बाह्य क्षेत्र में स्थितिज ऊर्जा क्या है:
विद्यत क्षेत्र के स्रोत का विशेष उल्लेख किया गया-आवेश तथा उनकी स्थितियाँ-तथा उन आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा निर्धारित की गई। इस अनुभाग में हम इससे संबंधित परंतु भिन्न प्रश्न पूछते हैं।
किसी दिए गए क्षेत्र में किसी आवेश q की स्थितिज ऊर्जा क्या होती है? वास्तव में, यह प्रश्न आरंभ बिंदु था जो हमें स्थिरवैद्युत विभव की धारणा की ओर ले गया था । परंतु यही प्रश्न हम फिर दुबारा यह स्पष्ट करने के लिए पूछ रहे हैं कि किस रूप में यह अनुभाग 2.7 में की गई चर्चा से भिन्न है।
यहाँ प्रमुख अंतर यह है कि अब हम यहाँ पर किसी बाह्य क्षेत्र में आवेश (अथवा आवेशों) की स्थितिज ऊर्जा के विषय में चर्चा कर रहे हैं। इसमें बाह्य क्षेत्र E उन दिए गए आवेशों द्वारा उत्पन्न नहीं किया जाता जिनकी स्थितिज ऊर्जा का हम परिकलन करना चाहते हैं। विद्युत क्षेत्र E उस स्रोत द्वारा उत्पन्न किया जाता है जो दिए गए आवेश (आवेशों) की दृष्टि से बाह्य होता है।
बाह्य स्रोत ज्ञात हो सकता है परंतु प्रायः ये स्रोत अज्ञात अथवा अनिर्दिष्ट होते हैं, जो कुछ भी यहाँ निर्दिष्ट होता है वह है विद्युत क्षेत्र E अथवा बाह्य स्रोतों के कारण स्थिरवैद्युत विभव V।
हम यह मानते हैं कि आवेश q बाह्य क्षेत्र उत्पन्न करने वाले स्रोतों को सार्थक रूप से प्रभावित नहीं करता। यदि qअत्यधिक छोटा है, तो यह सत्य है अथवा कुछ अनिर्दिष्ट बलों के प्रभाव में बाह्य स्रोतों को दृढ़ रखा जा सकता है।
यदि q परिमित है तो भी इसके बाह्य स्रोतों पर प्रभाव की उन परिस्थितियों में उपेक्षा की जा सकती है, जिनमें बहुत दूर अनंत पर स्थित अत्यधिक प्रबल स्रोत हमारी रुचि के क्षेत्र में कोई परिमित क्षेत्र E उत्पन्न करता है।
फिर ध्यान दीजिए, हमारी रुचि किसी बाह्य क्षेत्र में, दिए गए आवेश q(तत्पश्चात आवेशों के किसी निकाय) की स्थितिज ऊर्जा निर्धारित करने में है; हमें बाह्य विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करने वाले स्रोत की स्थितिज ऊर्जा में कोई रुचि नहीं है।
बाह्य विद्युत क्षेत्र E तथा तदनुरूपी बाह्य विभव V का मान एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर जाने में परिवर्तित हो सकता है। परिभाषा के अनुसार, किसी बिंदु P पर विभव V एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु P तक लाने में किए गए कार्य के बराबर होता है |
अतः किसी आवेश १ को अनंत से बाह्य क्षेत्र के किसी बिंदु P तक लाने में किया गया कार्य qV होता है। यह कार्य आवेश व में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। यदि बिंदु P का किसी मूल बिंदु के सापेक्ष कोई स्थिति सदिश r है, तो हम यह लिख सकते हैं कि:
किसी बाह्य क्षेत्र में आवेश q की r पर स्थितिज ऊर्जा = qV(r)
यहाँ V(r) बिंदु r पर बाह्य विभव है।