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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere (वायुमंडल का संघटन तथा संरचना)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) निम्नलिखित में से कौन-सी गैस वायुमण्डल में सबसे अधिक मात्रा में मौजूद है?
(क) ऑक्सीजन
(ख) आर्गन
(ग) नाइट्रोजन
(घ) कार्बन डाइऑक्साइड
उत्तर-(ग) नाइट्रोजन।
प्रश्न (ii) वह वायुमण्डलीय परत जो मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है
(क) समतापमण्डल
(ख) क्षोभमण्डल
(ग) मध्यमण्डल
(घ) आयनमण्डल
उत्तर-(ख) क्षोभमण्डल।
प्रश्न (iii) समुद्री नमक, पराग, राख, धुएँ की कालिमा, महीन मिट्टी किससे सम्बन्धित हैं?
(क) गैस
(ख) जलवाष्प
(ग) धूलकण
(घ) उल्कापात
उत्तर-(ग) धूलकण।
प्रश्न (iv) निम्नलिखित में से कितनी ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है?
(क) 90 किमी
(ख) 100 किमी
(ग) 120 किमी
(घ) 150 किमी
उत्तर-(ग) 120 किमी।
प्रश्न (v) निम्नलिखित में से कौन-सी गैस सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है तथा पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी?
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) हीलियम
(घ) कार्बन-डाइ-ऑक्साइड
उत्तर-(घ) कार्बन डाइऑक्साइड।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) वायुमण्डल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर–पृथ्वी के चारों ओर वायु के आवरण को वायुमण्डल कहा जाता है। वायुमण्डल’ शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है-वायु + मण्डल अर्थात् वायु का विशाल आवरण, जो पृथ्वी को चारों ओर से एक खोल की भाँति घेरे हुए है। इसका न कोई रंग है, न स्वाद और न ही गन्ध, परन्तु इसकी उपस्थिति का अनुभव इसके विभिन्न तत्त्वों द्वारा होता है। यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल न होता तो किसी भी प्रकार के जीवधारी या वनस्पति की कल्पना करना भी व्यर्थ था। फिंच और ट्रिवार्था के शब्दों में, “वायुमण्डल विभिन्न गैसों का आवरण है, जो धरातल से सैकड़ों मील की ऊँचाई तक विस्तृत है तथा पृथ्वी का अभिन्न अंग है।”
प्रश्न (ii) मौमस एवं जलवायु के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर–ताप, दाब, हवा, आर्द्रता और वर्षण मौसम और जलवायु के तत्त्व हैं जो वायुमण्डल की निचली परत क्षोभमण्डल में उत्पन्न होकर पृथ्वी और मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न (iii) वायुमण्डल की संरचना के बारे में लिखें।
उत्तर–वायुमण्डल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों से बना है। वायुमण्डल में पृथ्वी की सतह के पास घनत्व अधिक होता है, जबकि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ यह घटता जाता है। तापमान की। स्थिति के अनुसार वायुमण्डल को पाँच विभिन्न संस्तरों में विभक्त किया जाता है—(i) क्षोभमंडल, (ii) समतापमण्डल, (iii) मध्यमण्डल, (iv) आयनमण्डल, (v) बहिर्मण्डल।
प्रश्न (iv) वायुमण्डल के सभी संस्तरों में क्षोभमण्डल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर-क्षोभमण्डल (Troposphere) वायुमण्डल का सबसे नीचे का संस्तर है। इसकी ऊँचाई सतह से लगभग 13 किमी है तथा यह ध्रुव के निकट 8 किमी एवं विषुवत् वृत्त पर 18 किमी की ऊँचाई तक है। क्षोभमण्डल की मोटाई विषुवत् वृत्त पर सबसे अधिक है। वायुमण्डल के इस संस्तर में धूलकण तथा जलवाष्प मौजूद होते हैं। मौसम में परिवर्तन इसी संस्तर में होता है। इस संस्तर में प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 1°C घटता जाता है। अपनी मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी विशिष्टता के कारण यह संस्तर मानव, जीव-जन्तु और पृथ्वी सभी के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। एक प्रकार से पृथ्वी की सजीवता के लिए वायुमण्डल का यही संस्तर उत्तरदायी है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) वायुमण्डल के संघटन की व्याख्या करें।
उत्तर-वायुमण्डल विभिन्न गैसों का सम्मिश्रण है। इसमें ठोस व तरल पदार्थों के कण असमान मात्रा में तैरते रहते हैं। इसका संघटन सामान्यतः तीन प्रकार के पदार्थों के संयोग से हुआ है–
1. गैस–वायुमण्डल की संरचना में गैसों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शुष्क वायु में प्रमुखत: नाइट्रोजन 78.8% ऑक्सीजन 20.95% तथा आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड व हाइड्रोजन आदि लगभग 0.25% जैसी भारी गैसें पाई जाती हैं। प्रायः धरातल के निकट भारी एवं सघन गैसें तथा ऊपरी भाग में नियॉन, हीलियम व ओजोन जैसी कई हल्की गैसें होती हैं।
2. जलवाष्प-जलवाष्प वायुमण्डल का सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्त्व है। वायु में इसकी अधिकतम मात्रा 5% तक होती है। वायुमण्डल को जलवाष्प की प्राप्ति झीलों, सागरों, महासागरों आदि से वाष्पीकरण क्रिया द्वारा होती है। यह क्रिया तापमान पर निर्भर होती है।
