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UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 2 Writing and City Life (लेखन कला और शहरी जीवन)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरम्भ में शहरीकरण के कारण थे?
उत्तर :
प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य-उत्पादन के नए स्तर आरम्भ में शहरीकरण के कारण थे। इस तथ्य की पुष्टि मेसोपोटामिया की भौगोलिक परिस्थितियों से होता है
- यहाँ पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं। यहाँ अच्छी फसल के लिए पर्याप्त वर्षा होती है। पशुपालन के लिए घास के विस्तृत क्षेत्र हैं।
- इन क्षेत्रों में शहरों के लिए भरण-पोषण का साधन बन सकने की क्षमता थी। दजल-फरात
नदियाँ उपजाऊ बारीक मिट्टी लाती थीं जिससे यहाँ पर्याप्त अनाज पैदा होता था।
प्रश्न 2.
आपके विचार से निम्नलिखित में से कौन-सी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन-कौन सी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुई?
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती
(ख) जल परिवहन
(ग) धातु और पत्थर की कमी
(घ) श्रम-विभाजन
(ङ) मुद्राओं का प्रयोग
(च) राजाओं की सैन्यशक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।
उत्तर :
- निम्नलिखित आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकण हुआ था
(क) अत्यन्त उत्पादक खेती
(ख) जल-परिवहन
(घ) श्रम-विभाजन
(च) राजाओं की सैन्यशक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया - निम्नलिखित बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुईं
(ग) धातु और पत्थर की कमी
(ङ) मुद्राओं का प्रयोग
प्रश्न 3.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?
उत्तर :
खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे,यह निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है
- मारी नगर के दक्षिण के मैदान के खानाबदोश पशुचारक या गड़रिये किसानों के लिए खाद्य का प्रबन्ध करते थे परन्तु कई बार दोनों के मध्य झगड़े हो जाते थे। गड़रिये कई बार भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए गए खेतों से गुजर जाते थे जिससे किसान की फसल को हानि पहुँचती थी।
- खानाबदोश गड़रिये कई बार किसानों के गाँवों पर हमला बोल देते थे। वे उनका एकत्र धन-धान्य लूट लेते थे।
- पश्चिमी मरुस्थल से गर्मियों में खानाबदोश गड़रिये अपने साथ मेसोपोटामिया में बोए हुए खेतों में अपनी भेड़-बकरियाँ ले आते थे। ये समूह गड़रियों, फसल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आए और समृद्ध होकर यहीं बस गए तथा शासन शक्ति भी प्राप्त कर ली।
प्रश्न 4.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मन्दिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर :
कुछ प्राचीन मन्दिर साधारण घरों से अलग किस्म के नहीं होते थे क्योंकि मन्दिर में किसी स्थानीय देवता का वास होता था। मन्दिरों की बाहरी दीवारें विशेष अन्तरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। यही इन मन्दिरों की मुख्य विशेषता थी। सामान्य घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं।
संक्षेप में निबन्ध लिखिए
प्रश्न 5.
शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नई संस्थाएँ अस्तित्व में आईं? आपके विचार से उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा के महल पर निर्भर थीं?
उत्तर :
शहरी जीवन शुरू होने के बाद निम्नलिखित संस्थाएँ अस्तित्व में आईं
- व्यापार
- विनिर्माण
- सेवाएँ
- श्रम-विभाजन
- खाद्य-पदार्थों का संग्रहण एवं वितरण
- मुद्रा-निर्माण
- लेखा-विभाग
- आयात-निर्यात
- परिवहन व्यवस्था
- लेखन प्रणाली
- साक्षरता
- मन्दिर
- युद्धबन्दी
- परिवार
- विवाह
- वास्तुकला
- पशुचारक
- कब्रिस्तान
इनमें से निम्नलिखित संस्थाएँ राजा के महल पर निर्भर थीं
- व्यापार
- सेवाएँ
- श्रम-विभाजन
- खाद्य-पदार्थों का संग्रहण एवं वितरण
- मुद्रा-निर्माण
- आयात-निर्यात
- युद्धबन्दी
- कब्रिस्तान
प्रश्न 6.
किन पुरानी कहानियों में हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है?
उत्तर :
मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक देने वाली कुछ पुरानी कहानियाँ निम्नलिखित हैं
- यूरोप के निवासियों के लिए मेसोपोटामिया अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। बाइबिल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ में ‘शिमार’ अर्थात् सुमेर का वर्णन किया गया है। उसके अनुसार वहाँ ईंटों से बने अनेक नगर हैं। यूरोप के यात्री और विद्वान् मेसोपोटामिया को किस प्रकार से अपने पूर्वजों की भूमि मानते थे और जब इस क्षेत्र में पुरातत्त्वीय खोज प्रारम्भ हुई तो ओल्ड टेस्टामेंट के शाब्दिक सत्य को प्रमाणित करने का प्रयास किया गया।
- एक अन्य कहानी जलप्लावन से जुड़ी है। बाइबिल के अनुसार यह जलप्लावन पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। किन्तु ईश्वर ने जलप्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए ‘नोआ’ नामक एक मानव को चुना। नोआ ने एक बड़ी नाव बनाई और उसमें सभी जीव-जन्तुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया और जब जलप्लावन हुआ तो शेष सब. कुछ नष्ट हो गया। नाव में रखे संभी जोड़े बच गए।
- ऐसी ही एक कहानी ‘गिल्गेमिश’ महाकाव्य के अन्त में मिलते हैं। इससे पता चलता है कि मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर बहुत गर्व था। ऐसा कहा जाता है कि ‘गिल्गेमिश ने एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक मगर पर शासन किया था। वह एक महान् योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था, लेकिन उसे उस समय गहरा झटका लगा जब उसका वीर मित्र अचानक, मर गया। इससे दु:खी होकर वह अमरत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने सागरों-महासागरों को पार किया और दुनिया का चक्कर लगाया। मगर उसे अपने साहसिक कार्य में सफलता नहीं मिली। हारकर गिल्गेमिश अपने नगर उरुक लौट आया। वहाँ जब वह अपने को सन्तुष्ट करने के लिए शहर की प्राचीर के आसपास चहलकदमी कर रहा था तब उसकी दृष्टि उन शानदार ईंटों पर पड़ी जिनसे उसकी नींव डाली गई थी। वह भाव-विभोर हो उठा। इस प्रकार उरुक नगर की विशाल प्राचीर पर पहुँचकर उस महाकाव्य की लम्बी वीरतापूर्ण और साहसभरी कथा का अन्त हो गया।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया की सभ्यता का सर्वाधिक प्रसिद्ध केन्द्र था
(क) सुमेरिया
(ख) बेबीलोनिया
(ग) असीरिया
(घ) निनवेह
उत्तर :
(ख) बेबीलोनिया
प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया में सुमेरियन साम्राज्य का संस्थापक था
(क)सारगन प्रथम
(ख) सारगन द्वितीय
(ग) हेम्मूराबी
(घ) असुरबनीपाल
उत्तर :
(क) सारगन प्रथम
प्रश्न 3.
