राय कृष्णदास (सन् 1892-1980 ई.)
राय कृष्णदास की जीवनी:
पूरा नाम | राय कृष्णदास |
अन्य नाम | स्नेही |
जन्म | 13 नवंबर, 1892 |
जन्म भूमि | वाराणसी, भारत |
मृत्यु | 1985 |
मृत्यु स्थान | भारत |
कर्म भूमि | वाराणसी |
कर्म-क्षेत्र | लेखक, गद्य गीतकार, कहानीकार |
मुख्य रचनाएँ | ‘साधना’ 1919 ई., ‘अनाख्या’ 1929 ई., ‘सुधांशु’ 1929 ई., ‘प्रवाल’ |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मविभूषण |
प्रसिद्धि | कहानीकार और गद्यगीत लेखक |
विशेष योगदान | हिन्दी में विशेष अभिरुचि और विश्लेषण के साथ राय कृष्णदास की पुस्तकों ने हिन्दी साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाने में सहायता दी है। |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | जयशंकर प्रसाद, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त |
अन्य जानकारी | राय कृष्णदास की चित्रकला, मूर्तिकला एवं पुरातत्त्व में विशेष रुचि थी। ये ‘ललित कला अकादमी’ के सदस्य थे। ‘राय’ की उपाधि इनकी आनुवंशिक थी, जो मुग़ल दरबार से मिली थी। |
जीवन-परिचय:
हिन्दी साहित्य में राय कृष्णदास गद्यगीत के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनका जन्म 13 नवम्बर 1892 ई. को हुआ था। काशी के साहित्य और कला-प्रेमी तथा प्रतिष्ठित राय परिवार में इनके पिता का नाम राय प्रह्लाददास था।
वे भारतेन्दुजी के सम्बन्धी तथा काब्य-कला प्रेमी थे। इनका परिवार कला,संस्कृति और साहित्य-प्रम के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रकार राय कृश्णदास को हिन्दी-प्रेम, पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुआ था जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और मैथिलीशरण गुप्त आदि साहित्यकारों के सम्पर्क में आकर वे 8 वर्ष की आयु में ही कविता करने लगे थे।
जब वे 12 वष्र के अइुए, तभी इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। उन्होंने घर पर ही स्वाध्याय से हिन्दी अंग्रेजी, तथा बँगला का अध्ययन किया।भारतीय कला-आन्दोलन में राय साहब का अद्वितीय स्थान है। उन्होंने ही व्यय से उच्च कोटि ‘ भारत कला भवन’ नामक एक विशाल संग्रहालय की स्थापना की, जो अब बनारस हिन्दू विश्वाविद्यालय का एक भाग है।
उन्होंने भारतीय कलाओं का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत किया है। प्रावीन भारतीय भूगोल एवं पौराणिक वंशावली पर उन्होंने विद्वतापूर्ण शोघ निबन्ध भी प्रस्तुत किए है। सन् 1980 ई. में भारत सरकार उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित किया। इसी वर्ष साहित्य एवं कला के प्रेमी राय कृष्णदास का मॉं भारती की सेवा करते हुए स्वर्गवास हो गया।
राय कृष्णदास का साहित्यिक परिचय:
राय साहब ने कविता, निबन्ध, गद्यगीत, कहानी, कला, इतिहास आदि सभी विषयों पर ग्रन्थों की रचना की। उनका बहुत बड़ा योगदान चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में है। उनकी लिखित ‘भारत की चित्रकला’ और ‘भारतीय मूर्तिकला’ अपने विषय के मौलिक ग्रन्थ हैं। उन्होंने अपने निजी व्यय से एक उच्चकोटि के कला भवन का निर्माण किया। यह चित्रकला और मूर्तिकला आदि का अपने ढंग का एक विशाल संग्रहालय है। अब यह ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ का एक विभाग है और प्राचीन भारतीय कला-संस्कृत के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र है।
‘राय’ की उपाधि
राय कृष्णदास की चित्रकला, मूर्तिकला एवं पुरातत्त्व में विशेष रुचि थी। ये ‘ललित कला अकादमी’ के सदस्य थे। आप राजा पटनीमल के वंशज थे। ‘राय’ की उपाधि इनकी आनुवंशिक थी, जो मुग़ल दरबार से मिली थी। राय कृष्णदास बनारस के मान्य परिवार के हैं। जयशंकर प्रसाद के घनिष्ठ मित्रों में से ये एक थे। राय कृष्णदास ‘भारती भण्डार’ (साहित्य प्रकाशन संस्थान) और ‘भारतीय कला भवन’ के संस्थापक थे।
राय कृष्णदास की कृतियॉं:
राय साहब ने ब्रजभाषा में जो कविताऍं लिखीं, वे ‘ब्रजरज’ में संगृही त है। उन्होंने खड़ी बोली में ‘भावुक’ नामक काव्य-संग्रह भी लिखा है, जिस पर छायावाद का स्पष्अ प्रभाव है। ‘ भारत की चित्रकला ‘ तथा ‘ भारतीय मूर्तिकला’ उनके कला सम्बन्धी प्रामाणिक ग्रन्थ है। इनके अतिरिक्त उनकी अन्य कृतियॉं इस प्रकार है-
- गद्यगीत-संग्रह – साधना, छायापथ
- निबन्ध-संग्रह- संलाप, प्रवाल । इनमें संवाद शैली के निबन्ध संगृहीत हैं।
- कहानी-संग्रह- अनाख्या, सुधांशु और ऑंखों की थाह
- अनुवाद- पगला, यह खलील जिब्रान के ‘दि मैड मैन’ का सुन्दर वर्धन है।
- सम्पादन- इक्कीस कहानियॉं, नयी कहानियॉं
राय कृष्णदास की भाषा-शेैली:
राय साहब की भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों की भरमार है और न बोलचाल के सामान्य शब्दों की उपेक्षा। उनकी भाषा में प्रवाह और सुबोधता के साथ काव्यात्मक माधुर्य है। उनकी भाषा सरल एवं सहज हैै, कहीं पर भी क्लिष्टता के दर्शन नहीं होते हैं। उनके गद्य-लेखन में
- भावात्मक
- गवेषणात्मक
- विवरणात्मक
- चित्रात्मक आदि शैलियों के दर्शन होते हैं।
Note:- राय साहब ने छायावदी युग में हिन्दी गद्य को नया आयाम प्रदान करके अपनी मौौलिकता का परिचय दिया है। उनके मंत्रमुग्ध कर देने वाले गद्य ने अपनी शक्ति के क्षरा पद्य को भी आत्मसात् कर लिया है। हिन्दी के कुशल गद्यगीतकारों में उनका शीर्ष स्थान हेै।
मृत्यु:
राय कृष्णदास जी की मृत्यु सन् 1985 ई. में हुई थी।
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Remark:
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