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अलंकार
परिभाषा–अलंकार का अर्थ है-‘आभूषण’; जैसे आभूषण सौन्दर्य को बढ़ाने में सहायक होते हैं, उसी प्रकार काव्य में अलंकारों का प्रयोग करने से काव्य की शोभा बढ़ जाती है; अत: काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकारों के प्रयोग से शब्द और अर्थ में चमत्कार उत्पन्न होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप, गुण, क्रिया का अधिक तीव्रता से अनुभव कराने में सहायक होने वाली उक्ति अलंकार है।
वर्गीकरण–अलंकारों के मुख्य दो वर्ग हैं–
(अ) शब्दालंकार तथा
(ब) अर्थालंकार।
(अ) शब्दालंकार–जहाँ केवल शब्दों के प्रयोग के कारण काव्य में चमत्कार पाया जाता है, उसे शब्दालंकार कहते हैं। यदि उन शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची शब्द रख दिये जाएँ तो वह चमत्कार समाप्त हो जाएगा और वहाँ अलंकार नहीं रह जाएगा।
(ब) अर्थालंकार-जहाँ अर्थ के कारण काव्य में चमत्कार पाया जाता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। इसमें शब्दों के पर्यायवाची रखने पर भी अलंकार बना रहता है।
शब्दालंकार में अनुप्रास, यमक और श्लेष मुख्य हैं, जबकि अर्थालंकारों में उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा मुख्य हैं।
[विशेष-पाठ्यक्रम में केवल उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा अर्थालंकार ही सम्मिलित हैं। पद्यांशों का काव्य-सौन्दर्य लिखने में अनुप्रास, यमक, श्लेष शब्दालंकारों का ज्ञान भी आवश्यक होता है; अत: यहाँ संक्षेप में उनका परिचय भी दिया जा रहा है।
(1) अनुप्रास अलंकार
परिभाषा–जहाँ किसी व्यंजन वर्ण की बार-बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण-‘चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।”
स्पष्टीकरण–यहाँ ‘च’ वर्ण और ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है; अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
(2) यमक अलंकार
परिभाषा–जहाँ एक ही शब्द बार-बार आता है, किन्तु उसका अर्थ भिन्न-भिन्न होता है; वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण—
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय ।
या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय ।।
स्पष्टीकरण-यहाँ ‘कनक’ शब्द दो बार आया है, किन्तु उसके भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। प्रथम ‘कनक’ का अर्थ ‘धतूरा’ तथा दूसरे ‘कनक’ का अर्थ ‘सोना’ है; अतः यहाँ यमक अलंकार है।
(3) श्लेष अलंकार,
परिभाषा–जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त होकर अनेक अर्थ प्रकट करे, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चुन ।।
स्पष्टीकरण–यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं—
- मोती के सम्बन्ध में चमक,
- मनुष्य के सम्बन्ध में सम्मान,
- जून के सम्बन्ध में जल; अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
(4) उपमा अलंकार- [2009, 10, 11, 12, 14, 15, 16, 17, 18]
परिभाषा–जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति की किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से समान गुण-धर्म के आधार पर तुलना की जाए या समानता बतायी जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है; जैसे–‘राधा के चरण गुलाब के समान कोमल हैं।’ यहाँ राधा के चरण की तुलना या समानता गुलाब से दिखाई गयी है। इसलिए यहाँ उपमा अलंकार है।
उपमा अलंकार के निम्नलिखित चार अंग होते हैं|
(1) उपमेय-जिस वस्तु की समानता बतायी जाती है; वह उपमेय (प्रस्तुत) होता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में ‘राधा के चरण’ उपमेय हैं।
(2) उपमान-जिस वस्तु से समानता की जाती है; वह वस्तु उपमान (अप्रस्तुत) कहलाती है। ऊपर दिये गये उदाहरण में ‘गुलाब’ उपमान है।
