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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 जलवायु (अनुभाग – तीन)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जलवायु से आप क्या समझते हैं ? जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों (परिघटनाओं) का वर्णन कीजिए। [2006, 11, 13]
या
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले किन्हीं दो तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2007, 08, 10]
या
भारत की जलवायु पर हिमालय की स्थिति (उच्चावच) के दो प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तीन कारकों को स्पष्ट कीजिए। [2013]
या
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों का उल्लेख कीजिए। [2011, 13]
या
भारत की स्थिति का उसकी जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
या
भारत की जलवायु पर हिमालय पर्वत का क्या प्रभाव पड़ता है ?
या
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तीन कारकों को बताइए। [2015, 16]
उत्तर :
जलवायु
लम्बी अवधि (30 से 50 वर्षों) के दौरान मौसम सम्बन्धी दशाओं के साधारणीकरण को जलवायु कहते हैं, अर्थात् भू-पृष्ठ के विस्तृत क्षेत्र में मौसम की दशाओं की समग्र जटिलता, उसके औसत लक्षण और परिवर्तन का परिसर जलवायु कहलाता है। सामान्यतः ये दशाएँ अनेक वर्षों की दशाओं का परिणाम होती हैं और ताप, वायुमण्डलीय दाब, वायु आर्द्रता, मेघ, वर्षण तथा अन्य मौसम तत्त्वों के कारण उत्पन्न होती हैं।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
विभिन्न स्थानों पर भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं
1. अवस्थिति- भारत भूमध्य रेखा के उत्तर में 8°4′ तथा 37°6′ उत्तर अक्षांश तथा 68°7′ से 97°25 पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। कर्क वृत्त रेखा देश के लगभग मध्य से होकर गुजरती है। इसीलिए देश का उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबन्ध में तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। इस कटिबन्धीय स्थिति के कारण दक्षिणी भाग में ऊँचे तापमान तथा उत्तरी भाग में विषम तापमान पाये जाते हैं। भारत हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा एक प्रायद्वीपीय देश है। इस प्रायद्वीपीय स्थिति का प्रभाव तापमानों तथा वर्षा पर पड़ता है। समुद्रतटीय भागों की जलवायु सम रहती है, जब कि आन्तरिक भागों में विषम जलवायु पायी जाती है। वर्षा की मात्रा भी तटीय भगों से आन्तरिक भागों की ओर घटती है।
2. पृष्ठीय पवनें- उपोष्ण कटिबन्धीय स्थिति के कारण भारत शुष्क व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में पड़ता है, किन्तु भारत की विशिष्ट प्रायद्वीपीय स्थिति, तापमानों-वायुदाब की भिन्नता आदि कारणों से भारत में मानसूनी पवनें सक्रिय रहती हैं। ये पवनें ऋतु-क्रम से अपनी दिशा बदलती रहती हैं। तदनुसार भारत में ग्रीष्मकालीन (दक्षिण-पश्चिमी) मानसून तथा शीतकालीन (उत्तर-पूर्वी) मानसून सक्रिय होते हैं। इन्हीं मानसूनों से भारत को अधिकांश वर्षा प्राप्त होती है। अत: भारतीय मानसून के अध्ययन के बिना उसकी जलवायु के विषय में नहीं जाना जा सकता।
3. उच्चावच (हिमाचल)– भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत-श्रेणी एक प्रभावशाली जलवायु विभाजक का कार्य करती है। यह उत्तरी बर्फीली पवनों को भारत में प्रवेश करने से रोकती है तथा दक्षिण की ओर से आने वाली मानसूनी पवनों को रोककर देश में व्यापक वर्षा कराती है। इसी प्रकार पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ भी अरबसागरीय मानसूनों को रोककर पश्चिमी ढालों पर भारी वर्षा कराती हैं। हिमालय रूपी पर्वत-श्रृंखला के कारण ही उत्तरी भारत में उष्ण-कटिबन्धीय जलवायु पायी जाती है। इस जलवायु की दो विशेषताएँ हैं—(i) पूरे वर्ष में अपेक्षाकृत उच्च तापमान तथा (ii) शुष्क शीत ऋतु। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में ये दोनों ही विशेषताएँ पायी जाती हैं।
4. उपरितन वायु- उपरितन वायु से अभिप्राय ऊपरी वायुमण्डल में चलने वाली वायुधाराओं से है। ये भूपृष्ठ से बहुत ऊँचाई पर (9 किमी से 12 किमी तक) तीव्र गति से चलती हैं। इन्हें जेट वायुधाराएँ भी कहते हैं। ये बहुत सँकरी पट्टी में चलती हैं। शीत ऋतु में हिमालय के दक्षिणी भाग के ऊपर स्थित समताप मण्डल में पश्चिमी जेट वायुधारा चलती है। जून में यह उत्तर की ओर खिसक जाती है तथा 15° उत्तरी अक्षांश के ऊपर चलने लगती है। उत्तरी भारत में मानसून के अचानक विस्फोट के लिए यही वायुधारा उत्तरदायी मानी जाती है। इसके शीतल प्रभाव से बादल उमड़ने लगते हैं, फिर बरसते हैं। आठ-दस दिनों में ही पूरे देश में मानसून का प्रसार हो जाता है। ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु में इनका वेग दोगुना हो जाता है। साधारणत: इनको वेग लगभग 500 किमी प्रति घण्टा होता है तथा ध्रुवों की ओर बढ़ने पर इनके वेग में कमी आ जाती है।
5. अलनिनो- यह एक ऐसी मौसमी परिघटना है, जिसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है। भारत की मानसूनी जलवायु भी इस परिघटना से प्रभावित होती है। इस तन्त्र में पूर्वी प्रशान्त महासागर के पीरू तट पर गर्म धारा प्रकट होने पर हिन्द महासागर में स्थित भारत में अकाल या वर्षा की कमी की स्थिति हो जाती है। अलनिनो के समाप्त होने पर प्रशान्त महासागर की सतह पर तापमान तथा वायुदाब की स्थिति पहले जैसी हो जाती है। इन उतार-चढ़ावों को दक्षिणी दोलन’ (Southern Oscillation) कहा जाता है। मानसूनों के प्रबल या दुर्बल होने में ‘दक्षिणी दोलन’ का बहुत प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 2.
भारत की ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन जलवायु का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय जलवायु का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) शीत ऋतु तथा (ख) ग्रीष्म ऋतु।
या
शीत ऋतु में दक्षिण भारत में वर्षा क्यों होती है ?
