In this chapter, we provide UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 17 Process of Development (विकास की प्रक्रिया) for Hindi medium students, Which will very helpful for every student in their exams. Students can download the latest UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 17 Process of Development (विकास की प्रक्रिया) pdf, free UP Board Solutions Class 11 Pedagogy Chapter 17 Process of Development (विकास की प्रक्रिया) book pdf download. Now you will get step by step solution to each question. Up board solutions Class 11 pedagogy पीडीऍफ़ UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 17 Process of Development (विकास की प्रक्रिया) are the part of UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 17 Process of Development (विकास की प्रक्रिया).
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Pedagogy |
Chapter | Chapter 17 |
Chapter Name | Process of Development (विकास की प्रक्रिया) |
Number of Questions Solved | 26 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 17 Process of Development (विकास की प्रक्रिया)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
‘विकास’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। विकास में होने वाले परिवर्तनों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास का अर्थ
(Meaning of Development)
प्रायः विकास का अर्थ आयु में बड़े होने या कद में बड़े होने से लगाया जाता है, परन्तु विकास का यह अर्थ भ्रामक है। विकास का अर्थ है-“वे व्यवस्थित तथा समानुगत परिवर्तन, जो परिपक्वता की प्राप्ति में सहायक होते हैं। यहाँ पर व्यवस्थित का अर्थ है-क्रमबद्धता, अर्थात् शारीरिक और मानसिक परिवर्तन में कोई-न-कोई क्रम अवश्य होता है और प्रत्येक परिवर्तन अपने पूर्व परिवर्तन पर निर्भर रहता है। समुनगत शब्द का अर्थ है, इन परिवर्तनों में परस्पर सामंजस्य होता है अर्थात् ये परिवर्तन सम्बन्धविहीन नहीं होते। कुछ विद्वान् विकास को एक अवधारणा मानते हैं, परन्तु गैसल (Gassel) के अनुसार विकास एक अवधारणा मात्र नहीं है, वरन् विकास एक अवधारणा से कहीं अधिक है। विकास का निरीक्षण किया जा सकता है तथा उसका मूल्यांकन भी किया जा सकता है। विकास व्यक्ति में नवीन योग्यताएँ उत्पन्न करता है, जिससे उसमें नवीन विशेषताओं का जन्म होता है। दूसरे शब्दों में, विकास निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जो जन्म से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है।
विकास की परिभाषाएँ
(Definitions of Development)
विकास की कुछ प्रमुख परिभाषाओं का विवरण इस प्रकार है-
- जेम्स ड्रेवर (James Drever) के अनुसार, “विकास वह दशा है, जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में व्यक्ति में निरन्तर प्रकट होती है अर्थात् यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी व्यक्ति में भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चलता है और विकासतन्त्र को नियन्त्रण में रखता है। यह दशा प्रगति का मापदण्ड होती है तथा इसका प्रारम्भ शून्य से होता है।”
- मुनरो (Munro) के अनुसार, “परिवर्तन श्रृंखला की वह व्यवस्था, जिसमें बालक भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास के नाम से जानी जाती है।”
- हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, “विकास अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है। इसके बजाय उनमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन मान्यताएँ होती हैं।”