(3) वाचक-समानता अथवा पहचान को व्यक्त करने वाला शब्द वाचक’ कहलाता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में समान’ शब्द वाचक है।
(4) साधारण धर्म-जो गुण उपमान और उपमेय में समान रूप से रहता है; वह साधारण धर्म कहलाता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में कोमल’ शब्द साधारण धर्म है; क्योंकि यह राधा के चरण और गुलाब दोनों में है।
उदाहरण—
- ‘हरिपद कोमल कमल-से।’ स्पष्टीकरण-उपमेय-हरिपद। उपमान–कमल। वाचक शब्द-। साधारण धर्म-कोमल।
- ‘पीपर पात सरिस मन डोला।’ [2009]
स्पष्टीकरण-उपमेय-मन। उपमान–पीपर पात। वाचक शब्द-सरिस। साधारण धर्म-डोला।
अन्य उदाहरण-
- यहीं कहीं पर बिखर गयी वह, भग्न विजयमाला-सी।
- आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी।
- तम के तागे-सी जो हिल-डुल, चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल।
- करि कर सरिस सुभग भुजदण्डा।
- अनुलेपन-सा मधुर स्पर्श था।
- सजल नीरद-सी कल कान्ति थी।
- छिन्न पुत्र मकरन्द लुटी-सी ज्यों मुझई हुई कली।
- अराति सैन्य सिन्धु में सुबाडवाग्नि-से जलो।
(5) रूपक अलंकार [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
परिभाषा-जहाँ उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप किया जाता है अर्थात् उपमेय (प्रस्तुत) और उपमान (अप्रस्तुत) में अभिन्नता प्रकट की जाये, वहाँ रूपक अलंकार होता है; उदाहरण—
(1) मुख-चन्द्र तुम्हारा देख सखे ! मन-सागर मेरा लहराता। | स्पष्टीकरण–यहाँ मुख (उपमेय) में चन्द्र (उपमान) का तथा मन (उपमेय) में सागर (उपमान) का भेद न करके एकरूपता बतायी गयी है; अत: यहाँ रूपक अलंकार है।
(2) ‘चरण-कमल बन्द हरि राई।। [2010, 11]
स्पष्टीकरण–यहाँ चरण में कमल का भेद न रखकर एकरूपता बतायी गयी है।
अन्य उदाहरण
- हरि-जननी, मैं बालक तेरा।
- मुनि पद-कमल बंदि दोउ भ्राता।
- अँसुवन जल सीचि-सीचि प्रेम बेलि बोई।
- माया-दीपक नर-पतंग भ्रमि भ्रमि इवें पड़ेत। [2009, 10]
- बढ़त-बढ़त सम्पति-सलिलु, मन-सरोज बढ़ि जाय।
- रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय।
- उदित उदयगिरि-मंचे पर, रघुबर-बाल पतंग।
- बिकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन शृंग।।
- अपने अनल-विशिख से आकाश जगमगा दे।
(6) उत्प्रेक्षा अलंकार [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
परिभाषा—जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाये, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मनु-मानो, जनु-जानो, मनहुँ-जनहुँ आदि उत्प्रेक्षा के वाचक शब्द हैं; उदाहरण,
(1) सोहत ओढ़ पीतु पटु, स्याम सलोने गात ।।
मनौ नीलमनि-सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ॥ [2010, 11, 15, 18]
स्पष्टीकरण–यहाँ पीला वस्त्र धारण किये हुए कृष्ण के श्याम शरीर (उपमेय, प्रस्तुत) में प्रात:कालीन धूप से शोभित नीलमणि शैल (उपमान, अप्रस्तुत) की सम्भावना की गयी है; अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(2) मोर-मुकुट की चन्द्रिकनु, यौं राजत नंद-नन्द।
मनु ससि सेखर की अकस, किये सेखर सत-चन्द ॥ [2009, 11, 14]
स्पष्टीकरण-यहाँ मोर पंख से बने मुकुट की चन्द्रिकाओं (उपमेय) में शत-चन्द्र (उपमान) की सम्भावना व्यक्त की गयी है।
अन्य उदाहरण—
(1) लोल-कपोल झलक कुण्डल की, यह उपमा कछु लागत ।
मानहुँ मकर सुधारस क्रीड़त, आपु-आपु अनुरागत ।।
(2) पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से ।।
मानो झूम रहे हों तरु भी, मन्द पवन के झोंको से ।।
(3) धाये धाम काम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लागी । (2013)
(4) उभय बीच सिय सोहति कैसी। ब्रह्म-जीव बिच माया जैसी ।।
बहुरि कहउँ छबि जस मन बसई। जनु मधु मदन मध्य रति लसई ।।
(5) लता भवन ते प्रकट भए, तेहि अवसर दोउ भाई ।। [2009]
निकसे जनु जुग विमल विधु, जलज पटल बिलगाइ ।।