उत्तर :
भारत की ग्रीष्मकालीन जलवायु भारत में ग्रीष्मकालीन जलवायु मार्च से मध्य जून तक रहती है। इस ऋतु में देश में मौसम की सामान्य दशाएँ निम्नलिखित होती हैं
1. तापमान– सूर्य के उत्तरायण होने के कारण ऊष्मा की पेटी दक्षिण से उत्तर की ओर खिसकने लगती है। सम्पूर्ण देश में तापमान बढ़ने लगता है। अप्रैल में, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में तापमान 42° से 43° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। मई में, तापमान की वृद्धि 48° सेल्सियस तक हो जाती है तथा मरुस्थलीय क्षेत्र में 50° सेल्सियस तक तापमान पहुँच जाता है।
2. वायुदाब तथा पवनें– उत्तरी भारत में तापमानों की वृद्धि होने से वायुदाब घट जाता है। मई के अन्त तक एक लम्बा सँकरा निम्न वायुदाब गर्त थार मरुस्थल से लेकर बिहार में छोटा नागपुर के पठार तक विस्तृत हो जाता है। इस निम्न वायुदाब गर्त के चारों ओर वायु का संचरण होने लगता है। दोपहर के बाद शुष्क और गर्म ‘लू (पवने) चलने लगती हैं। पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में सायंकाल को धूलभरी आँधियाँ आती हैं। यदा-कदा आँधियों के बाद हल्की वर्षा हो जाती है तथा मौसम सुहाना हो जाता
3. वर्षण– यदा-कदा आर्द्रता से लदी पवनें मानसून के निम्न दाब गर्त की ओर खिंच आती हैं। तब शुष्क और आर्द्र वायु-राशियों के मिलने से स्थानीय तूफान आते हैं। तेज पवनें, मूसलाधार वर्षा और कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं।
केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में ग्रीष्म ऋतु के अन्त में तथा मानसून से पूर्व कुछ वर्षा होती है, जिसे स्थानीय रूप से ‘आम्रवर्षा’ कहते हैं। यह वर्षा आम के फल को शीघ्र पकाने में सहायक होती है, इसीलिए इसे ‘आम्रवृष्टि’ नाम दिया गया है। अप्रैल में, बंगाल और असोम में उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा मेघ गर्जन, तड़ित-झंझा के साथ तेज बौछारें पड़ती हैं। इन्हें ‘काल-बैसाखी’ कहते हैं। कभी-कभी इन पवनों के द्वारा इन क्षेत्रों को भारी हानि भी उठानी पड़ जाती है।
भारत की शीतकालीन जलवायु
भारत में शीतकालीन जलवायु दिसम्बर से फरवरी तक रहती है। इस जलवायु की सामान्य दशाएँ निम्नलिखित हैं
1. तापमान– सामान्यतः देश में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा समुद्र तट से आन्तरिक भागों की ओर घटते हैं। तिरुवनन्तपुरम् तथा चेन्नई में दिसम्बर में औसत तापमान 25°से 27°C के लगभग रहते हैं। दिल्ली और जोधपुर में तापमान 15° से 16°C तक रहते हैं। लेह में औसत तापमान -6°C तक गिर जाते हैं। उत्तरी मैदान में व्यापक रूप से पाला पड़ता है। इस ऋतु में दिन सामान्यतः कोष्ण (कम उष्ण) एवं रातें ठण्डी होती हैं।
2. वायुदाब- देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में उच्च वायुदाब क्षेत्र स्थापित होता है। यहाँ से पवनें बाहर की ओर 3 किमी से 5 किमी प्रति घण्टा के वेग से चलने लगती हैं। इस क्षेत्र की स्थलाकृति का प्रभाव भी इन पवनों पर पड़ता है। समुद्रवर्ती भागों में कम वायुदाब रहता है; अतः पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। गंगा घाटी में इन पवनों की दिशा पश्चिमी या उत्तर-पश्चिमी होती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में इनकी दिशा उत्तरी हो जाती है। स्थलाकृति के प्रभाव से मुक्त होकर बंगाल की खाड़ी के ऊपर इनकी दिशा उत्तर- पूर्वी हो जाती है।
3. वर्षा- स्थलीय पवनें शुष्क होती हैं; अतः प्राय: सम्पूर्ण देश में मौसम शुष्क रहता है। भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है। हिमालय श्रेणी में हिमपात होता है। तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसूनी पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं, तो ये कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं तथा तटों पर वर्षा करती हैं।
प्रश्न 3.
भारत में वर्षा के वार्षिक वितरण को स्पष्ट कीजिए तथा अपने उत्तर की पुष्टि रेखाचित्र से कीजिए।
या
भारतीय वर्षा के वितरण पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :
भारत में वर्षा का वार्षिक वितरण
भारत में वर्षा का वितरण बहुत विषम है। देश में कुल वर्षा का औसत लगभग 110 सेमी (40 इंच) है किन्तु इस सामान्य से वर्षा का विचलन 10% से 40% तक हो जाता है। सामान्यतः 85% वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों (जुलाई-सितम्बर) से प्राप्त होती है, लगभग 10% ग्रीष्मकालीन मानसूनों से, 5% लौटते हुए मानसूनों से (अक्टूबर-दिसम्बर) तथा 5% शीतकाल में होती है। देश में वर्षा का प्रादेशिक वितरण भी बहुत असमान रहता है। सामान्य रूप से भारत में वर्षा की निश्चितता तथा अनिश्चितता के आधार पर उसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. निश्चित वर्षा के प्रदेश- इस प्रदेश के अन्तर्गत हिमालय को तराई प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, असोम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, ऊपरी नर्मदा घाटी तथा मालाबार तट सम्मिलित किये जाते हैं।
2. अनिश्चित वर्षा के प्रदेश- अनिश्चित वर्षा के प्रदेश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के मध्यवर्ती भाग, पूर्वी घाट, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश के दक्षिणी और पश्चिमी भाग, कर्नाटक, बिहार तथा ओडिशा सम्मिलित हैं। अनिश्चित वर्षा वाले प्रदेशों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है
- अधिक वर्षा वाले क्षेत्र– इसके अन्तर्गत पश्चिमी तट के कोंकण, मालाबार, दक्षिणी कनारा तथा उत्तर में हिमालय के दक्षिणी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय, असोम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर तथा त्रिपुरा राज्य सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा का औसत 200 सेमी से अधिक रहता है।
- साधारण वर्षा वाले क्षेत्र– इन क्षेत्रों में बिहार, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी घाट के पूर्वोत्तर ढाल, पश्चिम बंगाल, दक्षिणी उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा का औसत 100 से 200 सेमी के मध्य रहता है। इन क्षेत्रों में वर्षा की विषमता 15 से 20% तक पायी जाती है। कभी-कभी इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होने से बाढ़ आ जाती है, जबकि कभी वर्षा
की कमी से अकाल पड़ जाते हैं। इस प्रकार इन क्षेत्रों में वर्षा की अधिकता एवं कमी में मानसूनों का प्रमुख योगदान होता है। इसी कारण यहाँ बड़ी-बड़ी बहुउद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाएँ क्रियान्वित की गयी हैं। - न्यून वर्षा वाले क्षेत्र– इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी अनुभव की जाती है। यहाँ पर वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 100 सेमी तक रहता है। इस प्रदेश के अन्तर्गत दक्षिण का प्रायद्वीप, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी एवं दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पंजाब तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश राज्यों के भाग सम्मिलित हैं। वर्षा की विषमता 20 से 25 सेमी तक तथा अपर्याप्त व अनिश्चित रहती है। इन प्रदेशों में अकाल की सम्भावना बनी रहती है। अतः यहाँ सिंचाई के सहारे गेहूँ, कपास, ज्वार, बाजरा, तिलहन आदि फसलें उत्पन्न की जाती हैं।
- अपर्याप्त वर्षा के क्षेत्र अथवा मरुस्थलीय क्षेत्र- ये भारत के शुष्क क्षेत्र हैं, जहाँ पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। वर्षा की कमी के कारण यहाँ सदैव सूखे की समस्या बनी रहती है। बिना सिंचाई के कृषि कार्य इन क्षेत्रों में बिल्कुल असम्भव है। पश्चिमी राजस्थान के सम्पूर्ण क्षेत्र इसके अन्तर्गत आते हैं। तमिलनाडु का रायलसीमा क्षेत्र भी इसके अन्तर्गत आता है।
प्रश्न 4.