3. धूलकण-वायुमण्डल के निचले भाग में अनेक अशुद्धियाँ देखने को मिलती हैं जो धूलकणों के कारण होती हैं। इनकी उत्पत्ति बालू, मिट्टी उड़ने, समुद्री लवण, ज्वालामुखी, राख, उल्कापात तथा धुएँ के कणों से होती है धूल के ये कण आर्द्रताग्राही होते हैं; अत: संघनन में इनका बहुत योगदान होता है। कोहरे व मेघों का निर्माण इनके ही सहयोग से होता है। यह वायुमण्डल की पारदर्शिता को भी प्रभावित करते हैं।
प्रश्न (ii) वायुमण्डल की संरचना का चित्र खींचें और व्याख्या करें।
उत्तर-वायुमण्डल की संरचना के खींचे गए चित्र 8.1 में वायुमण्डल को पाँच निम्नलिखित संस्तरों में विभक्त दिखाया गया है– (1) क्षोभमण्डल (Troposphere), (2): समतापमण्डल (Stratosphere), (3) मध्यमण्डल (Mesosphere), (4) आयनमण्डल (Ionosphere), (5) बाह्यमण्डल (Exosphere)। क्षोभमण्डल वायुमण्डल का सबसे निचला संस्तर है। मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी सभी परिवर्तन इसी संस्तर में होते हैं। पृथ्वी की सजीवता इसी मण्डल के कारण है। समतापमण्डल जो वायुमण्डल की दूसरी परत है, क्षोभमण्डल से 50 किमी की ऊँचाई तक पाया जाता है। इसका महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि तापमान स्थिर रहता है तथा इसमें ओजोन परत पाई जाती है। मध्यमण्डल समतापमण्डल के ठीक ऊपर 80 किमी की ऊँचाई तक फैला है। इसकी ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है। आयनमण्डल मध्यमण्डल के ऊपर 80 से 400 किमी के मध्य स्थित है। इसमें विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं,जिन्हें आयन कहते हैं इसीलिए इसका नाम आयनमण्डल है। पृथ्वी के द्वारा भेजी गई रेडियो तरंगें इसी। संस्तर द्वारा वापस पृथ्वी पर लौट जाती हैं। यहाँ ऊँचाई बढ़ने के साथ ही तापमान में वृद्धि शुरू हो जाती है। वायुमण्डल का सबसे ऊपरी संस्तर बाह्यमण्डल है। यह सबसे ऊँचा संस्तर है तथा इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. विक्षोभमण्डल, समतापमण्डल, ओजोनमण्डल और बहिर्मण्डल विभाग हैं
(क) स्थलमण्डल के
(ख) जलमण्डल के
(ग) वायुमण्डल के
(घ) इनमें से किसी के नहीं
उत्तर-(ग) वायुमण्डल के।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन पृथ्वी के वायुमण्डल की सबसे निचली परत है?
(क) आयनमण्डल
(ख) समतापमण्डल
(ग) क्षोभमण्डल
(घ) ओजोनमण्डल
उत्तर-(ग) क्षोभमण्डल।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में से वायुमण्डल के सबसे निचले भाग में कौन पाया जाता है?
(क). क्षोभमण्डल
(ख) ट्रोपोपॉज
(ग) समतापमण्डल
(घ) ओजोनमण्डल
उत्तर-(क) क्षोभमण्डल।
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से कौन-सी गैस वायुमण्डल में सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है?
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड
(घ) जलवाष्पे
उत्तर-(ख) नाइट्रोजन।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किसमें वायुमण्डल का सर्वाधिक भाग स्थित है?
(क) समतापमण्डल
(ख) परिवर्तनमण्डल
(ग) आयनमण्डल
(घ) ओजोनमण्डल ।
उत्तर-(ख) परिवर्तनमण्डल।।
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से कौन पृथ्वी के वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है?
(क) समतापमण्डल ।
(ख) तापमण्डल
(ग) क्षोभमण्डल ।
(घ) बाह्यमण्डल
उत्तर-(घ) बाह्यमण्डल।
प्रश्न 7. क्षोभमण्डल में ऊँचाई के साथ तापमान
(क) घटता है।
(ख) घटता है फिर बढ़ता है। |
(ग) बढ़ता है।
(घ) स्थिर रहता है।
उत्तर-(क) घटता है।।
प्रश्न 8. निम्नलिखित वायुमण्डलीय परतों में से किसमें ओजोन गैस का सर्वाधिक संकेन्द्रण है? ।।
(क) क्षोभमण्डल
(ख) समतापमण्डल
(ग) मध्यमण्डल
(घ) तापमण्डल
उत्तर-(घ) तापमण्डल।।
प्रश्न 9. पृथ्वी के वायुमण्डल की निम्नलिखित परतों में से किस एक में जलवाष्प का सर्वाधिक संक्रेन्द्रण पाया जाता है?
(क) बहिर्मण्डल
(ख) आयनमण्डल
(ग) समतापमण्डल
(घ) क्षोभमण्डल
उत्तर-(घ) क्षोभमण्डल।। ||
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-पृथ्वी के चारों ओर परिवेष्ठित वायु के आवरण को ‘वायुमण्डल’ कहा जाता है। वायुमण्डल शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है-वायु + मण्डल अर्थात् वायु का विशाल आवरण, जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए हैं। फिंच और ट्विार्था के शब्दों में, वायुमण्डल विभिन्न गैसों का आवरण है, जो धरातले से सैकड़ों मील की ऊँचाई तक विस्तृत है तथा पृथ्वी का अभिन्न अंग है।”
प्रश्न 2. वायुमण्डल की रचना किन तत्त्वों (पदार्थों) से हुई है?
उत्तर-वायुमण्डल की रचना गैसों, जलवाष्प तथा धूल-कणों से हुई है।
प्रश्न 3. वायुमण्डल के संघटन में कौन-कौन-सी भारी गैसें सम्मिलित हैं?
उत्तर-वायुमण्डल के संघटन में भारी गैसों में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा हाइँड्रोजन सम्मिलित हैं।
प्रश्न 4. वायुमण्डल के संघटन में कौन-कौन-सी हल्की गैसें सम्मिलित हैं?