- इंगलिश (English) के अनुसार, “विकास प्राणी की शरीर अवस्था में एक लम्बे समय तक होने वाले लगातार परिवर्तन का एक क्रम है। यह विशेषतया ऐसा परिवर्तन है, जिसके कारण जन्म से लेकर परिपक्वता और मृत्यु तक प्राणी में स्थायी परिवर्तन होते हैं।’
विकास में परिवर्तन के रूप
(Types of Changes in Development)
विकास में मुख्यतया चार प्रकार के परिवर्तन होते हैं|
1. आकार में परिवर्तन- आयु-वृद्धि के साथ-साथ बालकों के शारीरिक पक्ष में पर्याप्त परिवर्तन दिखलाई पड़ने लगता है। आकार में यह परिवर्तन परिपक्वता तक चलता रहता है। जन्म लेने के पश्चात् आयु के बढ़ने के साथ-साथ बालक की लम्बाई, भार, आकार आदि में भी वृद्धि होने लगती है। इसी प्रकार शरीर के आन्तरिक भाग में भी अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। उदाहरण के लिए-फेफड़े, हृदय तथा आँतों के आकार में वृद्धि हो जाती है। बालक नवीन शब्दों को सीखते हैं, जिससे उनके शब्दकोश का विस्तार होता है। धीरे-धीरे उनमें तर्कशक्ति का भी विकास होता जाता है।
2. अनुपात में परिवर्तन- विकास की प्रक्रिया में बालक के शारीरिक विकास में आनुपातिक परिवर्तन होता है। बालक को एक प्रौढ़ के रूप में समझना भारी भूल है, क्योंकि बालक तथा प्रौढ़ दोनों के शरीर में अनुपात सम्बन्धी विभिन्नता पायी जाती है। लगभग 14 वर्ष की आयु (किशोरावस्था) में जाकर बालक और प्रौढ़ के अनुपात के पुराने लक्षणों की समाप्ति में शारीरिक समानता आने लगती है। प्रारम्भ में शारीरिक विकास के अनुपात में इस प्रकार परिवर्तन होते हैं–सिर के अनुपात में दूनी, शरीर के अनुपात में तीन-गुनी तथा मस्तिष्क और शरीर के ऊपरी अंगों में चार-गुनी वृद्धि हो जाती है।
अनुपात सम्बन्धी परिवर्तन मानसिक रूप से भी दृष्टिगोचर होते हैं। छोटे बालक कल्पना तो करते हैं, परन्तु उनकी कल्पना लक्ष्यहीन होती है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है, उसकी कल्पना में वास्तविकता का अंश आने लगता है। इसी प्रकार आयु के साथ-साथ बालक की रुचियों में भी परिवर्तन होता है। प्रारम्भ में बालक स्वयं अपने में तथा अपने खिलौनों में रुचि लेता है। जब वह पर्याप्त बड़ा हो जाता है, तब वह आस-पास के साथी बालकों के साथ खेलने में रुचि लेने लगता है।
3. पुराने लक्षणों की समाप्ति- जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है, वैसे-ही-वैसे उसके पुराने लक्षण लुप्त होते जाते हैं। उदाहरणार्थ–एक छोटा शिशु प्रारम्भ में हाथ-पैर चलाता है, सरक-सरक कर चलता है तथा तुतला कर बोलता है, परन्तु वर्ष भर के बाद इनमें से अभिकांश लक्षणों का लोप हो जाता है। इसी प्रकार आयु-वृद्धि के साथ शरीर के अन्दर थाईमस ग्लैण्ड (Thymus Gland) का लोप हो जाता है। दूध के दाँत, जो जन्म के पश्चात् निकलते हैं, कुछ वर्ष बाद गिर जाते हैं और उनके स्थान पर स्थायी दाँत निकल आते हैं।
4. नवीन विशेषताओं की प्राप्ति- विकास क्रम में जहाँ पुराने लक्षणों का लोप हो जाता है, वहीं बालक का शरीर नवीन रूपरेखा ग्रहण करने लगता है। उदाहरण के लिए-तुतलाहट के स्थान पर बालक स्पष्ट बोलने लगता है। किशोरावस्था में तो अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन होते हैं। बालकों के दाढ़ी-मूंछ निकलने लगती है। उनकी आवाज में भारीपन आ जाता है। बालिकाओं के स्तनों में उभार आ जाता है। इन शारीरिक परिवर्तनों के कारण किशोर-किशोरियों की मानसिक क्रियाओं तथा सांवेगिक प्रतिक्रियाओं में पर्याप्त परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। दोनों वर्गों के सदस्यों में परस्पर आकर्षण तथा रुचि अत्यधिक तीव्रता से बढ़ने लगती है।
प्रश्न 2
विकास के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
या