भारत की अधिकांश वर्षा गर्मियों में होती है-कारणों का उल्लेख करते हुए भारत में वर्षा का वितरण लिखिए।
या
भारत की मानसून ऋतु का वर्णन कीजिए।
या
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की वर्षा से प्रभावित किन्हीं दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा होने वाली वर्षा का वर्णन कीजिए।
या
आगे बढ़ता हुआ मानसून’-भारत की इस ऋतु का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत की वर्षा ऋतु (मानसून ऋतु)
वर्षा ऋतु ( आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु )–जून से सितम्बर के मध्य सम्पूर्ण देश में व्यापक रूप से वर्षा होती है। वर्षा का 75% से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है।
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति- ग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। जून के प्रारम्भ तक निम्न वायुदाब का यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिण गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर खिंच आती हैं। इन दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों की उत्पत्ति समुद्र से होती है। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार करके ये पवनें बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में पहुँच जाती हैं। इसके बाद ये भारत के वायु-संचरण का अंग बन जाती हैं। विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। विषुवत् वृत्त पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इसीलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून’ कहा जाता है।
मानसून का फटना- वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेज चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किमी प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिम के दूरस्थ भागों को छोड़कर ये पर्वनें एक महीने के अन्दर-अन्दर सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से लदी इन पवनों के साथ ही बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे मानसून का ‘फटना’ अथवा ‘टूटना’ कहते हैं।
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की शाखाएँ- भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति के कारण मानसून की दो शाखाएँ। हो जाती हैं
(1) अरब सागर की शाखा- अरब सागर की शाखा सबसे पहले पश्चिमी घाट के पर्वतों से टकराकर सह्याद्रि के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा करती है। पश्चिमी घाट को पार करके यह शाखा दकन के पंठार और मध्य प्रदेश में पहुँच जाती है। वहाँ भी इससे पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है। तत्पश्चात् इसका प्रवेश गंगा के मैदानों में होता है, जहाँ बंगाल की खाड़ी की शाखा भी आकर इसमें मिल जाती है। अरब सागर के मानसून की शाखा का दूसरा भाग सौराष्ट्र के प्रायद्वीप तथा कच्छ में पहुँच जाता है। इसके बाद यह पश्चिमी राजस्थान और अरावली पर्वत-श्रेणियों के ऊपर से गुजरता है। वहाँ इसके द्वारा बहुत हल्की वर्षा होती है। पंजाब और हरियाणा में पहुँचकर यह शाखा भी बंगाल की खाड़ी की शाखा में मिलकर हिमालय के पश्चिमी भाग में भारी वर्षा करती है।
(2) बंगाल की खाड़ी की शाखा- बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा म्यांमार (बर्मा) तट की ओर तथा बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भागों की ओर बढ़ती है। परन्तु म्यांमार के तट के साथ-साथ फैली अराकान पहाड़ियाँ इस शाखा के बहुत बड़े भाग को भारतीय उपमहाद्वीप की दिशा में मोड़ देती हैं। इस प्रकार यह पश्चिमी दिशा से न आकर दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वी दिशाओं से आती है। विशाल हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब के प्रभाव से यह शाखा दो भागों में बँट जाती है। एक शाखा पश्चिम की ओर बढ़ती है तथा गंगा के मैदानों को पार करती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुँचती है। इसकी दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र की घाटी की ओर बढ़ती है। यह उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। इसकी एक उपशाखा मेघालय में गारो और खासी की पहाड़ियों से टकराती है और वहाँ खूब वर्षा करती है। सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम (Mausinram) (मेघालय) में होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा को औसत 11,405 मिलीमीटर है।
वर्षा का वितरण– दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा के वितरण पर उच्चावच का बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए-पश्चिमी घाट के पवनविमुख ढालों पर 250 सेमी से अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी भारी वर्षा होती है, परन्तु उत्तरी मैदानों में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। इस विशिष्ट ऋतु में कोलकाता में लगभग 120 सेमी, पटना में 102 सेमी, इलाहाबाद में 91 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है।
प्रश्न 5.
भारतीय जलवायु के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय जलवायु में पायी जाने वाली विषमताओं तथा कृषि पर उनके प्रभाव का वर्णन कीजिए।
या
भारत में मानसून के किन्हीं दो प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारतीय जलवायु के मुख्य तत्त्व-तापमान तथा वर्षा हैं। समस्त देश में तापमानों तथा वर्षा का वितरण असमान पाया जाता है। इन विषमताओं का प्रभाव भारतीय कृषि पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भारत की जलवायु में बहुत अधिक विषमताएँ पायी जाती हैं। इन विषमताओं को उत्पन्न करने में निम्नलिखित कारक सहायक होते हैं
1. तापमानों की विषमताएँ- देश के विभिन्न भागों में तापमानों की भिन्नता पायी जाती है। दक्षिणी | भारत उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है; अत: वहाँ वर्षपर्यन्त ऊँचे तापमान रिकॉर्ड किये जाते हैं। इसके विपरीत, कर्क रेखा के उत्तर के क्षेत्र उपोष्ण कटिबन्धीय स्थिति के कारण ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में तापमानों की अतिशयताओं का अनुभव करते हैं। हिमालय के पर्वतीय भागों में तो शीत काल में तापमान शून्य के ऊपर रहते हैं। मरुस्थलीय भागों में शीत काल में बहुत कम तापमान तथा ग्रीष्म काल में बहुत ऊँचे तापमान पाये जाते हैं।
2. वर्षा के वितरण की विषमताएँ- देश में वर्षा का प्रादेशिक वितरण बहुत विषम है। मेघालय, असम, बंगाल आदि में 200 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा होती है, जब कि गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में वार्षिक वर्षा का वितरण औसत 25 सेमी से 100 सेमी तक रहता है। आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा दकन के पठार के आन्तरिक भागों में 50 से 100 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है। इसी प्रकार पूर्वी हिमालय में 200 सेमी से अधिक तथा पश्चिमी हिमालय में 100 से 150 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है। हम जानते हैं कि वायुराशियों द्वारा अवरोधं के सम्मुख वाले भाग में अत्यधिक वर्षा होती है, जब कि विमुख भागों तक पहुँचते-पहुंचते वायुराशियाँ अपनी आर्द्रता खो देने के कारण शुष्क और उष्ण हो जाती हैं और वहाँ बहुत कम वर्षा ही हो पाती है। इन प्रदेशों को वृष्टिछाया प्रदेश कहते हैं; उदाहरणार्थ-भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा पश्चिमी घाट के वायु अभिमुख ढाल पर 640 सेमी (महाबलेश्वर) वर्षा होती है, जब कि इसके विमुख ढाल पर पुणे में 50 सेमी वर्षा भी कठिनाई से हो पाती है; अत: दक्षिणी भारत का यह क्षेत्र-वृष्टिछाया प्रदेश कहलाता है।
3. वर्षा की ऋत्विक विषमताएँ- देश के अधिकांश भागों में जुलाई से सितम्बर के मध्य अधिकांश वर्षा (85% तक) होती है, किन्तु तमिलनाडु में शीतकालीन तथा लौटते हुए मानसूनों से अधिक वर्षा होती है। उत्तरी भारत में चक्रवातों से शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात होता है।