उत्तर-वायुमण्डल के संघटन में हल्की गैसों में हीलियम, नियॉन, क्रिप्टॉन, जेनॉन, ओजोन आदि सम्मिलित हैं।
प्रश्न 5. उस विरल गैस का नाम बताइए जो सूर्य के पराबैंगनी विकिरण का अवशोषण करती है।
उत्तर-ओजोन गैस।
प्रश्न 6. वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस का क्या महत्त्व है?
उत्तर-यह गैस पेड़-पौधों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 7. क्षोभ सीमा या मध्य स्तर का महत्त्व बताइए।
उत्तर-यह एक शान्त पेटी है। इस स्तर पर परिवर्तन की कोई घटना नहीं होती।
प्रश्न 8. समतापमण्डल का महत्त्व बताइए।
उत्तर-यह मण्डल संवहन क्रिया से रहित है तथा इसमें बादल भी नहीं बनते। इस परत का महत्त्व वायुयानों के लिए अधिक है।
प्रश्न 9. आयनमण्डल का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर-यह मण्डल रेडियो तरंगों को पृथ्वी की ओर लौटा देता है। इस मण्डल की स्थिति के कारण ही रेडियो तरंगें पृथ्वी पर एक वक्राकार मार्ग का अनुसरण करती हैं। इस परत का महत्त्व दूरसंचार के लिए अधिक है।
प्रश्न 10. परिवर्तनमण्डल क्या है? इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर-वायुमण्डल की निचली परत को परिवर्तनमण्डल या क्षोभमण्डल कहते हैं। मौसम सम्बन्धी विभिन्न घटनाएँ मेघ गर्जन, ऑधी-तूफान, वर्षा, ओस, तुषार, पाला, कुहरा आदि के लिए इस मण्डल का महत्त्व है।
प्रश्न 11, मानव एवं जीव-जन्तु के लिए ओजोनमण्डल को वरदान कहा जाता है। क्यों?
उत्तर-ओजोनमण्डल में ओजोन गैस पाई जाती है। यही गैस सूर्य से निकलने वाली घातक एवं तीक्ष्ण पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग अवशोषित करके जीवधारियों को सुरक्षा कवच प्रदान करती है।
प्रश्न 12. मनुष्य के जीव-जन्तु के लिए वायुमण्डल का क्या महत्त्व है?
उत्तर-वायुमण्डल में मनुष्य, जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे के जीवन संचार की क्षमता है। इसमें मानव व जीव-जन्तु के लिए ऑक्सीजन तथा पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गैस और जलवाष्प विद्यमान है।
प्रश्न 13, पृथ्वी पर जैविक विविधता का क्या कारण है?
उत्तर-पृथ्वी पर वायुमण्डलीय कारकों ने जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को जन्म दिया है। यह जलवायु विभिन्नता ही जैविक विविधता का महत्त्वपूर्ण कारण है।
प्रश्न 14. ऊँचाई के साथ वायुमण्डल के तापमान में क्या परिवर्तन होते हैं?
उत्तर-ऊँचाई के साथ वायुमण्डल के तापमान में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं
- लगभग 15 किमी तक तापमान धीरे-धीरे ऊँचाई के साथ-साथ कम होता जाता है।
- 15 किमी और 80 किमी के मध्य तापमान प्रायः स्थिर रहता है।
- 80 किमी से ऊपर जाने पर तापमान ऊँचाई के साथ-साथ बढ़ने लगता है।
प्रश्न 15. वायुमण्डल की किस परत में वायुयानों के परिवहन की आदर्श दशाएँ उपलब्ध हैं ?
उत्तर-वायुमण्डल की समताप परत में वायुयानों की उड़ान के लिए आदर्श दशाएँ पाई जाती हैं। इसमें मेघ, धूलकण तथा संवहन धाराओं का अभाव होता है।
प्रश्न 16. हाइड्रोजन किस प्रकार की गैस है? वायुमण्डल में इसकी स्थिति बताइए।
उत्तर-हाइड्रोजन सबसे हल्की गैस है जो वायुमण्डल में सभी गैसों के ऊपर लगभग 1100 किमी की ऊँचाई तक पाई जाती है। यह गैस वायुमण्डल की गैसों का केवल 0.01% भाग है।
प्रश्न 17. वायुमण्डल में कौन-सी गैस रासायनिक प्रक्रिया में भाग नहीं लेती है?
उत्तर-क्रिप्टॉन, नियोन तथा ऑर्गन गैसें रासायनिक प्रक्रिया में भाग नहीं लेती हैं।
प्रश्न 18. एयरोसोल्स क्या हैं?
