डॉ0 विनयमोहन शर्मा का जीवन परिचय | Vinaymohan Sharma Ka Jeevan Parichay

डॉ0 विनयमोहन शर्मा जी(सन् 1905-1993 ई.)

जीवन-परिचय- 

डॉ. विनयमोहन शर्मा का जन्‍म सन् 1905 ई. में मध्‍य प्रदेश के ‘कारकबेल’ कस्‍बे में हुआ था। इनका वास्‍तविक नाम शुकदेवप्रसाद तिवारी था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा खण्‍डवा (मध्‍य प्रदेश) तथा उच्‍च शिक्षा बनारस हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय में हुई।

सन् 1933 ई. में इन्‍होंने वकालत आरम्‍भ की। 1940 ई. में ये ‘‍सिटी कॉलेज’ नागपूर (मध्‍य प्रदेश ) में प्राध्‍यापक नियुक्‍त हुए और बाद में नागपुर विश्‍वविद्यालय के हिन्‍दी विभाग के अध्‍यक्ष हो गय। यहीं से इन्‍हें पी-एच. डी. की शोध उपाधि भी प्राप्‍त हुई। ये शासकीय स्‍नातक कला-विज्ञान महाविद्यालय’ में हिन्‍दी विभाग के अध्‍यक्ष नियुक्‍त हुए। सन् 1993 ई. के सितम्‍बर माह में भोपाल में इनका देहावासन हो गया।


साहित्यिक परिचय:

डॉ. विनयमोहन शर्मा ने अपना साहित्यिक जीवन एक कवि के रूप में प्रारम्‍ीा किया था। प्रारम्‍ीा में ये ‘वीरात्‍मका’ उपनाम से कविताऍं लिखते थे। साहित्‍य-सृजन में इनकी रुचि छात्र-जीवन से ही थी। इनका प्रथम काव्‍य-संग्रह ‘भूले गीत’ सन् 1944 ई. में प्रकाशित हुआ।

गद्य एवं पद्य की विभिन्न विधाओं पर श्रेष्‍ठ साहित्‍य का सृजन किया, विशेष रूप से शोध, समीक्षा एवं निबन्‍ध के क्षेत्र में इन्‍होंने उल्‍लेखनीय कार्य किया। इनके द्वारा कई उच्‍चस्‍तरीय आलोचनात्‍मक निबन्‍धों एवं महत्तवपूर्ण वमीक्षात्‍मक ग्रन्‍थें की रचना हुई।

इसके अतिरिक्‍त शोधकार्य में नीय पीढ़ी के कई साहित्‍यकारों का पथ-प्रदर्शन भी इन्‍होंने किया। इन्‍होंने शोध को वैज्ञानिक रूप प्रदान किया। जिसे उसमें गम्‍भीरता का समावेश हुआ।

डॉ0 विनयमोहन शर्मा की कृतियॉं:

कविता-संग्रह- भूले गीत (आपका राष्‍ट्रीय काव्‍य-संग्रह है।

निबन्‍ध-संग्रह- दृष्टिकोण, साहित्‍य शोध-समीक्षा, साहित्‍यावलोकन, भाषा निबन्‍ध-संग्रह 

शोध-प्रबन्‍ध- हिन्‍दी को मराठी सन्‍तों की देन

शोध-विज्ञान- व्‍यावहारिक समीक्षा, शोध प्रविधि

संस्‍मरण तथा रेखाचित्र- रेखाएँ और रंग

आलोचना- कविप्रसाद का ऑंसू और अन्‍य कृतियॉं

हिन्‍दीरूपान्‍तर- हिन्‍दी गीत गोविन्‍द

डॉ0 विनयमोहन शर्मा की भाषा-शैली:

शर्मा जी ने अपनी रचनाओं में प्रौढ़ एवं प्रांजल शुद्ध परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किया है। अधिकांश रूप से इनकी भाषा तम्‍सम शब्‍दप्रधान है, किन्‍तु यात्रा और संस्‍मरण सहित्‍य में सरलतम रूप दिखायी देता है।

भाषा को सरल और बोधगम्‍य बनाने ेे लिए अंग्रेजी, उर्दू और स्‍थानीय भाषा के शब्‍दों का भी प्रयोग शमा्र जी ने किया है। 

इनकी रचनाओं में 

  • वर्णनात्‍मक 
  • विवेचात्‍मक 
  • चित्रात्‍मक 
  • समीक्षात्‍मक शैलियों का प्रयोग किया गया है। इन शैलियों के अतिरिक्‍त हास्‍य-वयंग्‍य शैली, आलंकारिक शैली एवं आत्‍मपरक शैली के भी दर्शन होते है।

भाषा:

  • प्रवाहयुक्‍त
  • साहित्यिक खड़ीबोली। 

Note:- विनयमोहन शर्मा जी शुक्‍लोत्तर-युग के लेखक है।

डॉ0 विनयमोहन शर्मा Wikipedia लिंक: Click Here

Remark:

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