4. वर्षा का सामान्य से विचलन– प्रत्येक वर्ष मानसून एक जैसे सक्रिय नहीं होते। किसी वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा होती है तथा किसी वर्ष सामान्य से कम। वर्षा की यह अनियमित तथा अनिश्चित प्रकृति प्रादेशिक रूप से भी दृष्टिगोचर होती है। इसीलिए देश के कुछ भागों में जब बाढ़े आती हैं, तब कुछ भागों में सूखे की स्थिति भी होती है।
जलवायु की विषमता का कृषि-उपजों या मानव-जीवन पर प्रभाव
भारत की जलवायु मानसूनी है। मानसून की विलक्षणता के कारण इसे ‘भारत के आर्थिक जीवन की धुरी’ कहा गया है। पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। मनुष्य की वेशभूषा, खान-पान, गृह-प्रकार, जन-स्वास्थ्य आदि सभी पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके निम्नलिखित प्रभाव उल्लेखनीय हैं
- भारत में खरीफ फसलों की बुवाई वर्षा के आरम्भ होने के साथ शुरू हो जाती है। यदि वर्षा समय से प्रारम्भ हो जाती है और नियमित अन्तराल पर होती रहती है तो कृषि उत्पादन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है।
- जिन भागों में कम वर्षा होती है अथवा सूखा पड़ता है वहाँ कृषि फसलें सिंचाई के बिना पैदा नहीं की जा सकती हैं।
- अत्यधिक उष्णता एवं आर्द्रता बीमारियों को जन्म देती हैं। इनसे मनुष्य पुरुषार्थहीन हो जाता है तथा उसकी कार्यक्षमता में कमी आती है।
- ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान बहुत ऊँचे हो जाते हैं और ‘लू’ चलने लगती है, जिससे खेतों में काम करना भी कठिन हो जाता है।
- मूसलाधार वर्षा से बाढ़ आ जाती हैं और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कृषि-फसलें नष्ट हो जाती हैं।
- भीषण गर्मी के बाद वर्षा का मौसम आरम्भ हो जाता है, जो मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। इससे अनेक संक्रामक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। देश के कुछ भागों में मलेरिया व हैजा जैसे रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
- मानव की वेशभूषा भी जलवायु से प्रभावित होती है। उत्तर भारत में लोग शीत ऋतु में ऊनी कपड़े पहनते हैं तथा दक्षिण भारत में सफेद हल्के व सूती वस्त्र पहने जाते हैं।
- समय से पूर्व वर्षा आरम्भ होने तथा समय से पहले वर्षा समाप्त होने से भी आर्थिक क्रिया- कलाप प्रभावित होते हैं।
- जलवायु का प्रभाव घरों के निर्माण पर भी पड़ता है। भारत में मकान हवादार बनाये जाते हैं। उनमें आँगन व बरामदों की अधिक आवश्यकता होती है, क्योंकि भारत में ग्रीष्म काल की अवधि लम्बी होती है, जब कि शीत ऋतु थोड़े समय के लिए ही होती है।
- भारत में ग्रीष्म ऋतु में हरे चारे की कमी हो जाती है, जिससे पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- भारत के कुछ प्रदेशों; विशेषकर पंजाब में गेहूं व गन्ना की फसलों को लाभ मिलता है।
- भारत के वित्तीय बजट को ‘मानसून का जुआ’ कहा गया है, क्योंकि भारत में किसी वर्ष वर्षा बहुत | कम होती है, जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं और देश में अकाल पड़ जाता है तथा कभी-कभी वर्षा अधिक हो जाती है, जिसके कारण नदियों में बाढ़ आ जाती है। इससे भी फसलें नष्ट हो जाती हैं।
- भारत की जलवायु ने कृषकों को भाग्यवादी एवं निराशावादी बना दिया है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मानसूनी वर्षा के रूप में भारतीय जलवायु कृषि-उपजों को सर्वाधिक प्रभावित करती है।
प्रश्न 6.
भारत की जलवायु की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2013]
या
भारतीय जलवायु की किन्हीं पाँच विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2013]
या
सम और विषम जलवायु में अन्तर लिखिए।
या
विषम जलवायु से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
या
मानसूनी जलवायु की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर :
भारत की स्थिति भूमध्य रेखा के उत्तर में है और कर्क रेखा देश के मध्य से गुजरती है। कर्क रेखा देश को दो भागों में विभाजित कर देती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबन्ध तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। भारत में उत्तर की ओर हिमालय पर्वत-श्रेणी तथा दक्षिण-पूर्वी एवं दक्षिण-पश्चिमी दिशाओं में हिन्द महासागर की स्थिति है, जिन्होंने इसकी जलवायु को बहुत प्रभावित किया है। इसी कारण भारत में विविध प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। वस्तुतः भारत की जलवायु पूर्णतः मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। जिन भागों में मानसूनों के मार्ग में कोई अवरोध उपस्थित होता है, उन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है; जैसे–पश्चिमी घाट तथा हिमालय पर्वत के दक्षिणी ढालों पर।
एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में तापमान एवं वर्षण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में भारत के पश्चिम में स्थित थार मरुस्थल में इतनी प्रचण्ड गर्मी पड़ती है कि तापमान प्रायः 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है, जब कि शीत ऋतु में कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र के लेह नगर में इतनी कड़ाके की ठण्ड पड़ती है कि तापमान जमाव बिन्दु से 45° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है; अर्थात् -45° सेल्सियस तक चला जाता है। केरल और अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में दिन और रात के तापमान में 7° या 8° सेल्सियस का अन्तर पाया जाता है। इसके विपरीत थार मरुस्थल में यदि दिन का तापमान 50° सेल्सियस रहता है तो रात में यह जमाव बिन्दु 0° तक पहुँच सकता है। जब हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में हिमपात होता है, तब शेष भारत में वर्षा की बौछारें पड़ती हैं। कुछ विदेशी विद्वानों ने भारत को अनेक जलवायु वाला देश बताया है। ब्लैनफोर्ड (Blanford) का कथन है कि “हम भारत की जलवायुओं के विषय में कह सकते हैं, जलवायु के विषय में नहीं, क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में जलवायु की इतनी विषमताएँ नहीं मिलतीं जितनी अकेले भारत में प्रसिद्ध जलवायु विज्ञानवेत्ता मार्सडेन ने भी कहा है कि “विश्व की समस्त जलवायु की किस्में भारत में पाई जाती हैं।” स्पष्ट है कि भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में तापमान, वायुदाब तथा पवनें एवं वर्षण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। भारत में प्रमुख रूप से दो प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं—(1) सम और (2) विषम।
1. समजलवायु- सम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहाँ गर्मियों में न अधिक गर्मी पड़ती है। और ने सर्दियों में अधिक सर्दी। जहाँ तापमान वर्षभर लगभग समान रहता है। ऐसी जलवायु प्रायः . समुद्र के तटीय प्रदेशों में पाई जाती है। समुद्र के प्रभाव के कारण तटीय क्षेत्रों में सम जलवायु पाई जाती है। ऐसी जलवायु में दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर बहुत ही कम पाया जाता है। केरल के तिरुवनन्तपुरम् में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
2. विषम जलवायु- विषम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहाँ गर्मियों में अत्यधिक गर्मी तथा सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है। जहाँ तापमान वर्षभर असमान रहता है। ऐसी जलवायु महाद्वीपों के आन्तरिक भागों अथवा समुद्र से दूर के भागों में पाई जाती है। सूर्य की किरणों से जल की अपेक्षा धरती दिन में जल्दी गर्म और रात में जल्दी ठण्डी हो जाती है। अत: धरती के प्रभाव के कारण विषम जलवायु का जन्म होता है। ऐसी जलवायु में दैनिक तापान्तर और वार्षिक तापान्तर अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। जोधपुर (राजस्थान) तथा अमृतसर (पंजाब) में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
प्रश्न 7.