विकास के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए तथा उनका शैक्षिक महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकास के सिद्धान्त
(Theories of Development)
विकास एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक महत्त्व है। विकास की प्रक्रिया की समुचित व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं। विकास सम्बन्धी मुख्य सिद्धान्तों का विवरण निम्नवर्णित है –
1. निरन्तर विकास का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार, बालक का विकास तभी से प्रारम्भ हो जाता है, जब वह गर्भावस्था में होता है। विकास की यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। दूसरे शब्दों में, विकास अचानक नहीं होता, वरन् उसमें निरन्तरता रहती है। स्किनर के अनुसार, “विकास प्रक्रियाओं की निरन्तरता का सिद्धान्त केवल इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई अचानक परिवर्तन नहीं होता।”
2. सामान्य से विशिष्ट की ओर का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार, बालक का विकास सामान्य प्रक्रियाओं से विशिष्ट प्रक्रियाओं की ओर होता है। उदाहरण के लिए प्रारम्भ में बालक अपने सम्पूर्ण हाथ का संचालन करता है, तत्पश्चात् धीरे-धीरे वह अपनी उँगलियों पर नियन्त्रण स्थापित करता है। विकास की समस्त अवस्थाओं में बालक की प्रक्रियाएँ विशिष्ट बनने से पूर्व सामान्य होती हैं।
3. विकास की विभिन्न गति का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार एक ही मापदण्ड से समस्त बालकों के विकास का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। विभिन्न बालकों के विकास की गति में भिन्नता पायी जाती है और यह भिन्नता अन्त तक बनी रहती है।
4. समान प्रतिमान का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार समान प्रजाति (Race) में विकास की गति समान प्रतिमानों से प्रभावित होती है। हरलॉक के अनुसार, “प्रत्येक प्रजाति, वह चाहे मानव जाति हो या पशु जाति, अपनी जाति के अनुरूप विकास का अनुकरण करती है।” मनुष्य चाहे अमेरिका में पैदा हो या भारत में, उसका मानसिक, शारीरिक तथा संवेगात्मक विकास समान रूप से होता है।
5. विकास क्रम का सिद्धान्त- शिरले (Shirley) तथा गैसिल (Gassal) आदि ने परीक्षण करके यह सिद्ध कर दिया है कि बालक का गामक (Motor) तथा भाषा (Language) सम्बन्धी विकास एक निश्चित क्रम में होता है। प्रत्येक बालक जन्म के समय केवल रोना जानता है। तीन माह के पश्चात् वह ध्वनि निकालने लगता है। सात माह के पश्चात् वह मा, मी, पा, पा आदि शब्दों का उच्चारण करने लगता है।
6. विकास दिशा का सिद्धान्त- कुछ विद्वानों के अनुसार बालक के विकास की प्रक्रिया सिर से पैर की दिशा की ओर चलती है। प्रारम्भ में बालक केवल अपना सिर उठा पाता है। तीन माह के बाद वह अपने नेत्रों की गति पर नियन्त्रण कर लेता है। छह माह में उसका अपने हाथों की गतियों पर नियन्त्रण हो जाता है। नौ माह में वह सहारे से बैठने लगता है तथा एक वर्ष में लड़खड़ा कर चलने लगती है।
7. परस्पर सम्बन्ध का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न अंगों के विकास में सामंजस्य और परस्पर सम्बन्ध रहता है। दूसरों शब्दों में, बालक के शारीरिक विकास, मानसिक और संवेगात्मक पक्षों के विकास में परस्पर सम्बन्ध रहता है। जब बालक का शारीरिक विकास होता है तो उसके साथ-साथ उसकी ध्यान केन्द्रित करने की शक्तियों, रुचियों तथा संवेदनाओं में भी परिवर्तन होता रहता है।
8. वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धान्त- प्रत्येक बालक के विकास का अपना निजी स्वरूप होता है। ऐसी दशा में वैयक्तिक भिन्नताओं का होना स्वाभाविक है। सम आयु के दो बालकों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि पक्षों के विकास में वैयक्तिक विभिन्नताओं के दर्शन होते हैं।