विश्व की पहली विधि संहिता का निर्माण करवाया था
(क) हेम्मूराबी
(ख) सारगन द्वितीय
(ग) सेनाक्रीब
(घ) जस्टीनियन
उत्तर :
(क) हेम्मूराबी। प्रश्न
प्रश्न 4.
कुम्हार के चाक का सर्वप्रथम प्रयोग हुआ था
(क) सुमेरिया में
(ख) बेबीलोन में
(ग) मिस्र में
(घ) चीन में
उत्तर :
(क) सुमेरिया में
प्रश्न 5.
संसार में चाँदी के सिक्के चलाने वाला पहला राजा कौन था?
(क) हेम्मूराबी
(ख) सेनाक़ीब
(ग) डेरियस
(घ) असुरबनीपाल
उत्तर :
(ख) सेनाक्रीब
प्रश्न 6.
कांस्य युग में सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग औजार बनाने में किया गया?
(क) ताँबा
(ख) सोना
(ग) लोहा
(घ) पीतल
उत्तर :
(क) ताँबा
प्रश्न 7.
जिगुरत का सम्बन्ध किससे है?
(क) हड़प्पा
(ख) मिस्र
(ग) मेसोपोटामिया
(घ) चीन
उत्तर :
(ग) मेसोपाटामिया
प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया की सभ्यता का जन्म हुआ था
(क) नील नदी की घाटी :
(ख) सिन्धु नदी की घाटी
(ग) यांग-टिसीक्यांग नदी की घाटी
(घ) दजला-फरात नदी की घाटी
उत्तर :
(घ) दजला-फरात नदी की घाटी
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया की सभ्यता के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम बताइए
उत्तर :
मेसोपोटामिया की सभ्यता के दो प्रमुख केन्द्र थे
- सुमेरिया तथा
- बेबीलोन
प्रश्न 2.
कुम्हार के चाक का प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ हुआ था?
उत्तर :
कुम्हार के चाक का प्रयोग सर्वप्रथम मेसोपोटामिया की सभ्यता में हुआ था।
प्रश्न 3.
हेम्मूराबी की विधि-संहिता की एक विशेषता बताइए।
उत्तर :
हेम्मूराबी की विधि-संहिता की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें अधिकारों के साथ-साथ मनुष्य के उत्तरदायित्व सम्बन्धी कानूनों का भी उल्लेख किया गया है।
प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया के दो प्रमुख देवताओं के नाम बताइए।
उत्तर :
मेसोपोटामिया के दो प्रमुख देवता थे
- एनलिल (वायु देवता) और
- शम्स (सूर्य देवता)
प्रश्न 5.
जिग्गूरात का क्या अर्थ है?
उत्तर :
मेसोपोटामिया के लोग नगर की पहाड़ी पर मन्दिर बनाते थे। इन मन्दिरों को जिग्गूरात या जिगुरत कहा जाता था।
प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया में ‘पित्तेसी’ किसे कहते थे?
उत्तर :
मेसोपोटामिया में प्रधान मन्दिरों के वे पुजारी, जो शासन का कार्य करते थे, ‘पित्तेसी’ कहलाते थे।
प्रश्न 7.
षट्दाशमिक प्रणाली का आविष्कार किस सभ्यता में हुआ था?
उत्तर :
षट्दाशमिक प्रणाली का आविष्कार मेसोपोटामिया की सभ्यता में हुआ था।
प्रश्न 8.
हेम्मूराबी कौन था? वह अपने किस उलेखनीय कार्य के लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर :
हेम्मूराबी बेबीलोन का एक महान् शासक था। वह बेबीलोन में पूर्व-प्रचलित तथा अनेक नवीन कानूनों का संग्रह कराने के लिए प्रसिद्ध है।
प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया में कॉसे का उपयोग कब आरम्भ हुआ?
उत्तर :
मेसोपोटामिया में काँसे का उपयोग 3000 ई०पू० में प्रारम्भ हो गया था।
प्रश्न 10.
लेखन का प्रयोग किस कार्य में होता था?
उत्तर :
लेखन का प्रयोग हिसाब-किताब रखने में किया जाता था।
प्रश्न 11.
डैगन कौन थे?
उत्तर :
डैगन स्टेपी क्षेत्र के देवता थे। एमोराइट समुदाय के लोगों ने डैगन के लिए मारी नगर में एक मन्दिर बनवाया था।
प्रश्न 12.
मारी में राजाओं का क्या भोजन होता था?
उत्तर :
मारी के राजाओं के भोजन में विविधता होती थी जिसमें रोटी, मांस, मछली, फल, जौ और अंगूर की शराब शामिल थी।
प्रश्न 13.
अलाशिया क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर :
लाशिया अपने ताँबे के लिए प्रसिद्ध था।
प्रश्न 14.
मेसोपोटामिया की पहली पट्टिका का काल क्या है?
उत्तर :
मेसोपोटामिया की पहली पट्टिकाएँ 3200 ई० पू० की हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘जिगुरत क्या है? इस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
मेसोपोटामिया की सभ्यता के अन्तर्गत, नगर के संरक्षक देवता हेतु नगर के पवित्र क्षेत्र में एक मन्दिर का निर्माण कराया जाता था, जिसे ‘जिगुरत’ या ‘जिग्गूरात’ कहा जाता था। यह मन्दिर किसी पहाड़ी पर या ईंटों के बने ऊँचे चबूतरे पर निर्मित किया जाता था। मन्दिर के साथ ही कुछ अन्य भवनों का निर्माण भी कराया जाता था, जो भण्डार-गृह तथा कार्यालयों के रूप में प्रयुक्त किए जाते थे। यह भवन कई मंजिले होते थे। इन भवनों की सबसे ऊँची मंजिल पर देवता का निवास माना जाता था तथा यहाँ बैठकर ज्योतिषियों द्वारा ग्रहों एवं नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता था।
प्रश्न 2.
“हेम्मूराबी की विधि-संहिता ने ही आधुनिक संविधान को जन्म दिया।” स्पष्ट कीजिए। या हेम्मूराबी कौन था? इसके बारे में जानकारी दीजिए। | या हेम्मूराबी की विधि-संहिता का परिचय दीजिए।
उत्तर :
सम्राट हेम्मूराबी (2123-2081 ईसा पूर्व), बेबीलोन का एक महान् शासक था। उसने एक वृहद् कानून-संहिता का निर्माण कराया था। उसने बेबीलोन में प्रचलित कानूनों को संकलित करके तथा स्वयं कई उपयोगी कानून बनाकर उन्हें 285 धाराओं के रूप में एक विशाल पत्थर की शिला पर अंकित करवा दिया था। इस 8 फुट ऊँचे पत्थर के ऊपरी भाग में कानून खुदे हुए हैं। ये कानून विवाह, चोरी, हत्या आदि से सम्बन्धित हैं। हेम्मूराबी की इस कानून संहिता का ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है और इसे संसार की सबसे पहली ‘लिखित विधि संहिता’ माना जाता है।
प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया का अन्य प्राचीन सभ्यताओं से क्या सम्बन्ध था?