भारत में मानसून की उत्पत्ति तथा वर्षा का वितरण बताइट। [2013, 14]
या
भारत में मानसून की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए। [2015]
या
निम्नलिखित शीर्षकों में भारत में मानसूनी वर्षा का वर्णन कीजिए [2015]
(क) वायु की दिशा, (ख) वर्षा का वितरण।
उत्तर :
मानसून का अर्थ , मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है जिसका तात्पर्य मौसम या ऋतु है। मौसम का आवर्तन मानसूनी जलवायु की प्रमुख विशेषता है। भारत में इस प्रकार की हवाएँ वर्ष में दो बार उच्च वायु भार से निम्न वायु भार की ओर चलती हैं। ग्रीष्म ऋतु में ये हवाएँ समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं, जबकि शीत ऋतु में ये हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं। ग्रीष्म ऋतु तथा शीत ऋतु के मौसम के मध्य पवनों की दिशा में 120° का अन्तर पाया जाता है। इन पवनों की न्यूनतम गति तीन मीटर प्रति सेकण्ड होती है, इसलिए इन्हें मानसूनी पवनें कहते हैं।
मानसून की रचना
मानसून की रचना के सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं। इसके लिए सबसे मुख्य और प्राचीन मत है स्थलीय और जलीय हवाएँ जो शीत ऋतु में स्थल की ओर और ग्रीष्म ऋतु में जल की ओर बहती हैं। ग्रीष्म ऋतु में अधिक तापमान के कारण स्थर पर निम्न वायुदाब का केन्द्र बन जाता है जिससे हवाएँ समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं, जबकि शीत ऋतु में इसके बिल्कुल विपरीत होता है। समुद्री भाग पर निम्न वायुदाब के केन्द्र के कारण हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं। आधुनिक शोधों के कारण अब यह मत मान्य नहीं है। अब वैज्ञानिक मानसून की उत्पत्ति के लिए जेट पवनों को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इस मत के अनुसार । मानसून की उत्पत्ति वायुमण्डलीय पवन के संचार से होती है जिसमें तिब्बत का पठार मुख्य है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण ये पठार गर्म होकर भट्ठी की तरह काम करता है। इस कारण इन अक्षांशों (20° उत्तरी अक्षांश से 20° दक्षिणी अक्षांश) में धरातल एवं क्षोभमण्डल के बीच वायु का एक आवृत्त बन जाता है।
क्षोभमण्डल में उष्णकटिबन्धीय पुरवा जेट तथा उपोष्ण कटिबन्धीय पछुआ जेट धाराओं के चलने से वायुमण्डल की आर्द्रतायुक्त हवाएँ ऊपर क्षोभमण्डल में पहुँचकर विभिन्न दिशाओं में फैल जाती हैं और निम्न क्षोभमण्डल में बहने लगती हैं। अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर यही हवाएँ घनीभूत होकर भारतीय महाद्वीप में मानसूनी पवनों को उत्पन्न करती हैं, जिनसे समस्त भारत में वर्षा होती है।
वर्षा का वितरण- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षा और वर्षण में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
वर्षा- यह वर्षण का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें बादलों के जल-वाष्प कण संघनित होकर जल की बूंदों या हिमकणों के रूप में भू-पृष्ठ पर गिरते हैं। जलवर्षा तथा हिमवर्षा इसके दो रूप हैं। वर्षण–यह एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें वायुमण्डल की आर्द्रता संघनित होकर वर्षा, हिम, ओला, पाला
आदि रूपों में धरातल पर गिरती है। जल-वर्षा, वर्षण का एक साधारण रूप है। हिमवृष्टि, ओलावृष्टि, हिमपात आदि इसके अनेक रूप हैं।
प्रश्न 2.
भारत में कितनी ऋतुएँ होती हैं ? कौन-सी ऋतु कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है और क्यों ?
उत्तर :
भारत की जलवायु मानसूनी है। मानसूनों की प्रगति के आधार पर देश में चार ऋतुएँ होती हैं
- आगे बढ़ते हुए मानसून (दक्षिण-पश्चिमी मानसून) की ऋतु अर्थात् वर्षा ऋतु,
- लौटते हुए मानसून की ऋतु अर्थात् शरद् ऋतु,
- शीत ऋतु (उत्तर-पूर्वी मानसून) तथा
- ग्रीष्म ऋतु।। देश की कृषि पर ऋतुओं का प्रभाव महत्त्वपूर्ण होता है। कृषि का आधार वर्षा है तथा देश की अधिकांश वर्षा आगे बढ़ते हुए मानसून (जुलाई से सितम्बर के मध्य) द्वारा होती है। इसलिए यह ऋतु, जिसे वर्षा ऋतु भी कहते हैं, कृषि के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि
- इसी ऋतु में देश की 75 से 90% तक वर्षा होती है।
- वर्षा की अवधि तथा मात्रा का वितरण देशभर में असमान है। इसका कृषि पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती है, जबकि प्रायद्वीपीय भारत में पश्चिम से | पूरब की ओर वर्षा की मात्रा घटती है।
- वर्षा के वितरण का कृषि के प्रकार तथा फसलों के उत्पादन से गहरा सम्बन्ध है।
- आगे बढ़ते हुए मानसून ही देश की कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। इसीलिए भारतीय कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है।
प्रश्न 3.
आम्रवृष्टि’ और ‘काल-बैसाखी’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आम्रवृष्टि-ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा का यह स्थानीय नाम इसलिए पड़ा है; क्योकि यह वर्षा आम के फलों को शीघ्र पकाने में सहायता करती है। काल-बैसाखी-ग्रीष्म ऋतु में बंगाल तथा असोम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं। यह वर्षा प्रायः सायंकाल में होती है। इसी वर्षा को काल-बैसाखी’ कहते हैं। इसका अर्थ है-बैसाख मास की काल।
प्रश्न 4.
भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु जून से सितम्बर तक रहती है। इस ऋतु में समस्त भारत में वर्षा होती है।
- वर्षा ऋतु की अवधि दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। देश के सबसे उत्तर-पश्चिमी भागों में यह अवधि केवल दो महीने की होती है।
- देश की 75 से 90% वर्षा इसी ऋतु में होती है।
प्रश्न 5.
भारत में कम वर्षा वाले तीन क्षेत्र कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
कम वर्षा वाले क्षेत्रों से अभिप्राय ऐसे क्षेत्रों से है, जहाँ 50 सेमी से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। ये क्षेत्र हैं
- पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्र।
- सह्याद्रि के पूर्व में फैले दकन के पठार के आन्तरिक भाग।
- कश्मीर में लेह के आस-पास का प्रदेश।
प्रश्न 6.