उत्तर-वायुमण्डल में जलकर्ण, कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन, जीनान, क्रिप्टॉन, नियोन, ऑर्गन तथा बड़े ठोस कण सम्मिलित रूप से एयरोसोल्स कहलाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डल संरचना से आप क्या समझते हैं? वायुमण्डल के स्तरों के नाम लिखिए।
उत्तर-वायुमण्डल की संरचना
वायुमण्डल की संरचना अथवा वायुमण्डल के स्तरों से तात्पर्य वायुदाब, तापमान एवं घनत्व आदि के परिवर्तन के फलस्वरूप वायुमण्डल की विभिन्न परतों से है, क्योंकि वायुमण्डल में धरातल से अन्तरिक्ष की ओर बढ़ने पर लम्बवत् व क्षैतिज रूप में परिवर्तन देखने को मिलते हैं। वायुमण्डल में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, हीलियम, नियोन सहित ओजोने आदि गैसें पाई जाती हैं। भारी एवं सघन गैसें; यथा–नाइट्रोजन व ऑक्सीजन धरातल के समीप तथा हल्की गैसें वायुमण्डल के ऊपरी भाग में पाई जाती हैं। यही कारण है कि 6 किमी से अधिक ऊँचाई पर हमें साँस लेने में कठिनाई होती है।
वायुमण्डल के स्तर
वायुमण्डल को आधार मानकर सामान्यत: निम्नलिखित पाँच मण्डलों या स्तरों अथवा परतों में बाँटा गया है–
- क्षोभमण्डल या परिवर्तनमण्डल अथवा अधोमण्डल (Troposphere),
- समतापमण्डल (Stratosphere),
- ओजोनमण्डल (Ozonosphere),
- आयनमण्डल (Ionosphere),
- बहिर्मण्डल (Exosphere)।
प्रश्न 2. वायुमण्डल की चौथी परत की विशेषता एवं उपयोगिता समझाइए।
उत्तर-वायुमण्डल की चौथी परत को आयनमण्डल कहते हैं। आयनमण्डल ओजोनमण्डल के ऊपर स्थित है। इसका विस्तार 80-640 किमी तक विस्तृत है। वैज्ञानिकों को इस मण्डल के सन्दर्भ में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त हो रही है। आयनमंण्डल का आभास सर्वप्रथम रेडियो तरंगों द्वारा ज्ञात हुआ था। ध्वनि तरंगों एवं स्पूतनिकों (Rockets) द्वारा इसके सम्बन्ध में और अधिक जानकारी प्राप्त हुई है। इस स्तर पर वायुमण्डल का आयनन आरम्भ हो जाता है। ओजोनमण्डल की समाप्ति पर तापमान पुनः ऊपर की ओर नीचे गिरने लगता है तथा 80 किमी की ऊँचाई पर घटकर -100° सेल्सियस के समीप पहुँच जाता है। इसके बाद एक बार फिर तापमान बढ़ने लगता है क्योंकि वहाँ लघु तरंगी सौर विकिरण को अवशोषण ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के परमाणुओं पर पराबैंगनी फोटोन्स की प्रतिक्रिया होने से ताप 1000° सेल्सियस तक बढ़ जाता है। आयनमण्डल रेडियो तरंगों को पृथ्वी की ओर लौटा देता है। अनेक वैज्ञानिक रेडियो एवं ध्वनि तरंगों के माध्यम से इस परत के अन्वेषण में लगे हुए हैं। पृथ्वी पर संचार साधनों का संचालन इसी परत के द्वारा सम्भव होता है। इस दृष्टि से यह मण्डल मानव के लिए विशेष उपयोगी है।
प्रश्न 3. वायुमण्डल की अन्तिम परत पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-वायुमण्डल की अन्तिम परत बहिर्मण्डल कहलाती है। बहिर्मण्डल को विशेष अध्ययन स्पिटजर नामक वैज्ञानिक द्वारा किया गया है। इसकी ऊँचाई 500 से 1000 किमी तक बताई गई है। इतनी अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डल एक निहारिका के रूप में दिखलाई पड़ता है। इस मण्डल में हाइड्रोजन तथा हीलियम सदृश हल्की गैसों की प्रधानता होती है। वायुमण्डल की बाह्य सीमा पर गतिक (Kinetic) तापमान बहुत अधिक होता है, परन्तु यह तापमान धरातलीय तापमान से सर्वथा भिन्न होता है। यदि अन्तरिक्ष यात्री इतने अधिक तापमान में यान से अपना हाथ बाहर निकालें तो शायद उन्हें गर्म भी। नहीं लगेगा। वास्तव में वर्तमान तक इस मण्डल के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है; अतः। इसकी खोज जारी है।
प्रश्न 4. वायुमण्डल का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वायुमण्डल का महत्त्व मानव एवं पृथ्वी पर विभिन्न क्रियाओं के लिए अक्षुण्ण है। वायुमण्डल के अस्तित्व के फलस्वरूप ही पृथ्वी पर पेड़-पौधे तथा जीवधारियों का अस्तित्व पाया जाता है। पृथ्वी पर वायु संचरण, वर्षा, आँधी-तूफान, बादल तथा हिमपात आदि घटनाएँ वायुमण्डल के कारण ही सम्भव होती हैं। वायुमण्डल पृथ्वी को कवच की भाँति सुरक्षा प्रदान करता है। यह पृथ्वी को अधिक गर्म होने से रोकता है। तथा दूसरी ओर तापमान के विकिरण में बाधक बन जाता है। यह तापमान के विकिरण और प्रकाश के वितरण में सहायक होकर जीवधारियों का कल्याण करता है। वायुमण्डल की ऊपरी परतें (विशेष रूप से ओजोन परत) पराबैंगनी किरणों को रोककर जीवधारियों को उनके प्राणघातक प्रभाव से बचाती है। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व वायुमण्डल के कारण ही सम्भव हो पाया है। वायुमण्डल जीवधारियों को प्राणदायिनी वायु के रूप में ऑक्सीजन गैस प्रदान करता है। वायुमण्डल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी सौर-मण्डल का एक अनोखा ग्रह माना जाता है।
प्रश्न 5. वायुमण्डल की संरचना में गैसों का क्या योगदान है?