उत्तर :
मेसोपोटामिया की सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता थी या नहीं, यह एक विवादग्रस्त प्रश्न है। अधिकांश विद्वानों का मत है कि मेसोपोटामिया की सभ्यता ही सबसे प्राचीन सभ्यता थी, जबकि पेरी का कहना है कि पृथ्वी पर मिस्र में ही सर्वप्रथम सभ्यता का विकास हुआ और वहाँ से संसार के अन्य लोगों ने सभ्यता सीखी थी। नील नदी की घाटी और दजला-फरात की घाटी में बहुत-सी मुहरें, मिट्टी के बर्तन तथा पशुओं की मूर्तियाँ मिली हैं, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मेसोपोटामिया (सुमेरिया) में चाक पर बर्तन बनाने का काम पहले प्रारम्भ हो चुका था, लेकिन चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में मेसोपोटामिया की सभ्यता मिस्र की सभ्यता से पीछे थी। स्थापत्य-कला के क्षेत्र में मिस्रवासी मेसोपोटामिया के लोगों से बढ़-चढ़े थे और उनका जीवन-स्तर भी उच्चकोटि का था। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में दोनों सभ्यताएँ उन्नति के शिखर पर थीं। कानून के क्षेत्र में हेम्मूराबी की संहिता के समान कोई संहिता भारत और मिस्र में उपलब्ध नहीं है। मेसोपोटामिया की सभ्यता व्यापार-प्रधान थी और मिस्र तथा भारत के साथ इसके घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे।
प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया के लोगों के आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
- कृषि एवं पशुपालन :
मेसोपाटामिया के अधिकांश नागरिक कृषि कार्य करते थे। कृषि के लिए यहाँ की मिट्टी उपजाऊ थी। खेतों की सिंचाई के लिए नहर और तालाब बनाए गए थे। पशुपालन भी होता था। लोग भेड़-बकरियाँ पालते थे। इनसे दूध व ऊन प्राप्त होता था। - उद्योग :
धन्धे-मेसोपोटामिया के निवासी सन और भेड़ के बाल से कपड़े तैयार करते थे। सूत कातना, कपड़े बुनना व रँगना, मूर्तियाँ बनाना, चाँदी, सोने और लकड़ी के सामान तैयार करना आदि जीविका के अन्य साधून थे। - व्यापार :
यहाँ के निवासी बड़े पैमाने पर विदेशी व्यापार करते थे। वे पत्थर, लकड़ी, सोना, चाँदी और अन्य धातुएँ विदेशों से मँगाते थे तथा उनके बदले में अनाज भेजते थे।
प्रश्न 5.
सुमेर में व्यापार किस प्रकार प्रारम्भ हुआ?
उत्तर :
सुमेर में व्यापार :
व्यापार की पहली घटना को एनमर्कर के साथ जोड़ा जाता है जो उरुक का शासक था। एनमर्कर अपने शहर के एक सुन्दर मन्दिर को सजाने के लिए लाजवर्द और अन्य बहुमूल्य रत्न तथा धातुएँ मँगाना चाहता था। इस काम के लिए उसने अपना एक दूत अरट्टा नाम के एक सुदूर देश क शासक के पास भेजा। दूत ने काफी परिश्रम किया, कठिन यात्रा की परन्तु वांछित सामग्री लाने में सफल न हुआ। अन्त में राजा ने हाथ से मिट्टी की पट्टिका बनाई और अरट्टा के पास भेजी तब सभी वांछित वस्तुएँ प्राप्त हो गईं।
प्रश्न 6.
‘अबू सलाबिख’ की खुदाई में पुरातत्त्वविदों को क्या-क्या प्राप्त हुआ?
उत्तर :
अबू सलाबिख एक छोटा कस्बा था। यह कस्बा 2500 ई० पू० में लगभग 10 हेक्टेयर जमीन पर बसा हुआ था और इसकी आबादी 10,000 से कम थी। इसकी दीवारों की रूपरेखा की ऊपरी सतहों को सर्वप्रथम खरोंचकर निकाला गया। इस प्रक्रिया में टीले की ऊपरी सतह को किसी बेलचे, फावड़े या अन्य जार के धारदार चौड़े सिरे से कुछ मिलीमीटर तक खरोंचा गया। नीचे की मिट्टी तब भी कुछ नम पाई गई और पुरातत्त्वविदों ने भिन्न-भिन्न रंगों, उसकी नावट तथा ईंटों की दीवारों की स्थिति तथा गड्ढों और अन्य विशेषताओं का पता लगा लिया। जिन थोड़े-से घरों की खोज की गई उन्हें खोदकर निकाला गया।पुरातत्त्वविदों ने पौधों और पशुओं के अवशेषों को प्राप्त करने के लिए टनों मिट्टी की छानबीन की। इसके चलते उन्होंने पौधों और पशुओं की अनेक प्रजातियों का पता लगाया। उन्हें बड़ी मात्रा में जली हुई मछलियों की हड्डियाँ भी मिलीं जो बुहारकर बाहर गलियों में डाल दी गई थीं। वहाँ गोबर के उपलों के ले हुए ईंधन में से निकले हुए पौधों के बीच और रेशे मिले थे, इससे इस स्थान पर रसोई घर होने का पता चला। घरों में रहने के कमरे कौन-से थे, यह जाननेके संकेत बहुत कम मिले हैं। वहाँ की गलियों में सूअरों के छोटे बच्चों के दाँत पाए गए हैं, जिन्हें देखकर पुरातत्त्वविदों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अन्य किसी भी मेसोपोटामियाई नगर की तरह यहाँ भी सूअर छुट्टे घूमा कस्ते थे। वस्तुतः एक घर में तो आँगन के नीचे, जहाँ किसी मृतक को दफनाया गया था, सूअर की कुछ हड्डियों के अवशेष मिले हैं जिससे प्रतीत होता है कि व्यक्ति के मरणोपरान्त जीवन में खाने के लिए सूअर का कुछ मांस रखा गया था। पुरातत्त्वविदों ने कमरों के फर्श का बारीकी से अध्ययन यह जानने के लिए किया कि घर के कौन-से कमरों पर पोपलार (एक लम्बा पतला पेड़) के लट्ठों, खजूर की पत्तियों और घासफूस की छतें थीं और कौन-से कमरे बिना छत के खुले आकाश के नीचे थे।
प्रश्न 7.
गणित के क्षेत्र में मेसोपोटामिया की क्या देन है?
उत्तर :
गणित के क्षेत्र मे मेसोपोटामिया की देन मेसोपोटामिया के निवासी 60-60 की इकाइयाँ में गणना किया करते थे। उनकी गणना प्रणाली षट्दाशमिक प्रणाली कही जाती थी। उन्होंने एक, दस और साठ के लिए विशेष चिह्नों की खोज कर ली थी। वे अंकों को अपनी आवश्यकतानुसार दुहराते थे। वे अगर दो लिखना चाहते थे तो एक के अंक को दो बार लिख देते थे। यदि बीस लिखना चाहते थे तो दस के अंक को दो बार दुहरा देते थे। यद्यपि उनके द्वारा खोजी गई साठ पर आधारित यह गिनती अब कहीं भी प्रयोग में नहीं लाई जाती लेकिन हम जानते हैं कि समय का विभाजन जैसे 60 सेकण्ड का एक मिनट, 60 मिनटों का एक घण्टा आदि के लिए हम षट्दाशमिक प्रणाली का ही प्रयोग करते हैं। मैसोपोटामियावासियों ने रेखागणित के कुछ सिद्धान्त बनाए जो आज भी विद्यार्थियों को पढ़ाए जाते हैं।
प्रश्न 8.