9. वंशानुक्रमण तथा वातावरण की अन्तःक्रिया का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार बालक का विकास वंशानुक्रमण तथा वातावरण की अन्त:क्रिया द्वारा होता है। यदि यह कहा जाए कि केवल वंशानुक्रमण ही बालक के विकास में योग देता है, तो यह बात सर्वथा गलत है। यही बात वातावरण के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है।
विकास के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्त्व
(Educational Importance of Principle of Development)
विकास की प्रक्रिया का बालक एवं व्यक्ति के जीवन के सभी पक्षों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि विकास के सिद्धान्तों का विशेष शैक्षिक महत्त्व भी है। वास्तव में शिक्षा की प्रक्रिया का विकास की प्रक्रिया से घनिष्ठ एवं अटूट सम्बन्ध है। शिक्षा की प्रक्रिया सदैव विकास की प्रक्रिया के साथ-साथ चलती है। विकास की प्रक्रिया के सुचारु होने की दशा में शिक्षा की प्रक्रिया भी सामान्य एवं सुचारु रूप से चलती है। विकास की प्रक्रिया का मूल्यांकन विकास के सिद्धान्तों के आधार पर ही किया जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि विकास के सिद्धान्तों का विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 3
विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए। या विकास को प्रभावित करने वाले चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Influencing the Development)
यह सत्य है कि विकास की प्रक्रिया में एक प्रकार की समरूपता पायी जाती है, परन्तु इसके साथ-ही-साथ यह भी सत्य है कि विकास एवं व्यक्तिगत प्रक्रिया भी है। प्रत्येक व्यक्ति का विकास उसके अपने ही ढंग से होता है। इस भिन्नता का मूल कारण यह है कि व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया पर विभिन्न कारक अपना-अपना विशिष्ट प्रभाव डालते हैं। इस स्थिति में विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को जानना भी आवश्यक है। विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. बुद्धि- बालकों के विकास पर प्रभाव डालने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक बुद्धि है। प्रायः तीव्र बुद्धि के बालकों का विकास तेजी से होता है और मन्द बुद्धि के बालकों का धीमी गति से। टरमन (Turman) के अनुसार, कुशाग्र बुद्धि के बालक 13 माह की आयु में चलना सीख जाते हैं, सामान्य बुद्धि के 14 माह में, मूर्ख बालक 22 माह की आयु में तथा मूढ़ बालक 30 माह की आयु में चलना सीखते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि बुद्धि और विकास में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।
2. प्रजाति- प्रजातीय भिन्नता बालक के विकास को भी प्रभावित करती है। विभिन्न प्रजातियों की विकास दरें एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। आर्य, द्रविड़, मंगोल आदि के मानसिक तथा शारीरिक विकास में पर्याप्त भिन्नता मिलती है।
3. संस्कृति- जंग (Jung) के अनुसार, “व्यक्ति के विकास में संस्कृति की स्थिति की भूमिका विशेष महत्त्व रखती है। बालक का विकास जातीय संस्कृति के अनुरूप ही होता है। जो संस्कृति जितनी अधिक उन्नत होगी, बालक उससे उसी मात्रा में गुणों का अर्जन करेगा।” विभिन्न संस्कृतियों के बालकों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सोमान्य.सहज प्रवृत्तियाँ प्रत्येक संस्कृति में पायी जाती हैं, परन्तु उनको अभिव्यक्त करने के ढंग अलग-अलग हैं।