उत्तर-वायुमण्डल की संरचना में गैसों का स्थान सर्वोपरि है। शुष्क वायु में प्रमुखत: नाइट्रोजन (8%), ऑक्सीजन 21%) जैसी भारी एवं सघन गैसें तथा आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड व हाइड्रोजन आदि (लगभग 1%) जैसी हल्की गैसें पाई जाती हैं। प्रायः धरातल के निकटवर्ती भागों में भारी गैसें तथा ऊपरी भागों में नियोन, हीलियम व ओजोन जैसी कई हल्की गैसें मिलती हैं। वायुमण्डल के सबसे निचले भागों में 20 किमी की ऊँचाई तक भरी गैसें व अन्य पदार्थ मिलते हैं। 100 किमी की ऊँचाई तक ऑक्सीजन व नाइट्रोजन गैसें पाई जाती हैं तथा 125 किमी की ऊँचाई तक हाइड्रोजन गैस मिलती है।
प्रश्न 6. जलवाष्प तथा धूलकण मौसम तथा जलवायु की विभिन्नता के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण हैं।
उत्तर-जलवाष्प एवं धूलकण वायुमण्डल के महत्त्वपूर्ण संघटक हैं। ये मौसम तथा जलवायु के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। धूलकण प्रत्येक प्रकार के संघनन के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये आर्द्रताग्राही होते हैं, इनके द्वारा ही वायुमण्डल में कुहारा, मेघ आदि बनते हैं और वर्षा की परिस्थिति उत्पन्न होती है। जलवाष्प वायुमण्डल के तापमान और वर्षा को प्रभावित करती है। जलवाष्प की उपस्थिति वायुमण्डल में वाष्पीकरण क्रिया द्वारा निर्धारित होती है। इसकी मात्रा सभी स्थानों पर समान नहीं होती है। भूमध्य रेखा के निकट सर्वाधिक एवं ध्रुवों पर सबसे कम जलवाष्प पाई जाती है। वायुमण्डल में घटित होने वाली सभी घटनाएँ मेघ, तुषार, हिमपात, ओस, पाला, झंझावात, चक्रवात आदि जलवाष्प पर आधारित होती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डल किसे कहते हैं? वायुमण्डल का संघटन (संरचना) समझाइए तथा इसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वायुमण्डल का अर्थ
ट्विार्था के अनुसार, “पृथ्वी को परिवेष्टित करने वाला गैसों का एक विशाल आवरण जो पृथ्वी का अभिन्न अंग है, वायुमण्डल कहलाता है। इस प्रकार वायुमण्डल वायु का एक विशाल आवरण है जो पृथ्वी को चारों ओर से एक खोल की भाँति घेरे हुए है। यह आवरण भूतल से 1,000 किमी से भी अधिक ऊँचाई तक व्याप्त है। वायुमण्डल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी ग्रह सौरमण्डल का अनूठा ग्रह है, जिस पर जीवन पाया जाता है। यह वायुमण्डल प्राणिमात्र के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसी के कारण पृथ्वी पर जीवन सम्भव हुआ है। वायुमण्डल में ही मौसम की परिघटनाएँ होती हैं।
वायुमण्डल का संघटन या संरचना
वायुमण्डल का संघटन विभिन्न गैसों, जलवाष्प एवं धूल-कणों आदि से मिलकर हुआ है। इसमें सम्मिलित पदार्थों का विवरण निम्नलिखित है–
1. गैसें (Gases)-वायुमण्डल की संरचना में विभिन्न गैसों का योगदान रहता है। यद्यपि वायु कई गैसों का मिश्रण है, परन्तु मुख्य रूप से इसमें दो ही गैसें नाइट्रोजन 78% और ऑक्सीजन 21% मिश्रित रहती हैं जो सम्पूर्ण वायुमण्डल का 99 प्रतिशत भाग है। शेष 1 प्रतिशत में अन्य गैसे सम्मिलित हैं। संलग्न तालिका वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसों की मात्रा प्रकट करती है। वायुमण्डल के निचले भाग में भारी गैसें कार्बन डाइऑक्साइंड 20 किमी तक, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन 100 किमी तक और हाइड्रोजन 125 किमी की ऊँचाई तक पायी जाती हैं। इनके अतिरिक्त अधिक हल्की गैसें; जैसे-हीलियम, नियॉन, क्रिप्टॉन, जेनॉन, ओजोन आदि 125 किमी से अधिक ऊँचाई पर पायी जाती हैं।
2. जलवाष्प (Water Vapour)-जलवाष्प का वायुमण्डल में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इसकी अधिकतम मात्रा 5% तक होती है। जलवाष्प की यह मात्रा धरातल के विभिन्न भागों; जैसे–महासागरों, सागरों, झीलों, जलाशयों, मिट्टियों, वनस्पति आदि के वाष्पीकरण द्वारा वायुमण्डल में विलीन होती रहती है।
ऑक्सीजन वाष्पीकरण का कम या अधिक होना तापमान की कमी या वृद्धि के ऊपर निर्भर करता है। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि सूर्याभिताप प्रति सेकण्ड 1.6 करोड़ टन जल का वाष्पीकरण कर उसे जलवाष्प में बदल देता है। यदि वायुमण्डल में उपस्थित समस्त जलवाष्प को धरातल पर गिरा दिया जाए तो धरातलीय सतह पर 2.5 सेण्टीमीटर जल एकत्र हो जाएगा। वायुमण्डल की निचली परत में जलवाष्प की मात्रा प्रत्येक भाग में कम या अधिक अवश्य ही मिलती है। वायुमण्डल की ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है अर्थात् 7.5 किमी की ऊँचाई पर वायुमण्डल में जलवाष्प नहीं पायी जाती। विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है। उदाहरण के लिए-शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में 50° अक्षांश पर जलवाष्प की मात्रा 2.6 प्रतिशत, 70° अक्षांश पर 0.9 प्रतिशत और इससे अधिक ऊँचाई वाले अक्षांशों पर केवल 0.2 प्रतिशत ही रह जाती है। वायुमण्डलीय घटनाएँ-बादल, वर्षा, तुषार, हिमपात, ओस, ओला, पाला आदि जलवाष्प पर ही आधारित हैं। जलवाष्प की यह मात्रा सौर्यिक विकिरण के लिए पारदर्शक शीशे की भाँति कार्य करती है।