कलाकार लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
मेसोपोटामिया के प्राचीन निवासियों की लिपि को कलाकार लिपि कहा जाता है। यह लिपि सुमेर के लोगों द्वारा बनाई गई। इस लिपि को कील या नहनी जैसे तज औजार से चिकनी मिट्टी की पट्टियों पर लिखते थे, जिन्हें बाद में आग में पकाया जाता था। इसमें विचारों को प्रकट करने के लिए चित्रलेख, चिह्नों, संकेतों और चित्रों का प्रयोग किया जाता था। इसे हेनरी रॉलिन्सन नामक अंग्रेज अधिकारी ने पूरे 12 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद पढ़ने में सफलता पाई। उनकी इसी सफलता से मेसोपोटामिया की सभ्यता के बारे में हमारी जानकारी में वृद्धि हुई है।
प्रश्न 9.
गिलोमिश महाकाव्य किस प्रकार मेसोपोटामिया संस्कृति में शहरों के महत्त्व पर प्रकाश डालता है?
उत्तर :
मेसोपोटामियावासी शहरी जीवन को महत्त्व देते थे जहाँ अनेक समुदायों और संस्कृतियों के लोग साथ-साथ रहा करते थे। युद्ध में शहरों के नष्ट हो जाने के बाद वे अपने काव्यों के माध्यम से उन्हें याद किया करते थे। मेसोपोटामिया के लोगों को अपने नगरों पर कितना अधिक गर्व था, इस बात का सर्वाधिक मर्मस्पर्शी वर्णन हमें गिल्गेमिश (Gilgamesh) महाकाव्य के अन्त में मिलता है। यह काव्य 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। ऐस कहा जाता है कि गिल्गेमिश ने एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया था। वह एक महान् योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था, लेकिन उसे उस समय गहरा झटका लगा जब उसका वीर मित्र अचानक मर गया। इससे दु:खी होकर वह अमरत्व की खोज में निकल पड़ा। उसने सागरों-महासागरों को पार किया, और दुनियाभर का चक्कर लगाया। मगर उसे अपने साहसिक कार्य में सफलता नहीं मिली। हारकर गिल्गेमिश अपने नगर उरुक लौट आया। वहाँ जब वह अपने आपको सांत्वना देने के लिए शहर की चहारदीवारी के पास टहल रहा था तभी उसकी नजर उन पकी ईंटों पर पड़ी जिनसे नगर की नींव डाली गई थी। वह भावविभोर हो उठा। इस प्रकार उरुक नगर की विशाल प्राचीर पर आकर उस महाकाव्य की लम्बी वीरतापूर्ण और साहस भरी कथा का अन्त हो गया। यहाँ गिल्गेमिश, एक जनजातीय योद्धा की तरह यह लेखन कला और शहरी जीवन 35 नहीं कहता कि उसका अन्त निश्चित है पर उसके पुत्र तो जीवित रहेंगे और इस नगर का आनन्द लेंगे। इस प्रकार उसे अपने नगर में ही सांत्वना मिली है जिसे उसकी प्यारी प्रजा ने बनाया था।
प्रश्न 10.
बेबीलोन के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
दक्षिणी कछार के एक शूरवीर नैबोपोलास्सर (Nabopolassar) ने बेबीलोनिया को 625 ई० पू० में असीरियाई आधिपत्य से मुक्त किया। उसके त्तराधिकारियों ने अपने राज्यक्षेत्र का विस्तार किया और बेबीलोन में भवन-निर्माण की परियोजनाएँ पूरी की। उस समय से लेकर 539 ई० पू० में ईरान के केमेनिड लोगों (Achaemenids) द्वारा विजित होने के बाद और 331 ई० पू० में सिकन्दर से पराजित होने तक बेबीलोन दुनिया का एक प्रमुख नगर बना हा। इसका क्षेत्रफल 850 हेक्टेयर से अधिक था, इसकी चहारदीवारी तिहरी थी, इसमें बड़े-बड़े राजमहल और मन्दिर मौजूद थे, एक जिगुरात (Ziggurat) यानी सीढ़ीदार मीनार थी और नगर के मुख्य अनुष्ठान केन्द्र तक शोभायात्रा के लिए एक विस्तृत मार्ग बना हुआ था। इसके व्यापारिक घराने दूर-दूर तक अपना कारोबार करते थे और इसके गणितज्ञों तथा खगोलविदों ने अनेक नई खोजें की थीं। नैबोनिडस (Nabonidus) स्वतन्त्र बेबीलोन का अन्तिम शासक था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया की विश्व सभ्यता को क्या देन है?
उत्तर :
मेसोपोटामिया की विश्व सभ्यता को निम्नलिखित देन हैं
- कुम्हार के चाक का प्रयोग मेसोपोटामिया के लोगों ने सम्भवतया सर्वप्रथम किया था।
- काँच के बर्तन भी मेसोपोटामिया के लोगों ने सम्भवत: पहले बनाए।
- षट्दाशमिक प्रणाली को मेसोपोटामिया के लोगों ने सबसे पहले विकसित किया जो आज भी समय : विभाजन करने के लिए विश्व में हर जगह प्रयोग में लाई जाती है।
- लिखित विधि संहिता सर्वप्रथम बेबोलोनिया के शासक हेम्मुराबी द्वारा विश्व को दी गई।
- मेसोपोटामिया के लोगों ने विश्व में सर्वप्रथम नहरें बनवाई जो वर्ष भर सिंचाई, बाढ़ नियन्त्रण एवं जल परिवहन के लिए प्रयोग में लाई जा सकती थीं।
- चार पहियों वाली गाड़ी या रथ एवं जहाजी बेड़े मेसोपोटामिया के लोगों ने सर्वप्रथम बनाए।
- लेखन पद्धति का विकास सम्भवत: मेसोपोटामिया के लोगों ने (कोलीकार नामक व्यवस्थित लिपि) सबसे पहले किया।
- मेसोपोटामिया के लोगों ने चन्द्रमा की गति पर आधारित पंचांग का आविष्कार किया। यद्यपि इस पंचांग में कुछ दोष थे लेकिन समय-विभाजन एवं कैलेण्डर बनाने का विचार सम्भवतः यहीं के लोगों में आया।
- बैंक प्रणाली, व्यापारिक समझौते एवं हुण्डी प्रणाली का विकास सर्वप्रथम यहीं हुआ था।
- वृत्त विभाजन का विचार भी मेसोपोटामिया के लोगों को ही आया। उन्होंने वृत्त को 360 श्रेणियों में विभाजित किया। उनका यह ज्ञान भूगोल, रेखागणित एवं अन्य विषयों में हमारी बड़ी सहायता कर रहा है।
- नगर, राज्यों एवं संस्कृति के राज्यों की स्थापना सम्भवतः मेसोपोटामिया में ही सर्वप्रथम हुई।
प्रश्न 2.