जाड़ों में वर्षा वाले भारत के दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2018]
उत्तर:
शीत ऋतु में स्थलीय पवनें शुष्क होती हैं; अतः प्रायः सम्पूर्ण देश में मौसम शुष्क रहता है। परन्तु निम्नलिखित दो क्षेत्रों में जाड़ों में भी वर्षा होती है
- देश के उत्तर-पश्चिमी भाग-भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है।
- तमिलनाडु तट-तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसून पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं, तो ये कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं तथा तटों पर वर्षा करती हैं।
प्रश्न 7.
जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। भारत में कृषि राष्ट्र के अर्थतन्त्र की धुरी है, जो वर्षा की विषमता से सबसे अधिक प्रभावित होती है। मानसूनी वर्षा बड़ी ही अनियमित एवं अनिश्चित है। जिस वर्ष वर्षा अधिक एवं मूसलाधार रूप में होती है तो अतिवृष्टि के परिणामस्वरूप बाढ़ आ जाती हैं तथा भारी संख्या में धन-जन का विनाश करती हैं। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है या अनिश्चितता की स्थिति होती है तो अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ जाता है, जिससे फसलें सूख जाती हैं तथा पशुधन को भी पर्याप्त हानि उठानी पड़ती है। जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर प्रभाव निम्नलिखित है-
1. प्राकृतिक वनस्पति पर प्रभाव- किसी देश की प्राकृतिक वनस्पति न केवल धरातल और मिट्टी के गुणों पर निर्भर करती है, वरन् वहाँ के तापमान और वर्षा का भी उस पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि पौधे के विकास के लिए वर्षा, तापमान, प्रकाश और वायु की आवश्यकता पड़ती है; उदाहरणार्थभूमध्यरेखीय प्रदेशों में निरन्तर तेज धूप, कड़ी गर्मी और अधिक वर्षा के कारण ऐसे वृक्ष उगते हैं; जिनकी पत्तियाँ घनी, ऊँचाई बहुत और लकड़ी अत्यन्त कठोर होती है। इसके विपरीत मरुस्थलों में काँटेदार झाड़ियाँ भी बड़ी कठिनाई से उग पाती हैं; क्योंकि यहाँ वर्षा का अभाव होता है। वास्तव में जलवायु वनस्पति का प्राणाधार है।
2. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव– जलवायु की विविधता ने प्राणियों में भी विविधता स्थापित की है। जिस प्रकार विभिन्न जलवायु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, वैसे ही विभिन्न जलवायु प्रदेशों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु पाये जाते हैं; उदाहरणार्थ-कुछ जीव-जन्तु वृक्षों की शाखाओं पर रहकर सूर्य की गर्मी और प्रकाश प्राप्त करते हैं; जैसे-नाना प्रकार के बन्दर, चमगादड़ आदि। इसके विपरीत कुछ जीव-जन्तु जल में निवास करते हैं; जैसेमगरमच्छ, दरियाई घोड़े आदि। ठीक इससे भिन्न प्रकार के प्राणी टुण्ड्री प्रदेश में पाये जाते हैं जिनके शरीर पर लम्बे और मुलायम बाल होते हैं, जिनके कारण वे कठोर शीत से अपनी रक्षा करते हैं।
प्रश्न 8.
अल्पवृष्टि तथा अतिवृष्टि का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
1. अल्पवृष्टि
अल्पवृष्टि का तात्पर्य वर्षा न होने से है जिसके कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जलाभाव के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। नदी, तालाब, कुएँ सूखने लगते हैं। पानी का घोर संकट उत्पन्न हो जाता है। जिससे सभी प्रकार के जीवों का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है। पशुओं के लिए पानी तथा चारे की समस्या , पैदा हो जाती है।
2. अतिवृष्टि
अतिवृष्टि का तात्पर्य ऐसी अत्यधिक वर्षा से है जो लाभ की अपेक्षा हानि पहुँचाती है। अतिवृष्टि से नदी, जलाशय, तालाब सभी जल से भर जाते हैं। नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे उनके किनारे बसे गाँव, नगर तथा फसलें प्रभावित हो जाती हैं। अतिवृष्टि से बहुत-से लोग घर-विहीन हो जाते हैं। बाढ़ के बाद अनेक प्रकार के संक्रामक रोग फैलने लगते हैं। अतिवृष्टि का सर्वाधिक प्रभाव फसलों पर पड़ता है। इससे सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
प्रश्न 9.
पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु में मौसम की विभिन्न दशाओं तथा वर्षा के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अक्टूबर और नवम्बर के महीने में भारत में पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु पायी जाती है। इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और इसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है। परिणामस्वरूप मानसून पीछे हटने लगता है। इस समय तक इन पवनों में आर्द्रता की मात्रा पर्याप्त कम हो चुकी होती है। अत: इसके द्वारा बहुत कम वर्षा होती है। भारतीय भू-भागों पर इसका प्रभाव-क्षेत्र सिकुड़ने लगता है। और पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्टूबर तक मानसून उत्तरी मैदानों से पीछे हट जाता है।
अक्टूबर-नवम्बर के दो महीने, एक संक्रान्ति काल है। इस काल में वर्षा ऋतु के स्थान पर शुष्क ऋतु का आगमन प्रारम्भ हो जाता है। मानसून के हटने से आकाश साफ हो जाता है और तापमान फिर से बदलने लगता है। परन्तु भूमि अभी भी आर्द्र बनी रहती है। उच्च तापमान तथा आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है। इस कष्टदायक मौसम को ‘क्वार की उमस’ कहते हैं। अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में मौसम बदलने लगता है और विशेषकर उत्तरी मैदानों में तापमान तेजी से गिरने लगता है।
नवम्बर के प्रारम्भ में उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी की ओर खिसक जाता है। इस अवधि में अण्डमान सागर में चक्रवात बनने लगते हैं। इनमें से कुछ चक्रवात दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तटों को पार कर जाते हैं और इन क्षेत्रों में भारी तथा व्यापक वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अधिकतर गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टाई प्रदेशों में ही आते हैं। ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं। कोई भी वर्ष इनकी विनाशलीला से खाली नहीं जाता। कभी-कभी ये चक्रवात सुन्दरवन और बांग्लादेश में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमण्डल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है।
प्रश्न 10.
भारत की चार प्रमुख ऋतुओं के नाम लिखकर उनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की चार ऋतुओं के नाम तथा उनका संक्षिप्त विवेचन निम्नवत् है
1. शीत ऋतु- लगभग पूरे भारत में दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी के महीनों में शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में उच्च वायुदाब रहता है तथा देश के ऊपरी भागों में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवने स्थल से सागरों की ओर चलती हैं। पवनों के स्थल भागों से चलने के कारण यह ऋतु शुष्क होती है। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने में तापमान घटता जाता है। यहाँ दिन ‘ सामान्यत: अल्प उष्ण एवं रातें ठण्डी होती हैं। ऊँचे स्थानों पर पाला भी पड़ जाता है।
2. ग्रीष्म ऋतु- 21 मार्च के बाद सूर्य की स्थिति उत्तरायण हो जाती है। अब मार्च, अप्रैल और मई के बीच अधिक तापमान की पेटी दक्षिण से उत्तर की ओर खिसक जाती है। इस समय देश के उत्तर-पश्चिमी भांगों में तापमान 48° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। फलस्वरूप अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण इस भाग में निम्न वायुदाब के क्षेत्र बन जाते हैं। इसे मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। इस ऋतु में शुष्क एवं गर्म पवनें चलने लगती हैं, जिन्हें ‘लू’ कहा जाता है। इन दिनों पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में धूलभरी आँधियाँ भी चलती हैं।
3. आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु– सम्पूर्ण देश में जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों में ही अधिकांश वर्षा होती है। वर्षा की अवधि एवं मात्रा उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में यह अवधि केवल दो महीनों की होती है तथा वर्षा का 75% से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है।
4. पीछे लौटते हुए मानसून की ऋतु- अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में मानसून पीछे लौटने लगता है। अक्टूबर माह के अन्त तक मानसून मैदान से पूर्णतः पीछे हट जाता है। इस समय शुष्क ऋतु का आगमन होता है तथा आकाश स्वच्छ हो जाता है। तापमान में कुछ वृद्धि होती है। उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायी हो जाता है। निम्न वायुदाब के क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इस अवधि में पूर्वी तट पर व्यापक वर्षा होती है। सम्पूर्ण कोरोमण्डल तट पर अधिकांश वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है।
प्रश्न 11.