(6) चमचमात चंचल नयन, बिच घूघट पट झीन ।।
मानहुँ सुरसरिता बिमल, जग उछरत जुग मीन ।।। [2012]
(7) चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी। तिलक रेख सोभा जनु चाँकी।
(8) अर्ध चन्द्र सम सिखर-सैनि कहुँ यों छबि छाई ।।
मानहुँ चन्दन-घौरि धौरि-गृह खौरि लगाई ।।
अभ्यास
प्रश्न 1
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए तथा उसका लक्षण (परिभाषा) बताइए
(1) हँसत दसने इक सोभा उपजति उपमा जदपि लजाइ ।
मनो नीलमनि-पुट मुकता-गन, बंदन भरि बगराइ ।।
उत्तर
उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास
(2) अरुन सरोरुह-कर-चरन, दृग-खंजन, मुख-चन्द ।
उत्तर
रूपक तथा अनुप्रास
(3) मुख मयंक सम मंजु मनोहर । ।
उत्तर
उपमा, रूपक तथा अनुप्रास
(4) अनुराग तड़ाग में भानु उदै। बिगसी मनो मंजुल कंज कली ।।
उत्तर
रूपक
(5) बिपति कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत ।।
उत्तर
रूपक
(6) भज मन चरण-कॅवल अबिनासी ।।
उत्तर
रूपक
(7) जौ चाहते चटक न घटे, मैलौ होई न मित्त ।।
उत्तर
रूपक
(8) मनो रासि महातम तारक मैं ।
उत्तर
उत्प्रेक्षा
(9) बन्द नहीं अब भी चलते हैं, नियति-नटी के कार्य-कलाप ।
उत्तर
रूपक
(10) बीती विभावरी जाग री ।।
अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी ।
उत्तर
रूपक
(11) अति कटु बचन कहत कैकेयी। मानहुँ लोन जरे पर देई ।।
उत्तर
उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास
(12) दादुर धुनि चहुँ दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।
उत्तर
उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास
(13) बन्दउँ कोमल कमल से, जगजननी के पाँव ।।
उत्तर
उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास
(14) कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय गुनि ।।
मानहुँ मदन दुन्दुभी दीन्हीं। मनसा विश्वविजय कहुँ कीन्हीं ।।
उत्तर
उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास।
[ संकेत–अलंकारों के लक्षण (परिभाषा) के लिए पहले दिये गये विवरण को पढ़िए।]
प्रश्न 2
उपमा अथवा रूपक अलंकार की परिभाषा लिखिए और उसका उदाहरण दीजिए। [2011, 12, 14, 15]
या
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा लिखिए तथा एक उदाहरण दीजिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16]
या
उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण और उदाहरण लिखिए। उपमा अलंकार की परिभाषा तथा उदाहरण लिखिए। [2011, 12, 14]
या
उपमा अलंकार के लक्षण और उदाहरण लिखिए। उपमा के चारों अंगों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
उपमा अलंकार के अंगों का उल्लेख करते हुए उसकी परिभाषा लिखिए। एक उदाहरण भी दीजिए|
उत्तर
[ संकेत–उपमा, रूपक तथा उत्प्रेक्षा अलंकार के विवरण में देखिए।]
प्रश्न 3
रूपक अलंकार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
या
रूपक अलंकार की परिभाषा सोदाहरण लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16]
उत्तर
[ संकेत–रूपक अलंकार के विवरण में देखिए।]
प्रश्न 4
पठित अलंकारों में से किसी एक अलंकार की उदाहरण सहित परिभाषा लिखिए।
उत्तर
[ संकेत–अलंकारों के विवरण से अध्ययन करें।]
प्रश्न 5
उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अन्तर बताइए। [2012]
उत्तर
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता निश्चयपूर्वक प्रकट की जाती है; जैसे-मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। यहाँ मुख (उपमेय) और चन्द्रमा (उपमान) में सुन्दरता (समान धर्म) के आधार पर समानता स्थापित की गयी है परन्तु उत्प्रेक्षा अलंकार में उपमेय और उपमान में मात्र सम्भावना प्रकट की जाती है, वह निश्चित रूप से स्थापित नहीं की जाती; जैसे-मुख मानो चन्द्रमा है।
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