सरदार पूर्ण सिंह (सन् 1881-1931 ई.)
जन्म : 17 फरवरी 1831, एबटाबाद (पाकिस्तान)
भाषा : हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, उर्दू
विधाएँ : कविता, निबंध, लेख
जीवन-परिचय:
सरदार पूर्ण सिंह, द्विवेदी युग के श्रेष्ठ तथासफल निबन्धकार हैं। वे हिन्दी गद्य-साहितय के प्रचार-प्रसार में संलग्न अद्वितीय निबन्धकार है। उन्हाेंने भावात्मक एवं लाक्षणिक शेैली के बनबन्धों की रचना करके इस क्षेत्र में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया।
उनका जन्म 17 फरवरी 1881 ई. एबटाबाद (पंजाब) जनपद के एक गॉंव में हुआ थाा जन्मदात्री माता के सात्विक और धर्मपरायण जीवन ने बालक पूर्ण सिंह को अति प्रभावित किया। हाई स्कूल करने के बाद वे लाहौर चले गयै। लाहौर से इण्टर मीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करके वे रयायनशास्त्र का विशेष अध्ययन करने हेतु जापाल चले गये।
वहॉं पर इम्पीरियल यूनिवर्सिटी में अन्होंने तीन वर्ष तक रसायनशास्त्र का अध्ययन किया। वहां उनकी भेंंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। सवामीजी से प्रभावित होकर उन्होंने संन्यास ले लिया और उन्हीं के साथ भरत लौट आये। बाद में अन्होंने अपना विवाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करना आरम्ीा किया और देहरादून के फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट में नौकरी कर ली।
स्थिति अनुकूल न होने के कारण उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और ग्वालियर चले गये। वहॉं भी अधिक दिन न रहकर पंजाब लौट आये तथा जडॉंवाला(पंजाब) नामक स्थान पर रहकर कृषि – कार्य करने लगे।
31 मार्च 1931 ई. में मात्र 50 वर्ष की अयु में वे इस असार संसार से विदा हो गए।सरदार पूर्ण सिंह की माृतभाषा पंजाबी थी, परन्तु राष्ट्रभाषा हिन्दी से उन्हें विशेष स्नेह था, अत: उन्होंने हिन्दी में उच्च कोटि के निबन्धों की रचना की।
उन्होंने अपनी मौलिक विचारधारा एवं व्यंजनापूर्ण शैली में केवल छ: निबन्धों की रचना की, जिनके कारण वे हिन्दी जगत् में अमर हैें।
सरदार पूर्ण सिंह की कृतियांं एवं निबंध:
पूर्ण सिंह ने अंग्रेज़ी, पंजाबी तथा हिंदी में अनेक ग्रंथों की रचना की, जो इस प्रकार हैं-
अंंग्रेज़ी कृतियां:
‘दि स्टोरी ऑफ स्वामी राम’, ‘दि स्केचेज फ्राम सिक्ख हिस्ट्री’, हिज फीट’, ‘शार्ट स्टोरीज’, ‘सिस्टर्स ऑफ दि स्पीनिंग हवील’, ‘गुरु तेगबहादुर’ लाइफ’, प्रमुख हैं।
पंजाबी कृतियां:
‘अवि चल जोत’, ‘खुले मैदान’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘कविदा दिल कविता’।
अन्य:
वीणाप्लेयर्स, गुरु गोविंदसिंह, दि लाइफ एंड टीचिंग्स ऑव श्री गुरु तेगबहादुर, ‘ऑन दि पाथ्स ऑव लाइफ, स्वामी रामतीर्थ महाराज की असली जिंदगी पर तैराना नजर इत्यादि
सरदार पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध:
- मजदूरी और प्रेम
- आचरण की सम्यता
- सच्ची वीरत
- अमेरिका का मस्त योगी वॉल्ट ह्विटमैन
- कन्यादान
- पवित्रता
सरदार पूर्ण सिंह की भाषा-शैली:
सरदार पूण्र सिंह की भाषा शुद्ध एवं साहित्यिक खड़ी बोली है। उनके साहित्य में उर्दू-फारसी के शब्दों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ है। उनकी भाषा विषय तथा भावों के अनुकूल हे उसमें लक्षण तथा व्यंजना शब्द-शक्तियों का चनम उत्कर्ष देखाा जा सकता है।
सरदार पूण्र सिंह की भाषा शुद्ध साहित्यिक एवं परिमार्जित है। उनकी शैल अनेक दृष्टियों से निजी शैली है। उनके विचार भावुकता से ओत-प्रोत हैं- कहीं वे कवित्व की ओर मुड़ जाते हैं और कहीं उपदेशक के समान प्रतीत होते है।
उनके निबन्धों में भावों की गतिशीलता मिलती है, उसी के अनुसार उनकी शैली भी परिवर्तित हो जाती है।सरदार पूर्ण सिंह हिन्दी के एक समर्थ निबन्धकार है। हिन्दी गद्य-साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान है।
मृत्यु:
सरदार पूर्ण सिंह ने जीवन के अंतिम दिनों में ज़िला शेखूपुरा की तहसील ननकाना साहब के पास कृषि कार्य शुरू किया और खेती करने लगे। वे 1926 से 1930 तक वहीं रहे। नवंबर, 1930 में वे बीमार पड़े, जिससे उन्हें तपेदिक रोग हो गया और 31 मार्च, 1931 को देहरादून में सरदार पूर्ण सिंह का देहांत हो गया।
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