मानसून से क्या अभिप्राय है ? भष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। इनका शाब्दिक अर्थ ऋतु है। इस प्रकार मानसून का अर्थ एक ऐसी ऋतु से है, जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह से उलट जाती है। मानसूनी पवनें हिन्द महासागर में विषुवतं वृत्त पार करने के बाद दक्षिण-पश्चिमी व्यापारिक पवनों के रूप में बहने लगती हैं। इस प्रकार शुष्क तथा गर्म स्थलीय व्यापारिक पवनों का स्थान आर्द्रता से परिपूर्ण समुद्री पवनें ले लेती हैं। मानसूनी पवनों के अध्ययन से पता चला है कि इन पवनों का प्रसार 20° उत्तर तथा 20° दक्षिण अक्षांशों के बीच उष्ण कटिबन्धीय भू-भागों पर होता है। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून हिमालय की पर्वत-श्रेणी से बहुत अधिक प्रभावित होता है। इन पर्वत-श्रेणियों के कारण पूरा भारतीय उपमहाद्वीप दो से पाँच महीनों तक आई विषुवतीय पवनों के प्रभाव में आ जाता है। अतः जून से लेकर सितम्बर तक ही 75-90% के बीच वार्षिक वर्षा होती है।
ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताएँ
- ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की अवधि दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। देश के सबसे उत्तर-पश्चिमी भाग में यह अवधि केवल दो महीने की होती है। इस अवधि में 75% से 90% तक वर्षा हो जाती है।
- ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेजी से चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिमी भागों को छोड़कर ये एक महीने में सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से भरी इन पवनों के आने के साथ ही बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली चमकनी शुरू हो. जाती है। इसे मानसून का ‘फटना’ या टूटना’ कहते हैं।
- ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद मौसम सूखा रहता है। मानसून के इस घटते-बढ़ते स्वरूप का कारण चक्रवातीय अवदाब है, जो मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी के शीर्ष भाग में उत्पन्न होते हैं और भारत-भूमि के ऊपर से गुजरते हैं।’
- ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अपनी स्वेच्छाचारिता के लिए विख्यात है। इससे एक ओर तो कहीं भारी, । वर्षा से भयंकर बाढ़ आ सकती है तो दूसरे स्थान पर सूखा पड़ सकता है। इससे करोड़ों किसानों के खेती के काम प्रभावित होते हैं।
प्रश्न 12.
रतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2009]
या
भारत में मानसूनी वर्षा की दो विशेषताएँ बताइए। [2009]
या
मानसूनी वर्षा की किन्हीं छः विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2015, 16, 17]
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मानसूनी वर्षा- भारतीय वर्षा का लगभग 75% भाग दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों द्वारा प्राप्त होता है, अर्थात् कुल वार्षिक वर्षा का 75% वर्षा ऋतु में, 13% शीत ऋतु में, 10% वसन्त ऋतु में तथा 2% ग्रीष्म ऋतु में प्राप्त होता है।
2. वर्षा की अनिश्चितता- भारतीय मानसूनी वर्षा का प्रारम्भ अनिश्चित है। मानसून कभी शीघ्र आते हैं। तो कभी देर से। कभी-कभी वर्षा ऋतु में सूखा पड़ जाता है तथा कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़े तक आ जाती हैं। किसी वर्ष वर्षा नियत समय से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है एवं निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है।
3. वितरण की असमानतो- भारतीय वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। कुछ भागों में वर्षा 400 सेमी या उससे अधिक हो जाती है, जबकि कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ वर्षा का औसत 12 सेमी से भी कम रहता है।
4. मूसलाधार वर्षा– भारत में वर्षा अनवरत गति से नहीं होती, वरन् कुछ दिनों के अन्तराल से होती है। कभी-कभी वर्षा मूसलाधार रूप में होती है और एक ही दिन में 50 सेमी तक हो जाती है। यह मिट्टी का अपरदन करती है, जिससे मिट्टी के उत्पादक तत्त्व बह जाते हैं।
5. असमान वर्षा- कुछ भागों में वर्षा बड़ी तीव्र गति से होती है तथा कुछ भागों में केवल बौछारों के रूप में। एक ओर मॉसिनराम गाँव (चेरापूंजी) में 1,354 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है, तो वहीं राजस्थान में केवल 10 सेमी से भी कम। कुछ स्थामों पर वर्षा की प्राप्ति असन्दिग्ध रहती है। वर्षा हो भी सकती है और नहीं भी। भारत के उत्तरी मैदान में तथा दक्षिणी भागों में ऐसी ही स्थिति पायी जाती है।
6. वर्षा की अल्पावधि- भारत में वर्षा के दिन बहुत ही कम होते हैं। उदाहरण के लिए चेन्नई में 50 दिन, मुम्बई में 75 दिन, कोलकाता में 118 दिन तथा अजमेर में केवल 30 दिन।
7. वर्षा की निश्चित अवधि- कुंल वर्षा का लगभग 80% जून से सितम्बर तक प्राप्त हो जाता है, फलत: वर्ष का दो-तिहाई भाग सूखा ही रह जाता है, जिससे फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है।
8. पर्वतीय वर्षा- भारत की लगभग 95% वर्षा पर्वतीय है, जबकि मात्र 5% वर्षा ही चक्रवातों द्वारा होती है।
9. वर्षा की निरन्तरता- भारत में प्रत्येक मास में किसी-न-किसी क्षेत्र में वर्षा होती रहती है। शीतकालीन चक्रवातों द्वारा जनवरी एवं फरवरी महीनों में उत्तरी भारत में वर्षा होती है। मार्च में चक्रवात असोम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में सक्रिय रहते हैं। इनसे तब तक वर्षा होती है जब तक दक्षिण-पश्चिमी मानसून पुनः चलना न आरम्भ कर दें।
प्रश्न 13.
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अधिक वर्षा के दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर :
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अधिक वर्षा के दो कारण निम्नलिखित हैं।
- बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा का विभाजन, भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश के बाद, उच्च हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुभार के प्रभाव से दो भागों में हो जाता है। इस मानसून की दूसरी शाखा उत्तर एवं उत्तर-पूर्व दिशा से ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में प्रवेश करती है, जिससे भारत के उत्तर-पूर्वी भागों में भारी वर्षा होती है।
- भारत की 75-90% वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसूनों द्वारा प्राप्त होती है। यही कारण है कि वर्षा के वितरण में पर्याप्त असमानताएँ पायी जाती हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में उच्चावचीय लक्षणों के कारण 300 सेमी से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानसून से क्या अभिप्राय है ? [2016]
उत्तर :
मानसून उन पवनों को कहते हैं जो वर्ष में छ: महीने (ग्रीष्म ऋतु) सागरों से स्थल की ओर तथा शेष छः महीने (शीत ऋतु) स्थल से सागरों की ओर चलती हैं।
प्रश्न 2.
