साहित्यकार श्रीराम शर्मा(सन् 1892-1967 ई.)
जीवन-परिचय:
श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के पास) नामक गॉंव में 23 मार्च 1892 ई. को हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मक्खनपुर में ही हुई। इसकेे पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये अपने बाल्यकाल से ही अत्यन्त साहसी एवं आत्मविश्वासी थे।
राष्ट्रीयता की भावना भी इनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। प्रारम्भीक में इन्होंने शिक्षण-कार्य भी किया। राष्ट्रीय आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भाग लिया ओर जेल भी गये। आत्मविश्वास इनका इतना सबल था। कि बड़ी-से-बड़ी कठिनाई आनें पर भी विहवल नहीं होते थे।
इनका विशेष झुकाव लेखन और पत्रकारिता की ओर था। ये लम्बे समय तक ‘विशाल भारत’ पत्रिका के समपादक रहे। इनके जीवन के अन्तिम दिन बड़ी कठिनाई से बीते। लम्बी बीमारी के बाद सन् 1967 ई. में इनका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक परिचय:
श्रीराम शर्मा ने अपना साहित्यिक जीवन पत्रकारिता से आरम्भ किया। ‘विशाल भारत’ के सम्पादन के अतिरिक्त इन्होंने गणेशशंकर विद्यार्थी के दैनिक पत्र ‘प्रताप’ में भी सहसम्पादक के रूप में काय्र किया। राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत एवं जनमानस को झकझोर देनेवाले लेखलिखकर, इन्होंने अपार ख्याति अर्जित की।
ये शिकार-साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे। हिन्दी -साहित्य का प्रारम्भ इन्हीं के क्षरा माना जाता है। सम्पादन एवं शिकार-साहित्य के अतिरिक्त इन्होंने संस्मरण और आतमकथा आदि विधाओं के क्षेत्र में भी अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख है, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
श्रीराम शर्मा की कृतियॉं :
शिकार-साहित्य- प्रणों का सौदा, जंगल के जीव, बोलती प्रतिमा, और शिकाार ।
संस्मरण-साहित्य: सेवा ग्राम की डायरी, सन् बयालीस के संस्मरण। इनमें लेखक ने तत्कालीन समाज की झाँकी बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की है।
जीवनी- गंगा मैया एवं नेता जी । इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित फुटकर लेख भी आपकी साहितय-साधना के ही अंग है।
श्रीराम शर्मा की भाषा-शैली:
शर्मा जी की भाशा सहज, प्रवाहपूण्र एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये है। इन्होंने अपना भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों के भी प्रयोग किये हैं। मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग इनके कथन को स्पष्ट एवं प्रभावी बनाता है। शर्मा जी की रचना-शैली वर्णनप्रधान है। अपने वर्णन में दृश्य अथवा घटना का ऐसा चित्र खींच देते है जिससे पाठक का भावात्मक तादात्म्य स्थापित हो जाता है।
इनकी कृतियों में:
- चित्रात्मक
- आत्मकथात्मक
- वर्णनात्मक
- विवेचनात्मक शेलियों के दर्शन होते है।
भाषा-
- सहज
- सरल
- प्रवाहयुक्त खड़ी-बोली।
Note:- श्रीराम शर्मा जी शुक्ल एवं शुक्लोत्तर-युग के लेखक है।
Remark:
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