“जमीन में प्राकृतिक उपजाऊपन के बाद भी मेसोपोटामिया में कृषि प्राकृतिक तथा मानव-निर्मित संकटों से घिर जाती थी। संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
मेसोपोटामिया की जमीन प्राकृतिक उपजाऊपन के बावजूद भी अनेक बार प्राकृतिक तथा मानव-निर्मित संकटों से घिर जाती थी। इसके निम्नलिखित कारण थे
- फरात नदी की प्राकृतिक धाराएँ कभी-कभी अत्यधिक जलप्रवाह के कारण फसलों को डुबो देती थीं।
- कभी-कभी धाराएँ अपना मार्ग बदल लेती थीं, जिससे सूखे की स्थिति बन जाती थी।
- विपदाएँ केवल प्राकृतिक ही नहीं थीं। अनेक बार मानव-निर्मित विपदाएँ भी समस्याएँ उत्पन्न कर देती थीं। प्रायः जो लोग इन धाराओं के ऊपरी भाग में रहे थे, वे अपने निकट की धारा से इतना अधिक पानी अपने खतों में खींच लेते थे कि धारा के नीचे बसे लोगों के खेतों को पानी नहीं मिल पाता था। इससे पानी के अभाव में इन स्थानों में फसलों के खराब होने का खतरा बना रहता था।
- इसके अलावा ऊपरी धारा के लोग अपने यहाँ बहने वाली धारा में से गाद नहीं निकालते थे, जिससे नीचे की ओर पानी का बहाव रुक जाता था। यही कारण था कि मेसोपोटामिया के गाँवों में जमीन तथा पानी के प्रश्न पर प्रायः संघर्ष होते रहते थे।
प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया की मुद्रा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
पहली सदी ई०पू० के अन्त तक मेसोपोटामिया में पत्थर की बेलनाकार मुद्राएँ होती थीं। इन मुद्राओं के आर-पार छेद होते थे। एक तीली फिट करके इन्हें गीली मिट्टी के ऊपर घुमाया जाता था। इन्हें अत्यधिक कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर तीन प्रकार के लेख लिखे होते थे
- स्वामी का नाम
- उसके इष्टदेव का नाम
- उसकी आधिकारिक स्थिति आदि। मुद्राओं पर लेख लिखने की भी एक प्रक्रिया थी। जिस मुद्रा पर कुछ लिखना होता था उसे किसी कपड़े की गठरी में लपेटकर चिकनी मिट्टी से लीप-पोतकर घुमाया जाता था। इस प्रकार उस पर अंकित लिखावट मिट्टी की सतह पर छप जाती थी। जब इस मोहर को मिट्टी की बनी पट्टिका पर लिखे पत्र पर घुमाया जाता था तो वह मोहर उस पत्र की प्रामाणिकता की प्रतीक बन जाती थी।
प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया में शहरीकरण किस प्रकार सम्पन्न हुआ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :5000 ई० पू० के लगभग दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन नगरों का रूप ले लिया था। नगर कई प्रकार के थे। पहले वे जो मंदिर के चारों ओर विकसित हुए और शेष वेदिका शाही नगर थे। बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने (उनके मूल स्थान की जानकारी नहीं) अपने गाँवों में कुछ चुने हुए स्थानों या मंदिरों को बनाना या उसका पुनर्निर्माण करना प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम ज्ञात मंदिर एक छोटा-सा देवालय था। यह कच्ची भट्ठी । ईंटों को बना हुआ था। मंदिर विभिन्न प्रकार के प्रवेशद्वार देवी-देवताओं के निवास स्थान थे जैसे उर जो चन्द्र देवता था और इन्नाना जो प्रेम व युद्ध की देवी थी। ये ईंटों से बने मंदिर समय के साथ बड़े हो गए क्योंकि उनके खुले आँगनों दक्षिणी मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन ज्ञात के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मंदिर मन्दिर लगभग 5000 ई०पू० (नक्शा) साधारण किस्म के घरों के समान ही होते थे। इसका कारण यह था कि मंदिर भी किसी देवता का घर ही होता था। मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशिष्ट अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई थीं। यही मंदिरों की विशेषता थी। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। देवता पूजा का केंद्र-बिंदु होता था। लोग देवी-देवता के लिए अन्न, दही, मछली लाते थे। आराध्य देव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था। समय आने पर उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया यहीं सम्पन्न की जाती थी। घर-परिवार के उच्च स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, जौ की शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मंदिर ने धीरे-धीरे अपने क्रिया-कलाप बढ़ा लिए और मुख्य नगरीय-संस्था का रूप ले लिया
प्रश्न 5.
उरुक में 3000 ई० पू० के लगभग प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में युगान्तकारी परिवर्तन किस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त उपयुक्त सिद्ध हुआ?
उत्तर :
पुरातत्त्वीय सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि 3000 ई० पू० के आसपास जब उरुक नगर का 250 हेक्टेयर भूमि में विस्तार हुआ तो mइसके लिए दर्जनों छोटे-छोटे गाँव उजड़ गए। बड़ी संख्या में जनसंख्या का विस्थापन हुआ। उसका यह विस्तार शताब्दियों तक विकसित रहे मोहनजोदड़ो नगर से दो-गुना था। यह भी उल्लेखनीय है कि उरुक नगर की रक्षा के लिए उसके चारों ओर एक सुदृढ़ दीवार बना दी गई थी। उरुक नगर 4200 ई० पू० से 400 ईसवी तक निरन्तर अपने अस्तित्व में बना रहा। इस अवधि में वह 400 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तृत हो गया। स्थानीय लोगों और युद्धबन्दियों को अनिवार्य रूप से मंदिर का अथवा प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना पड़ता था। जिन्हें काम पर लगाया जाता था उन्हें काम के बदले अनाज दिया जाता था। शासक के आदेश से लोग पत्थर खोदने, धातु खनिज लाने, मिट्टी से ईंट तैयार करने और मंदिर में लगाने, और सुदूर देशों में जाकर मंदिर के लिए उपयुक्त सामान लाने के कामों में जुटे रहते थे। इस कारण 3000 ई० पू० के आसपास उरुक में खूब तकनीकी प्रगति भी हुई। अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औजारों का प्रयोग किया जाता था। वास्तुविदों ने ईंटों के स्तम्भों का निर्माण करना सीख लिया था। सैकड़ों लोगों को चिकनी मिट्टी के शंकु (कोन) बनाने और पकाने के काम में लगाया जाता था जिससे वे दीवारें विभिन्न रंगों से सुशोभित हो जाती हैं। मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उच्चकोटि की सफलता प्राप्त की गई, इस कला के सुंदर नमूने पत्थरों पर तैयार किए जाते थे। इसी समय औद्योगिकी के क्षेत्र में एक युगान्तरकारी परिवर्तन आया जो शहरी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत उपयुक्त सिद्ध हुआ। वह था– कुम्हार के चाक का निर्माण। आगे चलकर इस चाक से कुम्हार की कार्यशाला में एक साथ बड़े पैमाने पर दर्जनों एक जैसे बर्तन एक साथ बनाए जाने लगे।