4. यौन- भिन्नता–इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिल चुके हैं कि यौन-भेद बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास में एक विशिष्ट भूमिका रखते हैं। लड़के और लड़कियों के शारीरिक विकास में पर्याप्त अन्तर होता है। लड़के जन्म से लड़कियों से कुछ बड़े होते हैं, परन्तु विकास लड़कियों का अधिक तीव्रता से होता है। वे लड़कों की अपेक्षा पहले युवा हो जाती हैं। इसी प्रकार लड़कियों के मानसिक विकास में भी तीव्रता होती है। लड़कों की अपेक्षा वे शीघ्र बोलना सीख जाती हैं।
5. अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ- अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ भी बालक के विकास को प्रभावित करती हैं। इनका प्रभाव मुख्य रूप से बालक के मानसिक विकास पर पड़ता है। इन ग्रन्थियों का अभाव मांसपेशियों में पर्याप्त उत्तेजना उत्पन्न करता है तथा अस्थियों का विकास भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। गल ग्रन्थियों से निकलने वाला रस सबसे अधिक बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास को प्रभावित करता है। इसकी न्यूनता से बालक को शारीरिक तथा मानसिक विकास रुक जाता है।
6. पौष्टिक भोजन- पौष्टिक आहार का प्रत्येक अवस्था में महत्त्व होता है, परन्तु सबसे अधिक महत्त्व बाल्यावस्था में होता है। यदि बालक को बाल्यावस्था में ही पौष्टिक भोजन मिलना आरम्भ हो जाता है तो उसका विकास उचित दिशा में होता है। भोजन की मात्रा की अपेक्षा खाद्य सामग्री का विटामिन युक्त होना आवश्यक है। जिन बालकों को उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, उनका शारीरिक विकास उचित ढंग से नहीं हो पाता तथा वे विभिन्न रोगों से भी ग्रस्त हो जाते हैं। अत: बालकों के उचित विकास के लिए सन्तुलित भोजन का विशेष महत्त्व है।
7. शुद्ध वायु और प्रकाश- शुद्ध वायु तथा प्रकाश बालक के कद, परिपक्वता तथा सामान्य स्वास्थ्य को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। जिन बालकों का पालन-पोषण पर्याप्त एवं शुद्ध वायु तथा सूर्य के प्रकाश में होता है, उनका शारीरिक विकास उन बालकों की अपेक्षा उत्तम होता है, जो प्रकाशहीन तथा अशुद्ध वायु से परिपूर्ण वातावरण में रहते हैं।
8. रोग तथा चोट- यदि बालक के सिर तथा अन्य कोमल अंगों में चोट लग जाती है तो उसका भी शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार विषैली ओषधियों का भी विकास पर कुप्रभाव पड़ता है।
9. परिवार की स्थिति- परिवार की स्थिति भी बालक के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। यदि परिवार में तीन बालक हैं तो उनकी विकास प्रक्रिया में अन्तर मिलेगा। पहले बालक की अपेक्षा तीसरे बालक का विकास अपेक्षाकृत शीघ्र होता है, क्योंकि उसे अपने भाई-बहनों के अनुकरण के पर्याप्त अवसर मिलते हैं। इसी प्रकार जिन बालकों का परिवार में लाड़-प्यार अधिक होता है, उनका विकास उन बालकों से भिन्न होता है, जिसके साथ डाँट-फटकार तथा उपेक्षा का व्यवहार किया जाता है। उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि विकास की प्रक्रिया को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। सन्तुलित विकास के लिए पौष्टिक भोजन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक परिस्थितियाँ अत्यधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
विकास के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास के मुख्य कारण
(Main Causes of Development)
विकास की प्रक्रिया के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