3. धूल-कण (Dust Particles)-सूर्य के प्रकाश में देखने से मालूम होता है कि वायुमण्डल में धूल के ठोस तथा सूक्ष्म कण स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण करते रहते हैं। ये धूल-कण भूतल से अधिक ऊँचाई पर नहीं जा पाते। भूपृष्ठ की मिट्टी के अतिरिक्त ये धूल-कण धुआँ, ज्वालामुखी की धूल तथा समुद्री लवण से भी उत्पन्न होते हैं। ये धूल-कण जलवाष्प को अपने में सोख लेते हैं। वर्षा कराने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वर्षा के समय इन धूल-कणों पर जमी जल की बूंदें चमकते मोती के समान दिखलाई पड़ती हैं। सूर्य की किरणों का वायुमण्डल में बिखराव इन्हीं | धूल-कणों के द्वारा होता है। इन्हीं के कारण आकाश में विभिन्न रंग दिखाई पड़ते हैं।
वायुमण्डल का महत्त्व
वायु केवल मानव के लिए ही आवश्यक नहीं है, अपितु जल, थल तथा वायुमण्डलों में निवास करने वाले सभी प्राणिमात्र, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों आदि सभी के लिए अनिवार्य है। वायु के अभाव में प्राणिमात्र एक पल भी जीवित नहीं रह सकता। वायु द्वारा ही सभी वायुमण्डलीय प्रक्रियाएँ-ताप, वायुदाब, वर्षा, तुषार, कोहरा, पाला, विद्युत चमक, ऋतु-परिवर्तन आदि निर्धारित होते हैं।
जलवायु का निर्धारण भी वायुमण्डल द्वारा ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त कृषि-क्रियाओं पर वायुमण्डल का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पूर्वी एशियाई कृषि-प्रधान देशों में वायुमण्डलीय क्रियाओं से भारी धन-जन की हानि होती है। वास्तव में कृषक का भाग्य ही इस वायुमण्डल से जुड़ा हुआ है। पश्चिमी यूरोपीय देशों में फलों की कृषि वायुमण्डलीय दशाओं पर निर्भर करती है। यही नहीं, उद्योग-धन्धे भी इन्हीं क्रियाओं से ही जुड़े हुए हैं।
वायुमण्डल में पायी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन का प्रभाव वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं पर अधिक पड़ता है। पश्चिमी देशों में कृषक अपनी कृषि भूमि में नाइट्रोजन की पूर्ति अन्य विधियों से कर लेते हैं तथा अधिक उत्पादन प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत भारतीय कृषि में कम उत्पादन का कारण नाइट्रोजन की पूर्ति न कर पाना है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस से वनस्पति जगत की श्वसन क्रिया चलती है। यही कारण है कि विषुवतरेखीय प्रदेशों में इस गैस की अधिकता के कारण ही सघन वनस्पति का आवरण छाया हुआ है, जबकि टुण्ड्रा एवं टैगा प्रदेशों में इस गैस की कमी मिलती है; अतः ।
यहाँ वनस्पति भी विरल रूप में ही पायी जाती है। वायुमण्डल में व्याप्त अन्य गैसें-हाइड्रोजन, हीलियम, नियॉन, क्रिप्टॉन, ऑर्गन, ओजोन, जेनॉन आदि–भी प्राणिमात्र के लिए किसी-न-किसी रूप में लाभ पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिए वायुमण्डल की ओजोन गैस का आवरण सूर्य की तीक्ष्ण पराबैंगनी किरणों को अपने में सोख लेता है। यदि यह गैस न होती तो पृथ्वी पर जीव-जगत न होता अर्थात् प्राणिमात्र तीक्ष्ण गर्मी से झुलस जाता और धरा जीवनशून्य हो जाती।
प्रश्न 2. वायुमण्डल की परतों पर प्रकाश डालिए और प्रत्येक का महत्त्व भी बताइए। |
या वायुमण्डल की किन्हीं पाँच परतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-वायुमण्डल की परतें।
वायुमण्डल की परतों को सामान्यत: निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. वायुमण्डल का रासायनिक स्तरीकरण
वायुमण्डल के रासायनिक स्तरीकरण को दो निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
(i) सममण्डल (Homosphere)–तापमानं परिवर्तन को देखते हुए सममण्डल को तीन उप मण्डलों में विभाजित किया जाता है–(अ) परिवर्तनमण्डल या अधोमण्डल या क्षोभमण्डले (Troposphere), (ब) समतापमण्डल (Stratosphere) एवं (स) मध्यमण्डल (Mesosphere)। इन तीनों मण्डलों में रासायनिक दृष्टिकोण से गैसों की मात्रा में कोई परिवर्तन दिखलाई नहीं पड़ता। समुद्र-तल से इसकी ऊँचाई 90 किमी तक आँकी गयी है। रचना के दृष्टिकोण से सममण्डल में मुख्य गैसें ऑक्सीजन 20.946% तथा नाइट्रोजन 78.054% अर्थात् 99% भाग घेरे हुए हैं। शेष गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, ऑर्गन, हीलियम, क्रिप्टॉन, जेनॉन तथा हाइड्रोजन प्रमुख हैं।