प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया में लेखन कला के विकास पर एक लघु लेख लिखिए।
उत्तर :
मेसोपोटामिया में जो लिखी हुई पट्टिकाएँ खुदाई में प्राप्त हुई हैं, वे लगभग 3200 ई० पू० की हैं। उनमें चित्र जैसे चिह्न और संख्याएँ दी गई हैं। वहाँ बैलों, मछलियों और रोटियों आदि की लगभग पाँच हजार सूचियाँ प्राप्त हुईं, जो वहाँ के दक्षिणी शहर उरुक के मंदिरों में आने वाली और वहाँ से बाहर जाने वाली चीजों की होंगी। स्पष्टतः लेखन कार्य तभी शुरू हुआ जब समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की आवश्यकता पड़ी क्योंकि शहरी जीवन में लेन-देन अलग-अलग समय पर होते थे। उन्हें करने वाले भी कई लोग होते थे और सौदा भी कई प्रकार के माल के बारे में होता था। मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था और फिर उसे गूंधकर और थापकर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह आसानी से अपने एक हाथ में पकड़ सके। वह सावधानीपूर्वक उसकी सतह को चिकना बना लेता था फिर सरकण्डे की तीली की तीखी नोक से वह उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न बना देता था। जब ये पट्टिकाएँ धूप में सूख जाती थीं तो पक्की हो जाती थीं और वे मिट्टी के बर्तनों जैसी मजबूत हो जाती थीं। जब उन पर लिखा हुआ कोई हिसाब असंगत हो जाता था तो उस पट्टिका को
फेंक दिया जाता था। इस प्रकार प्रत्येक सौदे के लिए चाहे वह कितना ही छोटा हो, एक अलग पट्टिका की आवश्यकता होती थी। इसलिए मेसोपोटामिया के खुदाई स्थलों पर बहुत-सी पट्टिकाएँ मिली हैं, इसी सम्पदा के कारण आज हम मेसोपोटामिया के विषय में इतना कुछ जानते हैं। लगभग 2600 ई० पू० के आस-पास अनाज वर्ण कीलाकार हो गए और भाषा मछली सुमेरियन थी। अब लेखन का प्रयोग हिसाब-किताब रखने के लिए ही नहीं, बल्कि शब्दकोष बनाने, भूमि के | हस्तांतरण को कानूनी मान्यता प्रदान करने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने और कानून में उन परिवर्तनों को प्रकट करने के लिए किया जाने लगा जो जन-साधारण के लिए बनाए जाते कीलाकार अक्षर संकेत। ज्ञात भाषा सुमेरियन का स्थानं, 2400 ई० पू० के पश्चात् धीरे-धीरे
अक्कादी भाषा ने ले लिया। अक्कादी भाषा में कीलाकार लेखन की परम्परा ईसवी सन् की प्रथम सदी तक अर्थात् 2000 से अधिक वर्षों तक चलती रही।
लेखन पद्धति
जिस ध्वनि के लिए कीलाक्षर या कलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था वह एक अकेला व्यंजने या स्वर नहीं होता था (जैसे अंग्रेजी वर्णमाला में m या a), लेकिन अक्षर (Syllables) होते थे (जैसे अंग्रेजी में -put:, या -la- या -in-)। इस प्रकार, मेसोपोटामिया के लिपिक को बहुत-से चिह्न सीखने पड़ते थे और उसे गीली पट्टी पर उसके सूखने से पहले ही लिखना होता था। लेखन कार्य के लिए अत्यन्त कुशलता की आवश्यकता होती थी, इसलिए लिखने का कार्य अत्यन्त महत्त्व रखता था।
प्रश्न 7.
उर’ नगर की सभ्यता पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
उर’ उन नगरों में से एक था जहाँ सर्वप्रथम खुदाई की गई थी। उर, मेसोपोटामिया का एक ऐसा नगर था जिसके साधारण घरों की खुदाई सन् 1930 के दशक में सुव्यवस्थित रूप से की गई थी। नगर में टेढ़ी-मेढ़ी व सँकरी गलियाँ पाई गईं जिससे यह पता चलता है कि पहिये वाली गाड़ियाँ वहाँ के अनेक घरों तक नहीं पहुँच सकती थीं। अनाज के बोरे और ईंधन के गट्ठे संभवत: गधे पर लादकर घर तक लाए। जाते थे। पतली व घुमावदार गलियों तथा घरों के भूखण्डों का एकसमान आकार न होने से यह निष्कर्ष निकलता है कि नगर नियोजन की पद्धति का अभाव था। वहाँ गलियों के किनारे जल-निकासी के लिए उस तरह की नालियों की पद्धति का अभाव था, जैसी कि उसके समकालीन नगर । मोहनजोदड़ो में पाई गई है। जलनिकासी की नालियाँ और मिट्टी की नलिकाएँ उर नगर के घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं, जिससे यह चित्र-उस नगर का एक रिहायशी इलाका (लगभग 2000 ई०पू०)। समझा जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। वर्षा का पानी निकास नालियों के माध्यम से बने हुए हौजों में ले जाया जाता था। फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बुहारकर गलियों में डाल देते थे, जहाँ वह आने-जाने वाले लोगों के पैरों के नीचे आता रहता था। इस प्रकार बाहर कूड़ा डालते रहने से गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं जिसके कारण कुछ समय बाद घरों की दहलीजों को भी ऊँचा उठाना पड़ता था जिससे वर्षा के पश्चात् कीचड़ बहकर घरों के भीतर न आ सके। कमरों के अंदर रोशनी खिड़कियों से नहीं, बल्कि उन दरवाजों से होकर आती थी जो आँगन में खुला करते थे। इससे घरों में रहने वाले परिवारों में गोपनीयता भी बनी रहती थी। घरों के बारे में विभिन्न अंधविश्वास प्रचलित थे, जिनके विषय में उर में पाई गई शकुन-अपशकुन संबंधी बातें पट्टिकाओं पर लिखी मिली हैं; जैसे-घर की देहली ऊँची उठी हुई हो तो वह धन-दौलत लाती है, सामने का दरवाजा अगर किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता है; लेकिन अगर घर की लकड़ी का मुख्य दरवाजा (भीतर की ओर न खुलकर) बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति लिए के यंत्रणा का कारण बनेगी। उर में नगरवासियों के लिए एक कब्रिस्तान भी था, जिसमें शासकों तथा जन-साधारण की समाधियाँ पाई गईं, लेकिन कुछ लोग साधारण घरों के फर्शों के नीचे भी दफनाए हुए पाए गए।
प्रश्न 8.
