतियां को जीवन जीने में मद्द करता है। स्वच्छ पर्यावरण में ही  स्वस्थ व्यक्ति का विकास संभव है, अर्थात पर्यावरण का दैनिक जीवन से सीधा संबंध है।

Paryavaran Pradushan Essay In Hindi

हमारे शरीर के द्धारा की जाने वाली हर प्रतिक्रिया पर्यावरण से संबंधित है, पर्यावरण की वजह से हम सांस ले पाते हैं और शुद्ध जल -भोजन आदि ग्रहण कर पाते हैं, इसलिए हर किसी को पर्यावरण के  महत्व को समझना चाहिए।

प्रस्तावना

पर्यावरण का अर्थ – Environment Meaning

पर्यावरण शब्द मुख्य रुप से दो शब्दों से मिलकर बना है, परि+आवरण। परि का अर्थ है चारो ओर और आवरण का मतलब है ढका हुआ अर्थात जो हमे चारों ओर से घेरे हुए है। ऐसा वातावरण जिससे हम चारों  तरफ से घिरे हुए हैं, पर्यावरण कहलाता है।

पर्यावरण का महत्व – Importance of Environment

पर्यावरण से ही हम है, हर किसी के जीवन के लिए पर्यावरण का बहुत महत्व है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवन, पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव-जंतु, प्राकृतिक वनस्पतियां, पेड़-पौड़े, मौसम, जलवायु सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित हैं। पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है और जीवन के लिए आवश्यक  सभी वस्तुएं उपलब्ध करवाता है।

वहीं आज जहां विज्ञान से तकनीकी और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला है और दुनिया में खूब विकास हुआ है, तो दूसरी तरफ यह बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार हैं। आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ा रहा है।

मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते पेड़-पौधे की कटाई कर रहा है एवं प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ कर रहा है, जिसके चलते पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है। यही नहीं कुछ मानव निर्मित कारणों की वजह से वायुमंडल, जलमंडल आदि प्रभावित हो रहे हैं धरती का तापमान बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है, जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।

इसलिए पर्यावरण के महत्व को समझते हुए हम सभी को अपने पर्यावरण को बचाने में सहयोग करना चाहिए।

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पर्यावरण और जीवन

पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात् मनुष्य पर्यावरण पर पूरी तरह से निर्भय है, पर्यावरण के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

इसलिए भौतिक सुख की सिद्धि के लिए मनुष्य को प्रकृति के दोहन से बचना चाहिए।

वायु, जल, अग्नि, आकाश, भूमि ये पांच तत्व हैं, जिन पर मानव जीवन टिका है और हमें यह सब पर्यावरण से प्राप्त होता है।

पर्यावरण न केवल एक माँ के रूप में हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखता है, बल्कि हमें मानसिक शांति और खुशी भी प्रदान करता है।

पर्यावरण मानव जीवन का अभिन्न अंग है, इसलिए हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

पर्यावरण को बचाने के लिए हम सड़कों या सार्वजनिक क्षेत्रो में कचरा न फेंक कर पहल करनी चाहिएँ, और हमे निजी वाहनों का वजाए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना शुरू कर देना चाहिए।

साथ ही, हमें कंपनियों के बारे में पता होना चाहिए जो पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डाल रही है। और कई इको-फ्रेंडली और उन दिन-प्रतिदिन की चीजों का उपयोग करना होगा जिनका पुनरावृत्ति की जा सके। हमें ऐसी तकनीक का आविष्कार करना चाहिए जो हमारे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए और ऐसी तकनीक भी हो जो हमारे पर्यावरण की रक्षा करने में मदद कर सके।

पर्यावरण को बचाना कोई छोटी बात नहीं है, इसमें बहुत समय, शक्ति और प्रयास लगेगा। लोगों का एक छोटा झुंड बड़ा बदलाव नहीं कर सकता।

हर व्यक्ति को एक साथ आना चाहिए और हमारे पर्यावरण को बचाने के लिए काम करना शुरू करना चाहिए। इसे स्वच्छ और स्वस्थ रखना हमारी जिम्मेदारी है, सभी को यह याद रखना चाहिए। मनुष्य के लिए एक पर्यावरण सबसे महत्वपूर्ण चीज है जिसका हमें ध्यान रखना है।