महत्त्व-सममण्डल में अधोमण्डल या क्षोभमण्डल सबसे महत्त्वपूर्ण परत है, क्योंकि यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है तथा मानव का इससे सीधा सम्पर्क है। पर्यावरण के सभी तत्त्व इसी मण्डल में पाये जाते हैं। धूल-कण भी इसी मण्डल में पर्याप्त मात्रा में विद्यमान हैं। भारी कण निचली सतह में तथा हल्के कण ऊपरी भागों में पाये जाते हैं। अधोमण्डल के ऊपर धूल-कणों का अभाव पाया जाता है।
(ii) विषममण्डल (Heterosphere)-इस मण्डल की ऊँचाई 90 किमी से 10,000 किमी तक ऑकी गयी है। इस ऊँचाई पर स्थित गैसों के आधार पर विषममण्डल को चार उपविभागों में बाँटा गया है—(अ) आणविक नाइट्रोजन परत (Atomic Nitrogen Layer), (ब) आणविक ऑक्सीजन परत (Atomic Oxygen Layer), (स) हीलियम परत (Helium Layer) तथा (द) आणविक हाइड्रोजन परत (Atomic Hydrogen Layer)।
गैसों की प्रधानता के आधार पर इनका नामकरण किया गया है। 90 से 125 किमी की ऊँचाई तक आणविक नाइट्रोजन गैस, 125 से 700 किमी की ऊँचाई तक आणविक ऑक्सीजन गैस, 700 से 1100 किमी की ऊँचाई तक हीलियम गैस तथा 1,100 से 10,000 किमी की ऊँचाई तक आणविक हाइड्रोजन परेंत की स्थिति आँकी गयी है, परन्तु विषममण्डल की अन्तिम सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। हाइड्रोजन गैस सबसे हल्की होने के कारण वायुमण्डल के सबसे ऊपरी भाग में विस्तृत है।
2. वायुमण्डल का सामान्य स्तरीकरण
वर्तमान समय में वैज्ञानिक आधार पर वायुमण्डल की अनेक परतों का अध्ययन किया गया है, परन्तु वायुदाब को आधार मानकर सामान्य रूप से वायुमण्डल को छः स्तरों में विभाजित किया गया है
(i) परिवर्तनमण्डल या क्षोभमण्डल-इसे अधोमण्डल भी कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 11 किमी है। विषुवत रेखा पर इसकी औसत ऊँचाई 16 किमी तथा ध्रुवों पर केवल 6-7किमी रह जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर जाने में इसकी ऊँचाई कम होती जाती है। इसी मण्डल में प्राणिमात्र निवास करते हैं। इस मण्डल का पर्यावरण कुछ गरम होता है जिसका
मुख्य कारण सूर्यताप की प्राप्ति का होना है। इस मण्डल में जलवाष्प, जल-कण एवं धूल-कण विद्यमान हैं। यह मण्डल संवाहन, संचालन एवं विकिरण की क्रिया द्वारा क्रमशः गर्म तथा ठण्डा होता रहता है।
इस मण्डल में वायुमण्डलीय घटनाएँ घटित होती रहती हैं। इसीलिए इसे परिवर्तनमण्डल का नाम दिया गया है। ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ वायुमण्डल में ताप एवं दबाव कम होता जाता है। इस मण्डल में प्रति 300 मीटर की ऊँचाई पर 1.8° सेग्रे ताप कम हो जाता है। अधोमण्डल की अन्तिम सीमा पर वायुदाब घटकरे धरातल की अपेक्षा एक-चौथाई रह जाता है।
महत्त्व-इस मण्डल में वायु वेग एवं दिशा, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, आँधी, तूफान, बादलों की गर्जना, विद्युत चमक आदि सभी वायुमण्डलीय घटनाएँ घटित होती रहती हैं।
(ii) क्षोभ सीमा या मध्य-स्तर- अधोमण्डल की समाप्ति एवं समतापमण्डल के आरम्भ वाले मध्य भाग को मध्य-स्तर का नाम दिया गया है। इसे संक्रमण स्तर भी कहते हैं। इसकी चौड़ाई 1.5 किमी है।
महत्त्व—यह एक शान्त पेटी है। इस स्तर में परिवर्तन की कोई घटना घटित नहीं होती।
(iii) समतापमण्डल-मध्य-स्तर के बाद समतापमण्डल प्रारम्भ होता है जिसकी ऊँचाई 16 किमी से 80 किमी तक है। इस मण्डल में ताप एक-सा रहता है, इसी कारण इसे समतापमण्डल का नाम दिया गया है, परन्तु इसकी ऊँचाई अक्षांश एवं ऋतुओं के अनुसार परिवर्तित होती रहती है अर्थात् ग्रीष्मकाल में वायुमण्डलीय घटनाएँ अधिक होने के कारण इसकी ऊँचाई में वृद्धि हो जाती है तथा शीतकाल में घट जाती है, जबकि वायुमण्डलीय घटनाएँ इस मण्डल में घटित नहीं होतीं।
महत्त्व-यह मण्डल संवाहन प्रक्रिया से रहित है तथा इसमें बादल भी नहीं बनते। इस परत का महत्त्व वायुयानों के लिए अधिक है।
(iv) ओजोनमण्डल-वायुमण्डल में इस परत की ऊँचाई समतापमण्डल के ऊपर 32 किमी से 80 किमी तक है। इसमें ओजोन गैस की अधिकता के कारण इसे ओजोनमण्डल नाम दिया गया है। वर्तमान समय में वायुमण्डल के इस छतरी रूपी आवरण में दो छेद हो गये हैं जिसका मुख्य कारण धरातल पर प्रदूषणों में वृद्धि होना है। वैज्ञानिकों को ध्यान इस ओर गया है तथा प्रदूषण एवं आणविक अस्त्र-शस्त्रों की होड़ को रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे जीवमण्डल के इस सुरक्षा कवच की रक्षा की जा सके। इस घटना के कारण ही पृथ्वी के औसत तापमान में 0.5° सेग्रे की वृद्धि हो गयी है; अतः सभी मानव-समुदाय को इसकी रक्षा के प्रयास करने चाहिए।