उपयुक्त उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि ‘मारी एक नगरीय केन्द्र और व्यापारिक स्थल था।
उत्तर :
मारी नगर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर स्थित था जहाँ से होकर लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा और अन्य कई वस्तुओं को नावों के माध्यम से फरात नदी के रास्ते दक्षिण और उत्तर में तुर्की, सीरिया और लेबनान लाया-ले जाया जाता था। मारी नगर व्यापार के आधार पर समृद्ध हुए नगरीय केंद्र का एक अच्छा उदाहरण है। दक्षिणी नगरों को घिसाई-पिसाई के पत्थर, लकड़ी और शराब तथा तेल के पीपे ले जाने वाले जलपोत मारी में रुका करते थे। मारी नगर के राजकीय अधिकारी जहाज पर जाकर लदे हुए सामान की जाँच करते थे तथा उसमें लदे माल की कीमत का 10 प्रतिशत अधिभार वसूलते थे। जौ विशेष प्रकार की नौकाओं में आता था। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कुछ पट्टिकाओं में साइप्रस के द्वीप ‘अलाशिया’ से आने वाले ताँबे का भी उल्लेख मिला है। यह द्वीप उन दिनों अपने ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ राँगे का भी व्यापार होता था। क्योंकि काँसा औजार और हथियार बनाने के लिए मुख्य व्यापारिक वस्तु था अतः इसके व्यापार का अत्यधिक महत्त्व था। यद्यपि मारी राज्य सैन्य दृष्टि से अधिक शक्तिशाली नहीं था किन्तु व्यापार और समृद्धि की दृष्टि से बेजोड़ था।
प्रश्न 9.
राजा जिमरीलिम के मारी स्थित राजमहल के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
मेसोपोटामिया में मारी स्थित राजा जिमरीलिम (1810-1760 ई० पू०) को राजमहल शाही परिवार का निवास स्थान था। यह प्रशासन तथा उत्पादन का प्रमुख केंद्र था। इसके अतिरिक्त यह मूल्यवान धातुओं के आभूषणों के निर्माण का भी प्रमुख केंद्र था। मारी स्थित जिमरीलिम का महल अपने समय में इतना अधिक प्रसिद्ध था कि उत्तरी सीरिया का एक छोटा राजा उसे देखने के लिए आया था। वह मारी के राजा जिमरीलिम के शाही मित्र का परिचय-पत्र लाया था। खुदाई में प्राप्त दैनिक सूचियों में ज्ञात होता है कि राजा की भोजन की मेज पर प्रतिदिन अत्यधिक मात्रा में खाद्य पदार्थ रखे जाते थे। इसमें रोटी, मांस, मछली, फल तथा बीयर और शराब सम्मिलित थे। सम्भवतः राजा अपने अन्य मित्रों के साथ भोजन करता था। राजमहल में केवल एक ही प्रवेशद्वार था। यह प्रवेशद्वार उत्तर की ओर बना हुआ था। उसके बड़े खुले सहन सुंदर पत्थरों से जड़े हुए थे। राजा विदेशी अतिथियों तथा अपने लोगों से सभागृह में मिलता था। वहाँ के भित्तिचित्रों को देखकर आगंतुक आश्चर्य में पड़ जाते थे। यह राजमहल एक विशाल क्षेत्र में था जो 2.4 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। इसमें 260 कक्ष थे
मारी स्थित जिमरीलिम का महल (1810-1760 ई०पू०)
प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया की सभ्यता का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) सामाजिक जीवन
(ख) आर्थिक जीवन
उत्तर :
(क) मेसोपोटामिया सभ्यता में सामाजिक जीवन
मेसोपोटामिया के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
- समाज के विभिन्न वर्ग :
मेसोपोटामिया का समाज तीन प्रमुख वर्गों में बँटा हुआ था। प्रथम वर्ग में, जिसे उच्च वर्ग कहा जाता था, राजवंश के सदस्य, उच्च पदाधिकारी, पुरोहित व सामंत सम्मिलित थे। इस वर्ग के लोगों का जीवन बड़ा वैभवशाली और ऐश्वर्य से परिपूर्ण था। इनके पास धन व सम्पत्ति की कभी नहीं थी और इन्हें समाज में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। द्वितीय वर्ग मध्यम वर्ग कहलाता था, जिसमें छोटे जमींदार, व्यापारी आदि आते थे। इनका जीवन भी सुखमय और संतोषजनक था। तीसरा वर्ग निम्न श्रेणी के लोगों का था, जिसमें प्रमुखतः दास सम्मिलित थे। दासों का जीवन कष्टमय था, लेकिन हेम्मूराबी के काल में उनके साथ कठोरता का व्यवहार नहीं किया जाता था। - भोजन, वस्त्र व आभूषण :
मेसोपोटामिया के लोग अपने भोजन में गेहँ तथा जौ की रोटी, दूध, दही, मक्खन, फल आदि का प्रयोग करते थे। वे खजूर से आटा, चीनी तथा पीने के लिए शराब तैयार करते थे। वे मांस-मछली का भी सेवन करते थे। मेसोपोटामिया के लोग सूती, ऊनी तथा भेड़ की खाल के बने वस्त्रों का प्रयोग करते थे। पुरुषों के वस्त्रों में लुंगी प्रमुख थी। उच्च वर्ग की स्त्रियाँ विलासिता का जीवन व्यतीत करती थीं। सोने-चाँदी के आभूषण भी प्रयोग में जाए जाते थे। आभूषणों में हार, कंगन तथा बालियाँ आदि , प्रमुख थे, जिनका स्त्रियाँ रुचिपूर्वक प्रयोग करती थीं। - आवास :
यहाँ के लोग रहने के लिए पक्की ईंटों के मकान बनाते थे। ईंटें चिकनी मिट्टी की बनी होती थीं। मकानों का गन्दा पानी निकालने के लिए बनी नालियाँ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों के समान थीं। मेसोपोटामिया के लोग मकानों को सुंदर बनाते थे। मकानों की दीवारों पर उभरे हुए चित्र भी बनाए जाते थे। - समाज में नारी का स्थान :
समाज में स्त्रियों को बहुत सम्मान प्राप्त था। सामान्यतः एक-पत्नी विवाह की प्रथा प्रचलित थी। पर्दा प्रथा तथा राज-परिवारों तक ही सीमित थी। दहेज का प्रचलन था, किन्तु विवाह में पिता से प्राप्त दहेज पर वधू का ही अधिकार होता था। विंधवा को पति की सम्पत्ति बेचने का अधिकार था। वेश्यावृत्ति और बहुविवाह भी प्रचलित थे।
(ख) मेसोपोटामिया सभ्यता में आर्थिक जीवन
मेसोपोटामिया के लोगों के आर्थिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
- कृषि :
मेसोपोटामिया के लोगों का आर्थिक जीवन संतोषप्रद था। यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी, इसलिए यहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। गेहूँ, जौ और मक्का की खेती अधिक की जाती थी। नहरों और नदियों से सिंचाई की जाती थी तथा फल और सब्जियों का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में होताथा। - पशुपालन :
मेसोपोटामिया में लोगों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। ये लोग विभिन्न प्रकार के पशु पालते थे। पशुओं से इन्हें उपयोगी सामग्री प्राप्त होती थी। बैल रथ खींचते थे और भेड़ों से ऊन प्राप्त की जाती थी। - उद्योग-धंधे एवं व्यापार :
मेसोपोटामिया के दस्तकार लोग लकड़ी, धातु, हाथीदाँत तथा मिट्टी की अनेक कलात्मक वस्तुएँ बनाते थे। इनका भारत व चीन के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध था।
मेसोपोटामिया के लोग देश-विदेश से व्यापार करते थे। सम्भवतः इस युग में सिक्कों का प्रचलन नहीं था। चॉदी या सोने के टुकड़े; सिक्कों के स्थान पर प्रयोग में लाए जाते थे। जल तथा थल दोनों मार्गों का व्यापार हेतु प्रयोग किया जाता था। उस समय बेबीलोन पश्चिमी देशों का एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। मेसोपोटामिया के निवासियों ने पहिये का आविष्कार करके रथों व गाड़ियों का निर्माण किया, जो व्यापार में विशेष सहायक सिद्ध हुए थे। यहाँ के लोगों ने लेन-देन व व्यापार के लिए सिक्के बनाए और नाप-तोल के लिए अनेक प्रकार के बाटों का आविष्कार किया।
प्रश्न 11.