1. परिपक्वीकरण- परिपक्वीकरण का अर्थ होता है-स्वाभाविक विकास। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति को वंशानुगत रूप से प्राप्त शील गुणों को, जो उसके अन्दर विद्यमान हैं, का विकास ही परिपक्वता है। प्रायः यह देखा गया है कि परिपक्वता के आधार पर बालक में एकाएक शील गुण प्रकट होते हैं। हरलॉक ने परिपक्वता की परिभाषा देते हुए लिखा है-”परिपक्वता से तात्पर्य वंशानुक्रम के प्रभाव के कारण व्यक्ति में शील गुणों के प्रभावी विकास से है, जिनकी व्यक्ति में जन्म के समय क्षमता होती है।” संक्षेप में, बालक के शील गुणों का स्पष्टीकरण ही परिपक्वता है। यह मानव के विकास की अनवरत प्रक्रिया है। आयु के विकास के साथ-साथ जैसे-जैसे बालक परिपक्व होता जाता है, वैसे ही उसमें कुछ विशेषताएँ स्पष्ट होती जाती हैं तथा परिपक्वता के साथ-साथ शरीर में विभिन्न क्रियाओं के लिए क्षमता भी उत्पन्न होती जाती है।
2. सीखना- सीखने को अधिगम (Learning) भी कहा जाता है। जन्म लेने के पश्चात् बालक अपने को एक विशेष प्रकार के भौतिक तथा सामाजिक वातावरण से घिरा पाता है। बालक की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति इस भौतिक और सामाजिक वातावरण के अन्दर ही होती है, परन्तु इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति को अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ संघर्ष अथवा अनुकूलन करना पड़ता है। इस प्रकार के अनुकूलन के लिए वह गत अनुभवों की सहायता से अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है और इस प्रकार सीख जाता है। गेट्स (Gates) के अनुसार, “अनुभवों और प्रशिक्षण द्वारा अपने व्यवहारों का संशोधन करना ही सीखना है।’ अनुभव जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है। हर व्यक्ति कुछ-न-कुछ सीखता रहता है और इससे लाभ ” उठाकर व्यक्ति अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है। अतः सीखना परिवर्तन है। सीखना एक विकास भी है, जिसका कभी अन्त नहीं होता। जीवन-पथ के प्रत्येक कदम पर व्यक्ति कुछ-न-कुछ सीखता रहता है।
प्रश्न 2
विकास तथा वृद्धि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकास तथा वृद्धि में अन्तर
(Difference between Development and Growth)
सामान्य अर्थ में विकास और वृद्धि समानार्थी है, परन्तु वास्तविकता यह है कि विकास और वृद्धि में पर्याप्त अन्तर है। शरीर के अंगों में बढ़ोतरी वृद्धि कहलाती है और इस वृद्धि का मापन तथा मूल्यांकन भी किया जा सकता है। इसके विपरीत विकास शरीर में होने वाले गुणात्मक परिवर्तन का बोध कराता है। उदाहरण के लिए-आयु-वृद्धि के साथ बालक की हड्डियों में वृद्धि होती जाती है तथा इनमें कठोरता और मजबूती आती जाती है। इस प्रकार वृद्धि शब्द का प्रयोग सामान्यतः शरीर तथा उसके अंगों के भार अथवा आकार में बढ़ोतरी के लिए किया जाता है। इस वृद्धि का मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है, जबकि विकास प्रमुखतया शरीर में होने वाले गुणात्मक परिवर्तनों को प्रकट करता है। इस प्रकार वृद्धि के बाद विकास होता है। वृद्धि आकार में परिवर्तन है, जबकि विकास गुणों में परिवर्तन है। वृद्धि एक निश्चित आयु आने पर रुक जाती है, किन्तु विकास की प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती रहती है।
संक्षेप में विकास और वृद्धि में अन्तर निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है-
प्रश्न 3
विकास के मुख्य रूपों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
विकास के मुख्य रूप
(Main Kinds of Development)
व्यक्ति का विकास अपने आप में समग्रता का विकास है। उसके भिन्न-भिन्न पक्षों में होने वाले विकास को विकास के विभिन्न रूप कहा जाता है। विकास के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं|
- शारीरिक विकास- शरीर सम्बन्धी विकास को शारीरिक विकास कहा जाता है। विकास के इस रूप के अन्तर्गत मुख्य रूप से शरीर के अंगों में आने वाली परिपक्वता का अध्ययन किया जाता है। शरीर के अंगों में परिपक्वता आने के साथ-ही-साथ उनकी क्रियाशीलता में भी वृद्धि होती है।