महत्त्व-इस परत का महत्त्व मानवमात्र के लिए है, क्योंकि इसी परत में सूर्य की विषैली पराबैंगनी किरणों का अवशोषण होता है। यह परत न होती तो कदाचित् पृथ्वी पर किसी प्रकार का जीवन सम्भव नहीं होता।
(v) आयनमण्डल-वायुमण्डल में इस परत की ऊँचाई 80 किमी से 640 किमी तक है, जो | ओजोनमण्डल के ठीक ऊपर है। कुछ वैज्ञानिक इसकी अन्तिम सीमा हजारों किमी तक मानते हैं। यह मण्डल रेडियो तरंगों को पृथ्वी की ओर लौटा देता है। यदि यह मण्डल न होता तो रेडियो तरंगें असीम आकाश में चली जातीं और कभी भूतल पर वापस न लौटतीं। इस मण्डल की स्थिति के कारण ही रेडियो तरंगें पृथ्वी पर एक वक्राकार मार्ग का अनुसरण करती हैं। ध्वनि तरंगों तथा रॉकेटों द्वारा भी इस मण्डल के विषय में अनेक जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं, परन्तु अभी तक पूर्ण खोज नहीं हो पायी है। ओजोन की समाप्ति पर तापमान गिरने लगता है जो 30 किमी ऊँचाई पर -38° सेग्रे हो जाता है। इसके बाद तापमान में वृद्धि होती है तथा 95 किमी की ऊँचाई पर 10° सेग्रे तापमान हो जाता है। आकाश का नीला रंग, विद्युत चमक तथा ब्रह्माण्ड किरणें इस परत की विशेषताएँ हैं।
महत्त्व-इस परत का महत्त्व दूरसंचार के लिए अधिक है।
(vi) बहिर्मण्डल-ऊँचाई के आधार पर यह वायुमण्डल की सबसे ऊँची तथा अन्तिम परत हैं। इस परत की ऊँचाई 640 किमी से 690 किमी तक मानी गयी है अथवा इससे भी कहीं अधिक हो सकती है। वायुमण्डल की बाह्य सीमा पर 5568° सेग्रे ताप हो जाता है, परन्तु यह तापमान धरातलीय तापमान से भिन्न होता है। इसमें हीलियम तथा हाइड्रोजन जैसी अत्यधिक हल्की गैसों का आधिक्य है। वैज्ञानिक इस मण्डल की खोज में जुटे हुए हैं।
महत्त्व-भू-भौतिकी वैज्ञानिकों एवं जलवायुवेत्ताओं ने इससे ऊपर चुम्बकीय मण्डले की परिकल्पना की है, जिसकी जानकारी उपग्रहों द्वारा प्राप्त हुई है। इसकी ऊँचाई का निर्धारण 80,000 किमी तक किया गया है। इसे ऊँचाई पर पृथ्वी के वायुमण्डल का समापन सूर्य की परिधि में हो जाता है।
प्रश्न 3. वायुमण्डल के प्रथम संस्तर तथा इसकी सीमा का वर्णन कीजिए। |
या वायुमण्डल की निचली परत को क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता है? इसकी विशेषता बताइए।
उत्तर-वायुमण्डल के प्रथम संस्तर को क्षोभमण्डल या परिवर्तनमण्डल कहते हैं जबकि इसकी सीमा क्षोभ सीमा या मध्यस्तर कहलाती (चित्र 8.2) है। इन दोनों का वर्णन इस प्रकार है
क्षोभमण्डल या परिवर्तनमण्डल अथवा अधोमण्डल—यह वायुमण्डल को प्रथम संस्तर या सबसे निचली एवं सघन परत है जिसमें वायुमण्डल के सम्पूर्ण भार का 75% भाग संकेन्द्रित है। धरातल से इस परत की औसत ऊँचाई लगभग 14 किमी मानी जाती है। यह विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर पतली होती जाती है। विषुवत् रेखा पर इसकी ऊँचाई 18 किमी तथा ध्रुवों पर केवल 8 किमी होती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि ज्यो-ज्यों विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, क्षोभ सीमा पृथ्वी के निकट आती-जाती है, जिसमें ऊँचाई के साथ ताप कम होना बंद हो जाता है। क्षोभमण्डल की ऊँचाई जाड़ों की अपेक्षा गर्मियों में अधिक हो जाती है। (चित्र 8.3)।
जलवायु विज्ञान की दृष्टि से इस परत का विशेष महत्त्व है, क्योंकि सभी मौसमी घटनाएँ इसी मण्डल में घटित होती हैं। ऊँचाई में वृद्धि के साथ-साथ तापमान में गिरावट इस परत की सबसे बड़ी विशेषता है। ताप की यह कमी 6.5° सेल्सियस प्रति किलोमीटर होती है। इसे सामान्य ताप ह्रास दर (Normal Lapse Rate of Temperature) कहते हैं।
इस मण्डल में वायु कभी शान्त नहीं रहती है, कुछ-न-कुछ परिवर्तनों की क्रिया सदैव जारी रहती है। इस कारण इसे परिवर्तनमण्डल का नाम भी दिया गया है। वायुमण्डल की यह निचली परत ही भूतल और उस पर स्थित जैवमण्डल में सम्पर्क में रहती है जिस कारण यहाँ मेघ गर्जन, आँधी व तूफान आदि वायुमण्डलीय क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। मौसम सम्बन्धी सभी घटनाएँ इसी मण्डल में घटित होती हैं।
क्षोभ सीमा या मध्य स्तर-क्षोभमण्डल एवं समतापमण्डल के मध्य क्षोभ सीमा अथवा मध्य स्तर स्थित है। यह इन दोनों मण्डलों के मध्य संक्रमण क्षेत्र है। इस पेटी की चौड़ाई लगभग 3 किमी तक है। मध्य अक्षांशों में जेट स्ट्रीम के कारण कभी-कभी इस स्तर की ऊँचाई में अन्तर पड़ जाता है। विषुवत् । रेखा पर इसकी ऊँचाई 18 से 20 किमी तथा ध्रुवों पर 8 से 10 किमी तक होती है।
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