मेसोपोटामिया की सभ्यता का वर्णन निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर कीजिए
(क) धार्मिक जीवन
(ख) लेखन कला व साहित्य
(ग) विज्ञान
(घ) कलाएँ
उत्तर :
(क) मेसोपोटामिया की सभ्यता में धार्मिक जीवन
मेसोपोटामिया के लोगों के धार्मिक जीवन की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
- अनेक देवी-देवताओं में विश्वास :
मेसोपोटामिया के लोगों का अनेक देवी-देवताओं में विश्वास था। उनमें शम्स (सूर्य देवता), अनु (आकाश देवता), एनलिल (वायु देवता) तथा नन्नार चंद्र देवता) आदि प्रमुख थे। बेबीलोन के निवासी विशेष रूप से ‘माईक’ और असीरिया के लोग ‘असुर’ (अस्सुर) नामक देवता की उपासना करते थे। - भव्य मंदिरों का निर्माण :
प्रत्येक नगर में एक प्रधान मन्दिर होता था। वहाँ का देवता नगर का संरक्षक देवता माना जाता था। नगर के संरक्षक देवता के लिए नगर के पवित्र क्षेत्र में किसी पहाड़ी पर या ईंटों के बने चबूतरे पर मंदिर का निर्माण किया जाता था, जिसे जिगुरत’ या “जिग्गूरात’ कहते थे। - बलि प्रथा :
लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भेड़-बकरी आदि पशुओं की बलि चढ़ाते थे। उनकी पूजा स्वार्थ-प्रेरित होती थी। उसमें श्रद्धा का अभाव पाया जाता था। - भौतिकवाद में आस्था :
इस सभ्यता के लोग अपने जीवनकाल में अधिक-से-अधिक सुख भोगना चाहते थे। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनका विश्वास था कि देवताओं को प्रसन्न रखकर भौतिक सुख प्राप्त किया जा सकता है। - अंधविश्वास :
इस सभ्यता के लोग अंधविश्वासी होते थे। वे ज्योतिषियों, पुरोहितों, भविष्यवाणियों, जादू-टोनों तथा भूत-प्रेत आदि पर बहुत विश्वास रखते थे। बाढ़, अकाल तथा महामारी को वे देवता का प्रकोप मानते थे। - नैतिकता :
इस सभ्यता के लोग नैतिकतापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। झूठ बोलना, घमण्ड करना तथा दूसरे को अप्रसन्न करने इत्यादि दुर्गुणों से वे दूर रहते थे। - वर्तमान का महत्त्व :
इस सभ्यता के लोग परलोक के स्थान पर इहलोक की चिंता अधिक करते थे। उनका विश्वास था कि परलोक अंधकार और दुर्भिक्ष (अकाल) का डेरा है, जहाँ पेट भरने के लिए केवल मिट्टी मिलती है।
(ख) मेसोपोटामिया की सभ्यता में लेखन कला व साहित्य
लेखन कला का आविष्कार मेसोपोटामिया की सभ्यता की संसार को सबसे बड़ी देन मानी जा सकती है। यहाँ के लोगों ने लिखने के लिए कीलाकार लिपि का
विकास किया था। इस लिपि में 250 से भी अधिक अक्षर थे। प्रारम्भ में इनकी लिपि चित्रों पर आधारित थी, जो बाद में ध्वनि पर आधारित हो गई। यहाँ के लोग नर्म मिट्टी की बनी स्लेटों पर सरकण्डे की कलम से लिखा करते थे, जिन्हें पकाकर सुरक्षित रख लिया जाता था। हजारों की संख्या में ऐसी अनेक मिट्टी की पट्टिकाएँ या तख्तियाँ निनवेह नगर की खुदाई में मिली हैं। मेसोपोटामिया के निवासी साहित्य-प्रेमी थे। बेबीलोन व निनवेह नगरों की खुदाई में मिट्टी की जो पट्टियाँ मिली हैं, उनमें कहानियाँ, महाकाव्य, गीतिकाव्य तथा धार्मिक उपदेश संकलित हैं।
(ग) मेसोपोटामिया की सभ्यता में विज्ञान (वैज्ञानिक प्रगति)
मेसोपोटामिया के लोगों ने विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की थी। गणित, ज्योतिष और औषधि-विज्ञान के क्षेत्रों में उनका योगदान बड़ा
उल्लेखनीय है। गणित के क्षेत्र में सर्वप्रथम उन्होंने 1, 10 और 100 के चिह्न की खोज की थी। उनके गणितशास्त्र में 12 और 60 की संख्याओं का विशेष महत्त्वं था। उन्होंने वर्ष, माह, दिन, घण्टे, मिनट व सेकण्ड का विभाजन इसी आधार पर किया था। ज्योतिष के क्षेत्र में इन लोगों ने अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। इन्होंने नक्षत्रों की गति के आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ कीं और बुध, शुक्र, मंगल, गुरु तथा शनि ग्रहों का भी पता लगाया। उन्होंने आकाश को 12 राशियों में बाँटा और उनके नाम भी रखे। उन्होंने एक पंचांग भी बनाया और सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण के कारणों की खोज की। औषधि-विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने अनेक भयावह रोगों के निदान के लिए कुछ रसायन (दवाएँ) भी बना लिए थे। इतना ही नहीं, धूपघड़ी व सूर्यघड़ी के आविष्कारक भी यही लोग थे।
(घ) मेसोपोटामिया की सभ्यता में कलाओं का विकास
मेसोपोटामिया में पत्थर तथा धातुओं का अभाव था, इसलिए भवननिर्माण कला के क्षेत्र में यहाँ के, निवासियों ने कोई विशेष उन्नति नहीं की, फिर भी यहाँ के
कुछ शासकों ने सुंदर मंदिरों वे महलों का निर्माण अवश्य कराया। इन्हें सुंदर चित्रों से सजाया भी जाता था। यही नहीं, मेहराबों, स्तम्भों और गुम्बदों के निर्माण में यहाँ के लोगों ने संसार को एक नई दिशा प्रदान की। इनकी कला के नमूनों में ‘बेबीलोन का बुर्ज’ और ‘जिगुरत’ या ‘जिग्गूरात’ विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। इस सभ्यता के अन्तर्गत विशाल आकार की मूर्तियों का निर्माण भी हुआ। इसके अतिरिक्त बेबीलोन में चित्रकला भी अपने विकास के शिखर पर थी। यहाँ के लोग पशु-पक्षियों के व धर्म सम्बन्धी चित्र अधिक बनाते थे। इस समय संगीत कला, फर्नीचर निर्माण कला और मुद्रण कला भी विकसित हो चुकी थी।
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