- मानसिक विकास- व्यक्ति की मानसिक क्षमताओं में होने वाले विकास को मानसिक विकास के रूप में जाना जाता है।
- संवेगात्मक विकास- व्यक्ति के संवेगों में स्थिरता एवं परिपक्वता के गुण के विकास को संवेगात्मक विकास के रूप में जाना जाता है।
- सामाजिक विकास-व्यक्ति के समाजीकरण के परिणामस्वरूप कुछ सामाजिक सद्गुणों का आविर्भाव होता है। सामाजिक गुणों के इस विकास को ही सामाजिक विकास के रूप में जाना जाता है।
- नैतिक एवं चरित्र सम्बन्धी विकास- नैतिक गुणों के प्रति सचेत होना तथा चरित्र को दृढ़ता प्राप्त होना ही नैतिक एवं चरित्र सम्बन्धी विकास कहलाता है।
- भाषागत विकास- भाषा के सीखने, बोलने आदि को भाषागत विकास कहा जाता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
विकास की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास की प्रक्रिया अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है। विकास की मुख्य विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
- विकास का तात्पर्य केवल बढ़ने से नहीं है।
- विकास- बालक की अवस्था में दीर्घकाल तक होने वाले निरन्तर परिवर्तनों का एक क्रम है।
- विकास में परिवर्तन एक दिशा में होते हैं।
- यह परिवर्तन आगे की ओर होता है, पीछे की ओर नहीं।
- विकास में पूर्व स्तर का आने वाले स्तर से सम्बन्ध होता है।
- विकास में निरन्तरता का गुण होता है।
- विकास अपने आप में एक संगठित प्रक्रिया है।
प्रश्न 2
स्पष्ट कीजिए कि विकास की प्रक्रिया पर पोषण का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला एक मुख्य तत्त्व या कारक पोषण है। पोषण का आशय है–सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार ग्रहण करना। वास्तव में बालक के सामान्य एवं सुचारु विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार आवश्यक होता है। उचित पोषण से व्यक्ति का शारीरिक तथा मानसिक विकास भी सामान्य रूप से होता है। उचित पोषण के अभाव में बालक का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
प्रश्न 3
स्पष्ट कीजिए कि विकास जीवन भर चलता रहता है।
उत्तर:
विकास की प्रक्रिया जीवन भर किसी-न-किसी रूप में अवश्य चलती रहती है। शरीर में परिपक्वता आती है, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास भी सदैव होता रहता है। व्यक्ति के विचारों में जो परिपक्वता प्रौढ़ावस्था के उपरान्त आती है वह बाल्यावस्था अथवा युवावस्था में नहीं होती है। इसी प्रकार वृद्धावस्था में बालों का सफेद होना तथा त्वचा का कठोर होना आदि भी विकास के ही प्रमाण ।
प्रश्न 4
अभिवृद्धि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवित प्राणियों के शरीर के अंगों में होने वाली बढ़ोतरी को वृद्धि या अभिवृद्धि (Growth) कहा जाता है। उदाहरण के रूप में शरीर का वजन तथा लम्बाई का बढ़ना वृद्धि कहलाता है। शारीरिक वृद्धि का निर्धारित इकाइयों में मापन एवं मूल्यांकन किया जा सकता है। वृद्धि का सीधा सम्बन्ध आकार से होता है।
निश्चित उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
विकास से क्या आशय है?
उत्तर:
विकास एक जटिल प्रक्रिया है। इसके माध्यम से बालक अथवा व्यक्ति की निहित शक्तियाँ एवं गुण क्रमश: प्रकट होते हैं।
प्रश्न 2
विकास की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
“परिवर्तन श्रृंखला की वह व्यवस्था जिसमें बालक भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है। विकास के नाम से जानी जाती है।”
प्रश्न 3
विकास की प्रक्रिया व्यक्ति के जीवन में कब तक चलती है?
उत्तर:
विकास की प्रक्रिया व्यक्ति में किसी-न-किसी रूप में जीवन भर चलती रहती है।
प्रश्न 4
क्या बालक एवं बालिकाओं के विकास की प्रक्रिया पूर्ण रूप से एकसमान होती है?