भारत में अधिकांश वर्षा किस ऋतु में होती है ?
उत्तर :
भारत में अधिकांश अर्थात् 75% से 90% तक वर्षा आगे बढ़ते हुए मानसूनों द्वारा (जून से सितम्बर माह में) वर्षा ऋतु में होती है।
प्रश्न 3.
थार मरुस्थल में अल्प वर्षा क्यों होती है ? दो कारण लिखिए।
उत्तर :
थार मरुस्थल में अल्प वर्षा होने के दो कारण निम्नलिखित हैं|
- थार मरुस्थल अरबसागरीय मानसूनों के मार्ग में पड़ता है, किन्तु यहाँ मानसून पवनों को रोकने के लिए कोई ऊँची पर्वत-श्रेणी स्थित नहीं है।
- अरावली की पहाड़ियाँ नीची हैं तथा पवनों की दिशा के समानान्तर हैं।
प्रश्न 4.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति का प्रमुख क्या कारण है ?
उत्तर :
दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति के दो प्रमुख कारण हैं|
- ग्रीष्म काल में देश के उत्तर-पश्चिमी (स्थलीय) भू-भागों में निम्न वायुदाब तथा समीपवर्ती समुद्री भागों (हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी) में उच्च वायुदाब का होना।
- क्षोभमण्डल की ऊपरी परतों में तीव्रगामी पुरवा जेट पवनों का चलना।
प्रश्न 5.
जेट वायुधाराएँ किन्हें कहते हैं ?
उत्तर :
वायुमण्डल की क्षोभमण्डल नामक परत के ऊपरी भाग में तेज गति से चलने वाली पवनों को जेट वायुधाराएँ कहते हैं। ये बहुत सँकरी पट्टी में चलती हैं।
प्रश्न 6.
भारत में पायी जाने वाली ऋतुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
- शीत ऋतु,
- ग्रीष्म ऋतु,
- वर्षा ऋतु (आगे बढ़ते मानसून की ऋतु) तथा
- शरद ऋतु (पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु।)
प्रश्न 7.
भारत में सर्वाधिक वर्षा किस राज्य में होती है ? [2011]
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा मेघालय (मॉसिनराम) राज्य में होती है।
प्रश्न 8.
मानसून के ‘फटने’ या ‘टूटने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
आर्द्रता से भरी दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें बड़ी तेज चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किलोमीटर प्रति घण्टा है। उत्तर-पश्चिमी भागों को छोड़कर ये एक महीने की अवधि में सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से भरी इन पवनों के आने के साथ ही बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे ही मानसून का फटना’ या टूटना’ कहा जाता है।
प्रश्न 9.
ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम होती है।
प्रश्न 10.
भारत में अधिकांश वर्षा किस प्रकार की होती है ?
उत्तर :
भारत की लगभग 95% अधिकांश वर्षा पर्वतीय है।
प्रश्न 11.
लौटते हुए मानसून से भारत के किन दो राज्यों में वर्षा होती है ?
उत्तर :
लौटते हुए मानसून से भारत में तमिलनाडु एवं पॉण्डिचेरी (अब पुदुचेरी) राज्यों में वर्षा होती है।
प्रश्न 12.
मौसम किसे कहते हैं? मौसम और जलवायु में क्या अन्तर है? [2014]
उत्तर:
मौसम-किसी स्थान के वातावरण की सूचना जैसे कि वह गर्म है, ठण्डा है, शुष्क है, आई है। की जानकारी हमें मौसम के द्वारा प्राप्त होती है। यह दिन प्रतिदिन बदल सकता है। जलवायु-किसी स्थान पर लम्बे समय तक पाये जाने वाले तापमान, वर्षा, आर्द्रता, शुष्कता आदि का औसत उस स्थान की जलवायु कहलाती है।
बहुविकल्पीय
प्रश्न 1. भारत में न्यूनतम तापमान कहाँ पाया जाता है?
क) लेह में ।
(ख) शिमला में
(ग) चेरापूंजी में
(घ) श्रीनगर में
2. भारत में अधिकतम तापमान कहाँ पाया जाता है?
(क) तिरुवनन्तपुरम् में।
(ख) भोपाल में
(ग) जैसलमेर में
(घ) अहमदाबाद में
3. भारत में अधिकतम वर्षा वाला स्थान है [2011]
(क) शिलांग ।
(ख) मॉसिनराम
(ग) गुवाहाटी
(घ) पंजाब
4. भारत का नगर जो वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ता है|
(क) मुम्बई
(ख) जोधपुर
(ग) पुणे
(घ) चेन्नई
5. आम्रवृष्टि कहाँ होती है?
(क) केरल में
(ख) आन्ध्र प्रदेश में
(ग) तमिलनाडु में
(घ) असोम में
6. काल-बैसाखी’ कहाँ प्रचलित है?
(क) केरल में
(ख) असोम में
(ग) उत्तर प्रदेश में
(घ) पंजाब में
7. जेट धाराएँ हैं|
(क) हिन्द महासागरों में चलने वाली
(ख) बंगाल की खाड़ी के चक्रवात
(ग) उपरितन वायु
(घ) मानसूनी पवनें
8. उत्तर भारत में शीतकालीन वर्षा का कारण है
(क) लौटते हुए मानसून
(ख) आगे बढ़ते हुए मानसून
(ग) शीतकालीन मानसून ,
(घ) पश्चिमी विक्षोभ
9. सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला महीना है
(क) जून
(ख) जुलाई
(ग) अगस्त
(घ) ये सभी
10. चेरापूंजी किस राज्य में स्थित है?
(क) असोम में
(ख) मेघालय में
(ग) मिजोरम में
(घ) मणिपुर में
11. भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र कौन-सा है?
(क) उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
(ख) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
(ग) दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र
(घ) दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र
12. दैनिक तापान्तर निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में सर्वाधिक पाया जाता है? [2011]
(क) दक्षिणी पठारी क्षेत्र
(ख) पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र
(ग) थार मरुस्थल
(घ) पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र
13. निम्नलिखित में से कौन राज्य भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र में सम्मिलित है? [2012]
या
निम्नलिखित में से किस राज्य में सर्वाधिक वर्षा होती है? [2016]
(क) मेघालय
(ख) मध्य प्रदेश
(ग) ओडिशा
(घ) गुजरात
14. भारत के किस राज्य में शीत ऋतु में वर्षा होती है? [2014]
या
भारत का कौन-सा राज्य शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त करता है? [2016]
(क) गुजरात
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) कर्नाटक
(घ) तमिलनाडु
15. भारत में सबसे कम वर्षा होती है [2017]
(क) तमिलनाडु में
(ख) राजस्थान में
(ग) आन्ध्र प्रदेश में
(घ) कर्नाटक में
उत्तरमाला
1. (क), 2. (ग), 3. (ख), 4. (ग), 5. (क), 6. (ख), 7. (ग), 8. (घ), 9. (ख), 10. (ख), 11. (ख), 12. (ग), 13. (क), 14. (घ), 15. (ख)।
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