पर्यावरण प्रदूषित के अनेक उदाहरण

बहती नदियों के पानी में सीवर की गंदगी इस तरह से मिल जाती है जिससे मनुष्यों और पशुओं के पीने का पानी गंदा हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप दोनों निर्बलता, बीमारी तथा गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में झोंपड़ियों के निवासियों ने इस समस्या को बहुत अधिक गंभीर कर दिया है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को नजर अंदाज करना एक आम बात हो गई है। मनुष्य बिना सोचे समझे पेड़ों को काटते जा रहा है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि जीवन जीने के लिए वायु हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है। बढती हुई आबादी हमारे पर्यावरण के प्रदूषण का एक बहुत ही प्रमुख कारण है। जिस देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है उस देश में रहने और खाने की समस्या भी बढती जा रही है। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को महत्व नहीं देता है लेकिन वह भूल जाता है कि बिना पर्यावरण के उसकी सुख-सुविधाएँ कुछ समय के लिए ही हैं।

पर्यावरण प्रदूषित होने का कारण / पर्यावरण प्रदूषित कैसे होता है

पर्यावरण प्रदूषण के बहुत से कारन है जिससे हमारा पर्यावरण अधिकतर पर प्रभावित होता है। मानव द्वारा निर्मित फैक्ट्री से निकलने वाले अवशेष हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और पर्यावरण को हानि पहुँचता है। लेकिन यह भी संभव नहीं है कि इस विकास की दौड़ में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अपने विकास को नजर अंदाज कर दें। लेकिन हम कुछ बातों को ध्यान में रखकर अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। जैसे कारखानों की चिमनियाँ नीची लगी होती हैं जिसकी वजह से उनसे निकलने वाला धुआं हमारे चारों ओर वातावरण में फैल जाता है और पर्यावरण को दूषित कर देता है

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पर्यावरण का ज्ञान (Knowledge of Environment):

आज पर्यावरण एक जरूरी सवाल बल्कि ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है लेकिन आज लोगों में इसे लेकर कोइ जागरूकता नहीं है । ग्रामीण समाज को छोड दे तो भी महानगरीय जीवन में इसके प्रति खास उत्सुकता नहीं पाई जाती परिणामस्वरूप पर्यावरण

एक सरकारी एजेण्डा ही बन कर रह गया है । जबकि यह पूरे समाज से बहुत ही घनिष्ठ संबंधन रखने वाला सवाल है । जब तक इसके प्रति लोगों में एक स्वाभाविक लगाव पैदा नहीं होता पर्यावरण संरक्षण एक दूर का सपना ही बना रहेगा ।

पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से है । अपने परिवेश में हम तरह-तरह के जीव-जन्तु, पेड-पौधे तथा अन्य सजीव-निर्जीव वस्तुएं पाते हैं । ये सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं । विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे-भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान, आदि में विषय के मौलिक सिद्धान्तों तथा उनसे सम्बन्ध प्रायोगिक विषयों का अध्ययन किया जाता है ।

परन्तु आज की आवश्यकता यह है पर्यावरण के विस्तृत अध्ययन के साथ-साथ इससे सम्बन्धित व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया जाए । आधुनिक समाज को पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए । साथ ही इससे निपटने के बचावकारी उपायों की जानकारी भी आवश्यक है । आज के मशीनी युग में हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं ।

प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हमारे सामने खडा है । सम्पूर्ण विश्व एक गम्भीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है । यद्यपि हमारे पास पर्यावरण सम्बन्धी पाठ्य-सामग्री की कमी है तथापि सन्दर्भ सामग्री की कमी नहीं है ।

वास्तव में आज पर्यावरण से सम्बद्ध उपलब्ध ज्ञान को व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है ताकि समस्या को जनमानस सहज रूप से समझ सके । ऐसी विषम परिस्थिति में समाज को उसके कर्तव्य तथा दायित्व का एहसास होना आवश्यक है ।

इस प्रकार समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है । वास्तव में सजीव तथा निर्जीव दो संघटक मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं । वायु, जल तथा भूमि निर्जीव घटको में आते है जबकि जन्तु-जगत तथा पादप-जगत से मिलकर सजीवों निर्माण होता है । इन संघटकों के मध्य एक महत्वपूर्ण रिश्ता यह है कि अपने जीवन-निर्वाह के लिए परस्पर निर्भर रहते हैं ।

जीव-जगत में यद्यपि मानव सबसे अधिक सचेतन संवेदनशील प्राणी है तथापि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वह अन्य जीव-जन्तुओं, पादप, वायु, जल तथा भूमि पर निर्भर रहता है । मानव के परिवेश में पाए जाने वाले जीव-जन्तु पादप, वायु, जल तथा भूमि पर्यावरण की संरचना करते है ।

शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण का ज्ञान शिक्षा मानवजीवन के बहुमुखी विकास का एक प्रबल साधन है । इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के अन्दर शारीरिक, मानसिक. सामाजिक, संस्कृतिक तथा आध्यात्मिक बुद्ध एवं परिपक्वता लाना है । शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्राकृतिक वातावरण का ज्ञान अति आवश्यक है ।

प्राकृतिक वातावरण के बारे में ज्ञानार्जन की परम्परा भारतीय संस्कृति में आरम्भ से ही रही है । परन्तु आज के भौतिकवादी युग में परिस्थितियों भिन्न होती जा रही हैं । एक ओर जहां विज्ञान एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए आविष्कार हो रहे हैं तो दूसरी ओर मानव परिवेश भी उसी गति से प्रभावित हो रहा है ।

आने वाले पीढी को पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों का ज्ञान शिक्षा के माध्यम से होना आवश्यक हैं । पर्यावरण तथा शिक्षा के अन्तर्सम्बन्धों का ज्ञान हासिल करके को ई भी व्यक्ति इस दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है । पर्यावरण का विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है, किन्तु उसकी शिक्षा में किसी प्रकार की वैज्ञानिक पेचीदगिया नहीं हैं । शिक्षार्थियों को प्रकृति तथा पारिस्थितिक ज्ञान सीधी तथा सरल भाषा में समझी जानी चाहिए ।

शुरू-शुरू में यह ज्ञान सतही तौर पर मात्र परिचयात्मक ढंग से होना चाहिए । आगे चलकर इसके तकनीकी पहलुओं को विचार किया जाना चाहिए । शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण का ज्ञान मानवीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है ।

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पर्यावरण और पारितंत्र (Environment and Ecology):

पर्यावरण अपनी सम्पूर्णता में एक इकाई है जिसमें अजैविक और जैविक संघटक आपस में विभिन्न अन्तर्कियाओं द्वारा संबद्ध और अन्तर्गुम्फित होते हैं । इसकी यह विशेषता इसे एक पारितंत्र का रूप प्रदान करती है क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र पृथ्वी के किसी क्षेत्र में समस्त जैविक और अजैविक तत्वों के अंतर्सम्बंधित समुच्चय को कहते हैं ।

अतः पर्यावरण भी एक पारितंत्र है । पृथ्वी पर पैमाने के हिसाब से सबसे बृहत्तम पारितंत्र जैवमडल को माना जाता है । जैवमंडल पृथ्वी का वह भाग है जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं और यह स्थलमंडल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल में व्याप्त है । पूरे पार्थिव पर्यावरण की रचना भी इन्हीं इकाइयों से हुई है, अतः इन अर्थों में वैश्विक पर्यावरण, जैवमण्डल और पार्थिव पारितंत्र एक दूसरे के समानार्थी हो जाते हैं ।

माना जाता है कि पृथ्वी के वायुमण्डल का वर्तमान संघटन और इसमें ऑक्सीजन की वर्तमान मात्रा पृथ्वी पर जीवन होने का कारण ही नहीं अपितु परिणाम भी है । प्रकाश-संश्लेषण, जो एक जैविक (या पारिस्थितिकीय अथवा जैवमण्डलीय) प्रक्रिया है, पृथ्वी के वायुमण्डल के गठन को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया रही है ।

इस प्रकार के चिंतन से जुडी विचारधारा पूरी पृथ्वी को एक इकाई गाया, या सजीव पृथ्वी शाप छुहारा के रूप में देखती है । इसी प्रकार मनुष्य के ऊपर पर्यावरण के प्रभाव और मनुष्य द्वारा पर्यावरण पर डाले गये प्रभावों का अध्ययन मानव पारिस्थितिकी और मानव भूगोल का प्रमुख अध्ययन बिंदु है ।

credit:SAZ education

उपसंहार –

कई राज्य सरकारों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून बनाये है। केंद्रीय सरकार के अंतर्गत पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक मंत्रालय का उद्घाटन किया है। इस समस्या के समाधान के लिए जन साधारण का सहयोग बहुत ही सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हो सकता है। विकास की कमी और विकास प्रक्रियाओं से भी पर्यावरण की समस्या उत्पन्न होती हैं। हर साल सरकार को नए नियम बनाना चाहिए जिससे पर्यावरण की रक्षा बड़े ही गंभीरता के साथ करना चाहिए। ताकि आने वाले पीढ़ी को पर्यावरण से हानि नहीं पहुंचना चाहिए तथा पर्यावरण के महत्व को समझना चाहिए।

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