उत्तर:
नहीं, बालक एवं बालिकाओं के विकास की प्रक्रिया में उल्लेखनीय अन्तर होता है।
प्रश्न 5
क्या ‘वृद्धि एवं विकास’ एक ही हैं?
उत्तर:
नहीं, वृद्धि एवं विकास में स्पष्ट अन्तर है।
प्रश्न 6
विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- वृद्धि
- प्रजाति
- यौन-भिन्नता तथा
- अन्त:स्रावी ग्रन्थियाँ
प्रश्न 7
बालक के विकास पर वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण में से किस कारक का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
बालक के विकास पर वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण दोनों ही कारकों का प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 8
विकास के अन्तर्गत किस प्रकार के परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
विकास के अन्तर्गत गुणात्मक परिवर्तन होते हैं, जैसे कि हड्डियों तथा माँसपेशियों में क्रमश: कठोरता एवं पुष्टता आना।
प्रश्न 9
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
- विकास तथा वृद्धि में कोई अन्तर नहीं है
- वृद्धि परिपक्वता तथा विकास परस्पर सम्बन्धित हैं
- विकास की प्रक्रिया का बालक की शिक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
- युवावस्था में आकर विकास की प्रक्रिया रुक जाती है
- पोषण का विकास की प्रक्रिया पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है
उत्तर:
- असत्य
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
विकास की प्रक्रिया है
(क) एक सरल प्रक्रिया
(ख) एक जटिल एवं बहुपक्षीय प्रक्रिया
(ग) एक अस्पष्ट प्रक्रिया
(घ) एक कृत्रिम प्रक्रिया
प्रश्न 2.
“विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन योग्यताएँ प्रकट होती है।” यह कथन किसका है?
(क) डगलस का
(ख) हरलॉक का
(ग) टरमन का
(घ) गेस्टालर का
प्रश्न 3.
बालक के विकास तथा उसकी शिक्षा के सम्बन्ध में सत्य है
(क) विकास तथा शिक्षा में कोई सम्बन्ध नहीं है
(ख) विकास शिक्षा को प्रभावित नहीं करता
(ग) शिक्षा से विकास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
(घ) विकास तथा शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध है
प्रश्न 4.
बालक के विकास तथा उसकी आयु में क्या सम्बन्ध है?
(क) विकास सदैव आयु के अनुसार होता है
(ख) विकास पर आयु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
(ग) आयु विकास की प्रक्रिया में बाधक है
(घ) उपर्युक्त सभी कथन असत्य हैं
प्रश्न 5.
विकास को प्रभावित करने वाला कारक नहीं है
(क) वृद्धि
(ख) प्रजाति
(ग) उपलब्धि
(घ) संस्कृति
प्रश्न 6.
विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला कारक है
(क) वृद्धि
(ख) आयु
(ग) पोषण
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 7.
विकास की प्रक्रिया की विशेषता नहीं है
(क) विकास की प्रक्रिया जीवन भर चलती है
(ख) विकास की निश्चित रूप से नाप-तौल की जा सकती है
(ग) विकास में समग्रता का गुण होता है
(घ) अन्तर्निहित गुणों का प्रस्फुटन होता है
उत्तर:
- (ख) एक जटिल एवं बहुपक्षीय प्रक्रिया
- (ख) हरलॉक का
- (घ) विकास तथा शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध है
- (क) विकास सदैव आयु के अनुसार होता है
- (ग) उपलब्धि
- (घ) उपर्युक्त सभी
- (ख) विकास की निश्चित रूप से नाप-तौल की जा सकती है
All Chapter UP Board Solutions For Class 11 pedagogy Hindi Medium
—————————————————————————–
All Subject UP Board Solutions For Class 12 Hindi Medium
*************************************************
I think you got complete solutions for this chapter. If You have any queries regarding this chapter, please comment on the below section our subject teacher will answer you. We tried our best to give complete solutions so you got good marks in your exam.
यदि यह UP Board solutions से आपको सहायता मिली है, तो आप अपने दोस्तों को upboardsolutionsfor.com वेबसाइट साझा कर सकते हैं।